Friday, August 26, 2011

जहां १८ अगस्त को मना स्वाधीनता दिवस





शंकर जालान



जहां पूरा देश पंद्रह अगस्त को ६५वां स्वतंत्रता दिवस मनाया वहीं इसके तीन दिन बाद दक्षिण दिनाजपुर िजले बालुरघाट के निवासियों ने १८ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया। दरअसल वर्तमान दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट सहित कई इलाके 18 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए थे। 15 अगस्त 1947 को देश ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ, लेकिन बालुरघाट सहित पश्चिम बंगाल के कई इलाके 17 अगस्त 1947 तक पाकिस्तान के अंतर्गत थे। तत्कालीन हिन्दु महासभा के अध्यक्ष व जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कड़ी लड़ाई लड़ कर 18 अगस्त 1947 को बालुरघाट पाकिस्तान से मुक्त कराकर भारत में शामिल किया। इसी दिन को याद करते हुए १८ अगस्त को भाजपा के तत्वावधान में तिरंगा फहरा कर बालुरघाट में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। भाजपा के राज्य सचिव देवश्री चौधरी ने बताया कि देश की आजादी के लिए किए गए आंदोलनों में बालुरघाट शहर की बड़ी भूमिका थी। 1942 में भारत छोड़ा आंदोलन में बालुरघाटवासी शामिल हुए थे। उसी वर्ष 14 सितंबर को तत्कालीन दिनाजपुर जिले के महकमा कार्यालय का दस हजार लोगों ने घेराव किया था। इनलोगों ने ट्रेजरी भवन में आग भी लगाई थी। स्वतंत्रता सेनानियों ने इस दिन बालुरघाट शहर के कुल 16 सरकारी कार्यालय को तहस-नहस कर दिया। एसडीओ कार्यालय के सामने से ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा लगा दिया था। दस हजार स्वतंत्रता सेनानियों की डर से शहर की पुलिस फरार हो गई थी। उस समय कुल ढाई दिनों तक बालुरघाट ब्रिटिश से मुक्त रहा। इस घटना की याद में तत्कालीन एसडीओ कार्यालय के सामने सरकार ने एक स्मारक स्तंभ का निर्माण कराया। चौधरी के मुताबिक बालुरघाट सीमा से सटे डांगी गांव में 1942 के 14 सितंबर को स्वतंत्रता सेनानी एकत्रित होकर बालुरघाट के लिए रवाना हुए। जिस स्थान से रवाना हुए थे वहां भी एक स्मारक स्तंभ है, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण यह स्मारक स्तंभ नष्ट होने की कगार पर है। सरकारी तौर पर यहां 14 सितंबर या 18 अगस्त मनाया नहीं जाता है, इसलिए पार्टी (भाजपा) की ओर डांगी में शहीद स्तंभ की साफ-सफाई कर फूल माला चढ़ाकर स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मानित करते हुए पदयात्रा की जाती है। इसके बाद तिरंगा फहराया जाता है। इस बार भी ऐसा ही किया गया। उन्होंने बताया कि जिन्ना की साजिश से देश बंटा। उस समय हिन्दु व मुस्लिम बहुलता को लेकर दोनों देशों की जमीन के बंटवारे के लिए मोहम्मद जिन्ना ने आवाज उठाई। ब्रिटिश ने इस बंटवारे के लिए बाउंडरी कमीशन तैयार किया। जिसका नेतृत्व दिया सिरील रेडक्लिफ। उन्होंने बालुरघाट सहित बंगाल के कई इलाके पाकिस्तान को दे दिए इसके विरोध में हिन्दु सभा के मुखर्जी ने जमकर विरोध किया। उन्होंने रेडक्लिफ को समाझाया कि बालुरघाट, माला व मुर्शिदाबाद के जिन इलाकों को पाकिस्तान के अधीन किया गया है वे हिंदू बहुल इलाके है। डा. श्यामाप्रसाद की लड़ाई के बाद बालुरघाट सहित बाकी इलाका 1947 के 18 अगस्त को भारत में शामिल हुए। इसलिए १८ अगस्त को यह स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

