Wednesday, March 30, 2011

माकपा के आतंक सं तंग आ चुकी है जनता - स्मिता बक्सी

शंकर जालान केवल जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र ही नहीं, पूरे राज्य की चुनाव माकपा के आतंक सं तंग आ चुकी है। जनता हर हाल में बदलाव चाहती है, परिवर्तन चाहती है और इसके लिए एक मात्र व बिल्कुल सटीक विकल्प है तृणमूल कांग्रेस। यह कहना है वार्ड नंबर 25 की पार्षद, बोरो चार की चेयरमैन और जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार स्मिता बक्सी का। विधानसभा चुनाव की सिलसिले में बातचीत करते हुए स्मिता बक्सी ने कहा कि चुनाव जीतने पर इनकी पहली प्राथमिकता होगी क्षेत्र में शांति व कानून-व्यवस्था को कायम रखने में मदद करना। उन्होंने कहा कि यदि क्षेत्र में शांति व व्यवस्था रहती है तो विकास की बयार अपने आप बहेगी। स्मिता ने आरोप लगाते हुए कहा कि 34 वर्ष के शासनकाल में वाममोर्चा ने पूरे पश्चिम बंगाल में अशांति व हिंसा का वातावरण तैयार किया है। राज्य की जनता अब हर हाल में शांति व अमन चहाती है, इसलिए वह तृणमूल कांग्रेस को पसंद कर रही है।बक्सी ने बताया कि इतिहास गवाह है कि जोड़ासांकू सीट से वाममोर्चा के उम्मीदवार ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। यह सीट पहले कांग्रेस के कब्जे में थी और बीते दो चुनाव से तृणमूल कांग्रेस के पास है। उन्होंने कहा कि 2006 में हुए चुनाव में वोममोर्चा को 294 सीटों में से 235 सीटों पर कामयाबी मिली थी, इसके बावजूद जोड़ासांकू सीट तृणमूल कांग्रेस के खाते में ही रही। इस बार संपूर्ण राज्य में परिवर्तन की लहर है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी मां, माटी, मानुष के नारे साथ मतदाताओं के पास जा रही है। ऐसी स्थिति में मेरी जीत पक्की है।परिसीमन का वृहत्तर बड़ाबाजार पर खासा प्रभाव पड़ा है। जोड़ाबागान व बड़ाबाजार क्षेत्र समाप्त हो गए हैं। ऐसे में वृहत्तर बड़ाबाजार के विकास की जिम्मेदारी जोड़ासांकू के विधायक के कंधे पर होगी। इसे आप किस नजर से देखती हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि विधानसभा क्षेत्र तय करना चुनाव आयोग का काम है और यह तो पहले से मालूम था कि वृहत्तर बड़ाबाजार की कई सीटों पर परिसीमन की गाज गिरने वाली है। जहां तक इलाके के विकास की बात है, क्षेत्र की जनता को मुझ पर पूरा भरोसा है। मैं लंबे समय से वार्ड 25 की पार्षद हूं और बतौर पार्षद अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई है। अब जनता के वोट रूपी आशीर्वाद से विधायक बनूंगी और यह जिम्मेवारी भी बेहतर तरीके से निभाऊंगी।आपकी पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने जोड़ासांकू से तृणमूल कांग्रेस से निवर्तमान विधायक को टिकट नहीं दिया और तो और पहले यहां से शांतिलाल जैन को उम्मीदवार बनाने का एलान किया था। जैन ने प्रचार भी शुरू कर दिया था, इसके बाद एकाएक आपको उम्मीदवार बना दिया गया। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगी। देखिए इस बाबत मुझे कुछ नहीं कहना। ये सारे निर्णय ममता बनर्जी के हैं और इस बारे में विस्तार से वे ही कुछ बता सकती हैं।यहां से माकपा ने जानकी सिंह, भाजपा ने मीनादेवी पुरोहित और जदयू ने मोहम्मद सोहराब को उम्मीदवार बनाया है। किसे अपना निकटतम प्रतिद्वंदी मान रही हैं? किसी को नहीं। मेरी जीत पक्की है। मां, माटी, मानुष के नारे और परिवर्तन की हवा के सहारे न केवल जोड़ासांकू बल्कि के राज्य के अधिकांश विधानसभा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के झंड़ा लहराएगा।

Monday, March 28, 2011

युवाओं को किसी दल से कोई खास उम्मीद नहीं

शंकर जालान कोलकाता। आगामी विधानसभा चुनाव के सिलसिले में आप क्या सोचते हैं? किस दल या उम्मीदवार को वोट देना पसंद करेंगे? आप की नजर में किस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों को वोट मांगना चाहिए? वर्तमान समय में राज्य किस हालात से गुजर रहा है? बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा पर आप की क्या राय है? राज्य में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा? क्या भाजपा का खाता खुलेगा? क्या कांग्रेस के विक्षुब्ध नेता निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ कर जीत पाएंगे? इन सवालों पर अपनी राय देते हुए महानगर के युवा वर्ग के लोगों ने कहा कि चाहे कोई भी दल क्यों न हो सभी अपने हित के लिए जनता के हित को नजरअंदाज करते हैं, इसलिए किसी भी दल से कोई खास उम्मीद रखना खुद को धोखे में रखने जैसा होगा। ज्यादातर लोगों ने कहा कि विकास, उद्योग व शांति के नाम पर राजनीतिक दलों को वोट मांगना चाहिए। फिलहाल राज्यवासी कुछ पार्टियों के राजनेताओं के झूठे वादे के झांसे में आ रहे हैं, लेकिन राज्य में बढ़ती बेरोजगारी और हिंसा की वारदातें चिंता का विषय है। सिकदरपाड़ा लेन के रहने वाले विनोद सिंह ने कहा कि फिलहाल राज्य बेरोजगारी और हिंसा की समस्या से जूझ रहा है, इसलिए ऐसे दल और ऐसे उम्मीदवार को वोट देना चाहिए जो इन समस्याओं पर अंकुश लगा सके। उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता स्थिर सरकार की होनी चाहिए और इसके बाद विकास को प्रमुखता देने वाली पार्टी को वोट देना चाहिए। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के विरोध के कारण राज्य से टाटा मोटर्स की नैनो कार का कारखाना नहीं लग पाया, इस वजह से हुगली जिले के लोगों में रोजगार पाने की जो ललक लगी थी वह बुझ गई। जिसका खामियाजा तृणमूल कांग्रेस को इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।कालीकृष्ण टैगोर स्ट्रीट के रहने वाले चंद्रशेखर बासोतिया ने कहा कि राज्य की जनता यह भलीभांति जानती है कि कौन सा दल राज्य में विकास चाहता है और कौन सी पार्टी अराजकता फैला रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में चुनाव के क्या नतीजे होंगे और किसकी सरकार होगी यह कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी। उन्होंने बताया कि जहां तक कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस में गठजोड़ की बात है, तो मुझे नहीं लगता है कि इसका कोई खास प्रभाव पड़ेगा।पाथुरियाघाट स्ट्रीट के निवासी मनोज अग्रवाल ने कहा कि जिस किसी पार्टी की सरकार क्यों न बने और मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहे जिस नेता को क्यों न मिले, उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए हिंसा पर अंकुश लगना और बेरोजगारों के लिए रोजगार उपलब्ध करना। उन्होंने कहा कि हो सकता है तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में हुए तालमेल के कारण वाममोर्चा की कुछ सीटें घट जाए या फिर जीत का अंतर कम हो जाए, लेकिन सरकार गठन मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।उल्टाडांगा के रहने वाले अशोक झा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि राज्य में भाजपा का खाता खुल पाएगा। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के तालमेल का भी कोई विशेष लाभ होता नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि लोग को इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए कि कौन सा उम्मीदवार और कौन सी पार्टी सचमुच राज्य का विकास चाहती है। जहां तक निर्दलीय उम्मीदवारों की बात है उनके लिए जीत की राह आसान नहीं है।

