Saturday, December 31, 2011

नववर्ष में कहीं मोजमस्ती की तैयारी, तो कहीं बेबसी व लाचारी

शंकर जालान




कोलकाता महानगर के पांच सितारा होटलों व नामी-गिरामी रेस्तरां और विभिन्न क्लबों में युद्धस्तर पर अंग्रेजी नववर्ष यानी नए साल 2012 के स्वागत की तैयारी शुरू हो गई है। नए साल के आगमन में अब एक दिन बचा हैं। इस लिहाज से होटल, क्लब अपने ग्राहकों व सदस्यों के आकर्षित करने की फिराक में है। कहना गलत न होगा कि एक ओर महानगर के संपन्न परिवार के नवयुवक शनिवार देर रात व रविवार को नववर्ष कैसे मनाए इस सोच में डूबे हैं। वहीं दूसरी ओर महानगर में लाखों की संख्या में गरीब व मेहनतकश लोग हैं, जिनके लिए नए साल पर जश्न मनाने का कोई मतलब नहीं है। संपन्न परिवार के लोग जहां पांच सितारा होटलों में हजारों रुपए मांसाहारी भोजन व मदिरापान में पानी की तरह बहा देते हैं। वहीं, शहर के मुटिया-मजदूर और गरीब तबके के लोग भूख मिटाने के लिए दस-पांच रुपए का भोजन भी अपने पेट में डालने में असमर्थ रहते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि ज्यादातर मेहनतकश लोगों के यह पता ही नहीं होता कि अंग्रेजी नववर्ष क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है। उनके लिए तो पेट ही पहाड़ है। भर पेट भोजन मिलना उनके लिए किसी जश्न से कतई कम नहीं है। इस वर्ग में वे लोग भी शामिल है जो शहर के विभिन्न इलाकों में खुले आसमान के नीचे रहते हैं। उनके लिए धरती बिछावन और गगन चादर है। एक आंकड़े के मुताबिक राज्य के साठ फीसद से लोगों को दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं, करीब बीस फीसद ऐसे लोग हैं, जिनके घरों उजाला तब होता है, जब चौराहे पर लगे लैंपपोस्ट की बत्ती जलती है।
बड़ाबाजार चक्र रेल स्टेशन के पास झोपड़ी में रहने वाले दास परिवार के गौतम ने बताया कि वह अपनी विधवा मां, पत्नी और चार साल की बच्ची के साथ बीते छह सालों से रह रहे हैं। गौतम ने बताया कि वह राजा कटरा से थोक भाव में चनाचूर लाकर ट्रेन में बेचता है। दिन भर में चार-पांच किलो चनाचूर बेच कर किसी तरह 70-80 रुपए कमा पाता है। उन्होंने बताया कि इतने पैसे में खाना खर्च तो चलता नहीं, ऊपर से मां की दवा अलग से। दुखी मन से गौतम ने कहा कि हर महीने में दो-चार दिन तो मूढ़ी खाकर रहना पड़ता है। ऐसे में हमारे लिए नववर्ष के जश्न का कोई अर्थ नहीं है।
केलाबागान की रहने वाली शम्मी जहां के मुताबिक बड़ा दिन या फिर नया साल यह सब बड़े लोगों के चोचले हैं। फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के लिए इन दिनों का कोई महत्व नहीं है। उसने दुखी मन से कहा कि वैसे तो आम दिनों में उसकी दोनों लड़की व एक लड़का जो मिलता खा लेते, किसी प्रकार का जिद नहीं करते, लेकिन किसी विशेष दिन पर अन्य बच्चों को अच्छे कपड़े और अच्छा खाना खाते देख हमारे बच्चे के चोहरे मायूस हो जाते हैं। शम्मी ने बताया कि अगर सच कहूं तो नववर्ष का पहला दिन जहां संपन्न परिवार के लोगों के लिए जश्न मनाने का होता है, वहीं हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए अपनी बेबसी-लाचारी पर अफसोस करने का।

Wednesday, December 28, 2011

बाबूघाट पहुंचने लगे साधु

शंकर जालान



मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर स्नान के लिए देश के विभिन्न राज्यों से साधु-संत बाबूघाट पहुंचने लगे हैं। मंगलवार दोपहर तक करीब एक दर्जन साधुओं ने बाबूघाट के आसापस अपना डेरा जमा लिया था। उत्तराखंड के बद्रीनाथ से आए 8१ साल के बद्री विशाल बाबा अपनी लंबी और भारी जटा के लिए जाने जाते हैं। बाबा की भारी भरकम जटा भले ही नकली हो, लेकिन उसका असली है। बाबा ने बताया कि वे हर साल मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर जाने से पहले आउट्रमघाट पर दो-तीन सप्ताह पहले डेरा अवश्य डालते हैं। इसके अलावा वर्षों से कुंभ और अर्द्ध कुंभ में भी जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका वजन 63 किलो है और उनकी जटा का वजन साढे नौ किलो। इसी तरह उनकी लंबाई है पांच फीट तीन इंच है और उनके केश की लंबाई सात फीट। इतनी लंबी और भारी जटा के कारण आपको परेशानी नहीं होती? इसके जवाब में उन्होंने कहा- बिल्कुल नहीं, क्योंकि दिक्कत तो तब होती जब एकाएक इतना वजन माथे पर रखा जाता हो, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि जब से मैंने होश संभाला है, तब से केश नहीं कटाए। यह वजन धीरे-धीरे बढ़ा है और मेरी आदत में शुमार हो गया है। इतने लंबे व भारी केश की साफ-सफाई और कंघी कैसे करते हैं? इस सवाल के जवाब देने से पहले बाबा खिलखिला कर हंसे और कहा- मैं खुद ही दो-चार दिन में एक बार स्नान करता हूं। रही बात केश सफाई की तो साल-छह महीने में करता हूं। हां कंघी एक-दो दिन बाद कर लेता हूं ताकि केश उलझे नहीं। उन्होंने बताया कि वे मंगलवार की सुबह यहां आएं है और वृहस्पतिवार या शुक्रवार को तारापीठ जाएंगे, वहां से लौट कर उनका तारकेश्वर व मायापुर जाने का मन है। कई तीर्थस्थलों के दौरे के बाद वे नौ जनवरी तक फिर बाबूघाट पहुंचेगे और ११ जनवरी को सागरद्वीप के लिए रवाना होंगे। बाबा ने कहा- लोग उन्हें बद्री विशाल के नाम से कम और जटाधारी बाबा के नाम से अधिक जानते हैं।
मंगलवार को कई साधु-संत धुनी रमाए देखे गए। दिल्ली से आए विजयेंद्र बाबा को देखने के लिए लोगों की भीड़ रही है, क्योंकि बाबा रह-रहकर एक पांव पर खड़े होकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। बाबा इसे एक प्रकार की साधना मानते हैं और लोक कल्याण के लिए बीते आठ सालों से कुंभ आदि मेले के दौरान ऐसा ही करते आ रहे हैं। गोरखपुर से आईं महिला संन्यासिनी विद्यादेवी के भीड़ देखी गई। १५ वर्षीय विद्यादेवी यहां पहुंचे साधुओं में सबसे छोटी होने का साथ महिला संन्यासिनी हैं। सफेद वस्त्र, सफेद चूड़ी, सफेद बिंदिया और सफेद माला पहनी विद्यादेवी लोगों को आशीर्वाद देने के बाद राख का तिलक लगा रही हैं।

राज्य सरकार देगी छात्रों को कर्ज

शंकर जालान




राजनीतिक लाभ के लिए ही सही, लेकिन गरीब छात्रों के लिए यह अच्छी खबर है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-तृणणूल कांग्रेस शासित सरकार इस साल आर्थिक रूप से कमजोर दस लाख छात्रों को कर्ज देगी, जबकि बीस हजार अल्पसंख्यक छात्रों को प्रशिक्षण देने की योजना है। इस बाबत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कि नए साल यानी २०१२ में दस जनवरी को नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम के दौरान छात्रों को कर्ज दिया जाएगा। इसके साथ ही मुख्यमंत्री आर्थिक रूप से कमजोर अल्पसंख्यकों को जमीन का पंट्टा भी देना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि कक्षा नौ-दस से ही छात्रों को दक्षतामूलक प्रशिक्षण दिया जाए ताकि उन्हें बाद में कोई दिक्कत नहीं हो। सरकार एक इम्पलायमेंट बैंक भी तैयार करेगी। जहां जमा होने वाली अर्जियों को शैक्षणिक योग्यता के अनुसार विभिन्न ग्रुप में बांटा जाएगा और उनके डाटा को वेबसाइट पर डाल दिया जाएगा, ताकि कंपनियां जरूरत पडने पर यहां से योग्य कर्मचारी का चयन कर सकेगी। राज्य में नर्सिग के क्षेत्र में काफी रोजगार के अवसर हैं। पिछली सरकार की अनदेखी के कारण इम्पलायमेंट एक्सचेंज पूरी बेकार हो चुका है। मुख्यमंत्री राज्य में और एक हजार मदरसा खुलवाना चाहती हैं, इसीलिए जो मान्यता प्राप्त नहीं है, उनसे मान्यता हासिल करने के लिए आवेदन करने की अपील की है।
बनर्जी के मुताबिक अल्पसंख्यकों से जो भी वादें किए थे, उन्होंने सभी वादें साढ़े छह महीने के कार्यकाल में पूरा किए। उर्दू व गुरुमुखी को द्वितीय भाषा की मान्यता दी। आलिया विश्वविद्यालय के लिए बीस एकड़ व हाजी हाउस के लिए पांच एकड़ जमीन खरीद कर दी। इस वर्ष हज यात्रियों को काफी मदद की गई, जबकि अगले साल से और भी सुविधाएं दी जाएगी। वक्फ बोर्ड घोटाले की सीबीआई जांच कराई जा रही है। वहीं नया बक्फ बोर्ड बनाया जा रहा है, जिसमें हाईकोर्ट के न्यायाधीश गनी खान चौधरी समेत कई रहेंगे। पिछली सरकार ने सिर्फ चुनावी लाभ के लिए विधानसभा में मुस्लिम आरक्षण बिल पास किया था, सही से कानून नहीं बनाया गया। इसको हाईकोर्ट में चुनौती मिली है। इसीलिए उनकी सरकार एक सर्वे करवाने के बाद इस बिल में संशोधन कर अल्पसंख्यक आरक्षण कानून बनाएगी। वहीं जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए अलग-अलग विभाग बनाने की योजना है।