Saturday, August 20, 2011

कुम्हारटोली - देवी पर भारी दीदी




शंकर जालान




पश्चिम बंगाल के मुख्य धार्मिक पर्व दुर्गापूजा में अब दो महीने से भी कम का समय रह गया है और इस बार दुर्गोत्सव में कुछ ज्यादा ही राजनीतिक रंग चढ़ा दिख रहा है। हालांकि पांच दिनों तक चलने वाले दुर्गोत्सव में हर बार प्रतिमा, पंडाल और बिजली सज्जा के जरिए आयोजक बीते साल की प्रमुख घटनाओं को रेखांकित करते रहे हैं। हुगली जिले के सिंगुर स्ट्रीट नैनो कारखाना, ट्रेन हादसा, कारगिल युद्ध, भारतीय क्रिकेट की उपलब्धियां, नारी शक्ति, पर्यावरण, नोबल सिटी पर बंगाल में न केवल दुर्गापूजा आयोजित होती रही है, बल्कि चर्चित भी रही है। इस बार पर कुम्हारटोली के मूर्तिकारों पर देवी (दुर्गा) के बदले दीदी (ममता बनर्जी) भारी पड़ रही है।
उत्तर कोलकाता के कुम्हारटाली में अधिकांश मूर्तिकारों के लिए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख, राज्य में ३४ सालों से सत्तासीन वाममोर्चा को सत्ताविहीन करने वाली ममता बनर्जी सर्वाधिक पसंदीदा चेहरा (फिगर) बन गई है। सत्ता में आने और राज्य की मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी कार्य शैली के बलबूते राज्य की जनता के दिलों में घर बनाने वाली ममता बनर्जी अब मूर्तिकारों के दिलों-दिमाग पर छाई हुई है। दुर्गापूजा आयोजित करने वाली अनेक कमिटियां इस बार दीदी (ममता बनर्जी) की अनुकृति वाली प्रतिमा की मांग कर रही है।
बहुचर्चित मूर्तिकार सनातन रूद्र पाल ने शुक्रवार को बताया कि हुगली जिले के तारकेश्वर की एक पूजा कमिटी ने दीदी की झलक वाली प्रतिमा गढ़ने का आर्डर दिया है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा अन्य कई पूजा कमिटियां परिवर्तन का ध्यान में रखते हुए पूजा आयोजित कर रही हैं।
