Wednesday, June 5, 2013

पत्रकारिता और खुदगर्जी

शंकर जालान
यही सुन कर पत्रकारिता में आया था कि समाचार पत्र समाज का आईना होते हैं और पत्रकार कलम का सिपाही। सचमुच आज से 10-15 साल पहले तक यह सही भी था, लेकिन बीते कुछ सालों में जब से इलेक्ट्रिानिक मीडिया का चलन बढ़ा है, तब से पत्रकारिता की पूरी परिभाषा ही मानो बदल गई है। ऐसा नहीं है कि 15 साल पहले प्रबंधन या विज्ञापन विभाग से समाचार विभाग को कोई लेना-देना नहीं था। प्रबंधन, विज्ञापन और समाचार विभाग में गजब का तालमेल था और सभी विभाग अपनी-अपनी सीमा और मर्यादा को भली-भांति समझते थे, लेकिन इन सालों में संपादक कहने भर को रह गए हैं, सारा नियंत्रण प्रबंधन का है। यही कारण है कि संपादक न तो खुलकर अपने विचार प्रकट कर सकता है, न सटीक संपादकीय लिख सकता है और न ही अपने रिपोर्टर से खोजी व जोखिम भरी पत्रकारिता करने की सलाह या हुक्म दे सकता है। कुल मिलाकर इन दिनों बड़े घरानों के लिए अखबार निकालना, मंत्रालय व मंत्री स्तर पर अपनी पहुंच बनाने का जरिया बन गया है और पत्रकारों के लिए मात्र रोजी-रोटी का साधन। ऐसी विकट और दुखद स्थित में अब यह नहीं समझ में आ रहा है कि जान-जोखिम में डालकर खबर लाने वाले पत्रकारों में अब खुदगर्जी क्यों हावी होती जा रही है?
इनदिनों घट रही कुछ घटनाओं पर नजर दौड़ाने से पुख्ता तौर पर तो नहीं, हां मोटे तौर पर जरूर कुछ समझ पाया कि कभी समाज को सच्चाई से अवगत करने के उद्देश्य से खबर छापने वाले अखबार अब विज्ञापन पाने के लिहाज से खबर बनाते व प्रकाशित करते हैं। वहीं, समाचार एकत्रित करने के लिए पसीना बहाने वाला पत्रकार इन दिनों उपहार (गिफ्ट) हासिल करने में दिन-रात एक किए हुए है।
बाबा रामदेव और उनके समथर्कों को बर्बरतापूर्वक देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान से पुलिस द्वारा खदेड़ना। दूसरी घटना कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी को एक पत्रकार का जूता दिखाना और तीसरी घटना मायानगर मुंबई में सरेआम एक पत्रकार को गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतारना।
पहले-पहल बाबा रामदेव के सत्याग्रह पर गौर करते हैं। बाबा ने काले धन का मामला उठाकर जैसे गुनाह कर डाला। केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार बाबा रामदेव के पीछे हाथ धो कर पड़ गई, उनकी संपत्ति से लेकर उनके इतिहास को खंगालने में जुट गई। मजबूर बाबा को दिल्ली के बजाए हरिद्वार जाना पड़ा। अनशन के दौरान वहां उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया।
लेकिन अफसोस इस घटनाक्रम को जिस तरह से इलेक्ट्रिोनिक मीडिया ने दिखाया और प्रिंट मीडिया ने छापा उसने पत्रकारिता के पेशे पर सवालिया निशान लगा दिया, जिस बाबा को मीडिया ने ऊंचाई प्रदान की थी, टीआरपी के चक्कर में उसी मीडिया ने उन्हें नीचे गिरा दिया।
अब आते हैं कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्द्धन द्विवेदी की प्रेस कांफ्रेस में एक नामालूूम पत्रकार ने उन्हें जूता दिखा दिया, जिस पर उसकी जमकर पिटाई कर उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। अगले दिन एक टीवी चैनल ने दिखाया कि कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी उस पत्रकार को लात मारी और चैनलों को टीआरपी बढ़ाने का जुमला मिल गया।  दुखद यह है कि उस पत्रकार से यह पूछने की बजाए कि उसने ऐसा कदम क्यों उठाया, इससे उलट मीडिया ने खबर को मसालेदार बनाने की भरसक कोशिश की।
आइए, अब बात करते हैं मुंबई में मिड डे से जुड़े क्राइम रिपोर्टर और अंडरवर्ल्ड पर दो बेहतरीन किताबें लिखने वाले ज्योतिर्मय डे की। कुछ अज्ञात लोगों ने उन्हें गोलियों से भून डाला। हैरानी की बात ये है कि मायानगरी में पत्रकार खबर जुटाने की बजाए खुद खबर बन गया। बावजूद इसके किसी भी टीवी चैनल नें ज्योतिर्मय के परिवार के लोगों का इंटरव्यू नहीं लिया, सरकार पर तो दबाव डालना दूर की बात है। इन सभी घटनाओं को देख व महसूस कर यह बात साफ हो जाती है कि पत्रकारिता में आखिर खुदगर्जी कितनी हावी हो चुकी है, सही मायने में कहें तो पत्रकारों की संवेदना मर चुकी है। प्रिंट मीडिया जहां सबसे अधिक बिकने वाला अखबार बता कर पाठक की बजाए ग्राहक बनाने में जुटा है। वहीं इलेक्ट्रिोनिक मीडिया सबसे पहले आपको एक्सक्लूसिव बता कर खबरें दिखाने में, लेकिन उन्हें समझना चाहिए ये पब्लिक है सब जानती है।

