Sunday, May 31, 2009

शहीद भगत सिंह नगर में बिक रहे हैं उत्तराखंड के

नवकांत भरोमजारा, बंगा केंद्र सरकार एक तरफ आंगनबाड़ी केंद्रों में पढ़ रहे बच्चों के खाने-पीने के लिए दलिया, पंजीरी, दूध, बिस्कुट व अन्य पदार्थ निशुल्क उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है, वहीं उत्तराखंड प्रशासन द्वारा आंगनबाड़ी के लाभार्थियों के लिए निशुल्क वितरण के लिए बनाए गए बिस्कुट के पैकेट जिला शहीद भगत सिंह नगर के ग्रामीण क्षेत्रों में बिक रहे हैं। इससे केंद्र सरकार की योजनाओं की पोल खुलती नजर आ रही है कि कैसे बच्चों को दी जाने वाली खाद्य सामग्री का गोरखधंधा चल रहा है, जिससे प्रशासन बेखबर है। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने बिस्कुट के इन पैकेटों पर नि:शुल्क वितरण के बारे में भी लिखा है। इसके बावजूद इन्हें बेचा जा रहा है। सूत्रों से अनुसार 40 रुपये में बिस्कुट के 60 पैकेट बेचे जा रहे हैं। परचून में 75 ग्राम का एक पैकेट एक रुपये में बेचा जा रहा है और उस पर पैकिंग की तारीख अप्रैल, 2008 है। पैकेट कोलकाता व ग्रेटर नोएडा में बनाए गए है। इस संबंध में एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये पैकेट उन्हे एक होल सेलर बेच रहा है। जब इस संबंध में बंगा के सीडीपीओ जीवन कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मामला उनके ध्यान में आ गया है और उन्होंने क्षेत्र की आंगनबाड़ी सुपरवाइजर व आंगनबाड़ी वर्करों की इस संबंध में अधिक जानकारी एकत्रित करने की ड्यूटी लगाई है। इस कार्य में संलिप्त लोगों की धरपकड़ के लिए उचित कार्रवाई की जाएगी। इस संबंध में समाज सेवी संस्थाओं के दिलबाग सिंह बागी, वीपी बेदी, मनधीर सिंह चट्ठा, डा. बलवीर शर्मा, संजीव जैन, रजनीश नैयर ने मांग की है कि इस ओर शीघ्र उचित कदम उठाए जाएं।(साभार)

कैसे रखे जाते हैं तूफानों के नाम?

सिद्र, कैटरीना, टीना, नरगिस, बिजली और अब आइला। ये उन तूफानों के नाम हैं जो समय-समय पर अलग-अलग इलाकों में कहर मचा चुके हैं। आखिर इन्हें यह नाम कैसे मिले? तूफानों के नामकरण का अपना ही फामरूला है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह नाम छोटा हो और उस क्षेत्र विशेष के लिए जाना पहचाना हो। इसके पीछे मकसद यही होता है कि तूफान के दौरान मौसम विभाग के अधिकारियों को स्थानीय लोगों को चेतावनी व राहत अभियानों के बारे में जानकारी देने में दिक्कत नहीं हो। हाल ही में आने वाले तूफान आइला का नामकरण मालदीव के मौसम विभाग ने किया था। तूफानों के नामकरण का भी अपना दिलचस्प इतिहास है। तूफानों के नामकरण की शुरुआत का श्रेय बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में एक आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी को जाता है। उन्होंने तूफानों का नामकरण उन नेताओं के नाम पर किया, जिन्हें वह नापसंद करता था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के जवान तूफानों को अपनी पत्नी या महिला मित्र के नाम से पुकारते थे। आजकल अधिकांश नामकरण फूलों, पशुओं, पक्षियों और खाद्य सामग्री के नाम पर किया जाता है। इसकी भी एक तयशुदा प्रक्रिया है। विश्व मौसम संगठन (डल्ब्यूएमओ) की टाइफून समिति के सदस्य देश स्थानीय शब्दावली के अनुसार तूफानों के नाम रखते हैं। भावी तूफानों का नामकरण पहले ही कर दिया जाता है। उत्तरी हिंद महासागर के आठ देशों के समूह ने आने वाले 64 तूफानों के नामों की सूची बना ली है। इस समूह में भारत भी शामिल है। इस क्षेत्र में आने वाले भावी तूफान का नाम ‘फ्यान’ होगा। यह नाम म्यान्मार ने दिया है।(साभार)

उन्हें चाहिए बस पांच मिनट! अमिताभ बच्चन

जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार नहीं किया। वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। अतिथि x अमिताभ बच्च्नमुझे आज पूर्णता का एहसास हो रहा है। मैं दिन भर अपने पिता की स्मृतियों से गुजरता रहा। मैं एक प्रस्तावना के लिए अंधेरे में ही उन समुचित भावनाओं और शब्दों की तलाश करता रहा, जिनमंे मेरे पिता की शख्यिसत संपूर्णता के साथ अभिव्यक्त हो सके।यह कुछ-कुछ वैसा ही संघर्ष था, जैसा मधुशाला के दौरान करना पड़ा था। मेरी नई फिल्म ‘अलादीन’ की डबिंग और अगली फिल्मों के निर्माताओं व टीवी चैनलों के साथ चर्चा के दौरान अंतिम प्रारूप अब तैयार होने की स्थिति में आ चुका है।पिता ने अपनी भूमिकाओं में जो कहा, मैंने इस प्रस्तावना के लिए बहुत कुछ उसी से लिया है। उन्होंने काफी कुछ लिखा है, लेकिन इसके बावजूद उनकी लिखने की चाहत कम नहीं हुई। उनके प्रति न्याय करना बेहद मुश्किल है। माता-पिता, उनके स्वार्थरहित प्रेम और शर्तविहीन देखभाल के प्रति न्याय करना लगभग असंभव है। जब मैं उनकी उपस्थिति की कल्पना करता हूं तो उनके सामने स्वयं को बौना महसूस करने लगता हूं। मैं जब पुरानी बातों के बारे में सोचता हूं तो महसूस होता है कि उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के जरिए कैसे हमारा लालन-पालन किया होगा।अपने लिए तो उनकी कोई चाहत थी ही नहीं। कदम-कदम पर आने वाली आर्थिक परेशानियों का उन्होंने किस तरह से सामना किया होगा। जब वे अपने बच्चों की असीमित और अनगिनत मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं पाते होंगे तो दुनिया का सामना कैसे करते होंगे। हमें जल्दी ही एहसास हो गया था कि हम हमारी कक्षा के अन्य अमीर बच्चों से मुकाबला नहीं कर सकते। उस समय हमारे दिमाग में कितनी उथल-पुथल मची होगी, जब हमें स्वयं के मन को यह समझाकर पीछे बैठना पड़ा कि हमारी आर्थिक स्थिति उन अमीर बच्चों की स्थिति से अलग है।मैं उस समय तो निराशा में लगभग चीख उठा था, जब मेरी मां मुझे दो रुपए नहीं दे पाई। जी हां, केवल दो रुपए। ये दो रुपए मुझे अपनी कक्षा की क्रिकेट टीम में शामिल होने के लिए चाहिए थे। हमें हमारे दोस्त की बर्थ डे पार्टी में साइकिल चलाकर क्यों जाना पड़ता था, जबकि अन्य साथी चमकदार कारों में बैठकर आते थे। यह भी जल्दी ही समझ में आ गया था कि क्यों मेरे ड्रॉइंग रूम में एयरकंडीशनर नहीं लगा था, जो मेरे अमीर दोस्त के कमरे मंे लगा हुआ था।क्यों मेरे पास केवल एक जोड़ी जींस और एक ही कोट था। दिक्कत इसलिए होती थी, क्योंकि मुझे सभी बड़े अवसरों पर यही ड्रेस पहननी पड़ती थी। मुझे अब भी याद है दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम था। इसमें हर्बर्ट वॉन करंजन प्रस्तुति देने वाले थे।उसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन वहां जाने में मैं बहुत शर्मिदगी महसूस कर रहा था। इसकी वजह यह थी कि मेरे पास केसरिया रंग का एक ही कोट और एक काले रंग का ट्राउजर था। उसे शायद ही कभी ड्राईक्लीन के लिए भेजा गया होगा, क्योंकि उसका खर्च हम वहन नहीं कर सकते थे। यूनिवर्सिटी में मुझे कैसा महसूस हुआ होगा, जब मैं कोका कोला की एक बॉटल नहीं खरीद सका। वह चार आने में मिलती थी और इतना पैसा मेरे पास नहीं था। न ही मैं स्वादिष्ट खीरे के टुकड़े खरीद पाता था। यह खीरा रोजाना मेरे कॉलेज परिसर के दरवाजे पर एक व्यक्ति छोटी-सी ठेलागाड़ी में रखकर बेचता था।सालों के बाद मैं स्थापित हो गया। जिंदगी अच्छे ढंग से चलने लगी। अब मैं कोका कोला के क्रेट्स खरीद सकता था, अत्याधुनिक मॉडलों की लक्जरी कारों में सफर कर सकता था, महंगे से महंगे रेस्टोरेंट में जा सकता था और अच्छे से अच्छा खाना खा सकता था। जब हम कोलकाता में थे तो 10 बाई 10 के छोटे-छोटे कमरों में रहा करते थे। अब हमारे पास अपना स्वयं का भव्य मकान था। जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, उनसे कहा कि जो चाहिए, मांग लीजिए तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब क्यों नहीं मिला? उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार क्यों नहीं किया? ऐसा इसलिए क्योंकि वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। बस वे इतना ही तो चाहते थे!वे मेरे अपने ही थे जिन्होंने हमारे पालन-पोषण और हमारी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आज उन्हें किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। वे तो इतना ही चाहते थे कि हम अपने पांच मिनट उन्हें दे दें। वे केवल पांच मिनट ही चाहते थे!मेरे माता-पिता तो आज नहीं रहे, लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने हैं जो अपनी दिनचर्या में से थोड़ा समय निकालकर अपने पिता या माता के साथ बैठते हैं, उनसे बतियाते हैं!(साभार)

प्रकृति के प्रकोप से पर्यटकों का आगमन घटा

दार्जिलिंग आइला के तांडव से पार्वत्य क्षेत्र में पर्यटकों का आगमन प्रभावित हुआ है। उक्त मंतव्य गोर्खा पार्वत्य परिषद के टूरिज्म डाइरेक्टर दीपक लोहार ने शनिवार को व्यक्त किया। वैसे मई माह में पहाड़ पर अत्यधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। विगत वर्ष की तुलना में इस वर्ष पर्यटकों के आगमन में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई थी परन्तु 26 मई को पार्वत्य क्षेत्र में आइला का जो तांडव मचा उससे पर्यटकों का आगमन काफी प्रभावित हुआ डाइरेक्टर लोहार ने कहा कि इस वजह से परिषद की आय में डेढ़ करोड़ की क्षति हुई है। उन्होंने बताया कि परिषद से जुड़े करीब 22 पर्यटन स्थल व लाज हैं जिससे परिषद को अच्छी आय होती है परन्तु 26 मई को हुए भूस्खलन से पार्वत्य क्षेत्र में पर्यटकों से प्राप्त होने वाली आय पर अच्छा खासा प्रभाव पड़ा है। जिससे डेढ़ करोड़ की आय प्रभावित हुई है। इधर इस संदर्भ में दार्जिलिंग होटल आनर्स एसोसिएशन के पाल्देन लामा ने बताया कि 26 मई को हुए प्राकृतिक प्रकोप की वजह से पर्यटकों का यातायात प्रभावित हुआ था लेकिन स्थानीय प्रशासन व होटल आनर्स एसोसिएशन ने पर्यटकों को यातायात की सुविधा दिलाने में मदद की थी परन्तु राज्य की वामफ्रंट सरकार इसे दूसरे रुप में प्रचारित कर लोगों को भयभीत किया लेकिन फिर भी पहाड़के होटलों में वर्तमान समय में भी पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ है विगत वर्ष की तुलना में पहाड़ पर काफी तादाद में पर्यटक आये। दार्जिलिंग पहाड़ में करीब तीन सौ के आसपास होटल हैं जिनमें पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ है।

Saturday, May 30, 2009

अलीपुर पुलिस कोर्ट में साफ-सफाई का अभाव

कोलकाता अलीपुर पुलिस कोर्ट में साफ-सफाई की कमी की वजह से परेशानियां हो रही हैं। यहां व्याप्त गंदगी की समस्या से वकीलों तथा क्लर्क के साथ न्याय की तलाश में आने वाले लोगों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि अलीपुर पुलिस कोर्ट में महानगरी कोलकाता के साथ ही दक्षिण चौबीस परगना जिले के विभिन्न प्रांतों से रोजाना अनेकों लोग आते हैं। अलीपुर पुलिस कोर्ट की इस समस्या के संबंध में पुलिस कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार दत्त ने बताया कि कोर्ट में स्थित खुले नाले व‌र्ज्य पदार्थो से भरे हुए हैं। इन ओपन ड्रेन में जमे गंदे पानी से बदबू निकलती है जिससे यहां काम-काज निपटाना बेहद दूभर हो रहा है। इसके साथ जमे गंदे पानी में मच्छर अंडे दे रहे हैं। इससे पुलिस कोर्ट परिसर में मच्छरों का उपद्रव बेहद बढ़ गया है। मच्छरों की भारी संख्या से लोगों को मलेरिया, डेंगू तथा चिकुनगुनिया फैलने का डर सताता रहता है। कोर्ट परिसर में कूड़े-कचरे का अंबार लगाने में यहां के दुकानदार भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। दस वर्ष पूर्व तक कोर्ट परिसर में जमादारों द्वारा नित्य साफ-सफाई की जाती थी परंतु अब यहां ज्यादातर केवल कुछ सीमित क्षेत्रों की सफाई करते हैं। इधर अलीपुर पुलिस कोर्ट में पेयजल की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। यहां एक ट्यूबवेल है तथा इसके आसपास लोग खुलेआम मूत्र त्यागते हैं। इस स्थिति से ट्यूबवेल से पानी लेना भी यहां के लोगों को अच्छा नहीं लग रहा। दूसरी ओर अलीपुर पुलिस कोर्ट में नित्य साफ-सफाई की मांग तथा खुले नालों को भूमिगत करने जैसी मांगों को लेकर अलीपुर बार एसोसिएशन द्वारा दक्षिण चौबीस परगना जिला के अतिरिक्त जिलाधिकारी को कई बार ज्ञापन सौंपा गया है।

खामियों को दूर करने पर जोर देगी सरकार

कोलकाता वाममोर्चा सरकार अपने 32 वषरें के शासन में उपलब्धियों का बखान करने के बजाय अब खामियों को चिन्हित करेगी और उसे दूर करने पर जोर देगी। त्रुटियों को चिन्हित कर उसे दूर करने पर विशेष जोर देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने अपने सहयोग मंत्रियों को अगले दो वषरें के लिए प्राथमिकता के आधार पर विकास कार्य का खाका तैयार करने का जो दिशा निर्देश दिया है, उसमें उन्होंने कहा है कि भूमि का वितरण, कृषि, पशु संसाधन, मत्स्य पालन, सिंचाई और उन्नत बीज पर विशेष नजर रखनी होगी। उद्योग के लिए राज्य में पूंजी का निवेश बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए बिजली का उत्पादन बढ़ाना होगा। नये सिरे से बीपीएल कार्ड तैयार करने के लिए गरीबों से संपर्क करना होगा। समाज के पिछड़े वर्ग खास कर अल्पसंख्यकों के लिए रोजगार और शिक्षा के समान अवसर तैयार करने होंगे। उनके लिए आवास योजना को मूर्त रूप देना होगा। संपूर्ण साक्षारता के लिए सभी बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयासरत होने की जरूरत है। उर्दू भाषियों के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करना होगा। पंचायत, ग्रामीण विकास और नगर विकास को अपनी अतिरिक्त जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। भ्रष्टाचार और जनसेवा के प्रति नाकारात्मक मनोभाव प्रशासन के लिए बड़ी समस्या है। इसे हर हाल में दूर करना होगा। मंत्रियों को सात जून तक मुख्यमंत्री के को अपनी कार्यसूची की रिपोर्ट सौंपनी है।

अब सिगरेट की बिक्री में कमी की चिंता

अगर स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी चित्रों के जरिए दी जाती है तो इससे घरेलू सिगरेट की मांग प्रभावित हो सकती है।
इस महीने की शुरुआत में ही उच्चतम न्यायालय ने यह चेतावनी दी है कि 31 मई से तंबाकू से जुड़े उत्पादों पर स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी का प्रदर्शन चित्रों के जरिए करना है। ऐसे में इन चित्रों के साथ स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी से इन उत्पादों की मांग तेजी से गिर सकती है।
इस महीने 6 तारीख को न्यायालय ने सिगरेट और तंबाकू से जुड़े दूसरे उत्पादों के लिए यह नियम बनाया गया है कि इन उत्पादों की पैकेजिंग पर चित्रात्मक चेतावनी दी जानी चाहिए।
टोबैको इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया के निदेशक उदयन लाल को भी यह आशंका है कि इस चेतावनी का गंभीर असर उपभोग पर पड़ सकता है और यह ऐसे समय पर हो रहा है जब अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं कर रही है। उन्हें यह भी आशंका है कि भारत में स्वास्थ्य से जुड़ी चित्रात्मक चेतावनी से तस्करी से लाए गए सिगरेटों की मांग में इजाफा होगा।
इसकी वजह यह भी है कि भारत में तस्करी से लाए गए सिगरेटों का बड़ा बाजार है और दूसरी तरफ घरेलू सिगरेटों पर बहुत ज्यादा कर लगा है। उनका कहना है, 'इस तरह के सिगरेट की मांग बढ़ेगी क्योंकि इन पर स्वास्थ्य की चेतावनी नहीं लिखी होती। ऐसे में इसे कम नुकसानदायक समझा जाएगा।'
तंबाकू संस्थान का कहना है कि घरेलू सिगरेट पर ज्यादा कर लगाए जाने की वजह से वैसे सिगरेटों की मांग बढ़ रही है जो बड़ी संख्या में छोटी इकाइयां बनाती है और कर देने से बचती हैं। लाल का कहना है, 'इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस तरह की इकाइयों द्वारा बनाए गए सिगरेट पर चित्रात्मक स्वास्थ्य चेतावनी लिखी ही हो।
इसी वजह से घरेलू उद्योग जो शुल्क का भुगतान कर रहे हैं उनको ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा।' लाल ने यह सफाई दी कि टोबैको इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया तंबाकू उत्पादों की बिक्री और उसके निर्माण से जुड़े इस तरह के नियमों हटाने या खत्म करने की वकालत नहीं कर रहा है। उनका कहना है, 'यह नियम समानता और अनुसरण करने लायक बनाया जाना चाहिए।'
भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। यहां पर खपत का तरीका अनोखा है। दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग, जहां तंबाकू के कुल उपभोग में सिगरेट का अनुपात 90 प्रतिशत होता है, भारत में सिगरेट की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। शेष 85 प्रतिशत हिस्से की खपत अन्य परंपरागत तरीकों जैसे बीड़ी, खैनी और गुटका में होता है, जिसकी हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है।
इसका उत्पादन असंगठित क्षेत्रों द्वारा होता है। इस अनोखे तरीके से तंबाकू की खपत के परिणामस्वरूप बहुत बड़ी मात्रा में तंबाकू बगैर ब्रांड के और खुले रूप में बेचा जाता है, जिस पर सचित्र वैधानिक चेतावनी भी नहीं लगाई जा सकती।
आईटीसी के प्रवक्ता नजीब आरिफ का कहना है कि सभी सिगरेट विनिर्माताओं को 31 मई के बाद नए पैक में सिगरेट बेचना होगा, जिस पर बदली हुई स्वास्थ्य चेतावनी होगी। यह कठिन प्रक्रिया है, लेकिन हम इसके लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं।