नई सरकार और सामूहिक मौतों का सिलसिला

शंकर जालान

लगता है पश्चिम बंगाल की नई सरकार और सामूहिक मौतों का चोली-दामन का साथ हो गया है। तृणमूल शासित ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने हाल ही में दो सौ दिन पूरे किए हैं और इन दो सौ दिनों में विभिन्न शिशु अस्पतालों में नवजात बच्चों, एएमआरआई अस्पताल अग्निकांड और बीते दिनों घटी जहरीली शराब की घटना ने छह सौ से ज्यादा लोगों को मौत की सुला दिया। इस गणित से देखा जाए तो जब से कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने राज्य के कमान संभाली है रोजाना तीन लोग यानी प्रत्येक आठ घंटे में एक व्यक्ति की मौत सरकार की लापरवाही के कारण हो रही है।
दूसरे शब्दों में कहे तो एमआरआई अस्पताल में लगी आग की तपिश अभी शांत भी नहीं हुई कि दक्षिण चौबीस परगना जिले में जहरीली शराब की घटना ने आग में घी डालने का काम किया।
यह बिल्कुल सच है, जो आया है वह जरूर जाएगा यानी जिसका जन्म हुआ है उसकी मौत भी अवश्य होगी। यह सभी जानते हैं कि आज तक किसी ने अमर बूटी खाकर जन्म नहीं लिया। एक ना एक दिन हर व्यक्ति को मरना है, लेकिन ऐसी सामूहिक मौत, जिसके पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार की उदासीनता झलक रही हो तो यह मांग की उठना बिल्कुल जायज है कि आखिरकार राज्य की मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी कर क्या रही हैं?
बीते सप्ताह बुध-वृहस्पतिवार (१४-१५ दिसंबर) को पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिल के मगराहाट स्थित संग्रामपर व आसपास के इलाकों में जहरीली शराब ने १५५ लोगों को (समाचार लिखे जाने तक) सदा-सदा के लिए सुला दिया और करीब १६५ लोगों जीवन-मौत के बीच अस्पताल में संघर्ष कर रहे हैं। चिकित्सकों व विशेषज्ञों की माने तो अस्पताल में भर्ती कुछ लोग ही स्वस्थ होकर घर लौट पाएंगे। जहर इतना फैल चुका है कि वह ज्यादातर लोगों को श्मशान का रास्ता दिखाएगा। हालांकि इस घटना पर दुख और चिंता जताते हुए ममता बनर्जी ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए देने के साथ-साथ मामले की सीआईडी जांच के आदेश भी दिए हैं। इस सिलसिले में एक दर्जन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है और उनसे पूछताछ कर रही है। जबकि देशी शराब माफिया के रूप में महशूर फरार बादशाह खोकन की तलाश जारी है। दक्षिण चौबीस परगना जिले क मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी शिखा अधिकारी ने एमआर बांगुड़, नेशनल मेडिकल कॉलेज अस्पताल और डायमंड हार्बर अस्पताल में भर्ती लोगों को बचाने की भरपूर कोशिश की जा रही है।
ध्यान रहे कि राज्य में कई जिलों में सालों से देशी शराब जिसे आम भाषा में चुल्लू कहा जाता है के सेवन से अक्सर लोगों क मौत होती रहती है। देशी शराब क भट्टियों के खिलाफ स्थानीय महिलाएं समय-समय पर आंदोलन और तोड़फोड़ करती रह हैं, लेकिन पुलिस की मिली-भगत और कुछ नेताओं क सह पर चुल्लू का धंधा फिर से पनप उठता है। महानगर कोलकाता समेत राज्य के विभिन्न जिलों में बीते सात सालों में एक सौ लोगों चुल्लू के कारण मौत के मुंह में समां गए हैं। जहरीली शराब से नवंबर २००४ में टेंगरा इलाके में ३५ लोग, अक्तूबर २००७ में पूर्व मेदिनीपुर में पांच, जनवरी २००९ में पोर्ट इलाके में २७, मई २००९ में दक्षिण चौबीस परगना में छह व पूर्व मेदिनीपुर में २० और बीते साल जुलाई २०१० में विधाननगर में सात लोगों क मौत हुई है। यानी सात साल में कुल मिलाकर जहरीली शराब ने जितने लोगों को नहीं निला उतने नहीं उससे ज्यादा लोगों बीते सप्ताह की घटना के शिकार हुए।
इस आंकड़े को नजरअंदाज करते हुए सरकार कह रही है कि पिछले तीन महीने (सितंबर, अक्तूबर व नवंबर) में जहरीली शराब के धंधे से जुड़े ८८ लोगों को न केवल पकड़ा गया है, बल्कि इस दौरान १५ हजार सात सौ ६३ लीटर शराब भी जब्त की गई है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक सितंबर में ४०, अक्तूबर में ३६ और नवंबर में १२ लोगों को गिरफ्तार किया गया। सरकार या सरकारी नुमाइंदों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जितने लोगों को जहरीली शराब मामले में तीन महीने में गिरफ्तार किया गया है। उससने दुगने लोग जहरीली शराब के कारण मात्र तीन पहर (२४ घंटे) में मारे गए हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी हैं अपने सफाई में रही है और यह मान रही है कि अवैध (जहरीली) शराब का धंधा राज्य में लंबे अर्से से चल रहा है। यह एक सामाजि कुरीति बन चुकी है। इसे रोकने के लिए सर्वदलीय स्तर पर आम राय की आवश्यकता है। साथ ही एक मझी हुई नेता की तरह वे यह प्रलोभन भी दे रही हैं कि अवैध शराब से जुड़े लोग यदि अन्य व्यवसाय से जुड़ना चाहे तो सरकार उनक मदद करेगी।
जानकार ममता के इस कथित प्रलोभन को पब्लिकसिटी स्ट्ड मान रहे हैं। लोगों को मुताबिक अपने को जमीन से जुड़ी और समझदार मुख्यमंत्री मानने वाली ममता बनर्जी की नजर अब तक क्यों इस ओर क्यों नहीं पड़ी? शिशु अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद सचेत होना और फऱमान जारी करना, एएमआरआई अस्पताल में आग लगने के बाद नींद से जागना और जहरीली शराब से हुई १५० से ज्यादा लोगों की मौत के बाद सफाई देना या दुख जताने भर से पीड़ित परिवार के गम को कम नहं किया जा सकता।
वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि मरने पर मुआवजा और प्रलोभन से अवैध शराब के धंधे पर अंकुश लगना मुश्किल है। जानकारी गुजरात की तर्ज पर नए व सख्त कानून की जरूरत महसूस कर रहे हैं। ध्यान रहे कि जहरीली सबसे से सबसे अधिक लोग गुजरात में मरे और अब दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है।
स्थानीय लोगों की शिकायत है कि देशी शराब बेचने की आड़ में मिलावटी शराब बेचने का गोरखधंधा यहां खूब चलता है और पुलिस को इस बारे में कई बार सूचित किया गया है। संग्रामपुर में ऐसी ही एक दुकान पुलिस स्टेशन के सामने ही स्थित है। लेकिन पुलिस की कार्रवाई न करना यह दर्शाता है कि इसमें लाभ का हिस्सा उस तक भी पहुंचता ही होगा। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी भी इससे इंकार नहीं करते, उनका कहना है कि हो सकता है निचले दर्जे के कुछ पुलिसकर्मी इसमें शामिल हों, लेकिन जैसे ही हमें उनके बारे में पता लगेगा, कार्रवाई की जाएगी। इस इलाके में देशी शराब जिसे चुल्लू के नाम से जाना जाता है, उसका एक लीटर का पैक दस रपए और आधे लीटर का पैक पांच रुपए में बिकता है। शराब की मात्रा और नशा बढ़ाने और कीमत कम करने के लिए मिथाइल अल्कोहल नामक पदार्थ उसमें मिला दिया जाता है। इसमें कई बार पीने वाले को उल्टियां होने लगती हैं और मौत भी हो जाती है। जाहिर है दिनभर की थकान दूर करने के लिए रिक्शेवालों और मजदूरों ने शराब नहीं सीधे जहर पिया, जो उन्हें पांच और दस रुपए में बेचा गया। जीवनयापन उनके लिए महंगा था, लेकिन मौत इतनी सस्ती मिल जाएगी, इसका अनुमान उन्हें नहीं होगा।
देश में जहरीली शराब से मौत की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। जब मौत का आंकड़ा अधिक होता है, तो हंगामा मचता है, अन्यथा इसे सामान्य अपराध की तरह नजरंदाज कर दिया जाता है। गुजरात में 2009 में बड़ी संख्या में जहरीली शराब से मौतें हुई थीं, राज्य में पूर्ण नशाबंदी होने के बावजूद ऐसा हुआ था। तब एक विधेयक पेश किया गया था, जिसके तहत जहरीली शराब को बनाने और बेचने की सजा मौत रखी गयी थी। राज्यपाल प्रारंभ में मौत की सजा हटवाना चाहती थीं, लेकिन आखिरकार इस दिसम्बर में इसे पारित कर कानून बना ही दिया गया। गुजरात देश का एकमात्र राज्य है, जहां पूर्ण नशाबंदी है और अब इस कानून के बाद वहां शराब के अवैध धंधे पर सख्ती से रोक लग पाएगी, ऐसा अनुमान है। पूर्ण नशाबंदी एक आदर्श स्थिति है, जो केवल कानून से नहीं, बल्कि जनजागरूकता से ही संभव है। अन्यथा लोग किसी न किसी प्रकार नशा करने के गलत रास्ते ढूंढ ही लेते हैं। इसलिए बेहतर है कि सरकार इस बारे में थोड़ी व्यवहारिक सोच रखे। पूर्ण नशाबंदी की जगह जहरीली शराब या गैरकानूनी तरीके से शराब के व्यापार पर पूर्ण रोक लगाने के उपाय करे, तभी ऐसी अकाल मौतों को रोका जा सकेगा।