Monday, June 3, 2013

धूएं में उड़ा धूम्रपान विरोधी दिवस

शंकर जालान
विश्व धूम्रपान विरोधी दिवस (31 मई) को महानगर और आसपास के इलाकों में ऐसे कई नजारे देखने को मिले, जिसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सिरगेरट-बीड़ी पीने के आदि लोग धूम्रपान विरोधी दिवस को नि:संकोच धुआं उड़ाते रहे। केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों की ओर से धूम्रपान के खिलाफ लोगों को आगाह करने के बावजूद लोग खुले आम धुआं उड़ाते देखे गए। शहर में धूम्रपान विरोधी दिवस के मद्देनजर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। कहीं संगोष्ठी, कहीं सभा तो कही रैली निकाली गई। इन कार्यक्रम में लोगों ने धूम्रपान को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताते हुए इसे जानलेवा कहा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से धूम्रपान के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाया गया। इस मौके पर कोलकाता के पुलिस आयुक्त आरके पचनंदा भी मौजूद थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में हर साल तंबाकू से 5.4 मिलियन लोगों की मौत होती है। वहीं, एएमआरआई अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक प्रसनजीत चटर्जी के मुताबिक धूम्रपान जानलेवा है। उन्होंने कहा कि 90 से 95 फीसद लोगों को सिगरेट की वजह कैंसर होता है। इस मौके पर डॉ. आशीष मुखर्जी ने कहा कि सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी प्रकाशित करने के बावजूद दिल्ली, मुंबई और चेन्नई के मुकाबले कोलकाता में सिगरेट पीने वालों की तादाद ज्यादा है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में हर साल कैंसर के 75 हजार नए मरीज सामने आ रहे हैं।एक सर्वेक्षण के मुताबिक तमाम तरह की चेतावनी और सिगरेट के पैकेट पर छपी गंभीर फोटो के बाद भी सिगरेट पीने वालों की तादाद में गिरावट नहीं आ रही है और यह चिंता का विषय है। व्यस्क युवकों के अलावा इनदिनों महिलाओं व किशोर में भी सिगरेट पीने का चलन बढ़ा है। इस एक मात्र कारण खुलेआम सिगरेट-बीडी की बिक्री माना जा रहा है। कानूनत: दुकानदार 18 वर्ष से कम के आयु के किशोर को सिगरेट-बीड़ी नहीं बेच सकते, लेकिन न तो दुकानदार इस कानून को मान रहे हैं और न ही किशोर सिगरेट-बीड़ी खरीदने व पीने से बाज आ रहे हैं।विशेषज्ञों के मुताबिक शहरों में युवाओं में धूम्रपान की आदत में लगातार इजाफा हो रहा है। अब लड़कियां भी इसमें पीछे नहीं। धूम्रपान का यह शौक कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का कारण भी बन रहा है। लगातार धूम्रपान करने वाली लड़कियों में गर्भावस्था में बच्चे में विकार पैदा होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। हुक्का पीना इन दिनों शहर के युवाओं का नया शगल बन गया है। चिकित्सकों के मुताबिक हुक्के के धुएं से सांस की बीमारी और दूसरी समस्या होना आम है। आधुनिक युग में रॉक म्यूजिक, रंग-बिरंगी रोशनी, गड़ाड़ाहट की आवाज के साथ उठता धुआं। ब्रेफिक बिंदास युवा पीढ़ी गम के साथ खुशियों को भी सिगरेट और हुक्के के धुएं में उड़ा रही है। अपने भविष्य से अनजान ये युवा हर कश के साथ अनचाही बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं। दुखद यह है कि सिगरेट के धुएं को लड़कों के साथ लड़कियां भी बिंदास अंदाज में उड़ा रही है। विशेषज्ञों ने बताया कि छोटी उम्र में धूम्रपान की आदत गर्भावस्था के समय परेशानी का कारण बनती है। मां बनने के समय बच्चे में इस धूम्रपान का बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बच्चे में कई विकार दिखते हैं।डॉक्टरों का कहना है कि धुआं किसी भी प्रकार से लिया जाए वह फेफड़ों के लिए नुकसानदायक होता है। इससे सांस की बीमारी, फेफड़े कमजोर होना, खांसी, दमा और इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा होता है। हुक्का में धुएं उड़ाने की आदत युवाओं को सिगरेट और दूसरे व्यसनों की ओर बढ़ाती है। सिगरेट और गुटखा से फेफड़ों का कैंसर और ओरल कैंसर होते हैं। धूम्रपान से हृदय गति और याददाश्त कमजोर होना जैसी समस्या भी हो रही है।