आपदा में भी मेयर को कमाई का लालच

कोलकाता आयला के कहर से अभी भी बंगाल नहीं उबर सका है. कोलकाता नगर निगम के आयुक्त अलापन बंद्योपाध्याय की माने, तो हजारों निगम कर्मचारी 72 घंटे से युद्ध स्तर पर राहत व बचाव कार्य में लगे हैं. इसके उलट मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य को आमदनी की चिंता है. उन्हें शुक्रवार को कलकत्ता हाइकोर्ट में जज प्रसेनजीत मंडल की अदालत में एक मामले की पैरवी करते देखा गया. मामला मतनभागा नगर पालिका के पार्किंग फीस वसूलने का था. मेयर (जो वकील भी हैं) नगर पालिका के विरोध में मामला लड़ रहे हैं. तीन जून को फिर इस मामले की सुनवाई होगी. आपदा की स्थिति में जहां सभी लोग पीड़ितों की सहायता में लगे हैं, वहीं मेयर को धनोपार्जन की पड़ी है. इस संबंध में संवाददाताओं ने जब मेयर से बात करनी चाही, तो उन्होंने बात करने से साफ इनकार कर दिया. उधर, मेयर के इस रवैये से बुद्धिजीवियों में नाराजगी है. नाम नहीं छापने की शर्त पर कलकत्ता हाइकोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि वकालत झूठ- सच का व्यवसाय है. वकीलों को तथ्यों तो तोड़-मरोड़ कर पेश करना पड़ता है. मेयर पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति झूठ-सच का व्यवसाय नहीं कर सकता. अधिवक्ता ने कहा कि मेयर ने कमाई के लिए पद की गरिमा को धूमिल किया है. एक दूसरे वकील ने कहा कि श्री भट्टाचार्य रुपये के लिए कुछ भी कर सकते है. सूत्रों के अनुसार विकास रंजन भट्टाचार्य की पांच मिनट की फीस 50 से 60 हजार रुपये है.

Friday, May 29, 2009

आइला प्रभावित क्षेत्रों में स्थिति गंभीर

चक्रवात 'आइला' के तांडव के तीन दिन बाद भी स्थिति गंभीर है। हजारों लोग फंसे हुये हैं, जिन्हें हेलीकाप्टरों से सेना के जवान खाद्य सामग्री, दवाइयां व पीने का पानी पहुंचा रहे हैं। बुधवार को मौसम ठीक रहने से राज्य प्रशासन व सेना ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्य तेज कर दिया। प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल-बिजली व्यवस्था चौपट है। बिजली व पानी नहीं मिलने से आक्रोशित लोगों ने जगह-जगह प्रदर्शन किया।
सेना, बीएसएफ और जिला पुलिस के जवान हजारों लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंच चुके हैं लेकिन सुंदरवन व संदेशखाली की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुयी है। तूफान से बंगाल में मरने वालों की संख्या सौ के करीब पहुंच गयी है जबकि दर्जनों लोग लापता हैं। सूबे में करीब 20 लाख लोग तूफान से प्रभावित हैं। सेना के प्रवक्ता ने बताया कि उत्तार व दक्षिण चौबीस परगना जिले में दो हेलीकाप्टर व छह स्पीड बोटों से अब तक सैकड़ों टन सूखा खाद्य पदार्थ, पानी पहुंचाया जा चुका है। दूसरी ओर महानगर समेत कई जिलों में बिजली और पानी का संकट व्याप्त है। गर्मी में बिजली व पानी नहीं मिलने से लोग परेशान हो कर सड़क जाम, प्रदर्शन व तोड़फोड़ करने लगे हैं।
बताया जाता है कि संदेशखाली, कुलतली व सुंदरवन इलाके में राहत सामग्री पहुंचाने व फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने में अभी भी दो दिन और लग सकते हैं।
दार्जिलिंग भेजी गयी आपदा प्रबंधन की टीम, गृह सचिव आज जायेंगे : मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने महानगर में विद्युत आपूर्ति सामान्य करने के लिए सीइएससी को निर्देश दिया है। उन्होंने खुद सीइएससी के अधिकारियों से बातचीत की और अतिरिक्त कर्मियों को लेकर बिजली की आपूर्ति स्वाभाविक करने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री ने बुधवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उत्तार बंगाल में भी स्थिति गंभीर होने की सूचना मिली है। दार्जिलिंग में भू धसान से 21 लोगों के मारे जाने की खबर है। वहां आपदा प्रबंधन की दो टीमें भेज दी गयी है। सिलीगुड़ी से सूखा खाना, त्रिपाल और अन्य राहत सामग्री दार्जिलिंग भेजी गयी है। गुरुवार को गृह सचिव अद्र्धेदू सेन पहाड़ में स्थिति का जायजा लेने के लिए वहां जायेंगे।
सुंदरवन के वन्यजीवों पर भी तूफान ने ढाया कहर : आयला ने दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल सुंदरबन को इसने बुरी तरह प्रभावित किया है। सुंदरबन में अब तक व्यवस्थित राहत कार्य शुरू नहीं किया जा सका है। आयला से हुई तबाही ने सबसे ज्यादा यहां के वन्य जीवों को प्रभावित किया है। संवेदनशील पर्यावरण वाले सुंदरबन की मुख्य पहचान रायल बंगाल टाइगर को भी तूफान के कहर का सामना करना पड़ा है। तूफान थमने के बाद वन विभाग द्वारा शुरू किये गये प्रारम्भिक बचाव कार्यो में अब तक तीन हिरणों के शव बरामद किये गये हैं जबकि दो को बचा लिया गया। वन अधिकारियों के मुताबिक नदियों के तटबंध टूटने से अभी भी जंगल का बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। पानी घटने के बाद ही नुकसान का वास्तविक आकलन हो सकेगा।
गांव में पहुंची बाघिन : तूफान के बाद संजेखाली टाइगर रिजर्व से एक बाघिन गोमोर नदी पार कर स्थानीय गांव जमेशपुर पहुंच गयी। यहां के निवासी पिंटू ने बताया कि गांव में खड़ी बाघिन को देखकर लोगों के होश उड़ गये। तूफान के कहर से बाघिन काफी भयभीत दिखायी पड़ रही थी। वन विभाग को सूचना देने के बाद उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर जंगल के अंदरूनी हिस्से में छोड़ा गया।
तूफान की तबाही के बाद स्वाभाविक हुआ महानगर : तूफान से हुई भारी तबाही के बाद तीसरे दिन महानगर लगभग स्वाभाविक हो गया। मौसम सामान्य होने से लोग अपने दैनिक कार्यो में लग गये। कोलकाता की सड़कों पर गिरे वृक्षों को हटा लिया गया है। हालांकि फुटपाथों पर वृक्षों की टहनियां व्यवधान उत्पन्न कर रही थीं।
तूफान पीड़ितों के लिए आज से वामो का धन संग्रह अभियान : वाममोर्चा के कार्यकर्ता गुरुवार से प्राकृतिक आपदा में पीड़ितों के लिए धन संग्रह अभियान शुरू करेंगे। पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए गुरुवार से शुरू होनेवाला धन संग्रह अभियान लगातार 3 जून तक चलेगा।
ममता ने कहा- सरकार विफल : रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य सरकार चक्रवाती तूफान से पीड़ितों को राहत पहुंचाने में विफल रही है। अब भी दक्षिण चौबीस परगना जिले के कई इलाकों में पीड़ित लोग पानी में रहने को विवश हैं। उन्हें खाद्य सामग्री और न पेयजल नहीं मिल रहा है। पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिमी मेदिनीपुर, हावड़ा व हुगली के भी कुछ इलाकों में पीड़ितों तक राहत नहीं पहुंचायी गयी है। बंगाल में आपदा प्रबंधन के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार राहत पहुंचाने के पहले घर बनाने के लिए क्षतिपूर्ति देने की घोषणा कर रही है जबकि जीवन बचाने के लिए भोजन जरूरी है। उन्होंने कालीघाट स्थित अपने निवास पर दिल्ली जाने के पूर्व पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि मैं दिल्ली जा रही हूं वहां प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से पीड़ितों के विशेष पैकेज के लिए बात करुंगी। मैं केन्द्रीय प्रतिनिधि हूं लेकिन मेरे साथ सरकार के किसी प्रतिनिधि ने बात नहीं की।

पेड़ों की भारी क्षति की पूर्ति को पौधारोपण की तैयारी

राज्य सरकार ने चक्रवाती तूफान से महानगर में पेड़ों को पहुंची क्षति की भरपाई करने के लिए पौधारोपण अभियान चलाने का निर्णय किया है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टंाचार्य ने इस बाबत वन विभाग को योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में 1000 पौधे लगाने की योजना है। राइटर्स में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय किया गया। बैठक में अतिरिक्त प्रधान वन संरक्षक समेत वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
गौरतलब है कि सोमवार को आये तूफान में लगभग 2000 पेड़ धराशायी हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के निर्देश पर वन विभाग क्षति का आकलन कर योजना बनाने में जुट गया है। विभाग ईस्ट-वेस्ट मेट्रो परियोजना के लिए काटे गये पेड़ों की भरपाई के लिए भी योजना तैयार कर रहा है। गौरतलब है कि परियोजना कार्य के लिए साल्टलेक में अब तक 800 पेड़ काटे जा चुके हैं। विभाग की साल्टलेक व आसपास के इलाकों में अलग से 3000 पौधे लगाने की योजना है। पिछले दिनों कुछ पौधे लगाये गये थे जो तूफान में उखड़ गये। विभाग महानगर में जगह-जगह गिरे पेड़ों को हटाने में भी कोलकाता नगर निगम की मदद कर रहा है। विभाग की 10 सदस्यीय टीम इस काम में निगम का सहयोग कर रही है। जानकारों के मुताबिक गलत तरीके से रोपण व पेड़ों का आधार कमजोर होने के कारण इतनी बड़ी तादाद में पेड़ गिरे हैं।

कोलकाता पुलिस में गठित होगा आपदा प्रबंधन सेल

कोलकाता पुलिस ने भविष्य में 'आयला' जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावी तौर पर निपटने के लिए आपदा प्रबंधन सेल के गठन का निर्णय किया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सेल के तहत नौ टीमों का गठन किया जायेगा जो केवल तूफान की चपेट में आकर सड़कों व घरों पर गिरे पेड़ों को युद्ध-स्तर पर हटाने का काम करेगी। इनमें अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरणों से लैस एक विशेष टीम भी होगी जो इमारतों में फंसे लोगों के उद्धार का काम करेगी। हरेक टीम में आठ से 10 सदस्य रखने की योजना है। टीम के पास राहत कार्यों के लिए गैस-कटर, वायरलेस सिस्टम युक्त वाहन इत्यादि होंगे। कोलकाता पुलिस ने इन्हें खरीदने के लिए राज्य सरकार से आर्थिक सहयोग देने का अनुरोध किया है।
आपदा प्रबंधन टीमों के लिए नेशनल वोलेन्टियर फोर्स , ग्रीन पुलिस और होम गार्ड के 50 जवानों को चुना गया है जिन्हें उत्तर चौबीस परगना के बादु क्षेत्र में स्थित सीमा सुरक्षा बल के नेशनल सिविल इमरजेंसी फोर्स ट्रेनिंग कैम्प में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया है। वहां उन्हें एक हफ्ते तक प्रशिक्षित किया जायेगा। कोलकाता पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक उनका विभाग भविष्य में इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए पूरी तरह तैयार रहना चाहता है इसलिए यह पहल की गई है। आपदा के समय टीम जरूरत वाली जगहों पर कम से कम समय में पहुंचकर राहत कार्यों में लग जायेगी। इस बार भी पुलिस सतर्क व सक्रिय थी। मोमिनपुर, श्यामपुकुर व क्रिस्टोफर रोड इलाकों से 150 लोगों का उद्धार किया गया।

केंद्र सरकार में पहली बार बंगाल के आठ मंत्री

केन्द्र की राजनीति में पहली बार बंगाल के कांग्रेस व तृणमूल सांसदों ने महत्वपूर्ण रोल निभाते हुए जनता को आठ मंत्रियों का तोहफा दिया है। इसमें वित्तामंत्री प्रणव मुखर्जी व रेलमंत्री ममता बनर्जी शामिल हैं।
तृणमूल के छह राज्यमंत्रियों के नाम हैं-चौधरी मोहन जटुआ, दिनेश त्रिवेदी, शिशिर अधिकारी, सौगत राय, सुलतान अहमद व मुकुल राय। छह मंत्रियों द्वारा शपथ लेने के बाद महानगर व विभिन्न जिलों में कांग्रेस व तृणमूल के समर्थकों ने एक दूसरे को अबीर लगाया और बधाई दी। तृणमूल सुप्रीमो ममता के कालीघाट स्थित निवास व पार्टी मुख्यालय तृणमूल भवन में समर्थकों के बीच मिठाइयां बांटी गयीं। छह मंत्रियों के घरों पर भी मिठाइयां वितरित हुई। हालांकि तृणमूल की शपथ लिये मंत्रियों के परिवार के अधिकांश सदस्य दिल्ली में हैं इसलिए कहा जा रहा है कि उनके लौटने पर उत्सव मनाया जायेगा। सूत्रों के अनुसार ममता शुक्रवार को छह मंत्रियों के साथ महानगर लौटेंगी और उनका प्रारंभिक काम होगा चक्रवाती तूफान से प्रभावित लोगों तक राहत पहुंचाना।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार बंगाल के इतिहास में कभी पहले एक साथ आठ मंत्री शामिल नहीं हुए। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सबसे अधिक छह मंत्री थे जिसमें अब्दुल गनी खान चौधरी, अशोक सेन, प्रणव मुखर्जी, अजीत पांजा, प्रियरंजन दासमुंशी आदि प्रमुख थे। उसके बाद कभी तीन तो कभी चार मंत्री शामिल हुए। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी, अजीत पांजा, प्रियरंजन दासमुंशी व अजीत पांजा प्रमुख थे। पिछले दिनों वित्तामंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी कहा था कि इस बार बंगाल के सबसे अधिक मंत्री केन्द्र सरकार में शामिल हुए हैं। कांग्रेस के बंगाल से सिर्फ एक मंत्री बनाये जाने पर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है लेकिन वे उसे प्रकट नहीं होने दे रहे हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता डा. मानस भुइयां के अनुसार मंत्री बनाना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। अगले मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस सांसद शामिल किये जा सकते हैं।
तृणमूल के राज्यमंत्री 71 वर्षीय सीएम जटुआ सेवानिवृत आइपीएस अधिकारी हैं। वर्ष 1996 में सेवानिवृत होने के बाद 2001 में राजनीति में सक्रिय हुए और विधायक निर्वाचित हुए। इस बार तृणमूल के टिकट पर मथुरापुर से सांसद निर्वाचत हुए।
59 वर्षीय दिनेश त्रिवेदी लोकसभा चुनाव जीतने के पहले दो बार राज्यसभा के सांसद रहे हैं। अमेरिका के टैक्सास विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद कामर्शियल पायलट का प्रशिक्षण लिया और बैरकपुर में माकपा के हैविवेट प्रत्याशी तडि़त वरण तोपदार को पराजित कर सांसद निर्वाचित हुए और राज्यमंत्री बने। कांथी से निर्वाचित सांसद 69 वर्षीय शिशिर अधिकारी नंदीग्राम कांड के बाद चर्चा में आये और उन्होंने भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का संचालन कर केमिकल हब को नंदीग्राम से हटाने के लिए किसानों का नेतृत्व किया। दो बार विधायक रहे शिशिर पहली बार केन्द्र में राज्य मंत्री बने हैं। 63 वर्षीय सौगत राय कई बार विधायक रह चुके हैं और वर्ष 1977 में केन्द्रीय राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। इस बार केन्द्र में दूसरी बार राज्यमंत्री बन रहे हैं। पेशे से अध्यापक रहे सौगत राय की तृणमूल में प्रतिष्ठा है और जरूरत पड़ने पर ममता भी उनसे सलाह-मशविरा करती हैं।
56 वर्षीय सुलतान अहमद राजनीति के साथ फुटबाल क्लब की भी जिम्मेदारी निभाते हैं। तृणमूल कांग्रेस में वर्षो तक अल्पसंख्यक सेल की वर्षो तक जिम्मेदारी संभालने वाले सुलतान अहमद की पहचान पार्टी में तेज तर्रार नेता की है। इस चुनाव में अल्पसंख्यकों को तृणमूल के करीब लाने में सुलतान ने अहम भूमिका निभायी। वह केन्द्र में पहली बार राज्यमंत्री बने हैं। राज्यसभा सांसद मुकुल राय तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के करीबी नेता माने जाते हैं। सांगठनिक क्षमता नहीं होने के बावजूद पार्टी के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। पिछली बार ममता ने विपक्षी नेता पंकज बनर्जी की इच्छा के बावजूद उन्हें राज्यसभा नहीं भेजकर मुकुल राय को सांसद बना दिया। उसके बाद से पंकज ने अस्वस्थता के नाम पर राजनीति से संन्यास ले लिया। मुकुल राय भी केन्द्र में पहली बार मंत्री बने हैं। मंत्रियों के महानगर पहुंचने पर लोगों का सामूहिक आभार प्रकट किया जायेगा।

