Friday, June 24, 2011

आजाद भारत में गुलाम पहनावा

क्लबों में ड्रेस कोड


लक्ष्मी पुत्र व सरस्वती पुत्र आमने-सामने


शंकर जालान


क्लबों में ड्रेस कोड को लेकर पिछले दिनों देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता शहर में काफी हंगामा व प्रदर्शन हुआ था। प्रसिद्ध चित्रकार शुभप्रसन्ना को क्लब के अनुरूप पोशाक नहीं पहने रहने के कारण प्रवेश से रोक दिया गया। इसके बाद शहर के बुद्धिजीवियों और संपन्न यानी लक्ष्मीपुत्रों और क्लब संस्कृति के प्रेमियों के एक बहस छिड़ गई। जहां, बुद्धिजीवी वर्ग के लोग ड्रेस कोड को आजाद भारत में गुलाम पहनावे बता रहे हैं। वहीं क्लब प्रेमियों के मुताबिक क्लबों में ड्रेस कोड होना गलत नहीं है। इसके पीछे उनका तर्क है कि क्लब आम लोगों के लिए नहीं, केवल सदस्यों के लिए होता है। इसीलिए अगर क्लब के सदस्यों को ड्रेस कोड से कोई परहेज नहीं है तो अन्य लोगों को भी नहीं होनी चाहिए।
ड्रेस कोड का मामला कोई नया नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि पहली बार विवादों में आया हो। मशहूर क्रिकेटर व भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सुनील गवास्कर को भी ड्रेस कोड के कारण लाड्स के घुसने से रोक दिया गया था। महानगर कोलकाता में दर्जनों ऐसे क्लब है, जिसके अपने-अपने नियम-कानून व ड्रेस कोड हैं।
दक्षिण कोलकाता के २४१, आचार्य जगदीश चंद्र बोस रोड स्थित द कलकत्ता क्लब लिमिटेड में बीते दिनों ड्रेस कोड की वजह से चित्रकार शुभप्रसन्ना को घुसने नहीं दिया गया। इससे पहले भी कई मशहूर हस्तियों को ड्रेस कोड बंधन के कारण क्लब में प्रवेश करने से वंचित किया गया था। इनमें हाल ही दिवंगत हुए मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन, पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी व सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार शामिल हैं। इसके अलावा मध्य कोलकाता के स्ट्रांड रोड स्थित कलकत्ता स्वीमिंग क्लब में भी युवा समाजजेवी संदीप भूतोड़िया को कुर्ता-पायजामा पहने रहने के कारण घुसने से रोक दिया गया था।
ध्यान रहे कि कलकत्ता क्लब का स्थापनी रंगभेद व जाति भेद के खिलाफ ब्रिटिश जमाने में की गई थी। इसके स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि ब्रिटिश काल में एक बार विशिष्ट भारतीय राजन मुखर्जी को कलकत्ता के एक और पुराने व प्रतिष्ठित क्लब बंगाल क्लब के डाइनिंग रूम में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। उन्हें रोके जाने का एक मात्र कारण यह था कि वे भारतीय थे। मुखर्जी तत्कालीन भारत के वायसराय लार्ड मिंटो के अतिथि थे। उन्हीं के बुलावे पर वे बंगाल क्लब पहुंचे थे। इस घटना से नाराज कुछ भारतीय व युरोपियन लोगों ने एक नए क्लब की स्थापना करने की योजना बनाई। इस तरह १९०७ में कलकत्ता क्लब की स्थापना की गई। इसकी स्थापना उस नीति के मद्देनजर की गई कि यहां सदस्यता के लिए रंगभेद या जाति भेद नहीं पाना जाएगा। कलकत्ता क्लब में भारतीय व यूरोपियनों को समान रूप से प्रवेश करने की इजाजत होगी। थ्रोटोन नामक आर्किटेक्ट द्वारा तैयार की गई डिजाइन वाले इस क्लब का औपचारिक उद्घघाटन ३ फरवरी १९१५ को बंगाल के तत्कालीन गवर्नर सर थॉमस कार्मिकेल ने किया था। उस वक्त ड्रेस कोड के तहत यह तय किया गया कि क्लब में पारंपरिक भारतीय परिधान पहनकर किसी भी व्यक्ति को प्रवेश करने पर पाबंदी होगी। क्लब में प्रवेश करने के लिए पश्चिमी पोशाक यानी शर्ट, पैंट व जूता पहनना अनिवार्य होगा।
मालूम हो कि २००७ में भी यह क्लब महिलाओं की सदस्यता पर पाबंदी को लेकर विवादों में आया था, लेकिन महिलाओं के विरोध के बाद पाबंदी हटा ली गई थी।
पिछले दिनों हुए झमेले व क्लब के ड्रेस कोड की व्याख्या करते हुए क्लब के सचिव कर्नल बी. मुखर्जी ने कहा कि क्लब में कुर्ता, दक्षिण भारतीय स्टाइल की धोती, बिना बटन की कमीज, चप्पल व सैंडल पहनकर प्रवेश की इजाजत नहीं है। उन्होंने गर्व के साथ कहा- हम केवल शर्ट, पतलून व जूते पहनकर आने वालों को ही प्रवेश देते हैं।