सुशासन के नाम पर कुशासन को बढ़ावा देना चाहती है तृणमूल : जानकी सिंह

शंकर जालान कोलकाता, जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र से वोममार्चा समर्थित माकपा उम्मीदवार जानकी सिंह ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस राज्य की जनता को गुमराह करते हुए सुशासन के नाम पर कुशासन को बढ़ावा देना चाहती है। उन्होंने कहा कि मेरी जीत पक्की है और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि राज्य में आठवीं बार भी वाममोर्चा की ही सरकार बनेगी। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की परिवर्तन की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि होता तो गया परिवर्तन, तृणमूल कांग्रेस ने पहले शांतिलाल जैन को उम्मीदवार बनाया था और परिवर्तन करते हुए स्मिता बक्सी को टिकट दे दिया।बातचीत में जानकी सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी आज यह कह रही हैं कि पश्चिम बंगाल में गणतंत्र नहीं है वह अपने गिरेवान में झांके। जिस पार्टी में उनके (ममता) अलावा किसी को बोलने की इजाजत नहीं है उस पार्टी की प्रमुख अगर गणतंत्र की बात करे तो यह हास्यास्पद लगता है।उन्होंने कहा कि राज्य की जनता इस बात की गवाह है कि तृणमूल कांग्रेस ने हर विकासशील परियोजना का विरोध किया। रास्ता काट कर आंदोलन करने वाले माओवादियों को समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि वे मतदाताओं के पास वाममोर्चा का चुनाव घोषणा पत्र लेकर जा रही हैं और उसी के आधार पर वोट मांग रही है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से उन्हें मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है उसे देखते हुए उन्हें विधानसभा भवन पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी कहती हैं वे हर जिले में उद्योग स्थापित करेंगी। दूसरी ओर यह भी कहती हैं कि इसके लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा। बगैर जमीन के कैसे उद्योग लगेगा यह सोचने का विषय है। राज्य के जनता बनर्जी के शब्जबाग को भलीभांति समझती है।उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रही ममता के रेल मंत्रालय के कामकाज को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि अगर तृणमूल सत्ता में आई तो कैसी होगी राज्य की स्थिति। उन्होंने कहा कि रेलमंत्री बनने के पूर्व एक रुपए आमदनी की एवज में 75 पैसे खर्च होते थे। ममता के रेलमंत्री बनते ही में एक रुपए के एवज में 98 पैसे खर्च होने लगे। इसके अलावा मालगाड़ी ट्रेनों का परिचालन कम हुआ है। उन्होंने कहा कि ट्रेनें लगातार बढ़ रही है पर व्यवस्थाएं क्या है किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में मतदाता सोच ले कि राज्य में अराजकता चाहिए कि शांति? उन्नति या हिंसा?आपके खिलाफ भाजपा ने मीना देवी पुरोहित और तृणमूल कांग्रेस ने स्मिता बक्सी को मैदान में उतारा है और ये दोनों बीते कई सालों से पार्षद हैं। पुरोहित ने डिप्टीमेयर रह चुकी हैं, जबकि बक्सी बोरो चेयरमैन हैं। ऐसे में आप को नहीं लगता कि पुरोहित और बक्सी तुलना में आपका राजनीति ज्ञान कम है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि कतई नहीं। उन्होंने माना कि उनकी दोनों प्रतिद्वंदी फिलहाल पार्षद है, लेकिन इससे चुनावी नतीजों पर कई फर्क नहीं पड़ेगा। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि वे 1968 से राजनीति में है और 1969 में उन्होंने माकपा की सदस्यता ली, तब से आज तक यानी करीबन 42 वर्षोम तक संगठन, छात्र, युवा और महिलाओं के लिए उन्होंने पार्टी के बैनर तले कई काम किए है, जिसका प्रतिफल विधानसभा चुनाव में वोट के रूप में उन्हें मिलेगा। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में किसी निकटतम प्रतिद्वंदी मानती हैं? इसका उत्तर देते हुए जानकी सिंह ने कहा किसी को नहीं, मेरी जीत निश्चित है।

Sunday, March 27, 2011

शांति और विकास को प्राथमिकता देने वाला विधायक चाहती है जनता

शंकर जालानकोलकाता। अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव के बारे में ज्यादातर लोगों का कहना है कि ऐसे उम्मीदवार को जीताकर विधानसभा भवन भेजना चाहिए जिसकी सोच राज्य में शांति बहाली के साथ-साथ उद्योग का प्राथमिकता देने वाली हो। 15वीं विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महानगर के कई वर्ग और क्षेत्र के लोगों से बातचीत की तो इन लोगों ने कहा कि विधानसभा चुनाव का महत्त्व राज्य के विकास से जुड़ा होता है, इसलिए सही उम्मीदवार का चयन हर जिम्मेवार मतदाता का दायित्व बनता है। इन लोगों के मुताबिक, नगर निगम का चुनाव एक वार्ड और विधानसभा का चुनाव परिणाम पूरे राज्य के विकास या विनाश के लिए जिम्मेवार होता है। इसलिए मतदाताओं को दोनों चुनाव के महत्व को ध्यान में रखते हुए वोट डालना चाहिए। इन लोगों ने कहा कि जागरूक मतदाता वही है जो किसी पार्टी या उम्मीदवार के झांसे में न आकर अपनी सोच-समझ से बेहतर और राज्य के हित को प्राथमिकता देने वाले प्रत्याशी को वोट दे।इस बारे में कलाकार स्ट्रीट के रहने वाले संजय अग्रवाल ने कहा कि विधानसभा चाुनाव में जनप्रतिनिधि के रूप में वैसे उम्मीदवार का चयन होना चाहिए जो अपने मतदाता के प्रति ईमानदार हो। उनके शब्दों में साफ छवि व नैतिकतावाले प्रत्याशी का चुनाव करना राज्य की प्रगति के लिए आवश्यक है।पोस्ता के रहने वाले आनंद नारसरिया ने कहा कि सही उम्मीदवार वह है जो जनसमस्याओं को समझने वाला हो न कि भ्रष्टाचारी। जो जनता की समस्याओं का समाधान करे। मैं सबको साथ लेकर चलने वाले और दलगत राजनीति से ऊपर होकर काम करने वाले प्रत्याशी को वोट देना पसंद करूंगा। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में श्रेष्ठ उम्मीदवार का श्रेय उसी को है जो बुनियादी समस्याओं को नजदीक से जाने और चतुर्दिक विकास की बात विधानसभा में उठाए।जगमोहन मल्लिक लेन के रहने वाले राजी राठी ने बताया कि जो पार्टी और उम्मीदवार राज्य को प्रगति की ओर ले जाए वे उसे ही वोट देना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि उन उम्मीदवारों को चुनाव के वक्त जनता से रू-ब-रू होने में कोई झिझक नहीं होती जो प्रचार के दौरान किए गए वायदों को पूरा करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी सोच के मुताबिक, वह उम्मीदवार बेहतर है जो जनता की आकांक्षाओं के प्रति खरा उतरे और स्वच्छ छवि वाला हो।शिवतला लेन के ओमप्र्रकाश साव ने कहा कि शहर में व्याप्त समस्याओं को गंभीरता से लेने और लोगों के दुख-दर्द में शामिल होने वाला प्रत्याशी उनकी पसंद है। उन्होंने कहा कि जो कर्मठ हो, जनभावना को समझ सके और भूलभूत समस्याओं को हल करे, जो जनता के प्रति अपनी जवाबदेही महसूस करे, वैसे ही प्रत्याशी को जीताकर विधानसभा भेजना चाहिए। इस बारे में महर्षि देवेंद्र रोड के विनय कुंवर का कहना था कि उम्मीदवार वैसा होना चाहिए जो शिक्षित, समाज से जुड़ा और अपनी बातों को प्रभावी तरीके से विधानसभा में रख सके। उन्होंने कहा कि नैतिकता से परिपूर्ण और जाति धर्म से ऊपर उठ कर बेरोजगारी मिटाए और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सार्थक पहल कर उसे ही विधायक कहलाने का अधिकार है। नीमतला घाट स्ट्रीट के निवासी दिनेश पांडेय ने कहा कि प्रतिनिधि शिक्षित, ईमानदार, कर्मठ और सभी धर्मों में आस्था रखने वाला हो उसे ही विधानसभा में पहुंचने का हक होना चाहिए। इसी तरह नूतन बाजार के मनोज सिंह पराशर का कहना था कि पहली प्राथमिकता तो यह होनी चाहिए की उम्मीदवार आपराधिक छवि वाला न हो। उसके मन में लोकहित की भावना हो। बेरोजगारी को समाप्त करने के लिए पहल करे।