रेडियो कैब की लोकप्रियता पर कंपनियां फिदा

देश की रडियो कैब सर्विस देने वाली कंपनियां वित्त वर्ष 2009-10 में अपने गाड़ियों के बेड़े में 100 फीसदी तक इजाफा करने जा रही हैं। इस क्षेत्र की तीन बड़ी कंपनियों के अनुसार, मार्च 2010 तक वे अपने बेड़े में ब्,त्तक्क् गाड़ियां और जोड़ेंगी। रेडियो कैब यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सैटेलाइट तकनीक युक्त टैक्सी सेवा की बढ़ती लोकप्रियता पर कंपनियां फिदा हैं। मेरू कैब चालू वित्त वर्ष में अपने बेड़े में फ्,क्क्क् कारों का इजाफा करने जा रही हैं। कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट (मार्केटिंग) गेविन डेब्रियो ने बिजनेस भास्कर को बताया कि फिलहाल कंपनी मुंबई में ख्,फ्म्क्, बेंगलुरू में 8क्क्, हैदराबाद में स्त्रक्क् और दिल्ली में ब्म्क् गाड़ियां चलाती हैं। उन्होंने बताया कि अब मार्च 2010 से पहले हम इन्हीं शहरों में अपनी कारों की संख्या को 3,000 से बढ़ाकर 5,000 करेंगे। इसी अवधि में मेगा कैब भी अपनी गाड़ियों की संख्या में ख्,भ्त्तम् कारों का इजाफा कर रही है। कंपनी दिल्ली में अपनी टैक्सी संख्या को फ्फ्म् से बढ़ाकर म्क्क्, चंडीगढ़ में म्क् से ख्क्क् और कोलकाता में ख्क्क् से बढ़ाकर फ्म्क् करने जा रही है। इसके अलावा, अमृतसर और लुधियाना में फ्म्-फ्म् गाड़ियों की संख्या को भी बढ़ाकर ख्क्क् करने जा रही है। मेगा कैब की योजना मार्च फ्क्ख्क् तक मुंबई के फ्म्क् कैब के बेड़े को बढ़ाकर ख्,क्क्क् करने की है। कंपनी के जनरल मैनेजर (फ्लीट एंड ऑपरशन) बिनोद मिश्रा ने बताया कि मुंबई में विस्तार करना कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है। वहां टैक्सी का नया परमिट जारी होना बंद हो चुका है। अपनी सेवा बढ़ाने के लिए हमें पुराने टैक्सी चालकों से परमिट खरीदनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि पांच साल पुराना परमिट एक लाख रुपये तक में मिलता है। उधर, मुंबई टैक्सी मेंस यूनियन के महासचिव ए एल क्वाद्रोस ने कहा है कि मुंबई की काली-पीली टैक्सियों के चालक अपने फ्क् वर्ष पुराने परमिट को ख्.स्त्र लाख रुपये तक की कीमत में बेच रहे हैं।एक अन्य कंपनी क्विक कैब भी अपने वर्तमान टैक्यिों की संख्या फ्ब्क् से बढ़ाकर भ्म्क् करने जा रही है। क्विक कैब के एमडी गुरुविंदर सिंह ने बताया कि हम इन सारी टैक्सियों को खरीदकर चलाते हैं जबकि अन्य कंपनियां कार व ड्राइवरों को कांट्रैक्ट पर रखकर यह सेवा प्रदान करती है। यही कारण है कि हम दूसरी कंपनियों की तुलना में लगभग आधी कीमत पर अपनी सेवा दे पाते हैं। ईजी कैब की मार्केटिंग मैनेजर साक्षी विज ने बताया कि उनकी कंपनी भी नए वित्त वर्ष में अपने कारोबार को विस्तार देने के लिए योजनाएं बना रही हैं। उन्होंने बताया कि बीते दो वर्षो में रेडियो टैक्सी का कारोबार तकरीबन पांच गुना बढ़ गया है। यही वजह है कि कंपनियां इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश कर रही हैं।

रेलवे की कमाई घटने से चिंतित हैं ममता

रेलमंत्री ममता बनर्जी ने छठे वेतन आयोग के कारण रेलवे पर पड़ने वाले 14 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त बोझ को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि अभी तक रेलवे ने जो मोटी कमाई की वह बेहतर आर्थिक हालात का नतीजा है, जबकि अब वैसे हालात नहीं हैं। लिहाजा भविष्य के बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी है। बहरहाल, जुलाई में पेश होने वाले रेल बजट से चीजें साफ हो जाएंगी।
ममता ने दो दिन पहले कोलकाता में रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाल लिया था। जबकि गुरुवार को उन्होंने दिल्ली में औपचारिक रूप से कामकाज शुरू किया। राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह से फुरसत पाने के बाद दीदी सीधे रेलभवन के अपने कार्यालय पहुंची और रेलवे बोर्ड के अफसरों के साथ एक घंटे गुफ्तगू की। इसके बाद वह घर चली गई। शाम साढ़े चार बजे के करीब वह पुन: दफ्तर आई और मीडिया से रू-ब-रू हुई। इस दौरान उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि वह ऐसे समय आई हैं जब एक तरफ तो छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से रेलवे भारी वित्तीय बोझ से दबा है। जबकि दूसरी ओर मंदी के कारण कमाई गड्ढे में चली गई है। उन्होंने कहा जब वह पिछली बार रेलमंत्री बनी थीं तो उस समय भी रेलवे को पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों का बोझ ढोना पड़ा था। जब ममता का ध्यान उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद के बयान पर दिलाया गया कि वह रेलवे के खजाने में 90 हजार करोड़ रुपये छोड़कर जा रहे हैं, तो ममता ने कहा, 'कुछ दिन बाद मुझे रेल बजट पेश करना है। तब पता चल जाएगा कितना पैसा है।' ममता ने रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण की योजना का श्रेय खुद को दिया और बोलीं 'जब मैं पिछली मर्तबा एक साल पांच महीने रेलमंत्री थी तो यह योजना मैंने ही प्रारंभ की थी। चाहे तो रिकार्ड में देख लो।' हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब स्थितियों में बहुत फर्क आ चुका है। इस नई रेल को समझना पड़ेगा। इसके लिए एक हफ्ते का समय चाहिए। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि मंत्रालय चलाने के लिए दिल्ली में बैठना जरूरी है। बोलीं, 'बाबा, टेलीफोन किस लिए है।'

कन्वर्जेस के युग में पहुंची हिंदी पत्रकोरिता

तीस मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में उल्लेखनीय है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1826 में कोलकाता से पहला हिंदी पत्र उदंत मार्तण्ड शुरू हुआ। हालांकि इससे बहुत पहले वर्ष 1780 में यहीं से जेम्स आगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर शुरू कर अंग्रेजी पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। इन 183 वर्षों में हिंदी पत्रकारिता में बड़े आमूल चूल परिवर्तन आए।
अंग्रेजी पत्रकारिता के बरक्स इसके कद और ताकत में व्यापक बढ़ोतरी हुई। कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबर मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट और टीवी पर कई रूपों में उपलब्ध है। सूचना प्रौद्यागिकी के इस युग में हिंदी पत्र डिजिटल रूपों में उपलब्ध है। वरिष्ठ पत्रकार और जनसंचार विशेषज्ञ प्रोफेसर कमल दीक्षित ने बताया कि पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए उदंत मार्तण्ड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उस समय पत्रकारिता का उद्देश्य समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था।
उन्होंने बताया उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। युगल किशोर शुक्ल का उदंत मार्तण्ड 79 अंक निकलने पर चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि उसके बाद हिंदी में बहुत सारे पत्र निकले। राजा राम मोहनराय ने हिंदी सहित तीन भाषाओं में 1829 में बंगदूत नामक पत्र शुरू किया।
सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और माइक्रोसाफ्ट मोस्ट वैल्यूबल पर्सन से सम्मानित बालेन्दु दाधीच के अनुसार जो मौजूदा प्रवृत्ति है, उसके अनुसार हिंदी के अखबारों पर प्रासंगिक और तेज बने रहने का भारी दबाव है। ई पेपर उसी दिशा में एक अग्रगामी कदम है। यह अवसर भौगोलिक सीमाओं को पार करने और व्यावसायिक अवसरों के दोहन को लेकर है। प्रोफेसर दीक्षित के अनुसार हिंदी पत्रकारिता में मानवोचित मूल्यों को स्थान देने में पूर्व की अपेक्षा कमी आई है। 1950 से 55 के दशक तक जिस हिंदी पत्रकारिता को बाजार की सफलता के मानकों पर खरा नहीं माना जाता था, उसके प्रति विचारधारा परिवर्तित हुई है।
उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक के बाद से स्थिति यह हो गई कि अंग्रेजी से लेकर बड़ा से बड़ा भाषाई समूह हिंदी में अखबार शुरू करने में रुचि दिखाने लगा। हालांकि विकास के बड़े अवसर हैं, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दाधीच कहते हैं कि हिंदी पत्रकारिता का इंटरनेट के क्षेत्र में जाने का मकसद अपने प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी करना होता है। मीडिया हाउस पर अब खबरों के व्यापार का एकाधिकार नहीं रह गया है। गूगल और याहू जैसी कई कंपनियां भी खबरों के प्रसार के प्रमुख स्रोत के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रिंट मीडिया प्रसार संख्या पर आधारित है, ई पेपर भी अब इसमें शामिल किया जाने लगा है। बालेंदु दाधीच ने बताया कि हिंदी सहित अन्य भाषाओं के वेब पत्रों में बिजनेस माडल का अभाव है। विज्ञापनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, लेकिन जिस प्रकार विदेशों में प्रिंट से वेब में पत्रकारिता की प्रस्तुति बढ़ी है। वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी यही रूप स्वीकार होगा।
प्रोफेसर दीक्षित ने बताया कि हिंदी पत्रकारिता ने एक समय अपना भाषाई समाज रचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। दिनमान और धर्मयुग जैसे पत्रों ने हिंदी पाठक को उन विषयों पर सोचने और समझने का अवसर दिया, जिन पर केवल अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता था। अंग्रेजी में श्रेष्ठत्व के नाम पर दावा करने की कोई चीज नहीं है। हिंदी उस बराबरी पर पहुंच गई है। हालांकि परंपरा में अंग्रेजी पत्रकारिता हिंदी से आगे है लेकिन हिंदी पत्रकारिता ने भी लंबी दूरी तय की है।

‘आएला’ के बाद अब ओएचई का असर

कोलकाता में आई आंधी ‘आएला’ से प्रभावित रेल यातायात पटरी पर आ ही रही थी कि बुधवार की रात ओएचई टूटने की घटना घट गई। इसके कारण हावड़ा-मुंबई लाइन पर यातायात 9 घंटे बाधित रहा और ट्रेनों के लेट-लतीफी का दौर गुरुवार को भी जारी रहा।
सोमवार को कोलकाता में चली आंधी का रेल यातायात पर खासा असर पड़ा था। हावड़ा से आने वाली ट्रेनें मंगलवार को घंटो लेट से यहां पहुंची थीं। इसी तरह रेक लेट मिलने के कारण मुम्बई मार्ग से आने वाली ट्रेनें बुधवार को विलंब से बिलासपुर पहुंची। यात्रियों को उम्मीद थी कि ट्रेनें गुरुवार से निर्धारित समय पर चलेंगी। ऐसा नहीं हुआ।
बुधवार की रात झारसुगड़ा से पहले दघोरा और जामगा स्टेशन के बीच ओएचई टूट गई। बताया जाता है कि ओएचई क्रासिंग पाइंट पर टूटी, जिसके कारण रात 10:45 बजे के बाद अप-डाउन दोनों ही लाइनों पर यातायात ठप हो गया। खबर लगते ही रेल प्रशासन हरकत में आया और सुधार दल रवाना किया गया।
रात 12 बजे से सुधार कार्य शुरू हुआ। रात 2 बजे डाउन लाइन को क्लीयर किया जा सका। बताया जाता है कि अप लाइन की ओएचई दो-तीन जगहों से टूटी थी। सुधार दल ने अप लाइन को दुरुस्त करने 9 घंटे पसीना बहाया। सुबह 8 बजे अप लाइन क्लीयर हुई।
घटना के कारण हावड़ा से बुधवार की रात छूटी सभी ट्रेनें प्रभावित हरुई। इन ट्रेनों को झारसुगड़ा और इससे पहले के स्टेशनों में कंट्रोल किया गया और एक-एक करके डाउन लाइन से पासिंग दी गई। हावड़ा-मुम्बई गीतांजलि एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय रात 1:35 के बजाय साढ़े पांच घंटे लेट से सुबह 7 बजे पहुंची। पुरी-जोधपुर एक्सप्रेस 4 घंटे लेट हुई और देर रात 3:15 के बजाय सुबह साढ़े सात बजे बिलासपुर पहुंची।
शालीमार-कुर्ला एक्सप्रेस सुबह 4:20 के बजाय साढ़े तीन घंटे लेट से 8 बजे पहुंची। यही हाल हावड़ा-मुम्बई मेल का रहा। यह ट्रेन सुबह 7 बजे के बजाय 10 बजे पहुंची। हावड़ा-पुणो आजादहिंद एक्सप्रेस 2 घंटे लेट से सुबह 11 बजे यहां पहुंची। हावड़ा-एलटीटी ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस भी दो घंटे लेट आई।
अप लाइन की सभी ट्रेनों के लेट होने से रेल यात्री तीसरे दिन भी हलाकान रहे। आधी रात के बाद सफर करने वाले मुसाफिरों को स्टेशन में रतजगा करना पड़ा। कुछ यात्रियों को यात्रा भी रद्द करनी पड़ी।

रेलवे की तीव्रगति पार्सल सेवा पर ममता का ‘ब्रेक’

रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कामकाज के पहले दिन ही अपने तीखे तेवरों से रेल अफसरों को वाकिफ करा दिया है। अपने कार्यक्षेत्र कोलकाता की खातिर उन्होंने २ करोड़ रुपए प्रतिदिन के शुरूआती लक्ष्य के साथ दिल्ली-चेन्नई और दिल्ली-मुंबई के बीच शुरू की जाने वाली पार्सल एक्सप्रेस योजना पर फिलहाल ‘ब्रेक’ लगा दिया है।
उन्होंने कोलकाता को भी इसमें जोड़ने का निर्देश दिया गया है। बदलाव के बाद ही अब यह ड्रीम-प्रोजेक्ट शुरू हो पाएगा। रेलवे ने दिल्ली-चेन्नई रूट पर सप्ताह में २ दिन और दिल्ली-मुंबई रूट पर सप्ताह में ४ दिन तीव्रगति पार्सल सेवा की योजना बनाई है। इसके तहत दोनों महानगर में २४ घंटे में पार्सल पहुंचाने का दावा किया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक बड़ा व्यापारिक केंद्र होने के कारण अब कोलकाता रूट पर भी शुरूआत में कम से कम एक रैक रेलगाड़ी चलाने का प्रस्ताव किया गया है।
क्या है कारण: पश्चिम बंगाल में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि यह बदलाव इसी ‘सियासी गणित’ का ध्यान में रखकर किया जा रहा है। तृणमूल को लाभ पहुंचाने के लिए ममता की कोशिश ज्यादातर रेल परियोजनाओं को ‘वाया-कोलकाता’ लागू कराने की है।
पार्सल एक्सप्रेस योजना: १क् हजार करोड़ रुपए के पार्सल के बड़े बाजार को लपकने की जुगत में रेलवे ने तीव्रगति-सेवा (टीजीएस) योजना को आकार दिया है। योजना के अंतर्गत माल भेजने वालों को मौजूदा मालभाड़े से केवल ५ फीसदी ज्यादा रकम देनी होगी। योजना के प्रति ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ‘समय पर माल नहीं तो पैसा वापस’ का फामरूला बनाया गया है।

ममता ने लौटाया टाटा का 27 लाख का चैक

भले ही ममता बैनर्जी को उनका पसंदिदा मंत्रालय मिल गया हो लेकिन उनके तेवरों में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया। आज भी ममत उसी आक्रामक बनें हुए हैं। यूं तो राजनेता जल्दी ही अपने बयानों से पलट जाते हैं लेकिन इसे ममता का दृढ़ निश्चय कहें या जिद वह आज भी टाटा से अपनी दुश्मनी निभाती आ रही हैं। आज भी ममता केमिकल हब के लिए टाटा को जगह देनें के लिए तैयार नहीं हैं।
दूसरा भोपाल नहीं बनने दूंगी
भले ही तूफान आए या बाढ़ ममता कभी नहीं बदलेंगी। केमिकल हब के खिलाफ वह हमेशा डटकर मुकाबला करेंगी। अपने बयान में ममता ने साफ कह दिया है कि केमिकल पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह हैं और जो कंपनी भोपाल गैस कांड में ब्लैक लिस्ट हो चुकी है उसे वह कभी बंगाल में हब बनाने नहीं देंगी। जब इस कंपनी को पर्यावरण एवं प्रदूषण बोर्ड इसे क्लीयरेंट नहीं दे रहा तो हम कैसे दे दें?
टाटा कोई पैसे नहीं बांटता
नैनों को बंगाल भगाने के लिए डटकर ममता दीदी ने मुकाबला किया और सफल भी रही। यही नहीं टाटा का 27 लाख का चैक बड़ी विनम्रता के साथ लौटा भी दिया। वहीं टाटा के प्रवक्ता के अनुसार यह पैसा कोई घूस या पार्टी फंड नहीं बल्कि टाटा इलेक्टोरल ट्रस्ट द्वारा दान में दिया गया था।
इस ट्रस्ट के मानकों के अनुसार ममता फिट बैठती थी और इस लिए टाटा ने पैसा ममता को भिजवाया, वर्ना टाटा कोई पैसे नहीं बांटता। नैनों के मामले में ममता अभी भी अपनी मांग पर अडिग हैं और किसानों के हितों से हटकर जरा सा कोई फैसला नहीं लेंगी।
बंगाल की मंत्री हैं ममता
अपने मंत्रियों के साथ ममता बंगाल के लिए क्या खास करनेवाली हैं इस सवाल पर वह कहती हैं कि एक बार मंत्रालय मिल जाएं फिर देखना हम बंगाल के लिए क्या करते हैं। सभी राज्य मंत्रियों को यह निर्देश दिए जा चुके हैं कि उनका लक्ष्य बंगाल की जनता और उनके विकास का कार्य करना होना चाहिए।
भले ही ममता बंगाल के लिए बहुत कुछ करना चाहती हों पर अपने मनमुताबित करना अभी भी पूरी तरह उनके हाथ में नहीं। वह बंगाल को अपनें तरीके से संवारना चाहती हैं तो राज्य सरकार बदलना होगी।
फिलहाल उन्होंने मिशन बंगाल की शुरूआत करते हुए केंद्र से चक्रवात आइला के पीड़ितों के लिए मुआवजा जुगाड़ना शुरू कर दिया है। उन्होंने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर हरसंभव मदद का भरोसा भी ले लिया है।
अपनें पांचो मंत्रियों को ममता ने राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों का कार्यभार और राहत कार्य दे दिया है। ममता के मंत्री कार्यभार संभालते ही पहली ही गाड़ी से कोलकाता रवाना हो गए। भई जब दीदी ने खुद को बंगाल का रेलमंत्री बना लिया हो तो राज्य मंत्रियों को उनके राज्य के लिए गंभीरता से सोचना ही होगा।