Thursday, December 15, 2011

वृहस्पतिवार की वह काली रात

शंकर जालान


वृहस्पतिवार की काली रात कहे या ब्लैक फ्राई डे। उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता, जिन्होंने इस मनहूस दिन अपने किसी को खोया है। हर फ्राई डे की तरह इस शुक्रवार की सुबह सूरज तो जरूर निकला, लेकिन हमेशा की तरह उजाला लेकर नहीं, बल्कि दुर्भाग्यवश उन लोगों के लिए अंधेरा लेकर आया, जिनके घरवाले अब कभी न नींद से उठ पाएंगे और न नहा-धो। जी हां, हम बात कर रहे हैं दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया स्थित एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एएमआरआई यानी आमरी) की।
महंगे, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कहे जाने वाले सात मंजिला इस अस्पताल में भूतल (बेसमेंट) में प्रबंधन की लापरवाही के कारण आग लग गई, जिसने आठ दर्जन से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया। मीना बसु, शैल दासगुप्त, श्याचरण पाल, नेपालचंद्र गुप्ता समेत अस्पताल में भर्ती करीब एक सौ मरीजों व उनके हजारों घरवालों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ये अपने पैर पर चलकर घर नहीं लौट सकेंगे, बल्कि चार लोगों के कंधे के सहारे मरघट पहुंचेंगे।
कोलकाता ही क्या, देश की किसी भी अस्पताल में आगजनी की यह पहली इतनी बड़ी घटना है, जिनसे एक साथ 99 लोगों को खामोश कर दिया या दूसरे शब्दों में को सदा-सदा को लिए चीर नींद में सुला दिया। इस घटना ने भले ही विभिन्न अस्पतालों के प्रबंधन, राज्य सरकार व केंद्र सरकार के सचेत कर दिया हो, बावजूद इसके उनलोगों का दुख कभी कम नहीं हो पाएगा, जिन्होंने इस दर्दनाक हादसे में अपने को खोया है।
भले ही अग्निकांड में मारे गए लोगों को अस्पताल प्रबंधन, राज्य सरकार व केंद्र सरकार ने आर्थिक अनुदान देने का एलान किया है, फिर में लोगों को गुस्सा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मृतक काशीनाथ सरकार, इशानी दत्ता, शाहिद आलम, ज्ञानेश्व राय के घरवालों ने नाराजगी व गुस्से के साथ कहा कि मुआवजा किसी व्यक्ति की कमी को कभी पूरा नहीं कर सकता। इन लोगों ने बगैर किसी पार्टी, सरकार या नेता का नाम लिए कहा कि अगर मुआवजा ही पर्याप्त है तो मुआवजा का एलान करने वाले लोग अपने किसी घरवाले को मौत के मुंह में घकेल कर दिखाए।
घटना की सूचना मिलने पर केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी, शहरी विकास मंत्री फरियाद हकीम, दमकल मंत्री जावेद अहमद खान, कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी, वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बसु, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता व राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र समेक कई नेता मौके पर पहुंचे और मारे गए लोगों को सांत्वना देने का प्रयास किया, लेकिन पीड़ित लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। स्थिति यहां तक पहुंची की लोगों की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके पास स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेवारी भी है का घेराव कर लिया। कोलकाता के पुलिस आयुक्त रंजीत कुमार पचनंदा समेत पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने काफी मशक्कत के बाद सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अस्पताल प्रबंधन का अपराध अक्षम्य है, पर इस सवाल का उत्तर तो ममता बनर्जी को ही देना चाहिए कि अस्पताल अगर नियमों का पालन नहीं कर रहा था, तो उसको समय रहते नियमों का महत्व समझाने की जिम्मेदारी आखिरकार थी किसकी? शंपा चौधरी ने इस हादसे में अपने चाचा राम दास को खोया है। भींग आंखों ने उसने बताया कि चाहे प्रबंधन की गलती हो या सरकार की मुझे को फर्क नहीं पड़ता। गलतियों के कारण इनके चाचा राम दास ‘राम’ को प्यारे हो गए। उन्होंने ‘शुक्रवार’ से कहा- जब तक प्यास लगने पर कुआं खोदने की प्रक्रिया जारी रहेगी, लोग प्यासे मरते रहेंगे। यानी आग लगने के बाद यह कहना कि दमकल विभाग के नियमों को उल्लंघन किया गया, इसे लिपा-पोती ही कहा जाना चाहिए।
सूत्रों के मुताबित आमरी में तीन वर्ष पहले यानी 2008 में भी अग्निकांड की घटना घटी थी। आमरी ही क्या कोलकाता के अन्य कई नामी-गिरामी अस्पतालों की अव्यवस्थाएं भी आए दिन उजागर होती रही हैं, कभी बच्चों की मौत के रूप में, तो कभी मरीजों का इलाज करने से मना करने के रूप में। आलम तो यह है कि जब आग ने कई नागरिकों को लील लिया, तब जुझारू नेता और अग्निकन्या के रूप में चर्चित ममता बनर्जी को पता चला कि आमरी में आग बुझाने के इंतजाम नहीं थे। यदि आग नहीं लगती, तो उन्हें इसका पता भी नहीं चलता, तो क्या यह भी उनकी लापरवाही नहीं है?
जरा अतीत की ओर देखे तो पता चलता है कि महानगर कोलकाता में दो दशक के दौरान आगजनी का दर्जनों घटनाएं घटी है, लेकिन आमारी की आग की लपटों ने सबको बौना कर दिया। बीते साल यानी 2010 में स्टीफन कोर्ट, 2008 में सोदपुर व नंदराम मार्केट, 2006 में तपसिया, 2002 में फिरपोस मार्केट, 1998 में मैकेंजी इमारत, 1997 में एवरेस्ट हाउस व कोलकाता पुस्तक मेला, 1996 में लेंस डाउन, 1994 में कस्टम हाउस और 1993 में इंडस्ट्री हाउस, 1992 में मछुआ फल मंडी, 1991 में हावड़ा मछली बाजार में भयावह आग की घटना घटी चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौते बीते साल 23 मार्च के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में हुई थी, यहां 46 लोग आग की भेंट चढ़ गए थे। बीते 20 सालों में आग की 11 बड़ी घटनाओं में इतने लोगों की मौत नहीं हुई, जितने लोगों आमरी अग्निकांड में मारे गए।