Friday, March 25, 2011

रोचक नारों से मतदाताओं को लुभाने में जुटे उम्मीदवार

शंकर जालान

रोचक नारों से मतदाताओं को लुभाने में जुटे उम्मीदवारशंकर जालानकोलकाता । राज्य में अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट देने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे की खिंचाई कर रही है। व्यंग्य करते नारे और छोटी कविताओं के माध्यम से उम्मीदवार विरोधी दलों की नीतियों को जनविरोघी बताने में जुटे हैं। कोई पार्टी मां, माटी, मानुष और परिवर्तन के अलावा बदल दो जैसे नारे के सहारे मतदाताओं को रिझाने में जुटी है। तो कई दल के उम्मीदवार सुशासन, विकास, स्थिरता के सहारे मतदाताओं के पास जा रहे हैं। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा के घटक दलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, भाजपा समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां भाग्य अजमा रही हैं और अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला माकपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच देखा जा रहा है। इस दिशा में माकपा और तृणमूल कांग्रेस की तरफ में दीवार लेखन, होर्डिंग, पोस्टर और बैनरों पर रोचक और मतदाताओं को सोचने पर मजबूर करने वाले कई तरह के स्लोगन लिखे गए हैं, लेकिन कांग्रेस और भाजपा स्लोगन के मामले में काफी पीछे हैं।तृणमूल कांग्रेस वाले जहां, माकपा ने बंद किया कारखाना, नौकरी का नहीं ठिकाना। साम्यवाद से समाजवाद, हर कॉमरेड आबाद। इंकलाब का सूखा तालाब, यह कैसा इंकलाब। माकपा की करतूत, दुखी हैं मुटिया-मजदूर के माध्यम से माकपा पर निशाना साध रहे हैं। इसके अलावा सिंगुर में 400 एकड़ जमीन वापस करो।सबार पेटे भात चाई, सबार जन्ने काज चाई। मां-माटी-मानुषेर स्वार्थे तृणमूल के वोट दिन। जमी व शिल्पे स्वार्थे ममता के जयी करून। शिल्प व कृषि समन्वय चाई। (सबके लिए भोजन व काम चाहिए, जमीन व लोगों की भलाई के लिए तृणमूल को वोट दे, जमीन की रक्षा व उद्योग के लिए ममता को विजयी बनाए, समान रूप से चाहिए उद्योग और खेती )। जैसे स्लोगनों का इस्तेमाल भी कर रही है। वहीं माकपा वाले कांग्रेस-तृणमूल का जोट, नहीं जुटा पाएगा वोट। नहीं मूल कांग्रेस, नहीं तृणमूल कांग्रेस। वाम गठबंधन, सबका अभिनंदन। ममता उद्योग चाहती है, बंगाल नहीं गुजरात में। माकपा चाहती विकास और तृणमूल राज्य का सत्यानाश। माकपा की पुकार, रहे न कोई बेरोजगार। जैसे स्लोगन का सहारा ले रहे हैं।कांग्रेस ने अपने पुराने स्लोगन में मालूमी फेरबदल किया। पिछले लोकसभा और कोलकाता नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस का स्लोगन था- आम आदमी का हाथ, कांग्रेस के साथ इस बार कांग्रेस का स्लोगन है आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद।संचार माध्यम से प्रचार : इस बार विधानसभा चुनाव में भाग्य अजमा रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार संचार माध्यम यानी सरकारी टेलीविजन व रेडियो स्टेशन का इस्तेमाल हो सकता है। उम्मीदवार इसका अधिक फायदा न उठा सके इस बाबत चुनाव आयोग की ओर से विशेष दिशानिर्देश जारी कएि गए हैं। सूत्रों के मुताबिक राज्य में यह सुविधा दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो के स्टेशन पर उपवब्ध रहेगी, जहां सभी पार्टियों को समान रूप से प्रचार के लिए 45 मिनट का समय दिया जाएगा। इस बाबत उन्हें एक से पांच मिनट की अवधि वाले टाइम वाउचर दिए जाएंगे। किसी भी राजनीतिक दल को एक सत्र में पंद्रह मिनट से अधिक का समय नहीं दिया जाएगा। चुनाव आयोग प्रसार भारती से विचार-विमर्श कर प्रसारण की तिथि व समय तय करेगा। सभी पार्टियों को प्रसारण संबंधी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा। उन्हें प्रसारण के लिए रिकार्डेड कैसेट अग्रिम तौर पर जमा करानी होगी। पार्टी अपने खर्च पर स्टूडियो में भी रिकार्डिंग करा सकती है, हालांकि यह प्रसार भारती व दूरदर्शन की ओर से निर्धारित मानकों के अनुरूप होना चाहिए। रिप्रेजेंटेशन आफ पीपुल एक्ट - 1951 के प्रावधानों के तहत नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि से मतदान की तिथि से दो दिन पहले तक सरकारी टेलीविजन व रेडियो के माध्यम से प्रचार किया जा सकता है।प्रचार का नायाब तरीका : चुनाव आचार संहिता से बचने के लिए प्रत्याशियों ने प्रचार का नायाब तरीका निकाला है। वे कला-संस्कृति व पर्यावरण को माध्यम बनाकर लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी शोभन चटर्जी का कहना है आचार संहिता की वजह से दीवार लेखन, होर्डिंग्स-बैनर हर स्थान पर नहीं लगाए जा सकते, इसलिए संस्कृति को ध्यान में रखकर विभिन्न स्थानों पर चित्रांकन की रणनीति अपनाई जाएगी। भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र के माकपा प्रत्याशी नारायण जैन ने कहा कि वे पर्यावरण सुरक्षा के साथ-साथ जागरुकता अभियान चलाकर लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। दीवारों पर एक वृक्ष दस पुत्र समान जैसे नारे लिखकर उसके नीचे अपना नाम लिखकर प्रचार कर रहे हैं।

Wednesday, March 23, 2011

खूब बिक रहे हैं राजनीतिक पार्टियों के झंडे

विधानसभा चुनाव-2011

शंकर जालान
कोलकाता। राज्य में अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा की कुल 294 सीटों के चुनाव के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक पाटिर्यों के झंडे समेत विभिन्न प्रकार की प्रचार सामग्री की बिक्री बढ़ गई है। झंडे का कारोबार करने वाले लोगों के मुताबिक, वाममार्चा के घटक दलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दलों के झंडे की मांग बढ़ गई है। महानगर समेत विभिन्न जिला स्थित विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार के अलावा पार्टी समर्थक मतदाताओं को रिझाने के लिए काफी संख्या में झंडे लगा रहे हैं। इन दिनों कपड़े के अलावा प्लास्टिक के झंडे की भी अच्छी-खासी मांग है।
महात्मा गांधी रोड में बीते पचास सालों से झंडे का कारोबार करते आ रहे रामदीन यादव ने बताया कि गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अलावा चुनाव के मौसम में उनका कारोबा खूब चलता है। उन्होंने बताया कि में नगर निगम और नगरपालिका चुनाव की तरह तो विधानसभा चुनाव में झंडे नहीं बिकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव के दौरान अधिक संख्या में झंडों की बिक्री होते हैं।
उनके मुताबिक गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर महानगर के अलावा अन्य जिलों से आए लोग अपनी-अपनी जरूरत के मुताबिक झंडे खरीद कर ले जाते हैं और तत्काल भुगतान कर देते हैं। लेकिन चुनाव के दौरान हमें खरीदार के इच्छानुसार झंडे पर छपाई करवानी पड़ती है और उधार बेचना पड़ता है।
किस पार्टी के झंडे अधिक बिक रहे हैं? लगभग कितनी फीसद की बचत हो जाती है? क्या झंडों की बिक्री से संतुष्ट हैं? इन सवालों के जवाब में आदित्य कुमार ने बताया कि सटीक तौर पर यह बताना मुश्किल है। आम तौर पर झंडे के व्यापार में 15 से 18 फीसद की बचत होती है, लेकिन चुनाव में कुछ भुगतान डूबने का डर रहता है, इसलिए मुनाफा का अनुपात बढ़ाते हुए 20 से 25 फीसद तक की कमाई कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि आठ-दस साल पहले तक दीवार लेखन और झंडे के जरिए प्रचार किया जाता था, क्योंकि प्रचार का और कोई साधन नहीं था। इन दिनों प्रचार के कई तरीके विकसित हुए हैं, लिहाजा झंडे की बिक्री कुछ प्रभावित हुई है।
इसी तरह एक अन्य व्यापारी ने बताया कि इस बार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की ओर से प्रचार के लिए बैनर, पोस्टर, दीवार लेखन और टीवी चैनल के अलावा इंटरनेट का सहारा लिया जा रहा है।
वहीं, विज्ञापन एजंसियों का कहना है कि इस बार के चुनाव में राजनीतिक दल वाले उनकी सेवाएं कम ले रहे हैं। एजंसी वाले इसका कारण चुनाव आयोग की सख्ती बता रहे हैं। विज्ञापन एजंसी चलाने वाले लोगों का कहना है कि राजनीतिक दल इस बार पोस्टर व बैनर पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। उम्मीदवारों का ध्यान विज्ञापन देने के प्रति कम है। विज्ञापन का बाजार तो और अधिक खराब है।
होर्डिंग बनाने वाले एक कारीगर ने बताया कि पहले विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से होर्डिग लगाने के लिए इतने आर्डर मिलते थे कि अस्थाई तौर कोलकाता नगर निगम से होर्डिंग लगाने की अनुमति लेनी पड़ती थी, लेकिन इस बार के चुनाव में ऐसा नहीं हो रहा है।
दूसरी ओर, हर पार्टी का हर प्रत्याशी हर तरीके मतदाताओं के बीच पहुंचने की कोशिश में जुटा है। प्रचार के नए-नए तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी कड़ी में इन दिनों विभिन्न दलों के उम्मीदवार प्रचार के लिए गुब्बारे, साड़ी, कमीज, टोपी व छाते का सहारा ले रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह वाले छोटे-बडे आकार के रंग-बिरंगे गुब्बारे इन दिनों खूब बिक रहे हैं। पोलक स्ट्रीट में गुब्बारे के कारोबार से जुड़े कई लोगों ने बताया कि इससे पहले चुनावों में गुब्बारे प्रचार का माध्यम नहीं बने थे। पहली बार ऐसा देखा गया है कि उम्मीदवार प्रचार के लिए गुब्बारे का सहारा ले रहे हैं। कुछ उम्मीदवार केवल चुनाव चिन्ह वाले गुब्बारे मांग रहे हैं तो कुछ चुनाव चिन्ह के साथ अपनी फोटो भी छपवा रहे हैं। गुब्बारों के व्यापारियों ने बताया कि साधारण गुब्बारे की तुलना में चुनाव चिन्ह वाले गुब्बारे की कीमत कहीं ज्यादा है, फिर भी लोग खरीद रहे हैं। ठीक, इसी तरह चुनाव चिन्ह वाले छातों, टोपी, साड़ी व कमीज की भी इन दिनों खूब मांग है।

कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस में अभी भी है असमंजस की स्थिति