Thursday, May 28, 2009

ममता की पहल

कानून की किसी किताब में यह कहीं नहीं लिखा है कि कोई मंत्री अपने मंत्रालय का कार्यभार किस स्थान पर ग्रह
ण करे। लिहाजा ममता बनर्जी ने यह काम राजधानी दिल्ली के बजाय अपने गृह राज्य प. बंगाल की राजधानी कोलकाता में संपन्न किया तो इसमें कानून या परंपरा का कोई पेच तलाशने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी इसकी सफाई वे इस रूप में दे चुकी हैं कि चक्रवात आइला के रूप में उनका राज्य अभी एक प्राकृतिक आपदा का शिकार है, ऐसे में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होकर वे रेल मंत्रालय में अपनी पहली हाजिरी लगाने दिल्ली कैसे आ सकती हैं। कार्यभार संभालते ही 500 रुपये महीने से कम आय वाले रेलयात्रियों को 100 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए 20 रुपये में मासिक पास जारी करने की उनकी घोषणा बताती है कि लालू प्रसाद यादव की लोकलुभावन परंपरा को वे और आगे ले जाने वाली हैं। अलबत्ता उनका एक बयान देश के लिए चिंता का विषय जरूर है कि तृणमूल कांग्रेस से जुड़े सारे केंद्रीय मंत्रियों को सप्ताह में पांच दिन का समय प. बंगाल में बिताना होगा। माना जा रहा है कि उनकी इस घोषणा की हद ढाई साल बाद होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव तक ही है, लेकिन कौन जाने, दस्तूर बन जाने के बाद उनके मंत्री इसे आगे भी खींच ले जाएं।
वैसे बतौर मंत्री उनका लगातार दिल्ली में बैठे रहना भी कोई अच्छी बात नहीं होगी। कई मंत्रियों की दिनचर्या ऐसी ही हुआ करती है और देश के लिए वह भी कोई कम चिंता का विषय नहीं है। लेकिन अच्छी स्थिति यही होती है कि मंत्री की नजर पूरे देश में अपने विभाग के कामकाज पर हो और तमाम राज्यों में बीच-बीच में उनकी भौतिक उपस्थिति भी होती रहे ताकि सरकारी काम महज खानापूरी तक सिमट कर न रह जाएं। ममता बनर्जी के मंत्री गण अगर उनकी घोषणा पर अक्षरश: अमल करने लगे तो उनके मंत्रालयों को उनके दर्शन हफ्ते में दो ही दिन हो पाएंगे, वह भी तभी जब उनका स्वास्थ्य लगातार सामान्य बना रहे। इसके अपने खतरे हैं और ज्यादा जिम्मेदारी वाले मंत्रालयों के लिए यह घातक सिद्ध हो सकता है। ममता बनर्जी के कोलकाता में कार्यभार ग्रहण को अगर इस खतरे से जोड़ कर देखा जाए तो उनके इस फैसले का एक बुरा आयाम सामने आता है। पश्चिम बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना तृणमूल कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न हो सकता है। लेकिन अच्छा होता कि ममता बनर्जी अपनी इस राजनीतिक चुनौती को ध्यान में रखते हुए या तो केंद्रीय मंत्रालयों का मामला विधानसभा चुनाव तक के लिए टाल ही देतीं, या अपनी पार्टी के लिए सिर्फ ऐसे ही मंत्रालय स्वीकार करतीं जिनमें मंत्रियों की अनुपस्थिति से ज्यादा फर्क न पड़ता हो। ऐसा कुछ भी न तो है और न होने वाला है, लिहाजा इस आशंका के लिए थोड़ी जगह बची हुई है कि ममता बनर्जी की दोहरी प्राथमिकता का असर कहीं उनके राज्य स्तरीय राजनीतिक हितों और यूपीए सरकार के केंद्रीय हितों, दोनों के लिए ही नकारात्मक न देखने को मिले। इस आशंका को एक तरफ रख दें तो ममता बनर्जी जमीन से जुड़ी अनुभवी नेता हैं, और रेल मंत्रालय का जिम्मा उन्होंने पहले भी संभाला है, लिहाजा उनकी क्षमता पर संदेह की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है।

ये हैं कैबिनेट और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री

मनमोहन सरकार के 14 कैबिनेट मंत्रियों, 7 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों और 38 राज्यमंत्रियों ने बृहस्पतिवार को शपथ ली। इनमें से 14 कैबिनेट मंत्रियों और 7 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों का परिचय इस प्रकार है :वीरभद्र सिंह : हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हैं। मंडी से जीतकर आए हैं। पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वे 1962 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीते थे।विलासराव देशमुख : ग्राम पंचायत के सदस्य से शुरुआत कर महाराष्ट्र की दो बार कमान संभालने वाले कद्दावर मराठा नेता देशमुख को संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य नहीं होने के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। 26 मई, 1945 को लातूर जिले के बभलगांव में जन्मे देशमुख ने एलएलबी की पढ़ाई की है। उन्होंने युवावस्था में सूखा राहत से अपनी सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं। महाराजा चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना कर कई शैक्षणिक संस्थान चलाने वाले देशमुख को पढ़ने, शास्त्रीय संगीत सुनने, वॉलीबाल और टेबल टेनिस का शौक है। उनके परिवार में उनकी पत्नी वैशाली, तीन पुत्र अमित, रितेश और धीरज हैं, जिनमें रितेश बॉलीवुड अभिनेता हैं। मुंबई में 26 नवंबर के आतंकवादी हमलों के बाद अपने पुत्र के साथ प्रख्यात निर्देशक रामगोपाल वर्मा को लेकर ताज होटल जाने के कारण विवादों से घिरे देशमुख को उसके बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।दयानिधि मारन : शौकिया हैम रेडियो ऑपरेटर दयानिधि को विरासत में राजनीति मिली है। उनके पिता मुरासोली मारन तमिलनाडु के कद्दावर नेता थे। मुख्यमंत्री एम करुणानिधि रिश्ते में उनके दादा हैं। दयानिधि के बड़े भाई कलानिधि मारन सन नेटवर्क के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं। यह समूह दक्षिण भारत में चार भाषाओं में सबसे ज्यादा उपग्रह टेलीविजन चैनल चलाता है। चेन्नई के डॉन बॉस्को स्कूल से पढ़ाई करने वाले दयानिधि का जन्म 5 दिसंबर, 1966 को तंजावुर में हुआ। 14वीं लोकसभा के वह सदस्य थे और करुणानिधि परिवार में विवाद के कारण उन्हें पिछली सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। पिछले चुनाव में ही उन्होंने अपनी सम्पत्ति करीब 1.6 करोड़ रुपये घोषित की थी।मल्लिकार्जुन खड़गे : कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन गुलबर्ग से निर्वाचित होकर लोकसभा में दाखिल हुए हैं। लगातार नौ विधानसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुके खड़गे आठ बार गुरमिटकल (सुरक्षित) विधानसभा सीट और एक बार चित्तपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से जीते थे। खड़गे हालांकि अब भी राज्य की राजनीति में ही बने रहना चाहते थे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने उन्हें 15वीं लोकसभा चुनाव में गुलबर्ग ग्रामीण सीट पर चार बार के सांसद भाजपा के रेवू नाइक बेलायगी के खिलाफ उतारा और उन्होंने नेतृत्व को निराश नहीं किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें लिया जाना इसी विश्वास का तोहफा माना जा सकता है।ए राजा : तमिलनाडु के नीलगिरी संसदीय सीट से सांसद राजा पिछली सरकार में भी मंत्री थे।सुबोधकांत सहाय : रांची से सांसद हैं। पिछली सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री थे। वीपी सिंह की सरकार में गृह राज्यमंत्री थे।एमएस गिल : राज्यसभा सदस्य हैं। केन्द्र में खेल राज्यमंत्री। पूर्व में मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं और पद्म विभूषण से सम्मानित हैं।जीके वासन : तमिल मानिला कांग्रेस के नेता जीके मूपनार के बेटे हैं। सोनिया गांधी के कहने पर कांग्रेस में पार्टी का विलय किया और राज्यमंत्री रह चुके हैं।पवन कुमार बंसल : चंडीगढ़ से सांसद बंसल पिछली सरकार में वित्त राज्यमंत्री रहे। इसके पहले उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप की भूमिका अदा की है।कांतिलाल भूरिया : मध्यप्रदेश के झाबुआ से सांसद हैं। पिछली सरकार में कृषि और खाद्य एवं रसद मंत्री रहे।मुकुल वासनिक : महाराष्ट्र के रामटेक से निर्वाचत वासनिक को कांग्रेस संगठन में कार्य करने का खासा अनुभव हासिल है। पहली बार उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। वह कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और पार्टी महासचिव हैं।कुमारी शैलजा : हरियाणा के दलित नेता चौधरी दलबीर सिंह की पुत्री कुमारी शैलजा पहली बार कैबिनेट मंत्री बनी हैं। 24 दिसंबर, 1962 को पैदा शैलजा अविवाहित हैं और उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से एमफिल की उपाधि हासिल की है। उन्होंने महिला कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी और 1990 में इसकी अध्यक्ष बनीं। 1991 में वह पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं और नरसिम्हा राव सरकार में राज्यमंत्री बनीं। पिछली सरकार में वह आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्री थीं। वह अंबाला सीट से सांसद हैं।फारुक अब्दुल्ला : शेर-ए-कश्मीर के नाम से प्रख्यात शेख अब्दुल्ला के पुत्र फारुक अब्दुल्ला वैसे तो पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन राजनीति में उन्होंने अपनी अलग जगह बनाई है। हालांकि उनका राजनीतिक करियर विवादों से अछूता नहीं रहा है। 21 अक्तूबर, 1936 को जम्मू-कश्मीर के सौरा में पैदा हुए फारुक 1981 में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष बने। 1984 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। इससे पहले 1983 में उन्होंने कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी के तालमेल से इंकार कर दिया था। 1987 में अब्दुल्ला कांग्रेस के साथ तालमेल कर चुनाव में उतरे। उन्होंने ब्रिटिश मूल की नर्स मोली से शादी की, जो ज्यादातर इंग्लैंड में रहती हैं। उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला इस वक्त जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं, जबकि मनमोहन सरकार में राज्यमंत्री बनने जा रहे सचिन पायलट उनके दामाद हैं।एम के अझागिरि : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के ज्येष्ठ पुत्र मथुवेल करुणानिधि अझागिरि को उनके पिता के राजनीतिक वारिस के तौर पर देखा जाता है, लेकिन सौतेले भाई एमके स्टालिन से उन्हें प्रतिस्पर्धा मिलती रहती है। अझागिरि करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्मल की संतान हैं। स्टालिन और अझागिरि की राजनीतिक लड़ाई उस समय सार्वजनिक हुई, जब करुणानिधि के बड़े पुत्र के समर्थकों ने मारन परिवार के स्वामित्व वाले सन टीवी समूह के अखबार दिनाकरन के दफ्तर पर हमला किया और आग लगा दी। अझागिरि को आपराधिक मुकदमों का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन उन्हें द्रमुक के एक पूर्व मंत्री की हत्या के मामले में विश्वसनीय सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
स्वतंत्र प्रभार वाले सात राज्यमंत्री
पृथ्वीराज चव्हाण : पिछली संप्रग सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री रहे चव्हाण को इस बार स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया गया है। उन्होंने राजस्थान के बिट्स पिलानी से बीई (ऑनर्स) और अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से एमएस किया है। 1991 में वह पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। फिलहाल वह राज्यसभा के सदस्य हैं।श्रीप्रकाश जायसवाल : उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत पतली रहने के समय भी लोकसभा चुनाव जीतने वाले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्रीप्रकाश जायसवाल पिछली सरकार में गृह राज्यमंत्री थे। कानपुर से सांसद जायसवाल को इस बार स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। 25 सितंबर, 1944 को उनका जन्म हुआ था।सलमान खुर्शीद : पेशे से वकील और लेखक सलमान खुर्शीद के पिता खुर्शीद आलम खां भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। वह देश के तीसरे राष्ट्रपति डा जाकिर हुसैन के पौत्र हैं और दिल्ली के सेंट स्टीफन्स तथा ऑक्सफोर्ड के सेंट एडमंड हॉल से उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई है। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान वह प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष कार्य अधिकारी थे। बाद में वह विदेश राज्यमंत्री के पद पर भी रहे। दो बार उन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संगठन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस बार वह फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए हैं।दिनशॉ पटेल : पिछली सरकार में पेट्रोलियम राज्यमंत्री रहे दिनशॉ को कांग्रेस ने 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मणिनगर सीट से उतारा था। वह हालांकि मोदी के हाथों पराजित हो गए, लेकिन पार्टी ने तब उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश कर दिया था। वह लगातार लोकसभा के लिए निर्वाचित होते आ रहे हैं।जयराम रमेश : रमेश को कांग्रेस के रणनीतिकारों में शुमार किया जाता है। वह राज्यसभा सदस्य हैं और पिछली सरकार में उन्होंने वाणिज्य राज्यमंत्री तथा ऊर्जा राज्यमंत्री का पद संभाला था। 2009 के आम चुनाव से पहले पार्टी की रणनीति तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन उनकी कुर्बानी पार्टी के काम आई और अब पार्टी ने उन्हें फिर मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया है। उनका जन्म 9 अपैल, 1954 को कर्नाटक के चिकमंगलूर में हुआ था, लेकिन वह उच्च सदन में आंध्र प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं।कृष्णा तीरथ : राष्ट्रीय राजधानी में विधायक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाली कृष्णा तीरथ पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बनी हैं। 3 मार्च, 1955 को जन्मी कृष्णा प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। 14वीं लोकसभा के दौरान वह पीठासीन अधिकारियों के पैनल में शामिल थीं।प्रफुल पटेल : कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नेता दिवंगत मनोहरभाई पटेल के सुपुत्र प्रफुल पटेल महाराष्ट्र के गोंडिया जिले से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनका जन्म 17 फरवरी, 1957 को कोलकाता में हुआ था। राजनीति में कदम रखने से पहले वह परिवार का व्यवसाय संभालते थे और उन्होंने वाणिज्य विषय से स्नातक तक की पढ़ाई की है। पटेल 34 साल की उम्र में 1991 में पहली दफा लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। उसके बाद वह लगातार जीतते रहे, लेकिन 1999 और 2004 में वह जनता का समर्थन नहीं पा सके। इस बार वह भंडारा गोदिया से निर्वाचित हुए हैं। पिछली सरकार में भी उन्हें स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री का दर्जा मिला था। वह सफल व्यवसायी हैं और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं।

हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर

हिंदी फिल्मों में कपूर खानदान की नींव रखने वाले पृथ्वीराज कपूर बहुचर्चित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की भूमिका के कारण आज भी लोगों की स्मृतियों में अपना स्थान बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने अपने दौर में फिल्म ही नहीं रंगमंच को भी काफी सशक्त योगदान दिया।
आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने करीब 16 वषरें में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी।
पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त जोर दिया गया। उनके नाटकों मे दीवार, पठान, गद्दार, किसान, पैसा, आहुति, कलाकार आदि शामिल हैं। तीन नवंबर 1906 को अविभाजित पंजाब में पैदा हुए पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर पुलिस अधिकारी थे और वह अपने पुत्र को वकील बनाना चाहते थे। वकालत की पढ़ाई के दौरान ही उनका नाट्य प्रेम जगा और उन्होंने सपनों की नगरी मुंबई की राह ले ली।
पृथ्वीराज कपूर मूक फिल्मों के दौर से ही सिनेमा से जुड़ गए। उन्होंने पहली बोलती फिल्म आलमआरा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में वह एक नाट्य कंपनी ग्रांट एंडरसन थिएटर से जुड़ गए और उस कंपनी की प्रस्तुति हैमलेट में काम किया। उन दिनों कोलकाता फिल्म निर्माण का प्रमुख केंद्र बन गया था और वह भी कोलकाता चले गए। वहां वह प्रसिद्ध न्यू थिएटर में शामिल हो गए। वहां उन्होंने कई चर्चित फिल्मों में काम किया। उन फिल्मों में सीता, मंजिल और विद्यापति शामिल हैं। उनकी जबरदस्त अभिनय प्रतिभा का परिचय 1941 में प्रदर्शित सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर में मिला। उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी से सिकंदर के किरदार को अमर बना दिया। इसी प्रकार उन्होंने 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की स्मरणीय भूमिका की।
फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के बावजूद उन्हें तृप्ति नहीं मिली और उनका ध्यान रंगमंच की ओर ही लगा रहा। कलाकार मन की इसी बेचैनी के बीच उन्होंने 1944 में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। पृथ्वीराज कपूर ने मुगल-ए-आजम, सिकंदर के अलावा अपने पुत्र राजकपूर के निर्देशन में बनी फिल्म आवारा में एक जज की अविस्मरणीय भूमिका की। उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में कल आज और कल, तीन बहूरानियां, आसमान, महल आदि शामिल हैं।
पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था। फिल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली इस महान हस्ती का 29 मई 1972 को निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया था।