एक अन्य मूर्तिकार अशोक पाल ने बताया कि नदिया जिले के कृष्णनगर की रहने वाली दो महिलाओं (सास-बहू) ने उन्हें एक फीट की एक चाल की दुर्गा प्रतिमा बनाने का आर्डर दिया है और उनकी शर्त है कि देवी दुर्गा का चेहरा हू-ब-हू ममता से मनी। अशोक पाल के मुताबिक ये दोनों महिलाओं ने उन्हें बताया कि पांच दिनों तक पूजा-अर्चना करने वाले बाद वे ममता की झलक वाली एक फीट की दुर्गा प्रतिमा को गंगा में विर्सजित नहीं करेंगी, बल्कि किसी खास मौके पर दीदी को भेंट करेंगी। इन महिलाओं ने बताया - वे दीदी के जीवन व शख्सियत से इतने अधिक प्रभावित और सम्मोहित हो गए हैं कि हम उनको (ममता) कुछ विशेष चीज भेंट करना चाहते हैं।
इसी तरह हावड़ा के रहने वाले बबलू सेनापति ने कहा- मैंने दीदी की शक्ल की प्रतिमा का आर्डर दिया है। मैं प्रतिमा को मिट्टी से नहीं फाइबर से बनवाना चाहता हूं, लेकिन मूर्तिकार समयाभाव का कारण आर्डर नहीं ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक मूर्तिकार का आश्वासन दिया है कि वे समय पर प्रतिमा बनाकर दे देंगे, लेकिन अभी तक उन्होंने बयाना (अग्रिम भुगतान) नहीं लिया है इसलिए मेरे मन में कुछ संशय है। उन्होंने बताया कि उनकी दिली इच्छा है कि दीदी के जन्मदिन पर उन्हें उनकी शक्ल की दुर्गा प्रतिमा उपहार स्वरुप दें।
मालूम हो कि विगत में कुम्हारटोली के मूर्तिकारों ने असुर के रूप में ओसामा बिन लादेन, परवेज मुशर्ऱफ और दाउद इब्राहिम को पेश किया था, लेकिन दंगा भड़कने के डर से पुलिस ने मूर्तिकारों को ऐसा करने से मना कर दिया था। पुलिस के दवाब में मूर्तिकारों को अपनी सोच बदलते हुए प्रतिमा के प्रारूप को बदलना पड़ा था।
कुम्हारटोली मृत शिल्प संस्कृति समिति के संयुक्त सचिव मिंटू पाल ने बताया कि कुम्हारटोली के मूर्तिकारों को दीदी से काफी उम्मीदें हैं। उन्होंने बताया कि संस्था की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पत्र लिखा गया है कि वे (ममता) कुम्हारटोली में आर्ट गैलरी बनाने और मूर्तिकारों के लिए आधुनिक कार्यशालाओं के निर्माण बाबत कुछ सार्थक पहल करें। राइटर्स बिल्डिंग के सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री मूर्तिकारों की मांगों को पूरा करने पर पहल कर रही हैं। इस बाबत विचार-विमर्श जारी है।