विधानसभा चुनाव -२०११

शंकर जालान
कोलकाता । कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारें के मुद्दे पर सहमति हो जाने के बाद भी दोनों दलों के कई नेता व समर्थक इसे मानने को तैयार नहीं है। वाममोर्चा के खिलाफ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस के बीच सीटों के तालमेल पर काफी हद तक सहमति हो जाने के बावजूद असमंजस की स्थिति अभी बनी हुई है, जिससे दोनों पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, विधायक सहित राजनीतिक कार्यकर्ता किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। एक ओर जहां एसयूसीआई 19 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का एलान कर कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी है। वहीं, भाजपा ने राज्य की सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर कांग्रेस-तृणमूल के लिए दिक्कत और वाममोर्चा के लिए सहूलियत कर दी है। राजनीतिक हलकों में फिलहाल चर्चा यही है कि आने वाले दिनों में कुछ और फेरबदल संभव है।
राजनीति के जानकारों के मुताबिक विपक्ष जितने भागों में बंटेगा, वाममोर्चा के लिए आठवीं बार सरकार बनाने का रास्ता उतना ही सहज होगा। लोगों का कहना है कि वाममोर्चा के वोट लगभग फिक्स हैं यानी जो मतदाता वाममोर्चा उम्मीदवारों को वोट देते आ रहा है वह उसे ही वोट देना। वाममोर्चा के मतदाता अन्य राजनीति दलों के शब्जबाग और झांसे में आने वाले नहीं है। जबकि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनीति दलों के मतदाता अवसर और उम्मीदवार के साथ-साथ विभिन्न चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं।
मालूम हो कि मुख्य रूप से कांग्रेस (65) और तृणमूल कांग्रेस (229) के बीच सीटों के बंटवारे पर सोमवार को सहमति हो गई थी, जिसके बाद संभावना चुनावी रणनीति और तस्वीर के साफ होने की जताई जा रही थी, लेकिन इस गठजोड़ के खिलाफ विभिन्न खेमो से अलग-अलग आवाज सुनाई देने से संशय और असमंजस बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस के सांसद अधीर चौधरी (मुर्शिदाबाद), सांसद दीपा दासमुंशी (जलपाईगुड़ी) के अलावा विधायक राम प्यारे राम, पूर्व विधायक शंकर सिंह ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। अधीर चौधरी जहां अलग से उम्मीदवार खड़ा करने की बात कह रहे हैं। वहींंं, राम प्यारे राम ने निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इसके अलावा मध्य कोलकाता के जोड़ासांकू विधानसभा सीट से शांतिलाल जैन उम्मीदवार बनाने से तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में नाराजगी है। माना जा रहा है कि तृणमूल में जारी असंतोष की वजह से कई सीटों पर अभी यह स्थिति नहीं बन पाई है कि उम्मीदवार बेखटके चुनाव प्रचार में जुट सके, क्योंकि समीकरण के अभी कई और करवट लेने की संभावना व्यक्त की जा रही है। खास तौर पर प्रदेश स्तर पर तृणमूल कांग्रेस द्वारा अपने कोटे से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को एक सीट देने के बाद ऐसे दसों की उम्मीद और बढ़ गई है, जिनका प्रदेश स्तर पर तो कई विशेष जनाधार नहीं है, लेकिन गठबंधन की राजनीति का फायदा उठाने को उनके आका सक्रिय हो उठे हैं। ऐसे दलों में झारखंड नामधारी पार्टियों के साथ जनता दल यूनाइटेड जैसे दलों को शामिल किया जा रहा है, जो आगामी चुनाव में गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि इस बाबत इन दलों के नेता ऐसे सवालों पर कुछ कहने से साफ इंकार करते हैं।

Monday, March 21, 2011

फिर छले जाने की आशंका है किन्नरों व विकलांगों को

विधानसभा चुनाव-2011

शंकर जालान
पश्चिम बंगाल में अप्रैल और मई में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों व पार्टी समर्थकों में खासा उत्साह है। वहीं, महानगर के विकलांगों और किन्नरों में इस चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है। उन्हें हर चुनाव की तरह इस बार भी फिर छले जाने का अंदेशा है। विकलांगों व किन्नरों का नाम मतदाता सूची में दर्ज होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव के बाद इन्हें भूल जाते हैं। क्या आपको मालूम हो कि अगले महीने राजय में विधानसभा का चुनाव होने वाला है? चुनाव को लेकर आप क्या सोचते हैं? किस उम्मीदवार को जीताना चाहते है? किसकी सरकार चाहते है? वोट मांगने आए नेताओं से क्या गुजारिश करना चाहते हैं? इन सवालों का उत्तर जानने के लिए जब शहर के कई विकलांगों व किन्नरों से बातचीत की गई तो इन लोगों ने कहा कि चुनाव को लेकर उनमें कोई उत्साह नहीं है। हर दल के उम्मीदवार चुनाव के पहले वोट मांगने आते हैं और वोट देने के बदले बड़े-बड़े आश्वासन दे जाते हैं, लेकिन चुनाव का नतीजा आने के बाद जीतने वाला उम्मीदवार अन्य कामों में व्यस्त हो जाता है व हारे हुए के हाथ में कुछ नहीं होता और हम जैसे लोग चुनाव के नाम पर फिर से छले जाते हैं।
जदूलाल मल्लिक लेन का निवासी 32 वर्षीय विकलांग रामकुमार भट््ट ने बताया कि विभिन्न चुनाव मौके पर आए वोट मांगने आए विभिन्न दलों के उम्मीदवार यहीं कहते हैं कि जीतने के बाद हम सदन में विकलांगों को विशेष सुविधा देने की बात उठाएंगे, लेकिन हकीकत में होता कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि करीब 14 साल पहले सड़क दुर्घटना में मेरा एक पैर जाता रहा और तब से मैं बैशाखी के सहारेचल रहा हूं। भट््ट ने कहा विकलांग का कार्ड बनाने के लिए मैंने न जाने कितनी बार स्थानीय पार्षद, विधायक और सांसद के कार्यालय का चक्कर लगाए, लेकिन आज तक मेरा कार्ड नहीं बन पाया। उन्होंने कहा कि हमें किसी दल के किसी उम्मीदवार से कुछ नहीं कहना है, क्योंकि चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद नेताओं के पास हम जैसे विकलांग और गरीब लोगों के लिए सोचने का वक्त ही कहां रह जाता है। भट््ट ने बताया कि इस चुनाव को लेकर उनके मन में कोई उत्साह नहीं है और न ही किसी दल से कोई उम्मीद।
रवींद्र सरणी के रहने वाले संजय अग्रवाल, मदन चटर्जी लेन के रहने वाले अनूप पोद्दार, सर हरिराम गोयनका स्ट्रीट के अतुल दोषी, काली कृष्ण टैगोर स्ट्रीट के चंद्रशेखर शर्मा समेत कई विकलांगों ने भी कहा कि चुनाव का उनके जीवन में कोई महत्त्व नहीं रह गया है।
इसी तरह पार्वती घोष लेन की रहने वाले किन्नर रमा बाई, तुलसी बाई, कौशल्या बाई, रजनी बाई समेत कई किन्नरों से लोकसभा चुनाव के बारे में पूछने पर पहले तो इन लोगों ने कुछ भी कहने से मना किया। काफी पूछने पर इन किन्नरों ने सामूहिक रूप से कहा कि हमें चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। कोई भी नेता हमारे लिए कुछ करने वाला नहीं है। सभी लोग हमें गलत नजर से देखते हैं। यह पूछ जाने पर कि आप लोग चुनाव शब्द से ही नाराज हो रहे है और मध्य प्रदेश में आप ही के समाज की शबनम मौसी चुनाव लड़ी भी है और जीती भी है। इसके अलावा देश भर में कई किन्नरों ने चुनाव में भाग्य आजमाया है। इसके जवाब में इन किन्नरों ने कहा कि शबनम मौसी के चुनाव जीतने के पहले देश भर में किन्नरों की जो स्थिति थी उसके बाद भी हम लोगों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इन लोगों ने कहा कि जब भगवान ने हमारे साथ मजाक किया है तो किसी नेता की क्या मजाल कि वे हमारी स्थिति सुधार सके।