Wednesday, May 27, 2009

फौजी भाइयों के लिए जूते बनाएगी बाटा

कोलकाता। फुटवियर बनाने वाली बाटा इंडिया ने रक्षा और अर्द्धसैनिक बलों के लिए फुटवियर तैयार करने की योजना बनाई है और इस संबंध में ठेके हासिल करने के लिए कंपनी ने एक समर्पित टीम का गठन किया है।बाटा इंडिया के गैर कार्यकारी अध्यक्ष पी.एम. सिन्हा ने बताया कंपनी का इरादा रक्षा अर्द्धसैनिक और पुलिस बलों के खंड में उतरने का है जहां कारोबार की व्यापक संभावनाएं हैं। हालांकि इसमें कुछ समय लगेगा।उन्होंने कहा कि कंपनी ने देशभर में 65-70 स्टोर्स खोलने की भी योजना बनाई है। वर्तमान में रक्षा बलों के लिए जूते असंगठित क्षेत्र से खरीदे जाते हैं। सिन्हा ने कहा कि बाटा ग्रामीण बाजारों में भी संभावनाएं तलाश रही है। उन्होंने कहा कि संगठित जूता उद्योग में बाटा 33 फीसद बाजार हिस्सेदारी के साथ अग्रणी स्थिति में है।

छत व पेड़ बने तबाह लोगों के पनाहगाह

कोलकाता सैकड़ों गांव जलमग्न। घरों, अन्य इमारतों की छतों और पेड़ों पर शरण लिए लोग। हजारों की तादाद में खंभे धराशायी, नतीजतन बिजली व्यवस्था ठप। टावरों के गिरने से संचार व्यवस्था भी खामोश। रेल और हवाई सेवा प्रभावित। पश्चिम बंगाल में तबाही की यह निशानियां दे गया है 'आइला' यानी प्रलयंकारी तूफान। सोमवार को मौत बनकर आया यह तूफान 70 से अधिक जिंदगियों को समेट ले गया है। दर्जनों लोग लापता हैं। कम से कम 14 लाख लोग प्रभावित हैं। बहरहाल राहत कार्य युद्ध स्तर पर है।
उत्तर-दक्षिण 24 परगना तबाह पश्चिम बंगाल में 'आइला' ने सर्वाधिक तबाही उत्तर और दक्षिण 24 परगना में मचाई है। इन दोनों जिलों में 50 लोगों की मौत हो गई है। अस्सी हजार से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। 20 हजार से अधिक कच्चे मकान ढह गए हैं। विभिन्न नदियों पर बने करीब 16 बांध टूट चुके हैं। सैकड़ों गांव जलमग्न हैं। हजारों एकड़ फसल बरबाद हो गई है। इन दोनों जिलों में लोग घरों, ऊंची इमारतों की छतों व पेड़ों पर शरण लिए हैं। बिजली आपूर्ति और टेलीफोन ठप हैं। रेल और हवाई सेवा भी प्रभावित है।
हेलीकाप्टर व बोट के साथ जुटी सेना सेना के जवान हेलीकाप्टर व स्पीड बोट की मदद से राहत कार्य में जुटे हैं और फंसे लोगों को निकाल रहे हैं। मंगलवार को सेना के करीब दो सौ जवान राहत कार्य के लिए प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे। दो हेलीकाप्टर और छह स्पीड बोट भी राहत और बचाव कार्य में लगाए गए हैं। सेना की इन टीमों को सबसे प्रभावित संदेशखाली, कुलतली और सुंदरवन के इलाके में राहत सामग्री पहुंचाने और फंसे लोगों को बाहर निकालने में लगाया गया है। सेना के छह कालम को सतर्क भी रखा गया है।
बीस ट्रक खाद्य सामग्री पहुंचीमुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने मंगलवार को दक्षिण चौबीस परगना जिले के कुल्टी इलाके का दौरा कर राहत कैंप और प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया। युद्धस्तर पर राहत और बचाव कार्य चलाने का निर्देश दिया। उन्होंने दो दिन के अंदर क्षतिपूर्ति मुहैया कराने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने बताया कि बीस से अधिक ट्रकों से खाद्य पदार्थ पहुंचाए गए हैं। राहत के लिए प्रधानमंत्री से भी उन्होंने बातचीत की है। तीन मंत्रियों को प्रभावित क्षेत्रों में कैंप करने को कहा गया है। प्रभावितों के बीच हेलीकाप्टर के अलावा आठ ट्रकों से चूड़ा, गुड़ और अन्य सूखा खाना पहुंचाया जा रहा है। राहत शिविर कायम किए गए हैं।
चार्ज लेकर ममता पहुंची काकद्वीप कोलकाता में रेल मंत्री का कार्यभार संभालने के बाद ममता बनर्जी ने मंगलवार को दोपहर विशेष ट्रेन से काकद्वीप का दौरा कर राहत व बचाव कार्य का जायजा लिया। पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री असीम दासगुप्ता और राहत मंत्री मुर्तजा हुसैन ने तूफान प्रभावितों के बीच 25 लाख रुपये अनुदान की घोषणा की।
दार्जिलिंग में भूस्खलन, 15 मरेजबरदस्त बारिश के कारण पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में भूस्खलन के कारण 15 लोगों की मौत हो गई है। नौ तो खास दार्जिलिंग और उपनगर कर्सियांग में छह लोग मरे हैं। दार्जिलिंग के जिला पदाधिकारी सुरेंद्र गुप्ता ने बताया कि सेना की पांच टीमों को राहत व बचाव कार्य में लगाया गया है।
पूर्वोत्तर भी चपेट मेंपश्चिम बंगाल के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में भी खासा नुकसान पहुंचा है। सिक्किम के गंगटोक में तीन सौ घर ढह गए हैं। भू-स्खलन के कारण अवरुद्ध हुए सड़कों पर यातायात शुरू करने के लिए बीएसएफ की आपदा प्रबंधन टीम को भी बुलाया गया है। मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिमी असम में भी दो दिनों से जारी भारी वर्षा और पचास से साठ किलोमीटर की रफ्तार से चल रहे तूफान के कारण सैकड़ों घर ढह गए और खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा है।
बांग्लादेश में पांच सौ लापताआइला तूफान ने बांग्लादेश में कहर बरपाया। 62 लोगों की मौत घरों के गिरने और डूबने से हो गई है। मछुआरों सहित पांच सौ लोग लापता हैं। सोमवार को सौ किलोमीटर की रफ्तार से बांग्लादेश के समुद्रतटीय इलाके से गुजरे 'आइला' ने जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया।

Tuesday, May 26, 2009

महानगर में खुलेगा दमकल विश्वविद्यालय

कोलकाता। केंद्रीय विमानन विभाग कोलकाता में देश का पहला दमकल विश्वविद्यालय खोलेगा। दमकल विश्वविद्यालय एयरपोर्ट इलाके के नारायणपुर में 25 एकड़ भूमि में स्थापित किया जायेगा। इसमें विमान दुर्घटना होने पर उससे निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा। स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई होगी। शुरुआती दौर में इसे हैदराबाद में खोलने की योजना थी। इंटरनेशनल सिविल एवियेशन आर्गनाइजेशन के अनुसार अब इसे कोलकाता में खोला जायेगा। कोलकाता क्षेत्र के डीजीएम जीवब्रत तरफदार ने कहा कि 737 विमान के अंदर जितने तार रहते हैं उससे दिल्ली शहर को सात बार घेरा जा सकता है। इस तरह के तथ्य अधिकारियों को जानने की जरूरत है। विमान में आग लगने पर उसे किस स्थान पर काटकर यात्रियों को निकाला जा सकता है। इसकी भी जानकारी होनी चाहिए। इसमें एयरपोर्ट अधिकारियों के अलावा उच्च माध्यमिक पास विद्यार्थियों को भी पढ़ने का अवसर मिलेगा।

मुख्यमंत्री सचिवालय को जनमुखी बनाने का प्रयास तेज

कोलकाता। राइटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री सचिवालय को अब जनमुखी बनाने का प्रयास शुरू किया जा रहा है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य के निर्देश पर इसे लेकर नौकरशाहों की गतिविधियां तेज हो गयी है। राइटर्स बिल्डिंग सूत्रों के मुताबिक श्री भंट्टाचार्य पहले से ही मुख्यमंत्री सचिवालय में आमुलचूल परिवर्तन करने पर जोर देते रहे हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को झटका लगने के बाद अब वह इसके लिए विशेष रूप से सक्रिय हुए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री सचिवालय के समस्त अफसरों से सरकार की खामियों को ढूढ़ने और जनता के हित में काम करने के लिए राय मांगी है।
मुख्यमंत्री सचिवालय में वर्तमान में दो आइएस अफसर शामिल हैं। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुवेश दास सहित मुख्यमंत्री सचिवालय में दो वरिष्ठ आईएस अफसर हैं। इसके अतिरिक्त दो संयुक्त सचिव, एक उपसचिव, निजी सचिव, और सहायक निजी सचिव भी मुख्यमंत्री सचिवालय टीम में हैं और इसमें 60 योग्य कर्मचारियों का समूह भी है। सरकार के काम की गति बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय को पीएमओ आफिस के ढांचे पर तैयार करने की बात भी उठती रही है लेकिन पार्टी ने इसके लिए हरी झंडी नहीं दी। पीएमओ आफिस का सभी मंत्रालयों पर नियंत्रण होता है लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री सचिवालय अन्य विभागों में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करता। अब बदलते हालात में मुख्यमंत्री सचिवालय विशेष रूप से सक्रिय होगा और महत्वपूर्ण मामलों में वह हस्तक्षेप करेगा। भूमि अधिग्रहण और उद्योग मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय विशेष रूप से नजर रखेगा। शिकायतों को सुनने और उसे तत्काल निपटारा करने के लिए जनता के साथ संपर्क स्थापित करने और जरूरमंदों को हर तरह से मदद करने पर जोर दिया जायेगा। मुख्यमंत्री अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ अक्सर बैठक करेंगे और विकास मूलक कायरें की समीक्षा करेंगे।

Monday, May 25, 2009

सुकांतनगर में बनेगा बैथून कॉलेज का सेकेंड कांप्लेक्स

उत्तर कोलकाता के १८१, विधान सरणी स्थित बैथून कॉलेज की स्थापना १३० साल पहले यानी १८७९ में हुई थी। लड़कियों को शिक्षित करने के मकसद से शहर में यह पहला कॉलेज स्थापित किया गया था। आरंभिक काल में जहां इस कॉलेज में १२५ लड़िकयों के बैठने और पढ़ने की व्यवस्था थी, वहीं आज यहां ११०० लड़कियां शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसके बावजूद कॉलेज के विस्तर की जरूरत है। यह मानना है कॉलेज की प्रभारी मंजुषा सिन्हा (बेरा) का। बातचीत में उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से लोग शिक्षा के महत्त्व को समझ रहे हैं और नारी शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि बैथून कॉलेज पूरी तरह से सरकारी कॉलेज है अौर कॉलेज प्रबंधन बीते कई सालों से राज्य सरकार से कॉलेज के विस्तार के लिए भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर ईएम बाईपास इलाके के समीप जमीन की मांग कर रहा था। काफी विचार-विमर्श के बाद अब यह तय हुआ कि एससीएफ, सेक्टर चार, सुकांतनगर, साल्टलेत में कॉलेज का सेकेंड कांप्लेक्स बनेगा और इसके लिए जगह की पहचान कर ली गई है। बहुत जल्द निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। पेश है कॉलेज के विस्तार के संबंध में प्रभारी मंजुषा सिन्हा (बेरा) के साथ शंकर जालान की हुई बातचीत के मुख्य अंश।
सुकांत नगर में जगह कब मिली और वहां निर्माण कायॆ कब शुरू होगा ?
जगह के बारे में बातचीत को काफी पहले से चल रही थी, इस बाबत अंतिम निर्णय बीते साल सितंबर-अक्तूबर में हुआ। फिलहाल कागजी कार्रवाई चल रही है। इसके पूरे होते ही निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।

वहां कितनी जगह है और कौन सा विभाग खोला जाएगा ?
३८ कठ्ठा जमीन है और वहां पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) विभाग खोला जाएगा। जहां एमए व एमएससी की पढ़ाई होगी।

कॉलेज के विस्तार के लिए कॉलेज प्रबंधन ने राज्य सरकार से काफी पहले ही नोनाडांगा और ईएम बाईपास इलाके में तीन एकड़ जमीन की मांग की थी, उसकी क्या हुआ ?
राज्य सरकार ने नोनाडांगा और ईएम बाईपास इलाके में जगह नहीं उपलब्ध कराई औप ना ही इसका कोई पुख्ता कारण बताया।

सही मायने में बैथून कॉलेज के विस्तार के लिए कितनी जगह चाहिए और कहां ?
कॉलेज के समुचित विकास के लिए तीन एकड़ जमीन चाहिए औप बेहतर हो कि यह जमीन मध्य और उत्तर कोलकाता से दूर शांत वातावरण वाले इलाके में हो। मेरे ख्याल में साल्टलेक और ईएम बाईपास का इलाका शिक्षण संस्थान के निर्माण के लिए बेहतर होगा।

बैथून कॉलेज परिसर में ही काफी जगह खानी पड़ी है, यहां निर्माण क्यों नहीं हो रहा है ?
पहली बात तो यह है कि यह कॉलेज पूरी तरह सरकारी है और यहां की जमीन भी सरकार की। इसलिए निर्णय लेने का अधिकार भी राज्य सरकार को है। मेरे शब्दों में बात कहूं तो यह इलाका अब उच्च शिक्षा ग्रहण के लिए उतना अनुकूल नहीं रह गया है। बीते कुछ सालों में यहां कि आबादी बढ़ी है और इस लिहाज से शोर-शराबा भी बढ़ा है, जो अध्ययन को प्रभावित कर सकता है। इससे पढ़ने वालों की एकाग्रता भंग हो सकती है।

आप ने ठीक कहा, शोर-शराबा पढ़ने वालों की एकाग्रता भंग करता है। इसी वजह से रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के अध्ययन विभाग को यूजीसी की सिफारिश पर जोड़ासांकू से बीटी रोड स्थानांतरित कर दिया गया है। भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर ही उच्च शिक्षण संस्थान का निर्माण होना चाहिए. आप इस बात से सहमत हैं ?
बिल्कुल सहमत हूं।

क्या आप को मालूम है कि इस बाबत राज्य सरकार ने एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया था। कमिटी ने कब और क्या रिपोर्ट दी ?
मैंने सुना जरूर है कि बैथून कॉलेज के विस्तार के सिलसिले में बीते साल एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया गया था, लेकिन मैं उस कमिटी की सदस्य नहीं थी। इसलिए मुझे विशेष कुछ मालूम नहीं है। इतना जरूर कह सकती हूं कि सुकांतनगर में जो जमीन कॉलेज के विस्तार के लिए मिल रही है वह कमिटी की रिपोर्ट से इत्तिफाक जरूर रखती होगी।

मध्य कोलकाता के गणेश टॉकीज के समीप रवींद्र सरणी स्थित किसी की निजी जमीन पर भी कॉलेज के विस्तार या सेकेंड कांप्लेक्स की बात चल रही थी, उसका क्या हुआ ?
इस बारे में पुख्ता नहीं मालूम। मेरी जानकारी के मुताबिक, वह जमीन विवादित है। मामला विचाराधीन है। मामले की सुनवाई और फैसला आने तक कॉलेज के विस्तार को नहीं रोका जा सकता। इसिलए राज्य सरकार ने हमें दूसरी जमीन उपलब्ध करा दी है।

टूट रहा है सब्र का बांध

खड़गपुर सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश है कि मांस के लिये खुले स्थानों में पशुओं को न काटा जाये। बावजूद इसके विभिन्न जगहों में पशुओं को खुलेआम काटा जाता है। पशुओं को खुलेआम काटने से जहां बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ता है, वहीं इससे पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है। वर्षो से पंचबेड़िया इलाके में एक स्लाटर हाउस के निर्माण की बाट जोह रहे इलाके के निवासियों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है।
पंचबेड़ि़या निवासी ईशाक खान ने कहा कि जहां-तहां पशुओं को काटे जाने से आस-पास गंदगी फैलती है। इसके अलावा पशुओं को कटता देखकर बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ता है, जो समाज के लिये काफी घातक है। उन्होंने कहा कि पंचबेड़िया में काफी तादाद में जहां-तहां बीफ की दुकानें हैं। स्लाटर हाउस न होने से प्रदूषण फैलता है। मोहम्मद रफी का कहना है कि वार्ड-5 में वर्तमान व पूर्व सभासद ने चुनाव जीतने के बाद इलाके में एक स्लाटर हाउस बनाने का नागरिकों से वादा किया था लेकिन दोनों में किसी ने अब तक स्लाटर हाउस नहीं बनवाया। उन्होंने कहा कि स्लाटर हाउस बनने से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही प्रदूषण व गंदगी की समस्या से निजात भी मिल जायेगी। ईशाक अली खान, मुर्तजा मंडल व बबलू खान ने भी पंचबेड़िया क्षेत्र में शीघ्र ही एक स्लाटर हाउस बनाने की मांग उठायी। इन लोगों का कहना है कि स्लाटर हाउस बनने से मांस विक्रेताओं के साथ ही सभी को राहत पहुंचेगा। डीएन राव, बीए राव व प्रवीण मंडल का कहना है कि शहर में पहले एक स्लाटर हाउस था जहां तत्कालीन प्रशासन की ओर से एक चिकित्सक की भी नियुक्ति की गयी थी। इस हाउस में स्वस्थ पशुओं को ही काटा जाता था लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। इन लोगों ने भी शीघ्र एक स्लाटर हाउस बनाने की मांग की