राम भरोसे हैं शहर की कई अस्पतालें व इमरातें

शंकर जालान



कोलकाता । दक्षिण कोलकाता स्थित एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में बीते शुक्रवार तड़के घटी भीषण अग्निकांड में जहां 90 से ज्यादा लोग राम को प्यारे हो गए। वहीं शहर की कई नामी-गिरामी अस्पतालों वे बड़ी इमरातों की अग्निशमन व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर दिया। कहना कहना गलत नहीं होगा कि शहर में नियमों को ताक पर रख कर कई अस्पताल चल रहे तो कई महत्वपूर्ण इमारतों में भी आग बुझाने की माकुल व्यवस्था नहीं है। या यूं कहे कि शहर की कई अस्पतालें व इमारते राम भरोसे हैं। महानगर और आसपास के इलाके में चल रहे लघु उद्योग, भूतल (बेसमेंट) में संचालित नर्सिंग होम, गेस्ट हाउस, कोचिंग हब, होटल, कॉलेज व स्कूल के अलावा सिनेमा हॉल व शॉपिंग मॉलों को देखकर अग्निकांड की संभावना को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। अग्निशमन विभाग की माने तो शहर की कुछ बहुमंजिली इमारतें ही मानकों पर खरी हैं।
महानगर की 75 फीसद से ज्यादा बहुमंजिली इमारतें, अपार्टमेंट, मार्केट और नर्सिंग होम आदि में अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कुछ अस्पतालों में अग्निशमन उपकरण तो हैं, लेकिन वे खराब पड़े हैं। बेसमेंट में मानकों की अनदेखी की जा रही है। सोचने वाली बात यह है कि संबंधित विभाग के अधिकारी किसी आधार पर अनापत्ति पत्र (एनओसी) दे देते हैं।
आमरी अस्पताल में लगी भयानक आग के बात इससे चिंतित लोगों का कहना है कि कई अस्पतालों समेत विभिन्ना स्थानों के शासकीय व निजी इमारतों में आपदा प्रबंध की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। राज्य सरकार को इसके लिए कानून बनाना चाहिए। लोगों का कहना है कि पहले सिनेमा घरों, अस्पतालों में आग बुझाने का छोटा-सा सयंत्र व दो बाल्टी रेत भरी नजर आती थी, पर अब वह नहीं दिखती।
स्वयंसेवी संस्था के एक पदाधिकारी ने बताया कि अस्पतालों में अग्निशमन के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। इतना ही नहीं कोई बड़ा हादसा होने पर उस पर तत्काल काबू पाने के लिए कोई रणनीति भी तैयार नहीं है। रोजाना सरकारी समेत निजी अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा को लेकर न तो कोई तैयारी है और न ही कोई व्यवस्था...। उन्होंने कहा कि कुछ निजी अस्पतालों में जरूर कई स्थानों पर आग पर काबू पाने के लिए छोटे यंत्र लगे हैं, लेकिन उससे किस हद तक काबू पाया जा सकता है, यह प्रश्न बना हुआ है।
उन्होंने बताया कि आमरी हादसे के बाद मरीज, अस्पताल कर्मियों की सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार नए सिरे से सोचने पर विवश हैं। कारगर रणनीति की दरकार महसूस की जा रही है। इस घटना ने अस्पतालों में अग्निशमन के इंतजामों को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है।
जरा अतीत की ओर देखे तो पता चलता है कि महानगर कोलकाता समेत आसपास के जिलों में बीते दो दशक के दौरान आगजनी की दजर्नों घटनाएं घटी है, लेकिन आमारी की आग की लपटों ने सबको बौना कर दिया। बीते साल यानी 2010 में स्टीफन कोर्ट, 2008 में सोदपुर व नंदराम मार्केट, 2006 में तपसिया, 2002 में फिरपोस मार्केट, 1998 में मैकेंजी इमारत, 1997 में एवरेस्ट हाउस व कोलकाता पुस्तक मेला, 1996 में लेंस डाउन, 1994 में कस्टम हाउस, 1993 में इंडस्ट्री हाउस, 1992 में मछुआ फल मंडी, 1991 में हावड़ा मछली बाजार में भयावह आग की घटना घटी चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौते बीते साल 23 मार्च के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में हुई थी, यहां 46 लोग आग की भेंट चढ़ गए थे। बीते 20 सालों में आग की 11 बड़ी घटनाओं में इतने लोगों की मौत नहीं हुई, जितने लोग आमरी अग्निकांड में मारे गए।

आग से खुले कई राज, हरकत में आई सरकार और वीरान हुआ अस्पताल

शंकर जालान


कोलकाता,। शुक्रवार तड़के एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में लगी आग ने एक ओर जहां अस्पताल प्रबंधन, कोलकता नगर निगम और राज्य सरकार की नाकामी के कई राज खोले। वहीं, दूसरी ओर इस दर्दनाक घटना के एक दिन बाद यानी शनिवार को अस्पताल की सात मंजिली इमारत वीरानी में तब्दील हो गई। अस्पताल परिसर में जगह-जगह बिखरे शीशे, खून के धब्बे और धुएं की गंध कल घटी भीषण अग्निकांड की घटना के मूक गवाह रहे। इस दर्दनाक घटना के बाद राज्य सरकार हरकत में आई और इसी घटनाओं की रोकथाम के लिए शनिवार को पांच सदस्यीय कमिटी का गठन किया।
यहां यह बताते चले की आमरी अस्पताल में आग लगने का यह नया और पहला मामला नहीं था। इस अस्पताल में तीन साल पहले यानी 2008 भी आग लगी थी। उस वक्त कोई हताहत नहीं हुआ था। लगता है कि अस्पताल प्रबंधन ने इन हादसों से सबक नहीं सीखा। घटना की बड़ी वजह अस्पताल के भूतल (बेसमेंट) में ज्वलनशील पदार्थों के जखीरे को भी माना जा रहा है। सिर्फ पार्किंग के लिए इस्तेमाल होने के लिए बने बेसमेंट में अस्पताल प्रबंधन ने मेडिकल स्टोर, आॅक्सीजन सिलेंडर और तमाम अन्य चीजों का गोदाम बना रखा था।
ध्यान देने वाली बात यह है कि अस्पताल की लापरवाही सिर्फ बेसमेंट के गलत इस्तेमाल तक सीमित नहीं है। चौंकाने वाली और भी बातें सामने आई हैं कि एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) से बिना किसी वाजिब अनुमति लिए पिछले एक साल से अस्पताल का रेडियोलॉजी विभाग भूतल में काम कर रहा था। नेशनल एक्रीडीटेशन बोर्ड आॅफ हॉस्पिटल्स (एनएबीएच) ने भी बीते नवंबर में ही अस्पताल की मान्यता रद्द कर दी थी। एनएबीएच के सचिव डॉ. गिरधर ज्ञानी ने इस बाबत कहा कि अस्पताल में आपदा के समय सुरक्षित बाहर निकलने के सही इंतजाम नहीं हैं।
बनी कमिटी : अस्पताल के पुराने ब्लॉक में अब भी कुछ मरीज भर्ती हैं। इन मरीजों की देखभाल करने के लिए न तो कोई डॉक्टर है और न ही कोई नर्स। इन मरीजों के परिजन काफी परेशान हैं। अग्निकांड की वजह से अस्पताल के दो अन्य खंडों में सन्नाटा पसरा है। उसमें भर्ती मरीजों को उनके परिजन अन्य अस्पतालों में ले गए हैं।
भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने तथा अस्पतालों समेत अन्य प्रतिष्ठानों में अग्निशमन की व्यवस्था पर कड़ी निगरानी के लिए दमकल मंत्री जावेद अहमद खान ने पांच सदस्यीय कमिटी गठित की है। एडीजी (फायर) देवप्रिय विश्वास की अध्यक्षता में गठित कमिटी में डीजी (फायर) डीबी तरानिया, बरेन सेन (पूर्व निदेशक, फायर), अनिल चक्रवर्ती (आईएफएस) और एक चिकित्सक सुदीप्त सरकार को रखा गया है।
खान ने शनिवार को राइटर्स बिल्डिंग में विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की और अस्पतालों सहित स्कूल, कॉलेज व अन्य प्रतिष्ठानों में अग्निशमन व्यवस्था की समीक्षा करने के बाद पांच सदस्यीय कमिटी गठित की। दमकल मंत्री ने कहा कि एडीजी फायर विश्वास की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमिटी गठित की गई है। कमिटी के सदस्य सोमवार से विभिन्न अस्पतालों सहित स्कूल कॉलेज शापिंग माल व अन्य प्रतिष्ठानों का औचक निरीक्षण करेंगे। कमिटी सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को रिपोर्ट करेगी। खान ने कहा कि ऐसे प्रतिष्ठानों में अग्निशमन व्यवस्था में किसी तरह की खामी पाए जाने पर कार्रवाई होगी।
आमरी अस्पताल में अग्निकांड पर दमकल मंत्री ने शुक्रवार को कहा था कि अस्पताल प्रबंधन यदि अग्निशमन नियमों का पालन किया होता इतनी बड़ी घटना नहीं घटती। अस्पताल ने अग्निशमन व्यवस्था की अनदेखी की है। इस मामले में किसी को भी बक्शा नहीं जाएगा।