Monday, August 8, 2011

महंगाई, मजदूर और मेघ ने बढ़ाई मूर्तिकारों की मुसीबत




शंकर जालान




कोलकाता। पांच दिवसीय दुर्गोत्सव के लिए दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की मूर्तियों के निर्माण में जुटे उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकार इन दिनों महंगाई, मजदूर व मेघ (बारिश) से परेशान हैं। मूर्तिकारों ने बताया कि उन्हें इनदिनों बारिश का भय सता रहा है। इस कारण वे सही ढंग से अपना काम नहीं कर पा रहे हैं। एकचाल (एक साथ पांचों मूर्ति) के मूर्ति बनाने वाली महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि बारिश के दौरान उन्हें अन्य मूर्तिकारों की तरह पॉलीथीन के नीचे काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि इस बार वे कुल 32 मूर्तियां बना रही हैं। अब तक दस प्रतिमाओं के आॅर्डर मिले चुके हैं। पाल ने बताया कि जगह की कमी व बारिश के दौरान उन्हें काम करने में काफी असुविधा हो रही है।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से मूर्तिकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण यह समस्या प्रतिवर्ष रहती है। उन्होंने मांग की कि इस समस्या के समाधान के लिए शहर में मूर्तिकारों के लिए एक जगह आबंटित की जानी चाहिए, जिससे वहां पर मूर्तिकार अपना काम कर सकें। चंदन दास नामक मूर्तिकार ने बताया कि उनके पास छोटी-बड़ी 15 प्रतिमाओं के निर्माण का आॅर्डर है। हालांकि बारिश के कारण काफी काम बाधित हुआ है। समय पर काम पूरा करने के लिए बारिश के दौरान पॉलीथीन लगाकर काम करना पड़ रहा है।
एक मूर्तिकार ने बताया कि पांच दिनों तक धूमधाम से मनाए जाने वाले पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा उत्सव क लिए मूर्तियां गढ़ने वाले मूर्तिकार इस बार महंगाई, मजदूर व बारिश की मार से पीड़ित हैं। मूर्तिकार बासुदेव रुद्र ने बताया कि कच्चे माल की कीमत पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो चुकी है। मूर्ति बनाने में काम आने वाली हर एक वस्तु की कीमत आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए प्रमुख रूप से बांस, बिचाली, रस्सी, मिट््टी, रंग, नकली बाल और कपड़ों की जरूरत होती है। रुद्र कहते हैं- बीते कुछ महीनों में बांस समेत मूर्ति निर्माण के काम आने वाली अन्य चीजों की कीमत में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीते साल जिस बांस की कीमत 25 से 30 रुपए हुआ करती थी, आज उसकी कीमत 45 से 60 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कालीपद दास नामक मूर्तिकार बताते हैं कि मंदी के कारण दुर्गापूजा आयोजन समितियों का बजट भी काफी कम हो गया है। उनके शब्दों में मंदी के कारण लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। जो आयोजक कभी 20 फुट ऊंची मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देते थे। इस साल उन्होंने 12 से 15 फीट की मूर्ति का ही आर्डर दिया है। वे कहते हैं कि महंगाई के साथ-साथ मजदूरों की कमी और बीते दो दिनों से हो रही लगातार बारिश ने उनके लिए आग में घी डालने का काम किया है। दास ने बताया कि बीते साल 80 से एक सौ रुपए के बीच देहाड़ी मजदूर मिल जाते थे, लेकिन इस वर्ष रोजाना डेढ़ सौ रुपए देने पर भी मनमाफिक और इस काम के जानकार मजदूर नहीं मिल रहे हैं, लिहाजा वे कई आयोजकों का आर्डर नहीं ले पा रहे हैं।
इसी तरह यंग ब्यावज क्लब के विक्रांत बताते हैं कि महंगाई के कारण मूर्तियों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। साथ ही पंडालों को तैयार करने में भी ज्यादा खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल जिस पंडाल को बनाने में पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। इस साल वैसा पंडाल बनाने में आठ लाख रुपए की लागत आ रही है। साथ ही पिछले साल हमने जिस आकार की मूर्ति जिस कीमत पर ली थी। इस बार मूर्तिकार लगभग वैसी मूर्ति के लिए 50 हजार रुपए अतिरिक्त मांग रहे हैं।