गौरतलब है कि १०४ साल पुराने महानगर के आभिजात्य कलकत्ता क्लब में धोती कुर्ते के कारण प्रवेश से वंचित विशिष्ट चित्रकार शुभप्रसन्ना ने क्लब के पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए और कहा कि वे लोग कौन हैं और किन परिवारों और बैक ग्राउंड से आए हैं, उन्हें पूरी जानकारी है लेकिन वे इस विवाद को जन्म नहीं देना चाहते लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि किसी आजाद मुल्क में गुलामी के समय के ड्रेस कोड को मानने की इतनी बड़ी प्रतिबद्धता क्लब पदाधिकारियों की ओर से दिखाई जा रही है। वरिष्ठ कलाकार शुभप्रसन्ना के अपमान से गुस्साए बुद्धिजीवियों ने कलकत्ता क्लब के सामने जुटे और गुलामी के दौर के ड्रेस कोड को रद्द करने की मांग की। प्रदर्शन करने वालों में विभास चक्रवर्ती, जय गोस्वामी, तरुण सान्याल, अर्पिता घोष प्रमुख थे। क्लब के समक्ष विरोध प्रदर्शित कर रहे बुद्धिजीवी प्रतुल मुखोपाध्याय ने कहा कि कलकत्ता क्लब या कोई क्लब हमारी संस्कृति से अपने आप को अलग कैसे कर सकता है। धोती कुर्ता जिसे बंगाली का पोशाक कहा जाता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका है। मुखोपाध्याय ने कहा कि आज के दौर में इस तरह की शर्ते हास्यास्पद जान पड़ती हैं और इन्हें जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। शुभप्रसन्ना को क्लब में प्रवेश करने की अनुमति न दिए जाने को विशिष्ट फिल्मकार गौतम घोष ने भी अनुचित कहा है। नाट्यकर्मी सांवली मित्र, वरिष्ठ लेखिका महाश्वेता देवी तथा फिल्म अभिनेत्री अपर्णा सेन ने भी सम्पूर्ण प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
ड्रेस कोड के सिलसिले में हिंदुस्तान क्लब के पूर्व अध्यक्ष सीताराम शर्मा के शब्दों पर ड्रेस कोड होना कोई गलत नहीं है। वे कहते हैं कि कोई भी क्लब सार्वजनिक या आम लोगों के लिए नहीं होता है। क्लब एक निजी संस्थान है और उसमें केवल सदस्यों को प्रवेश की अनुमति होती है। इसलिए अगर सदस्यों को ड्रेस कोड पर कोई आपत्ति नहीं है तो बाहरी लोगों को इस मामले में बोलने का कोई हक नहीं है। हर क्लब को अपने कायदे-कानून बनाने का हक है। क्या हिंदुस्तान क्लब में भी कोई ड्रेस कोड है? इसके जबाव में उन्होंने कहा कि नहीं। हां हाफ पैंट पहन कर स्वीमिंग पुल के पास जरूर जा सकते है, लेकिन डाइनिंग रूम में हाफ पैंट की इजाजत नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान क्लब की स्थापना १९४६ में हुई थी। उस वक्त कलकत्ता में जितने में क्लब थे सारे विदेशी थी और सभी में ड्रेस कोड था, इसीलिए हिंदुस्तान क्लब के ड्रेस कोड से अलग रखा गया।
वहीं, युवा समाजसेवी संदीप भूतोड़िया ड्रेस कोड को सिरे से गलत मानते हैं। उन कहना है कि स्वतंत्र भारत में इस तरह की गुलामी का बड़े पैमाने पर विरोध करना चाहिए। उन्होंने बताया कलकत्ता क्लब का जिक्र करते हुए कहा कि शुभप्रसन्ना के मामले में भले ही क्लब प्रबंधन बड़ी-बड़ी बात करे, लेकिन मैं खुद भुक्तभोगी हूं और इस बात का साक्षी भी की कलकत्ता क्लब समय-समय और अपनी इच्छा के मुताबिक नियमों में बदलाव करते रहता है। उन्होंने कहा कि बीते साल क्लब ने उन्हें किसी सम्मान समारोह में आंमत्रित किया था। उन्होंने क्लब प्रबंधन को साफ शब्दों में कह दिया था कि वे ज्यादातर कुर्ता-पायजामा पहनते हैं और समारोह के दिन भी कुर्ता-पायजामा पहनकर ही आएंगे, तो प्रबंधन ने उन्हें स्वीकृति दे दी। भूतोडि़या के मुताबिक क्लब के इस ढुलमुल रवैए को आप क्या कहेंगे। उन्होंने कहा कि यह कहते हुए शर्म आती है कि कलकत्ता स्वीमिंग क्लब के प्रवेश द्वार पर यह लिखा रहता था- कुत्ते व भारतीयों का प्रवेश वर्जित। इसी तरह टालीगंज क्लब में भी प्रवेश के लिए कुत्तों व आया (नौकरानी) की मनाही है। उन्होंने कहा भले की ड्रोस कोड वाले क्लबों की स्थापना आजादी के पहले हुई हो, लेकिन अब जब आजादी को ६४ साल हो गए हैं, तो इस तरह की पाबंदी का कोआ औचित्य नहीं है।
इस संदर्भ में कलकत्ता क्लब के अध्यक्ष डॉ. मनोज साहा ने टेलीफोन पर बात करते हुए कहा कि क्लब का कानून-कायदा सबसे ऊपर है। चाहे पीएम (प्रधानमंत्री) हो या सीएम (मुख्यमंत्री) अगर क्लब में प्रवेश करना है तो ड्रेस कोड मानना होगा। क्या आजाद भारत में गुलाम पहनावे यानी ड्रेस कोड का होना उचित है? इसका उत्तर देते हुए साहा ने कहा कि इसमें आजादी व गुलामी की कोई बात नहीं है।