धू-धू कर जल रहा था अस्पताल

शंकर जालान


कोलकाता,। महानगर कोलकाता के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट हाउस अग्निकांड, न्यू हावड़ा ब्रिज एप्रोच रोड पर बने नंदराम मार्केट अग्निकांड, हावड़ा मछली बाजार अग्निकांड के बाद यह ऐसा बड़ा हादसा है, जिसमें कोलकाता के निजी अस्पतालों में सबसे बड़ा और आधुनिक सुविधाओं से लैस एएमआरआई (आमरी) अस्पताल ऐसा अस्पताल साबित हुआ, जो वृहस्पतिवार की आधी रात से धू-धू कर जल रहा था और दमकलवाहिनी के लोगों को जब इसकी जानकारी मिली तब तक सब कुछ खाक में मिल चुका था। स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में चालीस से ज्यादा लोगों की जान गई थी, लेकिन तब सरकार वाममोर्चा की थी। उस वक्त तत्कालीन राज्य सरकार ने एक उच्च स्तरीय कमिटी बनाई थी। यह कमिटी स्टीफन कोर्ट घटना के तत्काल बाद सभी बड़े स्थलों का मुआयना करने में जुटी थी। अगर सचमुच यह कमिटी काम रही थी, तो आमरी जैसे शहर के बड़े अस्पताल में इतना भयावह अग्निकांड जैसे घट गया। यह सवाल अभी भी मुंह बाएं खड़ा है।
आमरी अस्पताल में 70 वर्षीय कैंसर के मरीज अजय घोषाल के परिजनों से कोई जाकर पूछे कि यह हादसा आखिर कैसा हुआ। अजय के घरवाले शुक्रवार की सुबह उन्हें अस्पताल से रिलीज करा कर घर लाने वाले थे, लेकिन किस्मत ऐसी कि वे अपने घर की जगह मरघट पहुंच गए।
ठीक इसी तरह लाश बन चुके अन्य 20 रोगियों के परिजनों से कोई पूछे मरघट का सन्नाटा उनके कलेजे को किस तरह चीर रहा है।
एक अन्य मरीज शिवानी की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी। शिवानी के पिता भानू भट््टाचार्य ने बताया कि बेटी के इलाज के लिए मैंने इस अस्पताल में लाखों रुपए दे दिए, लेकिन बदले में मिली बेटी की लाश।
एक अन्य की परिजन शंपा चौधरी ने बताया कि वे लोग त्रिपुरा के अगरतला से अपने चाचा राम दास का इलाज कराने यहां लाए थे, लेकिन राम दास अब ‘राम’ को प्यारे हो गए। शंपा ने बताया कि वे लोग वृहस्पतिवार की काली रात आमरी के विश्राम कक्ष में ठहरे हुए थे। आग जब धू-धू कर जलने तो हम लोग वहां के सुरक्षाकर्मी से मदद के लिए चिल्लाने लगे कि हमारे चाचा को जल्दी से नीचे लाओ। तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। आमरी चंद घंटों में मरघट में तब्दील हो चुका था।
एक स्थानीय व्यक्ति उत्तम हालदार ने बताया कि आसपास के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों ने सबसे पहले आग का गोला उड़ते देखा। उसके बाद शोर मचाया कर लोगों को जगाया। अस्पताल के सुरक्षाकर्मी भी उस वक्त झपकी ले रहे थे। दमकल को आने में काफी देर हो चुकी थी। उत्तम ने बताया- जिंदगी में पहली दफा जीवन-मृत्यु का खेल मैंने अपनी व करीब से देखा। इसे मैं कभी नहीं भूला सकता।

कितना सुरक्षित है विद्यासगर सेतु

शंकर जालान


कोलकाता, विद्यासागर सुते जिसे द्वितीय हुगली ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है आखिर कितना सुरक्षित है? इस सेतु पर पर्याप्त संख्या और सही जगह पर सीसी कैमरे नहीं लगा रहने के कारण कभी भी कोई घटना घटी सकती है। अपराधी भय मुक्त होकर कारनामा कर फरार हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम हो कि सीसी कैमरा नहीं होने के कारण उनकी पुलिस आसानी से उन्हें पहचान नहीं पाएगी। मालूम हो कि बीते दिनों राजधानी दिल्ली में एक सेतु के टॉल टैक्स कायार्लय. में कार्यरत एक कमर्चारी की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और सीसी कैमरे के अभावन में पुलिस उनकी शिनाख्त नहीं कर पाई। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा हादसा यहां कभी भी घट सकता है। विद्यासागर सेतु के टॉल टैक्स कार्यालय में सीसी कमैरे तो लगे हैं, लेकिन वे कायार्लय के भीतर के कामकाज को कैमरे में कैद करते है। सेतु पर होने वाली हरकत को कैद करने में वे सक्षम नहीं है।
ध्यान रहे कि हुगली नदी पर बना यह सेतु हावड़ा ब्रिज से दक्षिण की तरह करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। स्टेड ब्रिज के रूप में यह एशिया का सबसे लंबा और दुनिया का तीसरा सबसे लंबा सेतु है, जिसमें १२२ वायर केवल लगे हैं। इसे सस्पेंशन ब्रिज भी कहा जाता है। इस सेतु की आधारशिला २० मई १९७२ को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने किया था। ३८८ करोड़ की लागत से बने इस ब्रिज को करीब २० साल बाद यानी १० अक्तूबर १९९२ को आम जनता के लिए खोला गया।
कोलकाता को हावड़ा से जोड़ने और हावड़ा ब्रिज पर बढ़ते जाम को कम करने और खास कर देश के अन्य मुख्य शहरों को जोड़ने के लिए विद्यासागर सेतु को बनाया गया था।
जानकारी लेते पर पता चला कि इतने महत्वपूर्ण सेतु का सुरक्षा४ की कोई खास व्यवस्था नहीं है। सेतु पर जो सीसी कैमरे लगे हैं, लेकिन वे पर्याप्त संख्या में नहीं है और न ही उचित स्थान पर लगे हैं। हालांकि बीते १९ सालों में सेतु पर ऐसी कोई घटना नहीं घटी है।
इस बारे में सेतु प्रोजेक्ट के निदेशक विजय संचेती ने बताया कि आने वालों दिनों में सेतु की सुरक्षा बढ़ाई जाएगी। इस सिलसिले में सुरक्षा कमिर्यों ने कहा कि उनके लिए सेड (छावनी) की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्हें मौसम की परवाह किए बगैर चाहें धूप हो या बारिश उन्हें खुले आसमान की नीचे खड़ा रहकर अपना काम करना पड़ता है। कहने का मतलब जिस सेतु से रोजाना लाखों यात्री व वाहनों का आवागमन होता हो उसकी सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा हुआ है। कहने को तो सेतु पर पुलिस वाले तैनात रहते हैं, लेकिन उनका काम केवल उन लोगों को रोकना है, जो हुगली नदी में कूदना चाहते हैं। जानकारों को मुताबिक इस महत्वपूर्ण सेतु और इस पर चलने वाले वाहनों के लिए और चुस्त सुरक्षा की जरूरत है।

कचरे के अंबार लगा है सियालदह स्टेशन परिसर में

शंकर जालान


कोलकाता,। बीते कई सप्ताह से सियालदह स्टेशन परिसर में कचरे का अंबार लगा है। इस वजह से राहगीरों व रेलयात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि जहां-तहां बिखरे कचरे के साथ-साथ जाम की भी विकट समस्या है। जाम के कारण कई बार नित्य यात्री समय पर लोकल ट्रेन नहीं पकड़ पाते। लोगों का कहना है कि इस बाबत कई बार स्थानीय पार्षद से शिकायत की गई, लेकिन उन्होंने कई पहल नहीं की। नहीं है। वहीं रेलवे प्रबंधक से की गई शिकायत पर भी ध्यान नहीं दिया गया। लोगों ने बताया कि पार्षद कहती है यह काम कोलकाता नगर निगम का नहीं रेलवे का है। वहीं रेलवे प्रबंधक का कहना है कि साफ-सफाई की जिम्मेवारी नगर निगम की है। नगर-निगम व रेलवे प्रबंधक की खींचतान के बीच यात्रियों व राहगीरों को बीते कई सप्ताह से सफर करना पड़ रहा है।
इस बाबत रेलवे प्रबंधन से तो बात नहीं हुई, लेकिन वार्ड नंबर ४९ की पार्षद अपराजिता दासगुप्त ने बताया कि जहां तक नगर निगम की जिम्मेवारी और सीमा की बात है उसे नगर निगम पूरी तरह निभा रहा है। नगर निगम अधीन इलाके में रोज-सफाई होती है। इसके अलावा सियालदह स्टेशन परिसर में यात्रियों व राहगीरों को हो रही परेशानी की मुझे कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि कभी-कभार स्ट्रीट हॉकरों की मनमानी व अवैध पार्किंग की शिकायत आती है, तो उस पर तत्काल प्रभाव से कारर्वाई कर समस्या की समाधान कर दिया दाता है।
मालूम हो कि सियालदह स्टेशन से कुछ ही दूरी पर शहर की सबसे बड़ी सब्जी मंडी है, जिसे कोले मार्केट कहा जाता है। इस मार्केट में रोजाना सैंकड़ों की संख्या में सब्जियां लदी लॉरियां आती है। चौबीस घंटे चलने वाली इस सब्जी मंडी से शहर के अन्य बाजारों के दुकानदार थोक खरीदारी करते हैं। लॉरियों के जरिए इस मंडी में सब्जियों के आने और साइकिल वैन के मार्फत वापस जाने का सिलसिला दिन-रात चलता रहता है। इस वजह से मंडी व मंडी के आसपास कूड़े का अंबार लग जाता है। कूड़े के ढेर से बदबू आने लगती है, जो राहगीरों के लिए परेशानी का कारण बनती है।
स्थानीय एक नागरिक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कोले मार्केट से स्टेट बैक (बीबी गांगुली स्ट्रीट) करीब आठ सौ फीट रास्तों को पार करने पर पैदल यात्रियों को १० से १२ मिनट लग जाते हैं। यदि वाहन (गाड़ी) हो तो कितना समय लगेगा भगवान ही जाने। कोले मार्केट के आसपास के लोगों ने बताया कि नगर निगम अपनी जिम्मेवारी से मुंह मोड़ रहा है। मसलन साफ-सफाई, अवैझ पार्किंग की दिशा में कोई कारर्वाई नहीं हो रही है। शिकायत करने पर पार्षद का जवाब होता है, जैसा चल रहा है वैसा चलने दो।
कोले मार्केट की समस्या पर पार्षद ने अपनी सफाई में बताया कि यह शहर की सबसे बड़ी सब्जी है। यहां प्रतिदिन पांच सौ से ज्यादा ट्रक आते और खाली होते हैं। इसलिए थोड़ी-बहुत जाम समस्या तो रहेगी हीं। रही बात गंदगी कि कच्चे सब्जियों का मामला को। मैं मानती हूं कि नहीं बिकी सड़ी-गली सब्जियों से गंदगी होती है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि नियमित सफाई होती है।