Friday, August 5, 2011

आर्डर के इंतजार में कुम्हारटोली के मूर्तिकार

शंकर जालान


कोलकाता। दुर्गा पूजा में अब एक सौ दिन से भी कम रह गए हैं। उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकारों को इन दिनों आर्डर का इंतजार है। कुम्हारटोली के मूर्तिकारों ने बताया कि दुर्गापूजा के मद्देनजर इस बार करीब साढ़े नौ से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। बांस और बिचाली का ढांचा बनाकर उस पर मिट््टी चढ़ाने का काम पूरा कर लिया गया है, लेकिन अभी तक केवल पांच मूर्तिकारों के 10-15 मूर्तियों बाबत आर्डर व अग्रिम भुगतान का आर्डर मिला है। शेष 38 मूर्तिकार अभी भी आर्डर के इंतजार में हैं।
प्रसिद्ध मूर्तिकार सनातन पाल ने बताया कि वे इस बार विभिन्न आकार और थीम की कुल 38 प्रतिमा बना रहे हैं और अभी तक दक्षिण कोलकाता की दो पूजा कमिटियों ने मूर्तियां बुक कराई है। उन्होंने बताया कि आजकल एकरूपता का जमाना है, इसीलिए कई आयोजक इन दिनों अपनी पसंद की मूर्ति को बुक करवा लेते हैं और इसके आगे का काम हम बिजली सज्जा और पंडाल बनाने वालों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद करते हैं, ताकि पंडाल, विद्युत सज्जा और प्रतिमा में एक रूपता लगे।
महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि मैं केवल एक चाल (एक साथ पांचों मूर्ति) की प्रतिमा बनाती हूं। इस बार 42 मूर्तियां बना रही हूं और अभी तक तीन मूर्तियां बुक हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई पारंपरिक मूर्तियां पंडाल की तुलना में घरों में अधिक जाती है। इसके कारण का खुलासा करते हुए पाल ने बताया कि मैं मूर्तियों के निर्माण में प्रयोग करने में विश्वास नहीं रखती। इसीलिए क्लब या संगठनों वाले मेरी मूर्तियों को उतना महत्व नहीं देते, जितना घरों में पूजा आयोजित करने वाले लोग देते हैं।
कृष्ण दास नामक एक अन्य मूर्तिकार ने बताया कि उन्होंने अब पूंजी और बैंक से ऋण पर ली गई राशि से 55 मूर्तियों के लिए बांस व बिचाली के ढांचे पर मिट््टी का लेप चढ़ाने का काम पूरा कर लिया है। अब आगे के काम के लिए उन्हें आर्डर का इंतजार है। उन्होंने बताया कि आर्डर मिलने से या मूर्ति बुक होने से एक दो अग्रिम (एडवांस) भुगतान बाबत उनके पास पैसे आ जाते हैं और दूसरा इस बात का संतोष हो जाता है कि चलो इतनी मूर्तियां बिक गर्इं।
मूर्तिकारों की संस्था कुम्हारटोली मूर्ति शिल्पी सांस्कृतिक संघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि वैसे तो मूर्तिकारों के हर पूजा के वक्त काम रहता है, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान मूर्तिकारों के पास अधिक काम होता है। सरस्वती पूजा, काली पूजा या विश्वकर्मा पूजा के लिए मूर्तिकार एक-डेढ़ महीने पहले से मूर्ति निर्माण में लगते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के लिए मूर्तिकार छह महीने पहले से व्यस्त हो जाते हैं और पूजा से पहले जुलाई-अगस्त का समय मूर्तिकारों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही वह समय है, जब मूर्तिकारों के अग्रिम भुगतान बाबत राशि मिलती है।
उन्होंने बताया कि हर साल पूजा से ढाई-तीन महीने पहले तक 35 से 40 फीसद मूर्तियां बुक हो जाया करती थी, लेकिन अभी तक पांच फीसद भी मूर्तियां बुक नहीं हुई हैं। इस वजह से ज्यादातर मूर्तिकार पैसे की कमी महसूस कर रहे हैं और आगे का काम भी प्रभावित हो रहा है।