...और उन्हें किसी पार्टी ने नहीं दिया टिकट

विधानसभा चुनाव-2011

शंकर जालान
अपने मुंह मिया मीठ्ठू यानि निजी प्रचार को महत्व देने वाले तृणमूल कांग्रेस के विधायक दिनेश बजाज को किसी पार्टी का टिकट नहीं मिल सका। बीते चुनाव में जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर महज छह सौ से अधिक वोटों से जीतने वाले बजाज की पार्टी विरोधी और प्रचार लोभी नीति के कारण तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इस बार उन्हें टिकट देना उचिच नहीं समझा। सूत्रों के मुताबिक बीते पांच साल के दौरान कई बार बजाज ने पार्टी के दिशा-निर्देश की अनदेखी करते हुए अपनी इच्च्छा, प्रचार, सुविधा और लाभ को ध्यान में रखते हुए काम किया। इसे से खफा ममता बनर्जी ने इस बार उन्हें टिकट से दूर रखा। सूत्रों ने बताया कि बजाज को यह पहले ही आभास हो चुका था कि उनकी करतूतों की जानकारी ममता बनर्जी को है, लिहाजा इस बार उन्हें तृणमूल कांग्रेस के टिकट से वंचित रहना पड़ा सकता है। इसलिए लिए उन्होंने टिकट मिलने से लालसा से वाममोर्चा और भाजपा से नजदीकियां बढ़ाई, लेकिन वाममोर्चा ने जोड़ासांकू से जानकी सिंह को उम्मीदवार बनाकर उनके (बजाज) के मंसूबों पर पानी फेर दिया। वहीं, भाजपा ने भी लगभग यहां से मीना देवी पुरोहित का नाम तय कर लिया है। हालांकि इस बाबत आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन भाजपा सूत्रों ने मुताबिक भाजपा ने जोड़ासांकू से मीनादेवी पुरोहित को उम्मीदवार बनाने के मन बना लिया है।
सूत्रों के मुताबिक, विरोधी दलों से लगातार संपर्क में रहने और निजी प्रचार के उद्देश्य से लगाए गए बड़े-बड़े होर्डिंग की वजह से बजाज को टिकट नहीं मिल पाया। स्थानीय लोगों ने आश्चर्य जताते हुए बताया कि लोकप्रिय, जनप्रिय कहलाने वाले विधायक बजाज के समर्थन क्यों ने एक भी व्यक्ति या सगंठन आगे नहीं आया कि बजाज को टिकट मिलना चाहिए या ममता बनर्जी को वर्तमान विधायक को टिकट देना चाहिए। इसे से पता चल जाता है कि आखिरकार विधायक कितने लोकप्रिय थे?

Sunday, March 20, 2011

किसी दल से कोई उम्मीद नहीं है असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को

विधानसभा चुनाव-2011
शंकर जालान
विधानसभा चुनाव के मौके पर वाममोर्चा व तृणमूल कांग्रेस समेक अन्य राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार हर वर्ग के लोगों से उनके पक्ष में वोट देने की अपील कर रहे हैं। इसके यह भी कह रहे हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो विकास की रफ्तार तेज होगी और राज्य में शांति बहाल की जाएगी। उद्योग स्थापित कर बेरोजगारी कम करने का प्रयास किया जाएगा। शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। मजदूरों की स्थिति सुधारी जाएगी। उम्मीदवार इस अब मतदाताओं को रिझाने में जुटे हुए हैं। कुछ हद तक वे कई वर्ग के लोगों को मनाने में सफल भी हो जाते हैं, लेकिन मजदूरों को इस बात की शिकायत है कि चुनाव के बाद उम्मीदवार उन्हें भूल जाते हैं। कई मजदूरों का कहना है कि माकपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस या भाजपा की झोली में उनका वोट जाने के बावजूद चुनाव खत्म होने के बाद किसी राजनीतिक दल या विधायक को हमारी याद नहीं आती। इस सिलसिले में होली और रविवार की छुट््टी के मद्देनजर कई मजदूरों से बात की गई तो लगभग सभी ने कहा कि हमें किसी पार्टी या उम्मीदवार से कोई खास उम्मीद नहीं है। सभी महज वोट के लिए हमारा इस्तेमाल करते हैं। अगर सच कहे तो हमारी भलाई के लिए कोई दल ईमानदारी से पहल नहीं करता है। चुनाव के वक्त जरूर बड़े-बड़े आश्वासन देते हैं, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद हमारी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं। पोस्ता बाजार स्थित चीनी की दुकान में काम करने वाले 55 वर्षीय रघुनाथ यादव ने कहा कि किसी जुलूस में जाना हो या सभा में शामिल होना हो या झंडा पकड़ना हो तो हर पार्टी को हमारी याद सबसे पहले आती है, लेकिन जहां हमारे हक के लिए जायज बात करने का मौका आता है, तो ज्यादातर पार्टियां या नेता हमारे हक को नजरअंदाज कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अगले महीने की 27 तारीख को महानगर में चुनाव है। चुनाव के मद्देनजर अभी हर रोज किसी न किसी पार्टी के समर्थक और उम्मीदवार वोट मांगने की अपील लेकर आ रहे हैं और बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव के अनुभव यह बताते हैं कि कोई भी पार्टी हो या उम्मीदवार उनकी सुनने वाले नहीं है। नूतन बाजार में नींबू की दुकान में काम करने वाले 38 वर्षीय उदय कुमार ने बताया कि बीतो दो-तीन दिनों हर रोज शाम के वक्त किसी न किसी पार्टी की चुनावी सभा में मजबूरीवश जाना पड़ा रहा है और लगता है यह सिलसिला चुनाव तक चलेगा। उदय कुमार के मुताबिक, पार्टी के स्थानीय नेता दोपहर के वक्त ही आकर मालिक से यह कह जाते हैं कि शाम के वक्त अमुक स्थान पर चुनावी सभा है मजदूरों को भेजना है और मालिक उन्हें सहर्ष स्वीकृत दे देते हैं। उन्होंने बताया कि दिनभर दुकानदारी करो औैर शाम के वक्त पार्टी की चुनावी सभा में शामिल हो। उन्होंने बताया कि सुबह से दोपहर बाद तक कड़ी मेहनत करो और शाम वक्त जब जरा सुस्ताने का मौका मिलता तब मालिक के कहे मुताबिक, सभा में शामिल हो जाओ। उन्होंने बताया कि मन तो तब खराब होता है जब अपने काम के लिए या किसी से मिलने-झुलने के लिए मालिक से छुट््टी मांगने पर अनुमति नहीं मिलती और कहते हैं कि दुकान में कौन रहेगा, लेकिन राजनीतिक पार्टियों के कहने पर वे तुरंत भेज देते हैं। इसी तरह तिरट््टी बाजार में काम करने वाले सत्यनारायण, राजाकटरा के सुंदरलाल, मछुआ बाजार में काम करने वाले परम लाल ने भी शिकायात भरे लहजे में कहा कि काम कराने के वक्त हर पार्टियों को हमारी याद सबसे पहले आती है, लेकिन जब कभी हमारे काम या हित की बात आती है तो पार्टियों के लोग बहानेबाजी करने लगते हैं। मालूम हो कि विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची घोषित होते ही वाममोर्चा समेत तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है। होली के दिन भी वाममोर्चा और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार प्रचार करते नजर आए। मालिकतला विधानसभा क्षेत्र से माकपा उम्मीदवार रूपा बागची, बेहला पूर्व से तृणमूल कांग्रेस के शोभन चटर्जी समेत कई अन्य उम्मीदवारों को रविवार को प्रचार करते देखा गया।