एक ही कमरे में चलती है एक से पांच तक की कक्षा

शंकर जालान


कोलकाता । राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलाव लाने की घोषणा की थी। मसलन सरकारी शिक्षकों को पहली तारीख को वेतन देने का मामला हो या प्रेसिडेंसी कॉलेज में मेंटर ग्रुप की गठन की बात। विश्वविद्यालय के शिक्षकों पर निगरानी रखने का मसला हो या फिर पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत महसूस की गई हो। अफसोस की बात यह है कि शिक्षा की नींव पर राज्य सरकार के शिक्षा विभाग की निगाह नहीं जा रही है। इसका जीता जागता उदाहरण हैं कोलकाता नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों की बदहाली। ध्यान देने की बात है कि सरकारी दावे के बावजूद राज्य में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था अत्यंत्र लचर है। नगर निगम द्वारा संचालित स्कूल में एक कमरे में ही कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई हो रही है जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार को समझना चाहिए कि उच्च शिक्षा के साथ-साथ प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार व बदलाव की जरूरत है।
कोलकाता नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों की स्थिति बदतर है। ऐसा ही एक स्कूल है वार्ड नंबर 44 में। इस स्कूल में प्रात:कालीन उर्दू माध्यम की पढ़ाई होती है यहां सुबह छह से दस बजे तक उर्दू पढ़ाई जाती है। द्वितीय पाली यानी दिन के ग्यारह बजे से शाम चार बजे तक हिंदी माध्यम के छात्रों को शिक्षा दी जाती है। द्वितीय पाली में कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई होती है और कुल 46 छात्र-छात्रों को अक्षर ज्ञान दिया जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि ज्यादातर दिन एक भी बच्चे स्कूल नहीं आते और दोपहर का भोजन (मीड डे मील) बनाया जाता है, जो शिक्षक व आया के काम आता है।
इस बाबत स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक भी बच्चा स्कूल नहीं आया हो। उन्होंने स्वीकार किया तो छात्र-छात्राओं की उपस्थिति कम जरूर रहती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि संख्या शून्य के स्तर तक आ जाती हो। उन्होंने अपनी समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि बीते कई महीनों से मैं अकेले स्कूल चला रहा हूं। मसलन दोपहर के भोजन की व्यवस्था करनी हो या गैस सिलेंडर बुक करना हो। बच्चों को पढ़ाना हो या परीक्षा की कॉपियों की जांच करनी हो सब काम मुझे करना पड़ रहा है। स्कूल की सारी जिम्मेवारी उनके कंधे पर है।
आप स्थानीय पार्षद रेहाना खातून या नगर निगम में शिक्षा विभाग के मेयर परिषद की सदस्य शशि पांजा से शिकायत क्यों नहीं करते? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि पार्षद से कई बार कहा और उन्होंने कोशिश भी की लेकिन कामयाबी नहीं मिला। इसके कारण का खुलासा करते हुए प्रधानाध्यापक ने कहा कि शशि पांजा मेयर परिषद की सदस्य होने के साथ-साथ विधायक भी हैं। इसलिए उन पर काम का दबाव बढ़ गया है। इस वजह से वे इस ओर ध्यान नहीं दे पा रही हैं।
उन्होंने बताया कि स्थानीय पार्षद रेहाना खातून ने पुरजोर कोशिश कर इस विधायक के लिए दो महीने पहले एक शिक्षक की नियुक्ति कराई थी, लेकिन यह शिक्षक भी बीमार होने के कारण बीते कई दिनों से स्कूल नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी स्कूल में बच्चों की संख्या कम है, लिहाजा में और अधिक शिक्षक की मांग नहीं कर सकते। उन्होंने बताया कि यहां एक ही कमरे में कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई होती है। एक ही ब्लैक बोर्ड (श्यामपट) पर सभी बच्चों के लिए सवाल लिखे जाते हैं, जो बच्चों के लिए परेशानी का सबब है। इस बाबत स्थानीय पार्षद रेहाना खातून ने बताया कि स्कूल की तमाम समस्याओं से वे भली-भांति अवगत हैं। अगले महीने यानी नए साल में वे प्रधानाध्यापक के साथ इस बाबत विचार-विमर्श करेंगी और घर-घर जाकर लोगों से उनके बच्चों को विद्यालय भेजने का अनुरोध भी करेंगी।

हादसे के इंतजार में डेढ़ हजार से ज्यादा इमारतें

शंकर जालान


कोलकाता । महानगर कोलकाता में कहीं ना कहीं रोजाना ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिससे यह साबित हो जाता है कि महानगर में सैंकड़ों की संख्या में खस्ताहाल व जर्जर इमारतें हैं, जो हादसे के इंतजार में है। कहना गलत न होगा कि प्रतिदिन किसी ना किसी इलाके से जर्जर इमारत का अंश ढहने और लोगों के जख्मी होने की खबर देखने व सुनने को मिलती है। बावजूद इसके कोलकाता नगर निगम इस दिशा में कोई ठोक कदम नहीं उठा रहा है। कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी, जिनके पास नगर निगम के भवन विभाग की जिम्मेवारी भी है। नगर निगम को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे है, लिहाजा भवन विभाग के कई जरूरी काम नहीं हो पा रहे हैं।
नगर निगम के भवन विभाग के मुताबिक महानगर में १५ सौ यानी डेढ़ हजार से ज्यादा ऐसी इमारतें है, जो कभी भी धरासाई हो सकती है औऱ दर्जनों लोगों को मौत की नींद सुला या जख्मी कर सकती है। इस दिशा में नगर निगम क्या कर रहा है? इस सवाल के जवाब में एक अधिकारी ने बताया कि हमारी जिम्मेवारी उक्त इमारत के लोगों को सूचित करना, मरम्मत के प्रति जागरूक करना और तब भी बात न बने तो इमारत के मुख्यद्वार पर सावधान को बोर्ड लगाना है। इससे अधिक हम कुछ नहीं कर सकते।
मालूम हो कि कोलकाता नगर निगम में कुल १४१ वार्ड हैं और १५ सौ से ज्यादा इमारतें खतरनाक। इस गणित से हर वार्ड में औसतन दस से ज्यादा ऐसी इमारतें हैं, जो किसी भी वक्त हादसे का शिकार हो सकती हैं।
बताते चले, बीते महीने ही दक्षिण कोलकाता के पोर्ट इलाके में वाटगंज स्ट्रीट एक इमारत का छज्जा गिर गया था। इस घटना में एक महिला समेत पांच लोग जख्मी हो गए थे। इस बाबत पुलिस ने मकान मालिक को गिरफ्तार किया था, लेकिन अदालत से उसे जमानत मिल गई। ठीक इसी तरह मध्य कोलकाता के वार्ड नंबर ४५ में बीते दिनों मकान का हिस्सा करने से एक व्यक्ति घायल हो गया था। इसी तरह कई वार्डों में दर्जनों की संख्या में ऐसी इमारते हैं, जो दुर्घटना को बुलावा दे रही हैं। इस बाबत नगर निगम के भवन विभाग के एक उच्चा अधिकारी का कहना है कि जर्जर इमारतों में साफ-साफ शब्दों में लिखा है सावधान, यह इमारत खतरनाक है। इमारत के मुख्यद्वार पर लगे ऐसे बोर्ड का मतलब यही है कि ऐसी इमारतों में खतरे से खाली नहीं है। अब कोई आ बैल मुझे मार वाली कहावत का अनुसरण करता है तो हम क्या कर सकते हैं।
यह जानते हुए भी की इमारत कभी भी गिर सकती है? मकान मालिक मरम्मत क्यों नहीं कराते? किराएदार क्यों जान जोखिमल में डालकर रहने को विवश हैं? बतौर पार्षद आप क्या भूमिका निभा रहे है? इस सवाल के जवाब में लगभग सभी राजनीतिक दलों के पार्षदों ने कहा- नगर निगम या पार्षद का काम लोगों को सचेत करना, सुझाव देना और मरम्मत के लिए प्रेरित करना है। अगर इसके बाद भी किराएदार व मकान मालिक कुछ नहीं करते तो इसमें हमारा क्या कसूर है। तृणमूल कांग्रेस की पार्षद रेहाना खातून ने कहा कि न तो ऐसा कोई कानून है और न हमारे पास अधिकार की हम जर्जर मकानों के किराएदारों को जबरन बेदखल करें या मकान मालिक को मरम्मत के लिए मजबूर।
आप के वार्ड में ही ९८ व १०० महात्मा गांधी रोड स्थित दो इमारतें खस्ता हाल है। बीत सात सालों से मकान के प्रवेशद्वार पर खतरनाक को बोर्ड लगा है। रह-रह कर ईंटें गिर रही है। दरारें बढ़ रही है। आप क्या कर रही है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि दोनो पक्षों (मकान मालिक व किराएदारों) को समझाने की प्रक्रिया जारी है।
वहीं, माकपा के पूर्व सांसद व वार्ड नंबर २० को पार्षद सुधांशु सील का कहना कि तृणमूल कांग्रेस शासित नगर निगम बोर्ड अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। उन्होंने कहा कि मेयर शोभन चटर्जी, जो भवन विभाग भी संभाल रहे हैं, उन्हें नगर निगम मुख्यालय में कम और ममता बनर्जी के आगे-पीछे अधिक देखा जाता है। ऐसे मेयर से कुछ उम्मीद रखनी खुद को धोखे में रखने की तरह है।