आर्डर के इंतजार में कुम्हारटोली के मूर्तिकार

शंकर जालान



कोलकाता,। दुर्गा पूजा में अब एक सौ दिन से भी कम रह गए हैं। उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकारों को इन दिनों आर्डर का इंतजार है। कुम्हारटोली के मूर्तिकारों ने बताया कि दुर्गापूजा के मद्देनजर इस बार करीब साढ़े नौ से मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। बांस और बिचाली का ढांचा बनाकर उस पर मिट््टी चढ़ाने का काम पूरा कर लिया गया है, लेकिन अभी तक केवल पांच मूर्तिकारों के 10-15 मूर्तियों बाबत आर्डर व अग्रिम भुगतान का आर्डर मिला है। शेष 38 मूर्तिकार अभी भी आर्डर के इंतजार में हैं।
प्रसिद्ध मूर्तिकार सनातन पाल ने बताया कि वे इस बार विभिन्न आकार और थीम की कुल 38 प्रतिमा बना रहे हैं और अभी तक दक्षिण कोलकाता की दो पूजा कमिटियों ने मूर्तियां बुक कराई है। उन्होंने बताया कि आजकल एकरूपता का जमाना है, इसीलिए कई आयोजक इन दिनों अपनी पसंद की मूर्ति को बुक करवा लेते हैं और इसके आगे का काम हम बिजली सज्जा और पंडाल बनाने वालों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद करते हैं, ताकि पंडाल, विद्युत सज्जा और प्रतिमा में एक रूपता लगे।
महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि मैं केवल एक चाल (एक साथ पांचों मूर्ति) की प्रतिमा बनाती हूं। इस बार 42 मूर्तियां बना रही हूं और अभी तक तीन मूर्तियां बुक हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई पारंपरिक मूर्तियां पंडाल की तुलना में घरों में अधिक जाती है। इसके कारण का खुलासा करते हुए पाल ने बताया कि मैं मूर्तियों के निर्माण में प्रयोग करने में विश्वास नहीं रखती। इसीलिए क्लब या संगठनों वाले मेरी मूर्तियों को उतना महत्व नहीं देते, जितना घरों में पूजा आयोजित करने वाले लोग देते हैं।
कृष्ण दास नामक एक अन्य मूर्तिकार ने बताया कि उन्होंने अब पूंजी और बैंक से ऋण पर ली गई राशि से 55 मूर्तियों के लिए बांस व बिचाली के ढांचे पर मिट््टी का लेप चढ़ाने का काम पूरा कर लिया है। अब आगे के काम के लिए उन्हें आर्डर का इंतजार है। उन्होंने बताया कि आर्डर मिलने से या मूर्ति बुक होने से एक दो अग्रिम (एडवांस) भुगतान बाबत उनके पास पैसे आ जाते हैं और दूसरा इस बात का संतोष हो जाता है कि चलो इतनी मूर्तियां बिक गर्इं।
मूर्तिकारों की संस्था कुम्हारटोली मूर्ति शिल्पी सांस्कृतिक संघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि वैसे तो मूर्तिकारों के हर पूजा के वक्त काम रहता है, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान मूर्तिकारों के पास अधिक काम होता है। सरस्वती पूजा, काली पूजा या विश्वकर्मा पूजा के लिए मूर्तिकार एक-डेढ़ महीने पहले से मूर्ति निर्माण में लगते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के लिए मूर्तिकार छह महीने पहले से व्यस्त हो जाते हैं और पूजा से पहले जुलाई-अगस्त का समय मूर्तिकारों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही वह समय है, जब मूर्तिकारों के अग्रिम भुगतान बाबत राशि मिलती है।
उन्होंने बताया कि हर साल पूजा से ढाई-तीन महीने पहले तक 35 से 40 फीसद मूर्तियां बुक हो जाया करती थी, लेकिन अभी तक पांच फीसद भी मूर्तियां बुक नहीं हुई हैं। इस वजह से ज्यादातर मूर्तिकार पैसे की कमी महसूस कर रहे हैं और आगे का काम भी प्रभावित हो रहा है।