Wednesday, March 16, 2011

...और सबकी नजर अब जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र पर

शंकर जालानकोलकाता, 16 मार्च। पश्चिम बंगाल में अप्रैल-मई में होने वाला विधानसभा चुनाव इस बार कई मायने में अहम है। एक ओर जहां तृणमूल कांग्रेस परिवर्तन का दावा कर रही है। वहीं, वाममोर्चा विकास के मुद्दे की उम्मीद के साथ की आठवीं बार फिर राइटर्स पर उनका कब्जा करने की बात कह रहा है। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच इस बार के विधानसभा में परिसीमन की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यूं तो परिसीमन का असर पूरे राज्य और लगभग सभी 294 विधानसभा सीटों पर पड़ा है, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजधानी यानी कोलकाता के हृदयस्थल वृहत्तर बड़ाबाजार में इसका खासा असर पड़ा है। 2006 में हुए विधानसभा चुनाव में वृहत्तर बड़ाबाजार में जोड़ाबागान, जोड़ासांकू और बड़ाबाजार नामक तीन विधानसभा क्षेत्र थे, लेकिन इस बार जोड़ाबागान और बड़ाबाजार विधानसभा सीटें परिसीमन की भेंट चढ गई है। लिहाजा केवल जोड़ासांकू क्षेत्र रह गया है। बीते विधानसभा चुनाव में जोड़ाबागान से माकपा के परिमल विश्वास, जोड़ासांकू से तृणमूल कांग्रेस दिनेश बजाज और बड़ाबाजार से वाममोर्चा समर्थित राजद से मोहम्मद सोहराब ने जीत दर्ज की थी। इस बार बड़ाबाजार और जोड़ाबागान नामक कोई विधानसभा सीट या क्षेत्र नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वृहत्तर बड़ाबाजार का नेतृत्व, विकास और विधानसभा में इस इलाके की समस्याओं को उठाने की जिम्मेवारी जोड़ासांकू के विधायक की होगी। इसलिए भाजपा हो या कांग्रेस या फिर तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य राजनीति दल भी इस क्षेत्र के उम्मीदवार का नाम एलान करने के पहले अनुकूल-प्रतिकुल स्थिति को भांपना चाहते हैं। हालांकि इन सबसे अलग माकपा ने यहां से न केवल जानकी सिंह को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनके (जानकी सिंह) के पक्ष पर प्रचार भी शुरू कर दिया है।तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच गठबंधन क्या मोड़ लेगा यह कहना फिलहाल मुश्किल है। समाचार लिखे जाने तक इस सिलसिले में स्थिति साफ नहीं हो पाई थी। भाजपा भी फिलहाल जोड़ासांकू क्षेत्र के उम्मीदवार के बारे में अभी पत्ता खोलने के मूड़ में नहीं है। यहां इतना जरूर माना जा रहा है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन हो या नहीं, तृणमूल कांग्रेस जोड़ासांकू सीट अपने कोटे में ही रखेगी और लगभग यह भी तय है कि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की मंशा वर्तमान विधायक दिनेश बजाज को इस बार टिकट देने की नहीं है। इस बारे में तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि बीते पांच सालों के दौरान वर्तमान विधायक बजाज ने निजी प्रचार को महत्त्व देने के साथ-साथ कई ऐसे कार्यों को अंजाम दिया है, जो पार्टी के दिशा-निर्देश के मुताबिक उन्हें नहीं करने चाहिए थे। सूत्रों का यह भी कहना है कि ममता बनर्जी काफी पहले ही बजाज को पार्टी से निकाल सकती थीं, लेकिन विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के विधायकों की तकनीकी संख्या ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। सूत्रों ने बताया कि बजाज को यह आभास हो गया था कि तृणमूल कांग्रेस से इस बार उन्हें टिकट नहीं मिलने वाला है, इसलिए उन्होंने वाममोर्चा से संपर्क बढ़ाया था, लेकिन वाममोर्चा को वह घटना याद थी, जब दिेनेश बजाज के पिता सत्यनारायण बजाज को 2001 में फारवर्ड ब्लॉक से उम्मीदवार बना दिया गया था और इसके बाद उन्होंने पाला बदल लिया और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी के मद्देनजर वोममार्चा ने बजाज के संपर्क गंभीरता से नहीं लिया और ममता बनर्जी को बजाज की करतूत का एक और सुराग मिल गया। सुना जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस का एक वर्ग यहां से काशीपुर के विधायक तारक बनर्जी को उम्मीदवार बनाना चाहता है। वहीं पार्टी का एक वर्ग वार्ड नंबर 44 की पार्षद रेहाना खातून को। पार्टी सूत्रों के मुताबिक नि:संदेह तारक बनर्जी रेहाना खातून से वरिष्ठ और अनुभवी हैं, लेकिन अगर बात जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र की कि जाए गए बनर्जी की तुलना में रेहाना खातून भारी पड़ेंगी। हालांकि इस बाबत अंतिम फैसला पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को लेना है। सूत्रों ने बताया कि माकपा ने महिला (जानकी सिंह) को उम्मीदवार बनाया है। सुना जा रहा है कि भाजपा भी यहां से महिला को उम्मीदवार बनाने के पक्ष में है। इस बाबत वार्ड नंबर 22 की पार्षद व पूर्व डिप्टीमेयर मीनादेवी पुरोहित के नाम पर विचार-विमर्श हो रहा है। इसीलिए ममता बनर्जी भी यहां से महिला उम्मीदवार खड़ा करना चाहती है। इस गणित से भी रेहाना खातून के दावेदारी बनती है।चर्चा यह भी कि हाल ही में राजद से नाता तोड़ जनता दल (यू) में शमिल हुए बड़ाबाजार के वर्तमान विधायक मोहम्मद सोहराब के लिए भाजपा यह सीट छोड़ सकती है। इस बाबत भाजपा सूत्रों का कहना है कि बिहार में भाजपा और जनता दल (यू) साथ-साथ है तो बंगाल में होने में क्या हर्ज है। वहीं, सूत्रों ने यह भी बताया कि तृणमूल कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने की चर्चा से मायूस दिनेश बजाज ने वाममोर्चा से संपर्क बढ़ाया था, लेकिन वहां से सकारात्मक उत्तर नहीं मिलने पर अब उनका ध्यान भाजपा की तरफ है। इस बाबत प्रदेश भाजपा के नेता रितेश तिवारी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आज तक इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। हां हो सकता है कि कल यह बात सच साबित हो जाए।

Tuesday, March 15, 2011

आंस मूंद कर वोट नहीं डालना चाहते नए मतदाता

शंकर जालान कोलकाता, राज्य में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक ओर जहां विभिन्न राजनीतिक पार्टियों अपनी रणनीति बनाने में जुटी हैं। दूसरी ओर, यह चर्चा शबाब पर है कि चुनावी नतीजों का ऊंट इस बार किस करवट बैठेगा। हालांकि समाचार लिखे जाने तक वाममोर्चा ने 292 और भाजपा ने 106 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी, जाकि कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के गठांधन पर सशंय बरकरार था। इस बीच, जो लोग पहली बार वोट डालेंगे यानी पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने वाले नए मतदाताओं का कहना है कि वे आंख मूंद कर वोट डालने के पक्ष में नहीं हैं। इस बाबत जोड़ासांकू, श्यामपुकुर, काशीपुर और चौरंगी विधानसभा क्षेत्र के कई नए मतदाताओं से बातचीत की गई तो इन लोगों ने सपाट शब्दों में उत्तर दिया कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करने से पहले भली-भांति सोच-विचार करेंगे। पिता, भाई, मां और भाभी तरह किसी के कहने या दवाब में आकर वोट नहीं डालेंगे। इन लोगों के चेहरे पर मतदाता बनने की खुशी साफ झलक रही थी, लेकिन नए मतदाताओं इस दिशा में भी सचेत थे कि उनका वोट गलत पार्टी या गलत उम्मीदवार के पक्ष में न चला जाए। जोड़ासांकू और श्यामपुकुर विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों के उन छात्र-छात्राओं से जो पहली बार मतदान का करेंगे से पूछा गया कि कैसा उम्मीदवार चाहते हैं? आपकी नजर में एक विधायक की क्या प्राथमिकता होनी चाहिए? इसके जवाब में जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र के नए मतदाताओं अरविंद अग्रवाल (सनातन धर्म विद्यालय), राजीव तिवारी (कमला शिक्षा सदन), रश्मि दम्मानी (सावित्री पाठशाला) और अनूप सोनकर (श्री डीडू माहेश्वरी पंचायत विद्यालय), श्यामपुकुर विधानसभा क्षेत्र के अमित शर्मा (एसबी मार्डन हाई स्कूल), श्वाती सिंह (बालकृष्ण विठ्ठलनाथ बालिका विद्यालय), सुब्रत भट्टाचार्य (श्यामबाजार एबी स्कूल) और तरुण दास (शलेंद्र सरकार स्कूल) ने कहा कि जीत-हार बाद की बात है। सबसे पहले हर पार्टियों को साफ-सुथरी छवि वाले, कर्मठ और ईमानदार लोगों को टिकट देना चाहिए। अगर हर राजनीतिक पार्टी अपनी इस जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाती है तो फिर मतदाताओं के लिए बहुत कुछ साफ हो जाता है। इन लोगों ने कहा कि उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए, जिसपर आम आदमी अंगूली नहीं उठा सके। रही बात चुनाव जीतकर विधायक बनने की तो हम ऐसे उम्मीदवार को जीताना पसंद करेंगे, जो बाहुबलि नहीं बुद्धिबलि हो। लोगों के सुख-दुख में साथ देने वाला है। क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देने वाला हो। इन लोगों के कहा कि वे आंख मूंद पर मतदान करने की बजाए सोच-समझ कर मतदान करने में विश्वास करते हैं। इनके मुताबिक इन्हें पहली बार जो जिम्मेवारी मिली उसके निर्वाह में कोई चूक न हो जाए इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे। क्या परिवर्तन संभव है और है तो क्यों? वर्तमान सरकार में क्या खामियां लग रही है? जो पार्टी सत्ता हासिल करने का दावा कर रही है क्या वह वर्तमान सरकार के बेहतर काम कर पाएगी? इन सवालों के जवाब में काशीपुर व चौरंगी विधानसभा के नए मतदाताओं ने बताया कि सत्ता परिवर्तन से जरूरी है नीति का बदलाव। काशीपुर विधानसभा क्षेत्र के प्रदीप त्रिपाठी (पुजारी), शंकर गोयनका (कपड़ा व्यापारी), राहुल चौधरी (चायपत्ती दुकान का कर्मचारी), रवींद्र प्रसाद (किराना दुकान में काम करने वाला) और चौरंगी विधानसभा इलाके के सरोज गुप्ता ( दवा दुकान में काम करने वाली), दीप्ति नायर (आभूषण दुकान का कर्मचारी), रत्नेश बालासरिया (मिठाई दुकान का मालिक) व चंद्रशेखर रतेरिया (दर्जी) ने बताया कि वाममोर्चा की सरकार बीते 35 सालों से राज्य में सत्तासीन है और यह लाजिमी है कि इतने लंबे शासनकाल में कुछ गलतियां हो गई है, लेकिन सरकार बदलने से ज्यादा अच्छा है कि सरकार को उसकी गलती का एहसास दिलाया जाए। इन लोगों ने कहा कि जो पार्टी परिवर्तन का दावा कर रही है उसकी नेत्री के अलावा उस पार्टी के अन्य किसी नेता पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही यह दावा में खोखला ही लगता है कि अगर तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई में सरकार बनी तो उससे कोई चूक नहीं होगी। इन लोगों के मुताबिक नए उम्मीदवारों को विजयी बनाना उनकी प्राथमिकता रहेगी। इसका कारण पूछने पर इन लोगों ने कहा कि नए लोगों को कुछ करने की इच्छा रहती है और उनका विश्वास है कि पुराने उम्मीदवारों की तुलना में नए उम्मीदवार ज्यादा कारगर साबित होंगे।

