Saturday, February 25, 2012

घटक से दूरियां, विपक्ष से तनातनी

शंकर जालान


लोकप्रिय नेता होना अलग बात है और कुशल तरीके से शासन चलाना बिल्कुल अलग बात। इसमें कोई संदोह नहीं कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक लोकिप्रय नेता है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि वे सफल शासक भी हैं। राज्य में ममता बनर्जी के आठ महीने के शासनकाल को देखते हुए कम से कम यही कहा जा सकता है। राजनीति में विरोधी दलों से तनातनी चलना तो लाजिमी हैं, लेकिन घटक दलों से दूरियां का ममता ने जो रिकार्ड कायम किया है वह बंगाल की क्या देश की राजनीति में अद्वितीय उदाहरण है।
ममता के अब तक के राज में कई ऐसे मौके हैं, जब विपक्ष तो विपक्ष तृणमूल की सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी अजरच में पड़ गई। पर ममता है कि अपने आगे न किसी की सुनती है और न मानती हैं। ममता की यही नीति उसे कुशल शासक की उपाधि देने में बाधक सिद्ध हो रही है।
कहने को कहे या फिर फाइलों में राज्य में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार है। इसी गठबंधन ने राज्य से ३४ सालों से सत्तासीन वाममोर्चा का हार का स्वाद चखाया था। कालक्रम में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों के बीच पैदा हुई तल्खी से दोनों दलों के बीच दूरी काफी बढ़ गई है। ममता कांग्रेस के साथ कुछ इस तरह दूरी बना कर चल रही है कि उन्हें रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के नेता दिनेश त्रिवेदी का कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से मिलना तक नहीं पसंद नहीं आया। वहीं, कांग्रेस भी अब ममता बनर्जी के नखरे उठाने को कतई तैयार नहीं है। केंद्र में भले ही मजबूरन दोनों दल गठबंधन में हों और राज्य में कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल हो, लेकिन दोनों दलों के रिश्तों के बीच आई कटुता के चलते अब दोनों पार्टियां पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव अलग-अलग लडऩे का मन बना चुकी हैं।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि बात चाहे पश्चिम बंगाल की हो, या पेट्रोल की कीमतें बढऩे की हो या फिर खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा हो या फिर लोकयुक्त की नियुक्ति का मामला, इन सभी मामलों में ममता ने कांग्रेस को परेशान किया है। कोलकता स्थित इंदिरा भवन का नाम बदलने को लेकर भी कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच तनाव पैदा हुआ। कांग्रेस को अब यह तेजी से महसूस होने लगा है जहां-जहां कांग्रेस और सरकार की साख का सवाल पैदा हुआ ममता ने जानबूझ कर अपने तेवर कड़े किए। राहुल से दिनेश त्रिवेदी की मुलाकात को लेकर ममता बनर्जी की आपत्तियों पर भी कांग्रेस अनावश्यक मान रही है और पार्टी नेता मानते हैं कि इस मुलाकात को ममता को तूल नहीं देना चाहिए। नया बखेड़ा पश्चिम बंगाल के बजट को लेकर खड़ा हुआ है। बजट को लेकर राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा और कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा है कि राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा गलत बयानबाजी कर रहे हैं। मई से लेकर फरवरी तक में राज्य को अब तक २३ हजार करोड़ रूपए दिए जा चुके हैं। मित्रा कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने अब तक राज्य सरकार को कोई सहायता नहीं दी है। तृणमूल व कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियां, दोनों दलों के नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन अधिक दिनों तक चलने वाला नहीं है। कांग्रेस केवल पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार कर रही हैं, ज्यों ही विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होंगे, काग्रेस भी कम से कम एक बार तृणमूल को उसकी औकात और ताकत जरूर बताएंगी।
दूसरी ओर, विधानसभा सत्र नहीं चलने के दौरान विधानसभा परिसर में संवाददाता सम्मेलन पर रोक लगाने के निर्णय सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी बढ़ गई है। इस मुद्दे पर राज्य की राजनीति गरमाने लगी है। बीते दिनों को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा विधानसभा अध्यक्ष विमान बंद्योपाध्याय को पत्र लिखकर इसका विरोध किया। उन्होंने पत्र में उल्लेख किया है कि विधानसभा अध्यक्ष अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो इस मुद्दे पर आगामी दिनों तक राजनीतिक गहमागहमी के आसार हैं। विपक्ष ने इसे सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाकर आंदोलन पर उतरने के संकेत दिए हैं। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने कहा है कि विपक्ष के नेता का पत्र मिला है। जरूरत पड़ने पर सभी दलों के साथ इस मुद्दे पर बैठक करेंगे। विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी दलील पेश की है कि सत्र नहीं चलने के दौरान सिर्फ विपक्ष के नेता के संवाददाता सम्मेलन करने पर रोक नहीं लगायी गयी है। कुछ अहम कारणों से सभी दलों पर इस मामले में एक समान नियम लागू करने का निर्णय किया गया है। विधानसभा सत्र चलने के दौरान सभी राजनीतिक दलों के नेता मीडिया सेंटर में संवाददाता सम्मेलन करने को स्वतंत्र हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा है कि इस संबंध में बातचीत का विकल्प खुला हुआ है लेकिन वह सबके लिए एक समान नियम लागू करना चाहते हैं।
वहीं, राज्य के खेल मंत्री मदन मित्रा ने शुक्रवार से बातचीत करते हुए विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा कि विधानसभा में विपक्ष के नेता जब भी संवाददाता सम्मेलन करते हैं, उसमें राजनीतिक मुद्दा ही प्रभावी रहता है। विस से जुड़े विषय पर वे कम ही बोलते हैं। मित्रा ने कहा कि शुद्ध राजनीतिक बयान जारी करना है तो विपक्ष के नेता को पार्टी कार्यालय में बैठकर संवाददाता सम्मेलन करना चाहिए। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हलीम मित्रा के बयान से सहमत नहीं हैं। हलीम ने विधासभा स्थित मीडिया सेंटर में संवाददाता सम्मेलन पर रोक को अपराध की संज्ञा दी है। उन्होंने कहा कि विधानसभा राजनीतिक जगह है। सभी राजनीतिक दलों के नेता वहां निर्वाचित होकर पहुंचते हैं और राजनीतिक बहस में भाग लेते हैं। विधानसभा राजनीतिक बात कहने की ही जगह है, न कि गुल्ली-डंडा खेलने की।
कांग्रेस विधायक असित माल ने शुक्रवार से कहा कि विधानसभा के मीडिया सेंटर में संवाददाता सम्मेलन पर रोक लगाना उचित नहीं है। इस संबंध में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में चर्चा होगी और जरूरत पड़ने पर स्पीकर से बातचीत की जाएगी।
मालूम हो कि विधानसभा अध्यक्ष विमान बंद्योपाध्याय ने सत्र नहीं चलने के दौरान मीडिया सेंटर में किसी भी राजनीतिक दल के नेता के संवाददाता सम्मेलन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है और इस संबंध में सभी राजनीतिक पार्टियों के विधायक दल के नेता को सर्कुलर भेजा है।

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