दुर्गापूजा : सजावटी सामान बनाने में जुटे कारीगर

शंकर जालान


कोलकाता । दुर्गापूजा के मद्देनजर विभिन्न पूजा कमिटियों की ओर से तैयारियों को अंतिम रूप देने का काम जारी है। हालांकि अभी तक पंडाल निर्माण का काम प्रारंभ नहीं हुआ है, लेकिन पंडाल के भीतरी हिस्से में लगने वाले सजावटी सामान का निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
थर्माकोल, मिट््टी, कपड़े, माचिस की तिल्ली (जली हुई), अनाज (गेहूं-चावल), पैन की रिफील, सीप, कांच की गोली, पुराने अखबार समेत कई चीजों से इन दिनों सैंकड़ों कारीगर आयोजक की मांग और पंडाल के लिहाज से सजावटी सामान बनाने में जुटे हैं।
माचिस की तिल्ली (जली हुई) से महाभारत के पात्रों को बनाने में जुटे अरुण सेनापति ने बताया कि वे 12 इंच से 60 इंच तक महाभारत के विभिन्न पात्रों को रेखांकित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मारकीन कपड़े पर वे फेबिकॉल की मदद से श्रीकृष्ण, पांचों पांडव, दुर्योधन, भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोपदी चेहरे समेत हस्तिानापुर व कुरुक्षेत्र के दृश्य को उतारने की कोशिश में जुटे हैं। ये सजावटी सामान किस डेकोरेटर के कहने पर और पूजा कमिटी के लिए बना रहे हैं? इसका जवाब देने से सेनापति ने मना करते हुए बस इतना कहा- इस बारे में कुछ भी बोलने की मनाही है, लेकिन इतना भर कह सकता हूं कि ये दृश्य आपको दक्षिण कोलकाता के किसी पंडाल में देखने को मिलेंगे।
मिट््टी से तलवार, भाला, गोला, कवच, ढाल समेत अस्त्र-शस्त्र बनाने में व्यस्त कुमारटोली के कारीगर ज्योतिर्मय पाल ने बताया कि मध्य कोलकाता की एक पूजा कमिटी की मांग पर वे यह सामग्री बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि गत्ते को विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रनुमा काट और उसपर मिट्टी का लेप लगाकर मांग के मुताबिक सजावट की सामग्री तैयार कर रहे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उन्हें पूजा कमिटी की ओर से विभिन्न आकार (साइज) के अस्त्र-शस्त्र बनाने का आर्डर मिला है। उनके मुताबिक पूजा कमिटी ने सितंबर के दूसरे सप्ताह तक सामग्री की आपूर्ति करने को कहा है। कौन-कौन हथियार कितनी संख्या में बना रहे हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर साढ़े चार नग (पीस) की आपूर्ति करनी है, इसे भाला, तलवार, गोला व कवच कितने-कितने होंगे फिलहाल यह कहना मुश्किल है।
इसी तरह थर्माकोल से संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, सुप्रीम कोर्ट समेत भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों का चित्र बनाने में जुटे इकबाल आलम ने बताया कि वे बारासात में आयोजित होने वाली एक पूजा कमिटी के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे जिस पूजा कमिटी के लिए सजावटी सामग्री बना रहे हैं उसकी (कमिटी) थीम देशप्रेम है। उन्होंने बताया कि पुख्ता तौर पर तो नहीं कह सकता, लेकिन सुनने में आया है कि बारासात के लोगों को संसद भवन नुमा पूजा पंडाल में देवी दुर्गा के दर्शन होंगे। पंडाल के आसपास देश ऐतिहासिक इमारतों, पूर्व राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के अलावा उन लोगों की थर्माकोल के निर्मित आकृति लगाई जाएंगी, जिन्होंने देशहित में उल्लेखनीय कार्य किया है।
अनाज (गेहूं-चावल) से इसी साल विश्वकप क्रिकेट जीतने वाली भारतीय खिलाड़ियों का चित्र बनाने वाले सपन मजुमदार नामक कारीगर ने कहा कि उत्तर कोलकाता के एक पूजा पंडाल में भारतीय क्रिकेट की झलक दिखेगी। उन्होंने बताया कि वे वैसे तो विश्व कप 2011 में शामिल सभी खिलाड़ियों का चित्र बना रहा है, लेकिन अधिक संख्या और बड़े आकार में सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विरेंद्र सहवाग और विरोट कोहली का चित्र बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि आयोजक पंडाल, प्रतिमा और बिजली सज्जा के माध्यम में भारतीय क्रिकेट की उपलब्धियों को दर्शाएंगे।