Sunday, May 24, 2009

दहशत में कट रही चाय बागान श्रमिकों की जिंदगी

जलपाईगुड़ी इनदिनों चाय बागान श्रमिक दहशत की जिंदगी जीने को मजबूर है। रातों की नींद व दिन का चैन उड़ गया है। घर से बाहर निकलने को आतंक से दिल कांप रहा है। हर मां अपने बच्चों को खोने की डर से बेचैन हो रही है। नजरों से ओझल होते ही मां साये की तरह पीछा करने लग जाती है। यह स्थिति है आज की तारीख में डुवार्स के चाय बागानों की। इनदिनों डुवार्स के विभिन्न चाय बागानों में तेंदुए का हमला बढ़ रहा है। आये दिन तेंदुए के हमले से मौत की घटनाएं घट रही है। डीएफओ तापस दास ने बताया कि इनदिनों चाय बागानों से तेंदुए निकल रहे हैं। पहले ऐसा नहीं होता था क्योंकि पहले चाय बागानों में जंगल था इसलिए तेंदुए चाय बागान के आसपास के जंगलों में रहने पर भी पता नहीं चलता था। उस समय तेंदुए को रहने की जगह होती थी वह उतना खूंखार नहीं हुआ करता था। इनदिनों चाय बागान प्रबंधन द्वारा चाय बागानों का सफाया किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि तेंदुए चाय बागानों में ही बच्चों को जन्म देते है इसलिए चाय बागानों के इर्दगिर्द तेंदुए का निकलना स्वभाविक ही है। इनदिनों तेंदुए के चाय बागानों से निकलकर लोगों पर हमला करने लगे है। तेंदुए खासकर बच्चों व पालतू जानवर जैसे बकरी व मुर्गियों को अपना शिकार बना रहे हैं। इस वर्ष अबतक तेंदुए ने चार बच्चों को अपना शिकार बनाया है। डीएफओ तापस दास ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार 2007 में रूद्रप्रयाग में 125 लोगों की मौत तेंदुए के हमले से हुई है। केन्द्र शासित प्रदेशों में 150 लोगों की मौत हुई है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में 254 व पश्चिम बंगाल में 125 लोग तेंदुए के हमले के शिकार हुए। दूसरी तरफ गुजरात में 877, उत्तरांचल में 352 व महाराष्ट्र में 250 लोगों की मौत का कारण बना तेंदुआ। उत्तर बंगाल के डुवार्स में तेंदुए आदमखोर बन जाने से वनविभाग चिंतित है। डीएफओ तापस दास ने बताया कि तेंदुए क्यों यहा आदमखोर बन गये है इसे लेकर जांच शुरू कर दी गयी है। उन्होंने बताया कि हाल ही में गत एक सप्ताह में गुडहोप चाय बागान के अभिषेक उरांव व शिवानी नायेक तेंदुए का शिकार बने। उत्तर बंगाल के डुवार्स में तेंदुए के इस तरह आदमखोर बन जाने को लेकर वनविभाग खासे चितिंत है। डीएफओ ने बताया कि लोगों को रात में न निकलने व जब भी निकले तब एकसाथ निकलने की सलाह दी जा रही है। रात को टार्च लेकर निकलने व श्रमिकों को बागान में काम शुरू करने से पहले की सलाह पटाखे जलाने की सलाह दी जा रही है। (साभार)

जानलेवा है मोबाइल टावर से निकलने वाला विकिरण

पुरुलिया सेल फोन कंपनियों द्वारा लगाये गये टावर प्राय: सभी जगह नजर आने लगे है। चाहे स्कूल हो, अस्पताल हो या बस्ती। इनके आस-पास मोबाइल कंपनियों के टावर अक्सर देखने को मिल जाते हैं। लेकिन इससे निकले वाली विकिरण 'ईलेक्ट्रो मैग्नेटिक रे' मानव शरीर के लिए कितना घातक है इससे आम लोग अनभिग्य हैं। पुरुलिया के जाने-माने वरिष्ठ चिकित्सक व समाजसेवी ने खास बातचीत में बताया कि मोबाइल टावर से निकलने वाला खास किरण 'ईलेक्ट्रो मैग्नेटिक रे' प्राणघातक होता है। टावर के एक वर्ग किमी में इसका कुप्रभाव ज्यादा होता है। इससे कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी होने की ज्यादा आशंका रहती है। विशेष कर गर्भवती महिलाएं व उनके बच्चे के स्वास्थ्य पर इस विकिरण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है। एक शोध के अनुसार एक मोबाइल टावर से निकलने वाला 1900 मेगाहार्ट विकिरण इतना शक्तिशाली होता है कि एक मजबूत कंक्रीट के दीवार को पर कर मानव के शरीर में प्रवेश कर जाता है। जिससे मानव शरीर में रोग प्रतिरोधकक्षमता कम हो जाती है।
कहां-कहां नहीं लगाने हैं टावरराज्य पर्यावरण विभाग द्वारा जारी निर्देश के मुताबिक स्कूल, अस्पताल व पतली गलियों में टावर नहीं लगाने है। इसके अलावा टावर व पड़ोस की घरों के बीच कम से कम तीन मीटर की दूरी होनी चाहिये। कैंपस के बाहर बोर्ड लगाकर टावर से होने वाली नुकसान के बारे में भी बताने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा टावर कर्मियों को भी इससे निकलने वाली विकिरण के बारे में बताने को निर्देश है।
क्या कहते हैं टीडीएमपुरुलिया के बीएसएनएल के टीडीएम रतन कुमार घोष का कहना है कि मोबाइल टावर से निकले वाली 'ईलेक्ट्रो मैग्नेटिक रे' मानव शरीर के लिए घातक है या नहीं यह पूरी तरह विवादित है। अभी तक इएमआर से किसी भी व्यक्ति का मृत्यु प्रमाणित नहीं किया जा सका है। इसके अलावा अभी तक इस रे से किसी भी तरह के रोग का भी प्रमाण नहीं मिला है। (साभार)

ममता ने सोनिया को 19 फीट की साड़ी भेंट की

कोलकाता। तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को विशेष तौर पर बनायी गई तेरहहाती (१९ फीट लंबी) साड़ी भेंट की है। ममता बनर्जी ने हुगली जिले में चुनाव अभियान के दौरान धनियारबली से यह साड़ी हासिल की थी। धनियारबली को बंगाल टांट अथवा टेंगिल साड़ी की जन्म स्थली माना जाता है। बंगाल में अमूनन बारह हाथ अथवा १७.५ फीट लミबी साड़ी पहनी जाती है। तेरहहाती साड़ी केवल आर्डर देने पर ही तैयार की जाती है, यह ज्यादा आरामदेह होती है और यह साड़ी सोनिया गांधी को सूट करेगी क्‌योंकि वे लミबे पल्लू वाली साड़ी पहनती हैं। धनिया खाम के बुनकर इस बात से खुश हैं कि उनके द्वारा बनायी गयी साड़ी सोनिया जी पहनेंगी।(साभार)

भजन गाने से आत्मसंतुष्टि मिलती है- लक्खा सिंह


सुप्रसिद्ध भजन लखबीर सिंह लक्खा का कहना है भजन गाने से उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है। उनके मुताबिक, भजनगायन के क्षेत्र में आने से वर्तमान और भविष्य दोनों सुधरते हैं। उन्होंने इसका खुलाखा करते हुए कहा कि भजन गाने से इस लोक में सम्मान मिलता है, धन मिलता है और पहचान मिलती है। वहीं, देवी-देवता को याद करते रहने या धार्मिक काम में लगे रहने से परलोक भी सुधर जाता है। लक्खा सिंह बीते दिनों जया सिंह के मुंबई स्थित नवनिर्मितआवास के उद्घघाटन मौके पर आयोजित रात्रि जागरण में अपनी पूरी टीम के साथ जागरण स्थल रघुलीला मॉल पहुंचे थे। मॉल के द जंगल हॉल में आलौकिक श्रृंगार, अखंड ज्योति और छप्पन भोग के समक्ष उन्होंने सारी रात कर्णप्रिय व मधुर भजन सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। पेश है इस मौके पर जनसत्ता (कोलकाता) से जुड़े शंकर जालान की लखबीर सिंह लक्खा से हुई बातचीत के मुख्य अंश।-आप ने भजन गाना ही क्यों चुना ?--सही कहूं तो भजन गाने से मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है। गीत-गजल गाने में हो सकता है कि अधिक नाम व पैसा मिले, लेकिन वह सम्मान व संतुष्टि नहीं मिल पाती। इसीलिए मैंने यह क्षेत्र चुना।-आप से पहले भी आपके परिवार में कोई इस क्षेत्र यानी पेशेवर गायकी में आया है ?--जी नहीं, इस पेशे में नहीं आया, लेकिन मेरा पूरा परिवार आध्यात्मिक रहा है। पूजा-पाठ में शुरू से ही लगन रही थी। बड़े होने पर इस ओर ही रूझान हो गया। बड़ी बात यह रही कि घर वालों का भी पूरा सहयोग मिला।-गायन के क्षेत्र में किसे अपना आदर्श मानते है ?--लता मंगेश्वकर को में अपना आदर्श मानता हूं।-इसके पीछे क्या कारण है ?--कारण के बारे में पुख्ता नहीं कह सकता। बचपन से ही उनके गाए गीत सुनते आ रहा हूं। लालिकले से गाया उनका देशभिक्त गीत ये मेरे वतन के लोगों.... बार-बार सुनने को जी करता है। मजे की बात यह है कि ज्यों-ज्यों लताजी की उम्र बढ़ती जा रही है त्यों-त्यों उनकी आवाज और अधिक सुरीली होती जा रही है।-देश के अलावा विदेश में भी भजन गाने का अवसर मिला है ?--जी हां।-कौन-कौन से देश में आपने कार्यक्रम पेश किए हैं ?--दुबई, नेपाल, अमेरिका और कनाड़ा में।-अब तक भजनों की आपकी कितनी सीडी व कैसेट रिलीज हो चुकी है ?--तीन सौ से ज्यादा।-किस-किस रचनाकारों के लिखे गीत गाते हैं ?--विनोद अग्रवाल, सरल कवि, जयप्रकाश के अलावा खुद के लिखे भजन गाता हूं।-अब तक कोई सम्मान मिला है क्या ?--वैसे तो कई सम्मान मिले हैं, लेकिन मेरी नजर में सबसे बड़ा सम्मान गुलशन कुमार अवार्ड का मिलना है।-क्या अपनी संतान को इस क्षेत्र में लाना पसंद करेंगे ?-- अगर उनकी इच्छ होगी तो मैं रुकावट नहीं डालूंगा।-आपकी तमन्ना क्या है ?-- लोगों का प्यार मुझे इसी तरह मिलता रहे। मेरी आवाज ही मेरी पहचान बने। यह तमन्ना है। -आखिरी सवाल सिंह परिवार जिन्होंने आज के जागरण का आयोजन किया है के बारे में कुछ कहना चाहेंगे ?--मैनें सिंह परिवार विशेष कर बेटी जया सिंह और बहन अंजू सिंह के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। आज के आधुनिक युग में जहां लोग नाच-गाने के पीछे दीवाने हैं ऐसे में जया और अंजू साधुवाद की पात्र है जिन्होंने माता रानी के जागरण आयोजन किया और परिवार के सैकड़ों लोगों से पूरी रात जाग कर भजने सुने।

Saturday, May 23, 2009

संघर्षो से भरा रहा है ममता का सफर

पांच साल पहले लोकसभा चुनाव में केवल एक सीट हासिल करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में पश्चिम बंगाल में जबरदस्त सफलता हासिल की और वामपंथियों के गढ़ में सेंध लगाने के एवज में उन्हें केंद्र में रेल मंत्री पद का तोहफा मिला। शिक्षक के तौर पर सेवाएं दे चुकीं ममता के लिए यह यात्रा बहुत सुगम नहीं रही। 1998 में उन्होंने कांग्रेस से संबंध तोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी प्रोमिलेश्वर बनर्जी की पुत्री ममता ने 1970 के दशक में कोलकाता के जोगमाया देवी कालेज में अध्ययन के दौरान कांग्रेस के विद्यार्थी संगठन पश्चिम बंगाल छात्र परिषद से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। पार्टी की राजनीति में कदम दर कदम बढ़ीं ममता बनर्जी ने 1979-80 में पश्चिम बंगाल महिला कांग्रेस के महासचिव की जिम्मेदारी संभाली और इसके अलावा अन्य पदों को भी संभाला। उनके लिए राजनीति में पहला महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब उन्होंने 1984 में माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में शिकस्त दी। इसके बाद वह 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी कोलकाता दक्षिण से संासद चुनी गईं। पहली बार वह 1991 में सत्ता के गलियारे में पहुंची, जब वह पीवी नरसिंहाराव सरकार में मानव संसाधन विकास, युवा मामलों और खेल एवं महिला और बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री चुनी गईं। वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में ममता बनर्जी को रेल मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वर्ष 2004 में वह कोयला मंत्री रहीं। वर्ष 2003-04 में कुछ समय तक वह बिना विभाग की केंद्रीय मंत्री भी रहीं। ममता ने 1998 में कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और दो साल बाद भाजपा नीत राजग का दामन थामा। हालांकि वर्ष 2001 में उन्होंने रक्षा सौदों में तहलका मामले के उजागर होने के बाद रेल मंत्री का पद और राजग का साथ छोड़कर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया, लेकिन वामपंथियों के खिलाफ कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर सकीं। इसके बाद उन्हें जनवरी 2004 में राजग सरकार में लौटना पड़ा। रोचक तथ्य यह है कि ममता ने 2001 में तहलका मामले को लेकर तत्कालीन राजग संयोजक और रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज पर निशाना साधा था और फर्नांडीज ने ही ममता को गठबंधन में वापस लाने और मंत्रालय दिलाने में मदद की। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाने वाली ममता को राष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक पहचान उस दौरान मिली जब उन्होंने सिंगूर और नंदीग्राम पर विरोध प्रदर्शन किए।

वीरपाड़ा अस्पताल : नवजात सोते है कागज पर

जलपाईगुड़ी, वीरपाड़ा-मादारीहाट ब्लाक के अंतर्गत वीरपाड़ा अस्पताल की बदहाली की इस दौड़ से गुजर रहा है कि कोई मरीज यहां आये तो स्वस्थ्य बनने के बजाया और बीमार हो जाये। अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण अंग अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन बेकार हालत में पड़ा है। बिना चादर का बेड नवजात शिशु का स्वागत कर रही है। एक्स-रे का मशीन खराब होकर पड़ा है। अस्पताल का स्टोरकिपर अधिकतर दिन अस्पताल में नहीं आये। अगर आते भी हैं तो दोपहर बारह बजे के बाद आते हैं। स्थानीय आरएसपी नेता प्रदीप बोस ने बताया कि अस्पताल में 90 प्रतिशत मरीजों को दवा नहीं मिलता है। अस्पताल में आपरेशन थियेटर नाममात्र रूप से चालू हुआ है। बाहरी विभाग में जहां 8 से 9 चिकित्सक होने चाहिए वहीं केवल दो-तीन चिकित्सक ही मिलते हैं। नियम के अनुसार अस्पताल अधीक्षक निजी प्रेक्टिस नहीं कर सकते हैं लेकिन यहां इस नियम की ध्वज्जियां उड़ रही है। आज वीरपाड़ा अस्पताल में पहुंचे स्थानीय आरएसपी नेता प्रवीर सरकार, पंचायत प्रकाश प्रधान, पंचायत विजय सिंह व वीरपाड़ा-मादारीहाट ब्लाक के पंचायत समिति के अध्यक्ष विकास दास समेत कई लोग अस्पताल पहुंचे। इनलोगों ने बताया कि अस्पताल में बेडों की संख्या एक सौ है जिसमें वर्तमान में केवल 15 चिकित्सक ही हैं। मरीजों के बेड पर न चादर है और न ही मच्छरदानी। इधर, स्टोर कीपर दीपक कुमार पाल ने बताया कि प्रत्येक बेड के लिए चादर, मच्छरदानी दिया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक वार्ड के इनचार्ज व नर्सो को वे ये सब सौंप देते हैं। इधर, अस्पताल के अपर डिविजन क्लर्क राखी सेनगुप्त ने बताया कि नौ महीने से यहां काम कर रहे हैं पिछले कुछ दिनों से अस्पताल की स्थिति बन गयी है। वीरपाड़ा-मादारीहाट ब्लाक के अध्यक्ष विकास दास ने बताया कि नवजात शिशु को कागज पर सुलाया जा रहा है। अलीपुरद्वार के महकमा शासक एलिस भेज ने बताया कि वीरपाड़ा अस्पताल के अधीक्षक के साथ बातचीत हुई है। उन्होंने इन विषयों पर दोषियों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। इधर, आरएसपी नेता प्रदीप बोस ने बताया कि वीरपाड़ा अस्पताल की यही स्थिति रही तो वे आंदोलन शुरू करेंगे।(साभार)

भूतनाथ मंदिर-पैसे की पहचान यहां भक्त की कीमत कुछ नहीं

पैसे की पहचान यहां इंसान की कीमत कोई नहींबच के निकल जा इस बस्ती से करता मोहब्बत कोई नहीं। ( फिल्म पहचान का मनोज कुमार पर फिल्माया गीत)पैसे की पहचान यहां भक्त की कीमत कुछ नहींबच के निकल भूतनाथ मंदिर से यहां पुजारी कोई नहीं।(मध्य कोलकाता के नीमतलाघाट श्मशानघाट के समीप बने प्रसिद्ध भूतनाथ मंदिर में दर्शन व पूजा करने गए लोगों की बदहाल स्थिति देख कर मन में उपजे विचार)जी, हां- अगर यह कहा जाए कि भूतनाथ मंदिर पर पुजारी की अराजकता चरम पर पहुंच गई है तो शायद गलत न होगा। यहां के पुजारियों के लिए पैसा ही सब कुछ है। कोई भक्त घंटों से जलाभिषेक में कतार में खड़ा है इसकी यहां के पुजारियों को कोई प्रवाह नहीं। इन्हें मतलब है तो बस ऐसे कथित भक्तों से से जलाभिषेक की एवज में पुजारियों की जेबें गरम करते हो। यहां आने वाले ज्यादातर भक्त पुजारियों की मनमानी स देखी हैं। क्योंकि मामला आस्था से जु़ड़ा है, इसलिए कोई खुल कर विरोध नहीं करता, लेकिन मन ही मन यह इच्छा रखता है कि न जाने कब भूतेश्वर बाबा भोले भक्तों की दशा पर तरस खाते हुए मंदिर को इन ढोंगी पुजारियों के चुंगल से मुक्त कराएं और मंदिर का प्रबंध सरकार अपने हाथों में ले ले, ताकि पुजारियों की मनमानी पर अंकुश लगे।