Monday, March 14, 2011

विरोधी खेमों की रणनीति पर टिकी है राजनीति दलों की निगाह

शंकर जालान कोलकाता, राज्य में विधानसभा चुनाव का एलान हो गया है। छह चरणों में होने वाले मतदान की शुरुआत 18 अप्रैल से होगी और अंतिम चरण का मतदान 10 मई को होगा। मतगणना 13 मई को होगी। मजे की बात यह है कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य राजनीति दलों की निगाह इनदिनों विरोधी खेमों की रणनीति पर टिकी है। हालांकि इन सबसे अलग वाममोर्चा ने रविवार को अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। राज्य के कुल 294 विधानसभा सीटों में से वाममोर्चा ने रविवार को 292 उम्मीदवारों का एलान कर दिया। शेष दो सीटों के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा बाद में की जाएगी। पहले चरण के लिए 24 मार्च से नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत हो जाएगी। इस बीच भाजपा से 106 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के बीच गठजोड़ पर समाचार लिखे जाने तक सहमति नहीं बन पाई थी। दोनों दल अपनी-अपनी बातों पर अड़िग है। कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर अपने पत्ते खोलने से कतरा रहे हैं। फिलहाल दोनों पार्टियों के नेता अपने खेमे से ज्यादा विरोधी खेमे की रणनीति पर गौर किया जा रहा है। मालूम हो कि कोलकाता में मतदान 27 अप्रैल को होना है। इस लिहाज से तैयारियों का वक्त हो चुका है, लेकिन अभी तक कोई भी पार्टी चुनावी रणनीति के संबंध में अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है। सबसे ज्यादा कौतूहल कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठजोड़ व उसके संभावित उम्मीदवारों को लेकर है। लेकिन इस मुद्दे पर दोनों ही पाटिर्यों में खामोशी देखी जा रही है। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं हैं और कई नाम सामने आ रहे हैं। चर्चा है कि इस बार तृणमूल कांग्रेस प्रमुख कुछ नामचीन हस्तियों को जिले के विभिन्न क्षेत्रों से उम्मीदवार बना सकती है, जिसकी घोषणा जल्द की जाएगी। चर्चा है कि इन सीटों पर फिल्म जगत या रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। राजनीति के जानकारों का कहना है अब तक हुई चर्चा और बातचीत के मुताबिक कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठजोड़ की संभावना कम नजर आ रही है। संभवत: कोलकाता नगर निगम चुनाव की तरह ही कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में भी एक-दूसरे के विरोध में चुनावी मैदान में उतरेंगे, जिसका सीधा फायदा वाममोर्चा के उम्मीदवारों को होगा। जानकारों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस गठजोड़ के मुद्दों को सिर्फ इस लिए टाल रही है कि वाममोर्चा अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दे। ताकि उसके आधार पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को अपने उम्मीदवारों की सूची तैयार करने में सहयोग मिल सके। जानकारों के मुताबिक ममता बनर्जी वाममोर्चा की सूची को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों की सूची तैयार करेगी ताकि वह अल्पसंख्यक, महिला और अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को उम्मीदवार बनाने में वाममोर्चा को पछाड़ सके।

Thursday, March 10, 2011

कुछ नेताओं के लिए धंधा बन गई है राजनीति - सोमनाथ चटर्जी

पश्चिम बंगाल में रिकॉर्ड वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे माकपा के वरिष्ठ नेता दिवंगत ज्योति बसु को अपना राजनीतिक गुरू मानने वाले लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से काफी चिंतित हैं। उनका कहना है कि आजकल सत्ता में बने रहने और कुर्सी से चिपके रहने के लिए नेता हर वह हथकंड़ा अपना रहे हैं, जो उनके (नेताओं) के लिए फायदेमंद है। आजकल नेता देश नहीं, खुद के बारे में सोचने लगे हैं। कभी जनता सेवा, समाज सेवा और देश सेवा के लिए राजनीति में आने वाले लोग अब निज व परिवार सेवा को महत्व देने लगे हैं। यहीं कारण है कि जनता की नजर में आज नेताओं की वह इज्जत नहीं रह गई है, जो दस-बीस साल पहले होती थी या होनी चाहिए थी। ३० साल से ज्यादा समय तक सांसद और पांच साल तक लोकसभा अध्यक्ष रहे सोमनाथ चटर्जी से शुक्रवार के लिए शंकर जालान ने कोलकाता स्थित उनके निवास पर लंबी बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।० राजनीति में ईमानदारी कितनी जरूरी है?-ईमानदारी राजनीति ही क्यूं, हर क्षेत्र, हर काम और हर व्यवसाय में जरूरी है। हां इतना अवश्य कहूंगा कि बीते कुछ सालों के दौरान कई राजनेताओं ने ईमानदारी ताक पर रख दी है। आजकल राजनेता प्रतिष्ठा को नहीं, पैसे को महत्व देने लगे हैं। दुखद यह है कि अन्य क्षेत्र के लोगों की तुलना में नेताओं को ज्यादा ईमानदर होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। आज कुछ नेताओं को लिए राजनीति धंधा बन गई है।० पहले लोग राजनीति में देश सेवा की भावना से आते थे, लेकिन अब पैसा कमाने के लिए ऐसा क्या हो रहा है?-भौतिकवादी सुविधा हासिल करने और रातों-रात अमीर बनने की लालशा इसका मुख्य कारण है। हर नेता यह सोचना लगा है कि जीत मिली है। जनता ने जीताकर विधानसभा या लोकसभा भवन भेज दिया है। जितना कमा सको कमा लो, जितना लूट सको लूट लो। क्या मालूम भविष्य में फिर मौका मिले या न मिले। ज्यादातर नेता चुनाव जीतने के बाद जनता से किए गए वायदे को पूरा करने की बजाए अपना घर भरने में लग जाते हैं।० आखिर इस बदलाव का कारण क्या है?-राजनेताओं के लिए कोई मानदंड नहीं है। कोई भी अपराधी चुनाव लड़ व जीत सकता है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है। मेरा मानना है कि जब तक राजनेताओं के लिए न्यूनतम मानदंड नहीं तय होगा, तब तक इस पर अंकुश लगाना संभव नहीं है। ० भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति कैसे संभव है?-जनता के जरिए। भ्रष्टाचार पर रोक कोई कानून, कोई व्यवस्था या कोई नेता फिर कोई पार्टी तब तक नहीं लगा सकती जब तक जनता जागरूक नहीं होगी। जनता को अपना वोट डालने से पहले सौ बार सोचना चाहिए कि वह किसे वोट दे। कौन सा उम्मीदवार अन्य उम्मीदवारों की तुलना में नेक और ईमानदार है। जनता अगर ऐसा करने लगेगी और अपराधी व अल्प शिक्षित उम्मीदवार को वोट देने से पहरेज करेगी। तो देर-सबेर राजनीतिक पार्टियां भी अपराधी व कम पढ़े-लिखे लोगों को चुनावी टिकट देने से कतराने लगेगी। ० आपकी नजर में फिलहाल कौन-कौन नेता ईमानदार है?-हंसते हुए, यह क्या सवाल पूछ लिया आपने। मोटे तौर पर कहे तो जो पकड़ा गया वह चोर व बईमान बाकी सब ईमानदार।० दिवंगत हो चुके नेताओं में आप किसे ईमानदार मानते हैं?-कई नेता थे, जिनको लोग ईमानदार, साफ-सुथरी छवि वाले, समाज सुधारक, लोकहितकारी के रूप में याद करने हैं। मेरी नजर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, समाजवादी नेता जयप्रकाश व विनोवा भावे और माकपा के वरिष्ठ नेता ज्योति बसु है। ० आपको लोग सच्चे और ईमानदार नेता के रूप में जानते हैं? इस पर आप की क्या प्रतिक्रिया है?-देखिए, मेरा राजनीति में आना एक संयोग था। बचपन से मेरी राजनीति में कोई रूचि नहीं थी। मेरी वकालत अच्छी-खासी चल रही थी। मुझे खेल से लगाव था। मुझे राजनीति में मेरी इच्छा के विपरीत ज्योति बसु ने लाया या यूं कहे कि जबरदस्ती लाया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ४२ साल की उम्र में १९७१ में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता। इससे पहले मैंने कभी छात्र या युवा राजनीति में हिसा नहीं लिया था। दूसरे शब्दों में कहे तो जीवन के ४२ बसंत देखने के बाद राजनीति में आया और सीधा संसद पहुंचा। जीवन का काफी अनुभव हो चुका था। ज्योति बसु ने भी यही बताया और सिखाया था कि ईमानदारी के मार्फत ही राजनीति के मैदान पर अधिक समय तक टीका जा सकता है। मैं ज्योति बसु को अपना राजनीतिक गुरू मानता हूं और उनके इस कथन को सदैव याद रखता हूं कि अगर व्यक्ति ईमानदार हो तो समाज सेवा व देश सेवा के लिए राजनीति से बेहतर कोई मंच नहीं है। ० राजनीति में ईमानदारी की आप को क्या-क्या कीमत चुकानी पड़ी है?-विशेष कुछ नहीं। जरा-बहुत चुकानी भी पड़ी है तो वह इतनी उल्लेखनीय नहीं है कि उसका जिक्र किया जाए। ३५-४० साल के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। मेरी नजर में चढ़ाव को उपलब्धि माना जा सकता है, लेकिन ढलान यानी उतार की कीमत चुकाना नहीं।० वर्तमान व्यवस्था में ईमानदार नेता होना क्या अयोग्यता का परिचायक नहीं है?-यह प्रश्न ही दुखद है। ज्यादातर नेताओं ने ऐसा काम किया है कि लोगों का नेताओं से विश्वास उठ गया है।लोग नेताओं को नेता नहीं लेता (पैसा लेने वाला) कहने में कोई संकोच नहीं करते। ऐसी स्थिति के लिए जनता नहीं पूरी तरह नेता जिम्मेवार हैं। भ्रष्टाचारी नेताओं को शर्म करनी चाहिए कि उनकी करतूत का खामियाजा न केवल जनता बल्कि देश को भुगतना पड़ता है। उनके गलत आचरण की वजह से लोग ईमानदार नेताओं को भी शक की नजर से देखने लगे हैं या अयोग्य कहने लगे हैं। ० आजकल चुनाव जीतते ही नेता महंगी गाड़ियों में घूमने लगते हैं, ऐसे में जनता में क्या संदेश जाता है?- गलत संदेश जाता है, लेकिन नेता यह नहीं समझते। उनकी नजरों में ऐसा करना वे अपनी शान समझते हैं। सत्ता और कुर्सी के नशे में चूर बड़ी-बड़ी व महंगी गाडियों में चलने वाले नेता यह सोचते हैं कि इससे जनता पर उनका प्रभाव और रूवाब बढ़ रहा है, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है।० देश की ताजा राजनीतिक स्थिति पर कुछ कहिए?-बहुत दुखद है। यह कहना मुश्किल है कि आने वाले सालों में देश की क्या स्थिति होगी। हम जितना विकास की ओर जा रहे हैं नेता उतने ही भ्रष्टाचारी बनते जा रहे हैं। नेता घोटाला करने से बाज नहीं आते, इसका एक कारण कानून प्रक्रिया का सुस्त होना भी है। अदालतों व जांच एजंसियों पर राजनेताओं का प्रभाव या हस्तक्षेफ भी अन्य महत्वपूर्ण कारणों में से एक है।० क्या पश्चिम बंगाल में परिवर्तन संभव है?-मेरी नजर में केवल सत्ता परिवर्तन को परिवर्तन कहना सही नहीं होगा। सरकार बदलने से ही बदलाव आ जाएगा ऐसा सोचने वाले खुद को धोखे में रख रहे हैं। सही मायने में बदलाव तभी आएगा जब व्यवस्था (सिस्टम) और नीति बदलेगी। नेता निज हित को दरकिनार कर लोकहित में काम करने लगेंगे तभी सूरत बदलेगी, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न बने।० आप ने बतौर सांसद और लोकसभा अध्यक्ष में क्या फर्क महसूस किया?-काफी फर्क है। बतौर संसद पहुंचने पर केवल अपने क्षेत्र का विकास और पार्टी व संसद की गरिमा का ध्यान रखना होता है, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद जिम्मेवार बहुत बढ़ जाती है। सदन का सही तरीके से संचालन करना, सभी दलों के सांसदों के साथ उचित व्यवहार करना, संसद के कीमती समय का ख्याल रखना समेत कई तरीके की जिम्मेवारी बढ़ जाती है ये जिम्मेदारियां एक सांसद पर नहीं होती। ० क्या कभी राज्यपाल बनने का प्रस्ताव मिला है?- मिले तो कई थे, लेकिन मैंने ठुकरा दिया। अब यह मत पूछिएगा क्यों।० कभी राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव मिला तो क्या करेंगे।-जब मिलेगा तब सोचा जाएगा।