Thursday, August 4, 2011

हिजड़ों की हुकार

शंकर जालान



पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के पांडुआ इलाके में बीते दिनों संपन्न हुए हिजड़ों (किन्नरों) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिजड़ों की हुंकार गुंजी। पुरुष और महिला के बीच अपनी पहचान के लड़ाई लड़ रहे किन्नरों इस सम्मलेन में कई बातें व मांग रखी। सम्मेलन में शिरकत कर रहे किन्नरों के मुताबिक अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई, तो वे देश भर में व्यापक पैमाने पर आंदोलन करने के बाध्य होंगे। किन्नरों के हितों की रक्षा के लिए लंबे अरसे से आंदोलन कर रही संस्था पश्चिम बंग वृहन्नला वेलफेयर सोसाइटी के बैनर तले हुए सम्मेलन में किन्नरों की मांग मंजूर न होने पर अनशन करने व धरना देने की चेतावनी दी गई। संस्था की सचिव शोभा हालदार अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रोजगार व पुवर्वास की व्यवस्था न होने से किन्नरों की हालत दयनीय हो गई है। नौकरी व रोजगार न होने के कारण असंख्य किन्नर भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं। यह दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके मुताबिक बिगत में किए गए आंदोलन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला है। सम्मेलन में देश के कई राज्यों के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान समेत कई देशों के किन्नर शामिल हुए और इन सभी ने एक स्वर में देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने के साथ ही अनशन पर बैठने की बात कही।
आप लोगों की क्या मांग है? आप समाज और सरकार से क्या चाहते हैं? इसके जवाब में कई किन्नरों ने एक साथ कहा कि अभी भी अनगिनत किन्नर को मतदाता परचियपत्र, बीपीएल कार्ड, स्वास्थ्य बीमा, पासपोर्ट नहीं मिला है। हम यह सारी सुविधा मिले, साथ ही बैंक में खाता खोलने में हो रही परेशानी से निजात भी। रुपमती नामक एक किन्नर ने बताया कि केंद्र व राज्य सरकार ने समाज के शोषित, पीड़ित व उपेक्षित लोगों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाई है। इन योजनाओं का लाभ किन्नरों को नहीं मिल रहा है। उसने कहा कि कुछ लोग फर्जी किन्नर बन कर लोगों से पैसे वसूल रहे हैं। उसने सरकार से किन्नरों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए कल्याण कार्यक्रम बनाने की अपील की करने के साथ ही यह आरोप लगाया कि पुलिस की मिलीभगत से यह फर्जी किन्नरों का धंधा जारी है।
संस्था के प्रवक्ता शंकर बनिक के मुताबिक देश में उपहास के पात्र बने किन्नरों की तादाद करीब साठ लाख है। इनमें पश्चिम बंगाल के सवा लाख किन्नर शामिल हैं। कोलकाता में निवास करने वाले किन्नरों की संख्या करीब पचास हजार है। बनिक ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार वोट के लिए किन्नरों का दरवाजा खटखटाते हैं व इसके बाद चले जाते हैं।
एक किन्नर ने बताया कि विवाह-शादी या फिर बच्चे के जन्म जैसी शुभ घड़ी के दौरान नाच-गाकर उनका गुजारा चलता है, लेकिन जब साहिर लुधियानवी का लिखा गीत - इंसान की औलाद है इंसान बनेगा सुनती तब काफी बेदना होती है। क्योंकि समाज के लोग न वह मर्द समझते है और न औरत। और तो और इंसान भी नहीं मानते व हमेशा हिकारत की नजर से देखते हैं। उनकी कुदरती कमी पर कोई हमदर्दी नहीं रखता, बल्कि लोग मजाक उड़ाते हैं। त्रासदी यह कि समाज ने अपनी देन को ही दरकिनार कर रखा है। भीख मांगकर गुजर-बसर करना हमारी किस्मत बन चुकी है और कहीं-कहीं तो देह व्यापार भी।
रेशमा नामक एक किन्नर ने बताया कि किन्नरों की बिरादरी के नेता ही उनका शोषण करते हैं। हम जैसे कमजोर, बेचारों, किस्मत के मारों की बेबसी, कशमकश, दर्द और तड़प को शिद्दत से महसूस करके इस कड़वी हकीकत और
किन्नरों की जिंदगी पर दिलोदिमाग को झकझोरने वाली फिल्म है- ... और नेहा नहीं बिक पाई। सक्सेना की बतौर राइटर-प्रोड्यूसर-डायरेक्टर यह पहली फिल्म है। यही नहीं, वे इसके सूत्रधार भी बने हैं। एक घंटे की इस फिल्म में किन्नरों के दुख-दर्द को रेखांकित किया गया है।
उसने बताया कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हों कि बंधुआ मजदूरी खत्म हो चुकी है, पर किन्नरों की दुनिया में यह कुप्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। माता-पिता (जनक) और जमाने के तानों से परेशान होकर हिजड़े उनकी टोली में शामिल होने को मजबूर होते हैं।
एक किन्नर ने कहा कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में किन्नरों की दशा अधिक दयनीय है। उनसे कहा कि वे बहुत जल्द अपने कुछ साथियों के साथ राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगी और उनसे (ममता) से किन्नरों की भलाई बाबत कुछ कदम उठाने का आग्रह भी।