कोलकाता अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लघुशंका की पीड़ा

कोलकाता के नेताजी सुभाषचंद्र बसु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यात्रियों के लाने औप पहुंचाने जाने वाले लोगों के लघुशंका की पीड़ा झेलनी पड़ती है। हवाई अड्डा प्रबंधन की ओर से हवाई अड्डे के समीप मल-मूत्र त्याग करने के लिए कोई स्थान नहीं बनाया गया है। हवाई अड्डे से दूर जहां गाड़ियों के खड़ी करने की व्यवस्था है वहां में एक सुलभ शौचालय अवश्य बनाया गया है, लेकिन यह यहां आने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए नाकाफी है। लघुशंका कहां करनी है इस बारे में हवाई अड्डे के सुरक्षाकर्मी और कर्मचारी कुछ नहीं बता पाते हैं। विशेष आग्रह करने में उनका इशारा हवाई अड्डे के अंदर बने शौचालय की तरफ होता है। अंदर प्रवेश करने के लिए तीस रुपए की टिकट लेनी पड़ती है यानी मालिकों को लेने या छोड़ने गए कर्मचारियों को मल-मूत त्यागने के लिए तीस रुपए खर्च करने पड़ेंगे।

प्राचीन सिक्कों का कारोबार वैध या अवैध

कोलकाता, महानगर के फुटपाथों पर सिक्कों की खरीद-फरोख्त से जुड़े लोगों पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। क्योंकि उनके लिए सिक्कों का संग्रह करना कठिन हो गया है। इसलिए आमदनी प्रभावित हो रही है। महानगर कोलकाता में कई लोग प्राचीन मुद्राओं की खरीद-फरोख्त के कारोबार से जुड़े हैं। मुद्राओं का कारोबार वैध है या अवैध, यह इन कारोबारियों को नहीं मालूम। जवाहरलाल नेहरू रोड पर पुरानी मुद्रा बेच रहे डी. साहा कहते हैं कि वह पिछले तीस साल से फुटपाथ पर पुरानी मुद्राओं की दुकान लगाते आ रहे हैं। उनकी दुकान देशी-विदेशी पुरानी मुद्राओं से सजी रहती है और इनकी बिक्री से हुई कमायी से उनका परिवार चलता है। साहा कहते हैं कि अलग-अलग समय के सिक्कों की अलग- अलग कीमत होती है। सिक्कों के संग्रह के शौकीनों को इनकी कीमत देने में कोई दिक्कत नहीं होती है। वहीं, एल. घोष का कहना है कि ब्रिटिश कालीन सिक्कों को यूरोपिय देशों से आये पर्यटक चाव से खरीदते हैं। ऐसे सिक्के जिन पर महारानी विक्टोरिया व एलिजाबेथ की तस्वीर छपी हो, उसे अधिक कीमत देकर वे खरीदते हैं। वे कहती हैं कि अब सिक्कों का संग्रह करना कठिन हो गया है। इसलिए आमदनी भी प्रभावित हो रही है। इटली, सिंगापुर व मलेशिया व खाड़ी देशों की मुद्राएं खासी कीमत में बिकती हैं। मुद्राओं का संग्रह करने वालों की संख्या भी धीरे-धीरे कम हो रही है। अब कारोबार विदेशी पर्यटकों के भरोसे रह गया है। गौरतलब है कि पुरानी देशी विदेशी मुद्राओं की कीमत वर्तमान में आसमान छू रही है। वर्ष 1835 के आधा आना के तांबे के सिक्के दो सौ से ढाई सौ रुपये में बिक रहे हैं। वर्ष 1944 व 1945 में प्रचलन में रहे दो आने के सिक्के की कीमत दस रुपये, 1917, 1918, 1934 और 1941 के बने 1/4 आना के तांबे के सिक्के 15 रुपये में बिक रहे हैं।

दुनिया के शीर्ष 100 होटलों में कोलकाता का ओबेराय

कोलकाता, दुनिया के शीर्ष 100 होटलों में कोलकाता के ओबेराय ग्रांड को शामिल किया गया है। ट्रिप एडवाइजर्स की ओर से जारी दुनिया के उम्दा होटलों की सूची में इसका उल्लेख है। हालांकि ओबेराय ग्रांड के अलावा जयपुर के दो और होटलों यश विलास व ताज रामबाग पैलेस को भी इस सूची में शामिल किया गया है। जयपुर के यश विलास को दुनिया के शीर्ष 100 किफायती होटलों की सूची में शामिल किया गया है जबकि महानगर के ओबेराय ग्रांड व ताज जयपुर के रामबाग पैलेस को शीर्ष 100 लक्जरी होटलों की श्रेणी में स्थान मिला है। उम्दा होटलों के लिए 2009 ट्रेवलर्स च्वाइस अवार्ड की घोषणा के मौके पर ट्रिप एडवाइजर्स की ओर से दुनिया के उम्दा होटलों की सूची जारी की गयी। इस ग्लोबल सूची में रिज कार्लटन को बेहतरीन ब्रांड का दर्जा दिया गया है। (साभार)

ऐसे होता है सेक्स का कारोबार..

एक कोड नंबर लो, मनपसंद साथी पाओ और ऐश करो। न पुलिस का खौफ, न जगह की चिंता। देह व्यापार के दलालों और कॉलगर्ल के रहस्यमयी संसार में झांकने की एक कोशिश..कोड नंबर लो, मनपसंद साथी पाओकितने भी दावे किए जाएं लेकिन शहर में देह बेचने का धंधा फलफूल रहा है, दलाल नए-नए रास्ते निकाल पुलिस-प्रशासन की नाक में दम किए हुए हैं। नए तरीके के रूप में दलालों ने ग्राहकों को कोड नंबर जारी किए हैं। मोबाइल पर कोड नंबर बताइए और बस सौदा पटा। वांछित जगह पर कॉलगर्ल आपको मिल जाएगी। पूरा धंधा इतने व्यवस्थित तरीके से जारी है कि कोड नंबर देकर किसी मॉल या शापिंग सेंटर के बाहर से कॉलगर्ल और ग्राहक किसी आम युवा साथी की तरह पुलिस के सामने से ही हाथ में हाथ डाले निकल जाएंगे। देह बैंक-कमसिन लड़कियों की डिमांडछानबीन से पता चला कि अहमदाबाद, वड़ोदरा, सूरत और मुंबई के दलालों के बीच देह व्यापार का पूरा बैंक ही चलता है। ना सिर्फ ये अपने डाटा का आदान-प्रदान करते हैं बल्कि एक-दूसरे को कॉलगर्ल की सप्लाई भी करते हैं। सेक्स रैकेट को चलाने के लिए दलाल अन्य राज्यों में जाकर वहां मौजूद दलालों के माध्यम से कमसिन और खूबसूरत लड़कियों को लाते हैं। इसका खुलासा दलाल राजू (बदला हुआ नाम) से हुआ, इसने अहमदाबाद स्थित दलाल के पास से कुछ युवतियों को लाया था।शहर से भी बाहर भी इन लड़कियों की सप्लाई की जाती है। राजू ने बताया कि शहर में शौकीन लोगों में कमसिन लड़कियों की सबसे ज्यादा डिमांड है। इनके लिए ग्राहक ज्यादा से ज्यादा रुपए देने को तैयार रहते हैं। इन्हीं शौकीनों के लिए हमें कम उम्र की लड़कियों की दूर-दूर तक जाकर खोज करनी पड़ती है। दलाल नेटवर्क-लाख की चोखी कमाईदलाल मुंबई, कोलकता या अन्य राज्यों में चल रहे देह व्यापार के धंधों में शामिल होता है। इनसे मिलाकर पूरा नेटवर्क बनाता है। इसका हिस्सा हुए बिना कोई यहां धंधा नहीं कर सकता है। एक अन्य दलाल बाबू ने बताया। हम बंगाल से एक महीने में कॉन्ट्राक्ट पर एक युवती को 50 हजार रुपए में लाते हैं और अगर लड़की देखने में सुंदर व कमसिन है तो कीमत भी बढ़कर 1 लाख हो जाती है। उनकी कमाई भी चोखी होती है हमें भी ठीक-ठाक सा पैसा मिल जाता है। कई बार इन लड़कियों की नुमाइश भी की जाती है ताकि कद्रदान इनमें से अपनी पसंद की चुन सके, हां ऐसे मामलों में कीमत जरूर डबल हो जाती है। नाइट पार्टी-एसएमएस से सूचनाबाबू ने बताया कि दलालों का अलग-अलग शहरों में अलग-अलग फ्लैट रहता है, जहां पर इन युवतियों को रखते हैं। प्रत्येक दलाल मोबाइल या फोन से अपने आकाओं से जुड़ा रहता है। नई लड़कियों के बाजार में आ जाने पर ये हम अपने पुराने ग्राहकों को एसएसएस के जरिए तत्काल सूचित कर देते हैं। इसके बाद ग्राहक अपने अनुसार नाइट पार्टी का आयोजन करता है। ये नाइट पार्टियां भी इन लड़कियों की नुमाइश का जरिया होती हैं। वहां भी कई कद्रदान आते हैं, जिसे चाहो चुनो। एक युवती के लिए दलाल को 1 लाख रुपए मिला, जबकि कॉलगर्ल के रेट अलग होते हैं। लड़की एक दिन में पांच से छ प्रोग्राम करती हैं। इसका उसे प्रतिदिन के हिसाब से 5 हजार रुपया अलग से मिलता, उसके खाने-पीने और अन्य खर्चे के लिए मिलते हैं। हालांकि है तो ये महंगा धंधा लेकिन शहर के शौकीनों के लिए तो कुछ भी नहीं है।पता नहीं क्या-क्या करना पड़ता हैबाहर राज्य से आई कॉलगर्ल अपना असली पहचान कभी नहीं बताती हैं। एक कॉलगर्ल से मिलने के बाद उसने अपना नाम काजल बताया और कहा कि हमारे देश में बहुत भुखमरी है। हमें परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मजबूरन इस धंधे में आना पड़ा। उसने बताया कि मैं पहले कोलकता से मुंबई और मुंबई से अहमदाबाद गई थी। काजल ने सूरत के लोगों का गुणगान करते हुए कहा कल तक उसे जहां 100 रूपए मिलते थे अब वहीं लोग खुश होकर 500 रूपए दे देते हैं। उसने अपनी व्यथा बताते हुए कहा दलालों के मनमानी पैसा लेने के बाद ग्राहक भी अपना पैसा उसके साथ हर ढंग का काम करके वसूल करना चाहते हैं, यहां तक कि उसे ओरल सेक्स, मसाज के साथ सभी सेवाएं देनी पड़ती हैं।हर सप्ताह चाहिए नया माल : दलालइस नेटवर्क को चलाने वाला राजू बंगाली (बदला हुआ नाम) ने बताया कि, सर मंदी की क्या बात करते हो, यहां तो हर सप्ताह नए माल की डिमांड करने वाले ग्राहकों की संख्या बहुत है। सूरत में लगभग 60 से 70 दलाल सक्रिय हैं, जो मोबाइल के माध्यम से धंधे को चलाते हैं। उसने बताया कि कापड मार्केट, हीराबाजार के कुछ ग्राहक हमारे नियमित ग्राहक हैं। उसने बताया कि खुले रूप से यह धंधा भले ही बंद हो गया हो लेकिन आज भी सूरत में रूपवान सुंदरियों का मिलना कोई मुश्किल नहीं है। अब तो ग्राहक भी होशियार हो गए हैं। वे अब एक दलाल का नंबर नहीं बल्कि कई दलालों का नंबर अपने पास रखते हैं।(साभार)नोट- नाम, स्थान सब बदले हुए हैं।

मुझे कॉलगर्ल बनाना चाहता है मेरा पिता

17 साल की यह लड़की भोपाल में पुलिस के आला अफसरों से गुहार लगा रही है कि उसे उसके पिता से बचाया जाए। उसका आरोप है कि पिता उसे कॉलगर्ल बनाना चाहता है। कोलकाता में एक लाख रुपए में उसकी आबरू का सौदा भी तय हो गया था लेकिन वह भाग आई..जूली उन बदनसीब लड़कियों में से एक है, जिनके परिजन ही उन्हें देह व्यापार में डालना चाहते हैं। हालांकि जूली ने अपने पिता और नानी के इन मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया और उनके चंगुल से भाग निकली। बचती-बचाती जूली मुरैना के अभ्युदय आश्रम में पहुंच तो गई लेकिन उसके पिता लगातार आश्रम संचालक रामस्नेही को धमका रहे हैं। अब यह युवती अपनी सुरक्षा की गुहार लेकर भोपाल पहुंच गई है। पुलिस के आला अफसरों ने उन्हें आश्वासन दिया कि युवती को पूरी सुरक्षा दी जाएगी और उसे देह व्यापार में धकेलने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
मां नहीं चाहती थी

जूली के मुताबिक मुरैना के अम्बाह कस्बे में रहने वाली उसकी नानी कैलाशी बाई वेश्यावृत्ति कराती है। लेकिन उसकी मां अनीता अपनी बच्ची को इस धंधे से दूर रखना चाहती थी। तीन साल पहले उसकी मां की एक सड़क हादसे में मौत गई। इसके बाद जूली की जिंदगी बदलने लगी।
सोनागाछी में रखा गयाजूली के पिता रविकुमार और नानी कैलाशी बाई ने मिलकर उसको वेश्यावृत्ति में उतारने की तैयारी कर ली। 2005 में कैलाशी बाई उसे कोलकाता ले गई। वहां उसे सोनागाछी रेडलाइट एरिया, मस्जिद बाड़ी स्ट्रीट, कैलाशी बिल्डिंग सोहा बाजार में रखा गया।
बनाना चाहते थे
अंग्रेजी में बात करने वाली जूली की नानी कैलाशी ने उसे हाई प्रोफाइल कॉलगर्ल बनाने के लिए उसके रहने, खाने और पढ़ने का उम्दा इंतजाम किया था। लगातार दो साल तक उसे अच्छी पढ़ाई व अन्य सुविधाएं मुहैया कराया गया। उसे इसका अहसास नहीं होने दिया कि उसे किस धंधे में लगाया जाएगा।
एक लाख रुपए में तय हुआ सौदानानी ने अगस्त में जूली को देह व्यापार में उतारने की तैयारी करते हुए उसके लिए पहले ग्राहक से एक लाख रुपए की रकम ली। जूली की मौसी उसे घुमाने के नाम पर सोनागाछी इलाके की एक बिल्डिंग में ले गई। वास्तविकता को जानकर जूली घबरा गई। रकम को लेकर मौसी और ग्राहक में बहस होने लगी, तब जूली को मालूम चला कि उसका सौदा किया जा रहा है तो मौका देखकर भाग निकली।
भागी, पकड़ी गई, फिर भागीभागते हुए जूली जैसे-तैसे हावड़ा स्टेशन पहुंच गई और उसने चाचा को फोन कर दिया। तब तक उसके भागने की खबर उसके पिता रवि को लग चुकी थी। चाचा के पहले रवि स्टेशन पहुंच गया और उसे वापस सोनागाछी इलाके में ले गया लेकिन वह देह व्यापार के लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद नानी की सलाह पर रविकुमार जूली को लेकर वापस मुरैना के अम्बाह आ गया। एक बार फिर उस पर कॉलगर्ल बनने के लिए दबाव डाला जाने लगा। दिसंबर में जूली एक दिन मौका पाकर रवि के चंगुल से निकल भागी।
आश्रम पर हुआ हमलारवि को जब मालूम चला तो उसने 19 दिसंबर 2008 को अपने साथियों के साथ आश्रम में उसने काफी हंगामा किया। इसके बाद कई बार उसने जूली के अपहरण की नाकाम कोशिश की। हमले के बाद आश्रम वालों ने पुलिस में शिकायत की। पुलिस ने 30 दिसंबर को जूली और 2 जनवरी 2009 को संस्था के सदस्यों के बयान दर्ज किए। बयानों के आधार पर पुलिस ने रवि और नानी कैलाशी के खिलाफ नोटिस जारी कर दिए हैं।
सरकार से गुहार की?सरकार ने बांछड़ा और बेड़िया जाति में सुधार करने के लिए दो कमेटी तो बनाई है। मैं इन कमेटियों में मेंबर भी हूं। लेकिन कई बार और ज्यादा सरकारी मदद की आवश्यकता महसूस होती है।
कार्रवाई जरूर होगीजूली सिंह के मामले में एफआईआर करने में देरी क्यों हुई?ये लोग आज ही हमारे पास आए हैं। एफआईआर दर्ज करने में देरी का जरूर कोई कारण रहा होगा। थोड़ा समय लगेगा, लेकिन कार्रवाई जरूर होगी।तत्काल कार्रवाई होगीयुवती का पक्ष सुनकर एसपी मुरैना को निर्देश दिए गए हैं कि तत्काल प्रभाव से कार्रवाई की जाए।
मिलेगी सुरक्षायह मामला मेरी जानकारी में पहली बार आया है। अब शिकायत आई है तो मामले की जांच होगी और एफआईआर भी होगी। पीड़ित युवती को घबराने की जरूरत नहीं है। उसे सुरक्षा दी जाएगी।
जल्द पकड़ेंगे पिता कोजूली के मामले में एफआईआर अब तक दर्ज क्यों नहीं की गई?जूली ने जो बयान दिया है उसमें उसके साथ कोलकाता में जबर्दस्ती होना बताया गया है। ऐसे में यहां मामला दर्ज होना मुश्किल है।शिकायत के एक माह बाद भी आरोपी पिता से पूछताछ क्यों नहीं की?हमने रवि और कैलाशी बाई को नोटिस जारी किए हैं लेकिन वे लोग अभी तक नहीं आए।
वैश्वावृत्ति का धंधा पर भी एक नजरग्वालियर. मुरैना और शिवपुरी में इस समय बेड़िया समुदाय के लगभग साढ़े आठ हजार लोग रह रहे हैं। इनमें से अधिकतर अभी भी वैश्यावृत्ति के धंधे से जुड़े हुए है। हालांकि कुछ परिवारों ने अब यह काम छोड़ दिया है और विकास की मुख्य धारा से जुड़ गए हैं। मुरैना जिले में इस समय बेड़िया समुदाय के 3२5 से अधिक परिवार है जिनकी जनसंख्या लगभग साढ़े तीन हजार है। दस साल पहले इस समुदाय के 289 परिवार थे जिनकी जनसंख्या ढाई हजार के करीब थी। दस साल पहले समुदाय के 70 प्रतिशत लोग वैश्यावृत्ति के धंधे से जुड़े थे, इस समय 40 प्रतिशत लोग इस कारोबार से जुड़े है। जिले के 22 गांवों में इस समुदाय के लोग निवास करते है। शिवपुरी जिले में बेड़िया समुदाय के पांच हजार लोग है। जिले के दस गांवों में इनकी अच्छी संख्या है। यहां बेड़िया समुदाय से जुड़े लोग अभी भी वैश्यावृत्ति को नहीं छोड़ पाए है। दस साल पहले जहां 95 प्रतिशत लोग वैश्यावृत्ति से जुड़े थे, वहीं इस समय भी 85 प्रतिशत लोग इस कारोबार से जुड़े हुए है। यहां जहां कई लोगों ने वैश्यावृत्ति छोड़ दी, वहीं कुछ परिवारों ने चमक-दमक देखकर इसे अपना भी लिया है। बेड़िया समुदाय की लड़कियां कारोबार करने के लिए दिल्ली, मुम्बई, मेरठ, पूना से लेकर अरब देशों तक जाती है। यह लड़कियां त्योहारों के समय में अपने घरों पर लौटती है और वहां कमाए पैसों से यहां मकान निर्माण से लेकर संपत्ति खरीदी तक करती है।(साभार)