तृणमूल कांग्रेस के विधायक की करतूत

शंकर जालान
कोलकाता। राज्य में विधानसभा चुनाव की तिथि का एलान हो गया है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की ओर से जहां उम्मीदवारों के नाम पर विचार-विमर्श हो रहा है। वहीं, कई विधायक अप्रत्यक्ष रूप से जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करने में जुट गए हैं। ज्यों-ज्यों चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं। त्यों-त्यों विधायक हो या संभावित उम्मीदवार जनता तक पहुंचने का मौका तलाशने में लग गए हैं। इसी क्रम में जोड़ासांकू क्षेत्र के तृणमूल कांग्रेस के विधायक को बधाई देते कई होर्डिंग लगे हैं। इन होर्डिंग में वार्ड नांर 25, 41 व 42 में विधायक कोटे से वार्ड के विकास के लिए मुहैया कराई गई राशि का उल्लेख है। वार्ड नबंर 25 में 32 लाख, वार्ड नबंर 41 में 25.4 लाख और वार्ड नांर 42 में 36 लाख का जिक्र किया गया है। मजे की बात यह है कि इन होर्डिंगों में प्रचारक, प्रसारक व मुद्रक का उल्लेख नहीं है। होर्डिंग में विधायक को संबोधित करते हुए श्री, धन्यवाद व आदरणीय शद का इस्तेमाल किया गया। इन होर्डिंगों में न तो कहीं तृणमूल कांग्रेस का जिक्र है और न ही पार्टी का चुनाव चिन्ह दर्शाया गया है। वार्ड नूंर 25 व 41 में कुछ स्थानों पर लगे होर्डिंग में स्थानीय पार्षद तक का नाम नहीं है। केवल प्रसन्न मुद्रा में विधायक की फोटो और बड़े-बड़े अक्षरों में उनका नाम, प्रदत्त राशि व मद का जिक्र किया गया है। जाकि वार्ड नांर 42 में लगे होर्डिंग में पार्षद के नाम के साथ-साथ उसकी फोटो भी दिखाई दे रही है। इस बाबत जा वार्ड नांर 25 की पार्षद व तृणमूल कांग्रेस की नेता स्मिता बक्सी ने बात की गई तो उन्होंने बताया कि होर्डिंग मैंने नहीं लगाया है। संभवत: विधायक ने लगवाई है। इस सिलसिले में वार्ड नबंर 41 की पार्षद रीता चौधरी से तो बात नहीं हो सकी, लेकिन वार्ड नबंर 42 की पार्षद व भाजपा की नेता सुनीता झंवर ने भी कहा कि होर्डिंग मैंने नहीं लगाई है। यह पूछे जाने पर कि होर्डिंग किसने लगाई है और आप की फोटो होर्डिंग लगाने वाले को कहां से मिली? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि होर्डिंग विधायक ने लगाई है। रही बात मेरी फोटो की तो टेक्नोलॉजी इतनी हाई हो गई है कि कंप्यूटर व इंटरनेट के माध्यम से किसी नेता की फोटो हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं। उन्होंने कहा कि बिना उनकी जानकारी के लगे होर्डिंग को उन्होंने विरोध भी जताया था। वार्ड नबंर 25, 41 व 42 में लगे करीब साढ़े चार दर्जन से ज्यादा होर्डिंगों पर स्थानीय लोगों का कहना है कि ये विधायक की तरफ से सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जरिया है। लोगों ने ाताया कि राज्य में 294 विधानसभा सीट है और कोलकाता शहर में 11। सभी विधायक अपने क्षेत्र के लिए विधायक कोटो से धनराशि मुहैया कराई जाती है और लगभग सभी विधायक इलाके के विकास के लिए इसे खर्च भी करते हैं, लेकिन दिनेश बजाज की तरह कोई प्रचार नहीं करता। लोगों ने इन होर्डिंगों पर होने वाले खर्च को अपव्यय और विधायक के प्रचार लोभी होने का संकेत बताया। लोगों ने कहा कि जहां चुनाव के मद्देनजर शहर से होर्डिंग समेत अन्य प्रकार की प्रचार सामग्री हटाई जा रही है। वहीं, विधायक द्वारा खुद को संबोधित करते धन्यवाद, श्री व आदरणीय शब्द उनकी मानसिकता को दर्शाता है। होर्डिंग लगाने के मसले पर जा जोड़ासांकू के विधायक दिनेश बजाज से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ये होर्डिंगें पलिक यानी जनता ने लगाई है। यह पूछे जाने पर कि होर्डिंगों में प्रचारक-प्रसारक व मुद्रक का उल्लेख क्यों नहीं है? इसका जवाब भी उन्होंने जनता से मांगने को कहा। जनता के पास मुहैया कराई गई राशि के आंकड़े कहां से आए? क्या तीनों वार्डों की जनता को आप की एक ही फोटो मिली (जो होर्डिंग में छपी है)? क्या तीनों वार्डों की जनता ने एक ही होर्डिंग वालों से होर्डिंग बनाई? क्यों तीनों वार्डों में लगे होर्डिंगों की भाषा लगभग मेल खाली है? इन सवालों के जवाब में विधायक ने कुछ नहीं कहा। इन होर्डिंग को बनाने वाले कारीगर अजित दास ने बताया कि उन्होंने विधायक दिनेश बजाज के कहने पर सांबधित तीनों वार्डों के लिए कुल 56 होर्डिंग ानाई थी। पहले चरण में 22 और इसके बाद में 34। उन्होंने बताया कि होर्डिंग की डिजाइन, लेंगवेज (भाषा) और साइज (आकार) सा कुछ विधायक ने तय किया था।