Friday, December 2, 2011

...और सड़क पर आ जाएंगे खुदरा व्यापारी

शंकर जालान





कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी देने की मंशा से लाखों खुदरा व्यापारी खफा हैं। इस बाबत व्यापारियों का आरोप है कि संप्रग सरकार ऐसा कर हम जैसे खुदरा व्यापारियों को सड़क पर लाना चाहती है। खुदरा व्यापारियों के मुताबिक एफडीआई को मंजूरी किसी नजरिए से भारत व भारत के खुदरा व्यापारियों के हित में नहीं है, इसलिए अन्य राजनीतिक दलों के अलावा संप्रग की सहयोगी पार्टियां भी इसका विरोध कर रही हैं। वहीं कुछ संगठन इसे हितकर मान रहे हैं।
खुदरा व्यापार से जुड़े एक किराना कारोबारी अमरलाल अग्रवाल ने बताया कि खुदरा बाजार में एफडीआई लागू हो गया तो इस क्षेत्र से स्वरोजगार अर्जित कर रहे कम से कम दस करोड़ भारतीय बेरोजगार हो जाएंगे। विदेशी निवेश से खुदरा बाजार तहस-नहस हो जाएगा। ऐसा होने पर भारतीय बाजार में विदेशी कंपनी अपनी मनमर्जी कीमत वसूलेंगी।
कपड़ा विक्रता दामोदर गनेरीवाल ने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि विदेशी निवेशक सिर्फ कृषि उत्पाद तक ही अपने-आप को सीमित रखेंगे और दूसरे उत्पादों के व्यवसाय में दखल नहीं देंगे।
ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े विक्रांत सिंह ने एफडीआई पर चिंता जताते हुए कहा कि विदेशी निवेशक बड़े पैमाने के व्यवसाय के लिए धीरे-धीरे खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था कर लेंगे रखेंगे। अगर ऐसा हुआ तो आम ट्रांसपोर्ट से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
चीनी दुकान के मालिक सुरेंद्र चौधरी ने बताया कि वाममोर्चा व भाजपा समेत कई राजनीतिक पार्टियां एफडीआई का विरोध कर रही हैं और फिलहाल इस आंदोलन में व्यापारियों के साथ खड़ी दिख रही हैं, लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कहीं राजनीतिक पार्टियों व्यापारियों को हथियार के रूप में तो नहीं इस्तेमाल कर रही है और व्यापारियों को आगे बढ़ाकर खुद राजनीतिक लाभ लेने की फिराक में जुटी हैं।
एक अन्य खुदरा व्यापारियों ने बताया कि वालमार्ट और टेस्को जैसी बड़ी कंपनियों के आ जाने से उनकी रोजी रोटी के लिए खतरा पैदा हो सकता है, इसलिए एक जुट होकर एफडीआई का विरोध करना चाहिए और संप्रग सरकार को बाध्य करें कि वह इसे लागू न करे।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के पूर्वी क्षेत्र का कहना है कि विदेशी पूंजी के आने से कृषि बाजार व कृषि में सुधार होगा। किसानों को भी उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य मिल सकेगा। छोटे और मझोले कारोबारियों को भी इससे फायदा होगा, क्योंकि 30 फीसदी खरीदारी उन्हीं से होनी है। उनका तर्क है कि वेयर हाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और अन्य आपूर्ति श्रृंखला में बड़े पैमाने पर निवेश होगा, जिससे कृषि ढांचागत क्षेत्र के विकास में तेजी आएगी और ठीक इसी समय खाद्य पदार्थ की बर्बादी में कमी आएगी। मर्चेट्स चेंबर आॅफ कामर्स का कहना है कि वैश्विक खुदरा कंपनियां जैसे कि वाल मार्ट, टेस्को, टार्गेट अपने प्रबंध, गुणवत्ता और उचित कीमतों के लिए जानी जाती हैं। भारत में अब उनकी निवेश प्रक्रिया ज्यादा स्थाई रहेगी और वह भारत को दीर्घकालीन बाजार के रूप में देखेंगी और भारतीयों का विश्वास जीतने की कोशिश करेंगी।
फेडरेशन आफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशंस का कहना है कि सिंगल ब्रांड में सौ फीसद एफडीआई और मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसद एफडीआई को मंजूरी से छोटे-खुदरा किराना दुकानदारों के अस्तित्व और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। देश की 33 फीसद आबादी जिसका जीवन यापन इसी खुदरा कारोबार के भरोसे है, बुरी तरह प्रभावित होगी। इस खुदरा कारोबार से करीब पांच करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से और दस करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं और इसी खुदरा कारोबार से 40 करोड़ लोगों का जीवन यापन हो रहा है।

Thursday, December 1, 2011

कई सवाल छोड़ गए किशनजी

शंकर जालान





कट्टर माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी अब नहीं रहे, लेकिन अपने पीछे एक बहस छोड़ गए। राज्य सरकार कह रही है कि अर्द्ध सैनिक बल व राज्य पुलिस के साझा अभियान के दौरान किशनजी की मौत हो गई। वहीं, माओवादियों के अन्य नेताओं समेत कुछ राजनीति पार्टियों का आरोप है कि सोची-समझी साजिश के तहत किशनजी की हत्या की गई है। राज सरकार व माओवादियों के आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह कहना फिलहाल मुश्किल है कि किशनजी की मुठभेड़ में मौत हुई है या गिरफ्तारी के बाद उनकी हत्या की गई है। दूसरे शब्दों में कहे तो किशनजी अपने पीछे कई सवाल छोड़ गए हैं, जिनका जवाब शायद वक्त के गर्भ में छिपा है। सूत्रों के मुताबिक नि:शुल्क किशनजी के खत्म होने से माओवादियों को जोरजार झटका लगा है, बावजूद इसके इस सिलसिले में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी की कोई प्रतिक्रिया न आना संशय पैदा करती है। हालांकि किशनजी नहीं रहे वाली खबर आने के बाद तृणमूल कांग्रेस के नेता शिशिर अधिकारी ने जरूर कहा कि अब एक सप्ताह के भीतर माओवादियों का खात्मा हो जाएगा, लेकिन उनकी इस बात से और किसी नेता ने सहमति नहीं जताई। अलबत्ता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत दस अन्य वीवीआईपी नेताओं की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई। इससे साफ होता है कि राज्य सरकार को यह डर है कि माओवादी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।
जहां, क्रांतिकारी कवि व माओवादियों के शुभचिंतक वरवरा राव ने पश्चिम बंगाल सरकार से माओवादी नेता किशनजी की मौत पर श्वेत-पत्र जारी करने की मांग की है। वहीं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने किशनजी की मौत को फर्जी मुठभेड में हत्या का मामला बताते हुए केंद्र सरकार से इस मामले की जांच कराने व स्पष्टीकरण देने की मांग की है। भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम को एक पत्र लिखकर पूछा है कि क्या यह सच नहीं है कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य किशनजी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में पश्चिमी मेदिनीपुर में बूरीसोल जंगल में उनकी जघन्य तरीके से हत्या कर दी। माओवादियों के अलावा विभिन्न संगठन से जुड़े लोग व राजनेता इस मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए इसकी जांच की मांग कर रहे है।
वरवरा राव ने कहा-किशनजी के शरीर पर जख्म के कई निशान मिले हैं जो दर्शाते हैं कि मारने के पूर्व उनको काफी यातना दी गई थी। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि पकड़े जाने के 24 घंटे के बाद फर्जी मुठभेड़ में किशनजी को मारा गया। राव ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के नियम के तहत किशनजी की मौत के लिए जिम्मेवार लोगों धारा 302 के अंतर्गत मामला दायर करने की भी मांग की। वरवरा राव ने इस बाबत राज्य सचिवालय में राज्य के गृह सचिव जीडी गौतम को एक ज्ञापन सौंपा।
राव ने कहा कि आंध्र प्रदेश की सरकार ने इसी तरह कई माओवादियों को मार दिया था, लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नियम के मुताबिक मारे गए माओवादियों के शवों को वह सरकार पोस्टमार्टम भी कराती थी। उन्होंने कहा कि आजाद (एक अन्य माओवादी नेता, जो कुछ साल पहले मुठभेड़ में मारा गया था) के शव को भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नियम के तहत दिल्ली स्थित उसके आवास पर भेजा गया था।
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि पश्चिम बंगाल की वर्तमान सरकार पूर्व के वाममोर्चा सरकार की तरह काम कर रही है। उन्होंने कहा-मैं समझता हूं कि वर्तमान परिस्थिति में फासीवादी, साम्राज्यवादी व सामंतवादी सरकार के साथ बातचीत की जरूरत है।
केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक विजय कुमार ने उस आरोप को खारिज कर दिया, जिसमें कहा जा रहा है कि फर्जी मुठभेड़ में किशनजी की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि यह बेहद साफ और सफल अभियान था, जिसमें हमारे जवानों ने एक मिनट भी नष्ट नहीं किया।
मेदिनीपुर क्षेत्र के पुलिस के डीआईजी विनीत गोयल के मुताबिक यह अभियान पूर्व नियोजित था। खुफिया सूत्रों से हमें खबर मिली थी कि माओवादियों का एक दस्ता इस इलाके में छिपा हुआ है। हमने कार्रवाई की और हमें सफलता मिली। पुलिस सूत्रों ने बताया कि किशनजी के शव के पास एक एके-47 व एक एके-एम राइफलें बरामद की गई थी। समझा जाता है कि एके-47 का इस्तेमाल किशनजी करता था और एके-एम का सुचित्रा। मौके से एक बैग में 82 हजार रुपए नकद के अलावा 160 जीबी की एक हार्ड डिस्क, एक कंबल, पत्र, अहम कागजात, जंगलमहल का नक्शा और दर्दनिवारक दवाएं भी बरामद की गईं।