विक्टोरिया मेमोरियल की रक्षा करेगी तुलसी

दुनिया के सात अजूबों में शामिल खूबसूरत ताजमहल को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए ताजमहल के समीप तुलसी के करीब दस लाख पौधे लगाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार को उम्मीद है कि तुलसी के पौधे लगाने से ताजमहल को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश सरकार की इस पहल पर आलोचक कोई भी राय क्यों न व्यक्त करे, पर पश्चिम बंगाल सरकार को यह विचार बेहद भा गया है। पश्चिम बंगाल सरकार राज्य की सांस्कृतिक इमारतों के संरक्षण के लिए तुलसी के रोपण का सहारा लेना चाहती है।पश्चिम बंगाल का वन विभाग राज्य की सांस्कृतिक विरासत मानी जाने वाली इमारतों को पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली क्षति से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर तुलसी के पौधे लगाने की योजना पर अमल की तैयारी में जुटा है। इस क्रम में पश्चिम बंगाल के वन विभाग ने अधिकारियों को पर्यावरण प्रदूषण के खतरे से जूझ रही राज्य की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों को चिन्हित करने को कहा है। ऐसे में यह तय माना जा सकता है कि कोलकाता स्थित विक्टोरिया मेमोरियल इमारत को तुलसी रोपण प्रोजेक्ट में पहली प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया की स्मृति में तैयार विक्टोरिया मेमोरियल अब संग्रहालय एवं पर्यटन केन्द्र में तब्दील हो चुका है। वर्ष 1902-1921 के बीच बनी इस इमारत का डिजायन तैयार किया था विलियम इमरसन ने।विक्टोरिया मेमोरियल के गार्डन में रोजाना हजारों लोग सुबह की सैर के लिए पहुंचते है। अधिकारियों के मुताबिक विक्टोरिया मेमोरियल को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए इसके गार्डन में तुलसी के पौधे लगाए जाएंगे।तुलसी के पौधे वायु में मौजूद धूल कणों को सोखकर वायु प्रदूषण कम करने में मदद करते है। इसके साथ ही तुलसी के पौधे वायुमंडल से विषाक्त तत्वों को नष्ट करने में मदद करते है। यही वजह है कि ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारतों को पर्यावरण प्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए तुलसी के पौधों के रोपण को कारगर उपाय माना जा रहा है।(साभार)

मुन्ना महाराज को कौन नहीं जानता

कोलकाता के अलीपुर इलाके के जज कोर्ट रोड के उस आकाश चूमते अपार्टमेंट के बाहर अंगरेजी के मोटे अक्षरों में लिखा है ‘मारवाड़’. सुरक्षा के चाक-चौबंद प्रबंध की औपचापरकता से गुजरने के बाद सामने के जिस हॉल में हम पहंचे हैं, वहां चप्पे-चप्पे पर ‘राजस्थान’ दिख रहा है. रेगिस्तान में ऊंट सवार और राजस्थानी पपरधानों में सजे-संवरे स्त्रियों-पुरुषों की पेंटिग्स. राजस्थानी शैली के फ़र्नीचर व बरतन. कहीं हम गलत जगह पर तो नहीं आ गये? थोड़ी देर में हम अपार्टमेंट के फ़स्र्ट फ्लोर पर कैटपरंग व्यवसाय से जुड़े दीपक कुमार सिंह उर्फ़ मुन्ना महाराज के ऑफ़िस में पहंचते हैं. गरमजोशी से स्वागत के बाद बातचीत में कंपनी का नाम पूछते ही तपाक से मुन्ना महाराज जवाब देते हैं, ‘अरे, कंपनी की क्या जरूरत है? मुन्ना महाराज को कौन नहीं जानता?’ मुन्ना महाराज का यह दावा घमंड नहीं, आत्मविश्वास से भरा है. कभी कोलकाता की गलियों में 100-200 रुपयों में हलवाई व रसोईया का काम करनेवाले मुन्ना महाराज आज बिड़ला,जिंदल, मित्तल, मोदी समेत देश-दुनिया के प्रमुख औद्योगिक घरानों के आयोजनों में कैटपरंग के लिए पहली पसंद हैं. दुनिया के जाने-माने उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल अपने बेटे की शादी पेपरस में करते हैं, तो कोलकाता से मुन्ना महाराज की कैटपरंग टीम वहां जाती है. कुमार मंगलम बिड़ला के शादी समारोह से लेकर मुंबई के होटल ओबेरॉय में माइकल जैक्शन के आगमन की पार्टी तक सैकड़ों आयोजनों में मुन्ना महाराज की कैटपरंग ने चार-चांद लगाये हैं. कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, राजस्थान जैसे महानगर हो, धनबाद, रांची, पटना, जमशेदपुर जैसे शहर हो या फ़िर मलयेशिया, बैंकॉक, सिंगापुर, पेपरस की विदेशी धरती, मुन्ना महाराज की कैटपरंग टीम का जलवा सभी जगह छाया रहा. आज मुन्नाज ग्रुप के नाम से देश के विभिन्न इलाकों में मुन्ना महाराज कीकैटपरंग के दर्जन भर ऑफ़िस चल रहे हैं. कैटपरंग के अलावा कोलकाता में मुन्ना महाराज के रेस्टोरेंट, मिठाई दुकान, फ़ास्ट फ़ूड सेंटर व बेकरी के भी धंधे हैं. उनके व्यवसाय से 700 लोगों को सीधे रोजगार मिला है.यह सब कैसे संभव हो पाया? मुन्ना महाराज कहते हैं ‘व्यवहार, चपरत्र व भरोसे की लाज. यही मेरी सफ़लता का मंत्र है. जिसका काम लिया, मेहनत व ईमानदारी से उसे पूरा किया. विश्वास जीत पाया, तो सफ़लता के रास्ते खुलते गये.’ हिम्मत, विश्वास जीतने की क्षमता, विनम्र स्वभाव, कड़ी मेहनत और दूरदृष्टि के मेल से क्या चमत्कार हो सकता है, मुन्ना महाराज इसकी जीवंत मिसाल हैं. आधे घंटे की बातचीत के दौरान मोबाइल पर आनेवाले तमाम कॉलों को अटेंड करते हुए अनगिनत बार मुन्ना महाराज ‘जी भईया, ओके भईया, आदेश भईया’ बोलते हैं. बिहार के गया जिले के मटुकबीघा गांव से मुन्ना महाराज के पिता महावीर सिंह कोलकाता आये थे. पिता ने हलवाई व रसोईया का काम शुरू किया. 15 साल के थे मुन्ना महाराज, जब 1979 में एक दुर्घटना में पिताजी चल बसे. पपरवार अनाथ हो गया. 10वीं के बाद पढ़ाई ूट गयी. मां, तीन भाइयों व दो बहनों से भरे पपरवार का पेट भरने की चुनौती सामने थी. मुन्ना महाराज ने पिता से विरासत में मिले हलवाई व रसोईया का काम शुरू किया. पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद बदलते बाजार की समझ थी, सो उस हिसाब से खुद को तैयार करते चले गये. मुन्ना महाराज बताते हैं, ‘छोटे स्तर पर कैटपरंग का धंधा शुरू किया, तो बदलते समय को ध्यान में रखते हए खाने की क्वालिटी और नये कांसेप्ट का खास ध्यान रखा.’ (साभार)

...जब सेक्स वर्कर्स ने बचाया

अहमदाबाद, पैसे के लालच में कोलकाता की एक महिला ने अपनी ही 14 वर्षीय बेटी को दलालों के हाथ बेच दिया। इन दलालों की हवस का शिकार बनने के बाद जब ये किशोरी ‘बाजार’ में पहुंची तो सैक्सवर्कर की संस्था की सदस्यों की नजर उस पर पड़ गई। उन्होंने किशोरी को इस दूषित माहौल से तो निकाल लिया, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या है कि अब उस किशोरी को कहां रखा जाए। यूं बेची गई बेटी : पीड़ित किशोरी ने अपनी दास्तां बताते हुए कहा कि वह मूल रूप से कोलकाता की है। गुजरात से कुछ दलाल वहां पहुंचे और अहमदाबाद में घर के काम के लिए लड़कियों की जरूरत बताकर पांच हजार रुपए में उसे उसकी मां से खरीद लाए। यहां लाकर दलाल ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया। इसके बाद उसे देह व्यापार के बाजार में उतार दिया गया। भला हो सेक्स वर्कर्स के संगठन ‘ज्योतिसंघ’ का, इसकी सदस्यों ने उस किशोरी को देख लिया और वहां से उसे निकाल लिया। संगठन के सामने अब सबसे बड़ी समस्या ये है कि इस किशोरी को रखा कहां जाए? अगर उसे मां के पास भेज दिया जाएगा, तो मां उसे फिर दलालों के हाथों बेच देगी। बहरहाल, पीड़ित किशोरी को शहर के ही एक आश्रम में रखा गया है। गौरतलब है कि 4000 सदस्यों वाली ज्योतिसंघ संस्था की सदस्य किसी किशोरी को इस धंधे में देख लेती हैं, तो उसे वहां से छुड़ा लाती हैं।(साभार)

एक पीसीओ बिना टेलीफोन का

मेघालय, जिस किसी दिन हमारा मोबाइल फोन ज्यादा बजता है, हम परेशान हो जाते हैं। लेकिन फोन पूरा दिन बजे ही नहीं, तो चिंतित हो जाते हैं। कहने का मतलब, मोबाइल फोन पर हमारी निर्भरता इस कदर बढ़ चुकी है कि आज इसके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती। मेघालय के दूरदराज के एक गांव नोंगना की भी अजब ट्रेजिडी है। शिलांग से 130 किमी दूर स्थित नोंगना के लोगों को यदि फोन पर किसी से बात करनी हो तो उन्हें एक पहाड़ी पर चढ़ना होता है। ग्रामीणों ने छोटी सी पहाड़ी के ऊपर बाकायदा एक कमरा बना रखा है। इसे 'पीसीओ' कहा जाता है। यह अलग बात है कि पीसीओ में कोई टेलीफोन नहीं रखा। लोग अपना मोबाइल लेकर इस स्थान पर आते हैं और बात करते हैं। पूरे गांव में सिर्फ यही एक ऐसी जगह है जहां मोबाइल नेटवर्क काम करता है। तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में 50 फीसदी लोगों के पास मोबाइल फोन है। एक ग्रामीण ने बताया कि ऊपर पहुंचने में 20 मिनट लगते हैं। वहीं गांव के सबसे करीब स्थित पीसीओ भी 15 किमी दूर है। सरकार इस इलाके में मोबाइल टावर लगाने लगाने की कोशिश कर रही है। लेकिन जब तक यह नहीं होता, ग्रामीणों को बात करने के लिए पहाड़ी पर चढ़ना ही होगा। (साभार)

Friday, May 22, 2009

कल थी ऑस्कर गर्ल, आज है सेक्स वर्कर

कोलकाता। एआर रहमान को ऑस्कर लेते देख उसकी अपनी यादें ताजा हो गईं। उसे मालूम है ऑस्कर और उसे पाने का मतलब। रेड कारपेट और चमकते कैमरों के बीच वह भी रह चुकी है। लॉस एंजिलिस के उसी कोडेक हॉल में। 2005 में जब डॉक्युमेंट्री बॉर्न इनटु ब्रॉथल को ऑस्कर मिला था, प्रीति भी उस टीम का हिस्सा थी। लेकिन जिंदगी ने ऐसी करवट ली कि वह आगे बढ़ने की जगह कोलकाता के सोनागाछी रेड लाइट एरिया में पड़ी है। 4 साल पहले लॉस ऐंजिलिस के ऐतिहासिक कोडक थिएटर में वह भी मौजूद थी और ऑस्कर के गोल्डन मूर्ति को जहां उसने चूमा था, वहीं उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकल आए थे। उस सुखद अहसास के बाद वह किसी भी ऑस्कर सेरेमनी को देखने से नहीं चूकी थी। सोमवार को भी ऑस्कर के लाइव टेलिकास्ट को देखा था। वह पढ़ना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उसके पास फिल्म की डायरेक्टर जाना ब्रिस्की का ऑफर था। जाना फिल्म में काम करने वाले 9 बच्चों को जिस्म के कारोबार से निकालना चाहती थीं। उन्होंने उसकी मां को पैसे भी दिए, लेकिन मां ने जाने नहीं दिया। वह सेक्स ट्रेड में कैसे आई, इसका सही जवाब किसी के पास नहीं है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक किशोरावस्था में उसे एक रैकिट से छुड़ा कर बच्चों के सुधार गृह में भेज दिया गया था। उसके बाद बाल कल्याण कमिटी ने उसे उसकी मां को सौंप दिया था। पुलिस के मुताबिक अब वह बड़े सेक्स रैकिट का हिस्सा है। रैकिट में बड़े बड़े लोग शामिल हैं, जो उसे शरीफों की दुनिया में लौटने नहीं देंगे। उसकी आंखों में आजादी की चाहत साफ देखी जा सकती है। प्रीति को एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया में पूजा के नाम से जाना जाता है। उसके पास साल्टलेक जैसे पॉश इलाके में फ्लैट है। सोनागाछी में में भी उसने सबसे महंगी बिल्डिंग में कमरा ले रखा है। लैपटॉप, महंगे फोन और बैंक बैलेंस तो है ही। बस वह अभिजीत(साथी कलाकार)या अन्य लड़कियों की तरह दलदल से नहीं निकल सकी। ब्रिस्की ने अपनी फिल्म के लिए रेड लाइट एरिया के 9 बच्चों को चुना था। उन बच्चों को फोटोग्राफी सिखाई गई थी और अपनी दुनिया, यहां तक कि मां की गतिविधियों को भी कैमरे में कैद करने को कहा गया था। प्रीति उसी टीम का हिस्सा थी। प्रीति ने बताया कि 2002 में जाना और रोस कॉफमैन ने उसे 9 साल के बच्ची की बच्ची का रोल दिया था। उसने कहा कि फिल्म 2004 में जाकर पूरी हुई। प्रीति बताती हैं कि ऑस्कर के अलावा इस डॉक्यूमेंट्री ने करीब 20 इंटरनैशनल अवॉर्ड जीते थे। (साभार)

दम तोड़ रहा सबंग का चटाई उद्योग

खड़गपुर तहसील अंतर्गत सबंग का चटाई उद्योग यूं तो देश भर में विख्यात है लेकिन सरकारी सुविधाओं का अभाव व दलाल चक्र के कारण अब धीरे-धीरे यह उद्योग दम तोड़ने लगा है। जानकारी के अनुसार सबंग प्रखंड में रहने वाले करीब 70 फीसदी लोग चटाई उद्योग से जुड़े हैं। ये लोग वर्ष भर कड़ी मेहनत कर चटाई बनाते हैं लेकिन इन्हे वाजिब कीमत तक नहीं मिल पाती है। सबंग के साथ ही प्रखंड अंतर्गत सरता, दशग्राम, नवगांव, मोहड़, चाउलतोड़ी, नारायणबाड़ इत्यादि गांवों में भी चटाई बनाने में प्रयुक्त सींक की ग्रामीण पहले खेती करते हैं। ज्येष्ठ माह के दौरान ग्रामीण सींक की बुवाई करते हैं। इसके बाद अगहन व पूस माह के दौरान सींक को काटा जाता है। बाद में इस सींक से चटाई बनाने का कार्य शुरू किया जाता है। यहां की बनी चटाई देशभर में अपनी मजबूती के लिये विख्यात है। कुछ वर्ष पहले पुष्प जाना नामक एक चटाई कारीगर को बेहतरीन चटाई बनाने के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा गया था। स्थानीय लोगों में रमणी जाना, माया राउत, प्रमिला जाना, ईश्वरीय खाटुआ सहित अन्य लोगों ने कहा कि चटाई खरीद को लेकर कोई सरकारी सुविधा न होने से हमलोगों को इसे दलालों के मार्फत बेचना पड़ता है। दलाल कम दाम देकर माल ले जाना है। स्थानीय कारीगरों ने कहा कि बिचौलियों को तो ज्यादा मुनाफा हो जाता है लेकिन हमलोगों को मन माफिक दाम नहीं मिल पाता है। ज्ञातव्य है कि चटाई उद्योग के विकास के लिये एक सरकारी स्तर पर सात करोड़ रुपये की प्रोजेक्ट भी बनायी गयी है, जिसका शिलान्यास करीब तीन माह पहले एटक नेता गुरुदास दासगुप्ता ने किया था। सबंग के विधायक डा. मानस भुइंया ने कहा कि चटाई उद्योग के विकास के लिये उन्होंने विधानसभा में कई बार आवाज उठायी है। इधर पश्चिम मेदिनीपुर जिलाधिकारी नारायण स्वरूप निगम का कहना है कि बाढ़ की वजह से खेतों में सींक नष्ट हो जाने के बाद सरकार की ओर से चटाई बनाने में लगे लोगों को मुआवजा प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा कि उद्योग के विकास के लिये सरकार द्वारा एक योजना बनायी गयी है। जिस पर शीघ्र ही अमल किया जायेगा। इधर ग्रामीणों का कहना है कि भारी बरसात व बाढ़ के कारण खेतों में पड़ी सींक प्राय: नष्ट हो जाती है, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ज्यादा लाभ न होने से कई लोग अब इस पेशे से मुंह मोड़ रहे हैं।