पश्चिम बंगाल / परिवर्तन के छह महीने

शंकर जालान





पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस की गठजोड़ सरकार ने बीतों दिनों (२० नवंबर २०११) छह महीने पूरे कर लिए। वाममोर्चा को सत्ता से बाहर हुए यानि राज्य में परिवर्तन के २४ महीने पूरे हो गए। कहना गलत न होगा कि इन २४ महीनों में ही लोगों का विश्वास नई सरकार से डगमगाने लगा। जानकारों ने मुताबिक से लोग वाममोर्चा से ३४ साल में उबे थे और बड़ी उम्मीद से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के हाथों में राज्य के बागडोर सौंपी थी, लेकिन ३४ साल बनाम ३४ हफ्ते तो क्या २४ हफ्ते में ही लोगों को दूध का दूध और पानी का पानी होता दिखने।
ममता के हठ और तुनकमिजाज से जगजाहिर है, लेकिन ऐसा लग रहा था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वे कुछ गंभीर होंगी और जिस तरह से राज्य में परिवर्तन यानी बदलाव आया है ठीक उसी तरह ममता अपनी कार्य प्रणाली में भी बदलाव लाएंगी। बीते छह महीनों के क्रिया-कलाप के मद्देनजर यह कहने में कोई छिछक नहीं होगी कि जिस उम्मीद व आशा से राज्य की जनता ने ममता को सिर-माथे पर बैठाया या यूं कहें कि राज्य के मुख्यमंत्री बनने का मौके दिया था, उन पर लगभग पानी फिर गया है।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि जनता का ममता से इतनी जल्दी मोह भंग होने के पीछ कई ऐसे कारण हैं, जिसे ममता नरज अंदाज कर रही है। मसलन सब कुछ खुद करने की उनकी मंशा, जहां-तहां औचक दौरा, कार्यक्रमों में भारी-भरकम आर्थिक पैकेजों का एलान, अन्य मंत्रियों के काम में दखलअंदाजी, माओवादियों व गोरखालैंड समस्या और तो और थाने में जाकर अपनी समर्थकों को जबरन छुड़ा लाना। ममता भले ही ऐसा कर फूली नहीं समां रही हो, लेकिन जनता को ये कारनामे लोगों को नागवार लग रहे हैं। दबी जुबान से लोग यह कहने लगे हैं कि काहे का परिवर्तन ? कैसा परिवर्तन ? किसका परिवर्तन ?
चुनाव के पहले लेखिका महाश्वेता देवी ममता बनर्जी का ईद-गिर्द दिखती थी और ममता की तारीफ करते नहीं थकती थी। लोगों को लगता था कि एक विद्धान लेखिका खुलकर किसी पार्टी के समर्थक में बोल रही थी, ममता की पार्टी को वोट देने की अपील कर रही है, तो लेखिका की तौर पर उनकी बात माननी चाहिए। मंच में महाश्वेता और ममता के बीच मां- बेटी से रिश्ता नजर आता था, अभी छह महीने भी नहीं बीते कि महाश्वेता ने न केवल ममता के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया, बल्कि उन्हें फांसीवाद की संज्ञा भी दे दी। हालांकि इसके एक दिन बाद ही महाश्वेता देवी एक बयान जारी कर कहा - उन्हें ममता सरकार पर पूरा भरोसा है। आम लोगों को भले ही इसमें कोई खास बात न नजग आती हो, लेकिन जानकारों के मुताबिक महाश्वेता देवी द्वारा ममता को फांसीवादी कहना तृणमूल के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं।
ममता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों में बुनियाद फर्क होता है। राजनीति से जुड़ा व्यक्ति अपने लाभ के लिए गलत का भी साथ दे सकता है, लेकिन अपवाद को छोड़ दे तो बुद्धिजीवी ऐसा नहीं करते। इस बाबत ममता बनर्जी को सांसद कबीर सुमन का ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी गौर करना चाहिए की उनके मंत्रिमंडल में तीन ऐसे मंत्री हें जो पूर्ण रूप से राजनेता नहीं है। राज्य के उच्चा शिक्षा मंत्री ब्रात्स बसु मूल रूप से नाटककार हैं और राजनीति से परे उनकी अलग समझ और पहचान। अमित मित्रा जो फिलहाल वित्त मंत्री की कुर्सी संभाले हुए हैं अर्थ शास्त्री हैं और फिक्की से सिचव रह चुके हैं। इसी तरह वाममोर्चा के शसन काल में राज्य के मुख्य सचिव रहे आईएएस अधिकारी मनीष गुप्त को ममता ने विकास व योजना विभाग की जिम्मेवारी सौंपी हैं। बसु, मित्र व गुप्त ऐसे लोग हैं, जो कभी भी ममता के खिलाफ मुखर हो सकते हैं। रही बात कांग्रेस के मंत्री व विधायकों की तो वे मौके की तलाश हैं। आग लगते ही वे उसमें घी डालने से पीछे नहीं हटेंगे।
ममता अपनी सहयोगी कांग्रेस से खासी नाराज हैं कि उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने राज्य को भारी आर्थिक तंगी से उबरने के लिए अब तक कोई खास सहायता नहीं दी है। ममता ने कहा कि केंद्र ने अब तक राज्य को एक पैसा भी नहीं दिया है। इससे पहले पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर उन्होंने केंद्र से नाता तोड़ने का भी एलान किया था। लेकिन बाद में अपना पांव पीछे खींचते हुए तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि अब अगर दोबारा कीमतें बढ़ीं तो वह सरकार से बाहर निकल जाएगी।
युवा कांग्रेस अध्यक्ष मौसम नूर और सांसद दीपा दासमुंशी की अगुवाई में निकले एक मौन जुलूस ने ममता को नाराज कर दिया है। कांग्रेस ने राज्य में अपने कार्यकर्ताओं पर बढ़ते हमले व पुलिस की चुप्पी के विरोध में यह जुलूस निकाला था। इससे नाराज ममता ने साफ कह दिया कि उनकी पार्टी यानी तृणमूल कांग्रेस राज्य में सरकार चलाने के लिए कांग्रेस पर निर्भर नहीं है। लेकिन कांग्रेस केंद्र में सरकार चलाने के लिए तृणमूल पर निर्भर है।
दूसरी ओर, कांग्रेस की नाराजगी की अपनी वजहें हैं। हाल में राज्य के कांग्रेस विधायकों व नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली जाकर राहुल गांधी व शकील अहमद से मुलाकात कर शिकायत की कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस के लोग पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य कहते हैं कि हम सरकार-विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हमारे लोगों पर हमले कर रहे हैं। हम महज इसी मुद्दे को सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि हम राज्य सरकार में साझीदार हैं और यह गठजोड़ जारी रहेगा। लेकिन हमने कहीं ऐसा कोई बांड नहीं भरा है कि कांग्रेस राज्य में अकेले कोई आंदोलन नहीं कर सकती।
लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि कांग्रेस के लोग ही राज्य के विभिन्न इलाकों में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे हैं। मालदा के गाजोल में कांग्रेसियों के हाथों पार्टी के एक सदस्य की हत्या का भी आरोप लगाया। ममता का आरोप है कि कांग्रेस अपनी गतिविधियों से माकपा के हाथ मजबूत कर रही है।
दूसरी बड़ी समस्या माओवाद की है। कहना गलत नहीं होगा कि ज्यों-ज्यों दिन व्यतीत होते जा रहे हैं, त्यों-त्यों मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और माओवादियों के बीच खटास बढ़ती जा रही है। दूसरे शब्दों में कहे तो अपनी-अपनी जिद के कारण अब ममता और माओवादी खुलकर आमने-सामने आ गए हैं। माओवादियों ने इकतरफा युद्धविराम का उल्लंघन कर और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हत्या कर राज्य सरकार को कड़े कदम उठाने पर बाध्य कर दिया है। इसी के मद्देनजर राज्य सरकार ने अब उनके खिलाफ अभियान तेज करने का संकेत दिया है। इसी कड़ी में राज्य सरकार ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मनोज वर्मा को माओवाद विरोधी बल (सीआईएफ) का एसपी बना दिया है। इसबीच, पुलिस ने पुरुलिया जिले में साझा सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए माओवादियों के बरामद किए और पश्चिम मेदिनीपुर जिले के लालगढ़ इलाके में बारूदी सुरंग बनाने में इस्तेमाल होने वाले विष्फोटक भारी मात्रा में जब्त किए।
ममता और माओवादियों के खींचतान के बाबत जानकारों का कहना है कि ममता का यह कहना कि सत्ता में आते ही छह सप्ताह के भीतर माओवादी समस्या का समाधान कर दिया जाएगी, छह सप्ताह तो दूर छह महीना बितने के बाद ममता अपने वायदे को पूरा नहीं कर पाई। इस मामले में ममता लगभग टांय-टांय फिस हो गई।