Sunday, June 19, 2011

ममता जैसा कोई नहीं...

शंकर जालान




जब लड़ी तो कट्टर राजनैतिक दुशमनों की तरह मगर जब सौजन्यता पेश करने की बात आई तो उसमें भी मिसाल पेश कर दिया। संपन्नता के बावजूद सादगी में भरोसा, जरूरत पड़ी तो तीखे तेवर मगर गरीबों के लिए ममता की प्रतिरूप ममता बनर्जी सचमुच में बेनजीर हैं। अचानक काफिले से छिटककर रोड के किनारे किसी खोमचे वाले से हालचाल पूछने चली जाती हैं। यह भी भूल जाती हैं कि वह मुख्यमंत्री भी हैं। पुलिस को हिदायत देती रहती हैं कि उनके लिए ट्रैफिक रोककर आमआदमी की मुश्किलें न बढ़ाए। सिगनल लाल होने पर खुद भी आम आदमी की तरह सिगनल हरा होने का इंतजार करती रहती हैं। खुद को विशिष्ट की जगह आम लोगों की तरह बनाए रखने का यह जज्बा ही बताता है कि सचमुच ममता जैसा कोई नहीं।
लगभग दो सप्ताह यानी १४ दिनों के मुख्यमंत्री काल में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने १४ से अधिक ऐसे कार्यों को अंजाम दिया है, जो इससे पहले किसी राज्य के किसी मुख्यमंत्री ने नहीं दिया। मसलन हर रोज ममता कोई ऐसा काम कर रही है, जिससे उसे प्रचार तो मिल ही रहा है, जनता के बीच उसकी लोकिप्रयता भी बढ़ रही है।
राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि ममता ने जिस तन्मयता, एकाग्रता और सोच से ३४ सालों से सत्तासीन वाममोर्चा को राज्य सचिवालय (राइटर्स बिल्डिंग) से बेदखल किया ठीक उसी तरह अब वह (ममता) जनता और नेता के बीच की दूरी पाटने में जुटी हैं।
कुछ लोग ममता बनर्जी को नायक फिल्म के मुख्य कलाकार अनिल कपूर के रूप में देख रहे हैं। लोगों का कहना है कि अनिल कपूर ने एक दिन के लिए मुख्यमत्री का पदभार संभाला था और पूरी व्यवस्था को बदल कर रखी दी थी बेशक वह एक फिल्म के दृश्य था, लेकिन ममता बनर्जी जिस गंभीरता से काम ले रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि एक दिन, एक सप्ताह या एक महीने में तो नहीं, लेकिन एक साल में ममता पश्चिम बंगाल की पूरी व्यवस्था अवश्य बदल देगी।
बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद के शपथ लेते ही राजभवन से राइटर्स बिल्डिंग तक का सफर पैदल तय कर नई मिसाल पेश की। इससे पहले उन्होंने राजभवन शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने पहुंचे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, माकपा के राज्य सचिव विमान बोस समेत वाममोर्चा के नेताओं के समक्ष जाकर हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया।
इसके बाद बुलेड प्रूफ गाड़ी और हुटर लेने से मना करते हुए पुलिस महकमे को सकते में डाल दिया। और तो और कालीघाट स्थित अपने निवास से दफ्तर आने के क्रम में ममता बनर्जी ने एसएसकेएम अस्पताल, पुलिस बाडी गाइट लाइन, एमआर बांगूर अस्पताल और शंभूनाथ पंडित अस्पताल का दौरा कर वहां का जायजा लिया और यह भी जानने का प्रयास किया कि सरकारी अस्पतालों में किस तरह काम-काज हो रहा है। ध्यान रहे कि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी है। और वे हर हाल में राज्य के सरकारी अस्पतालों के कायाकल्प के प्रति कृतिसंकल्प दिख रही है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि राज्य की खस्ता हाल स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने निजी कोष से राज्य के मुख्य सचिव समर घोष को एक करोड़ रुपए के चेक सौंप कर अपने त्याग की भावना का परिचय दिया। यहीं नहीं अपने कक्ष की साज-सज्जा पर खर्च हुए करीब दो लाख रुपए का भार में उन्होंने अपने कंधे पर लिया।
ममता के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने सचिवालय में अपने दफ्तर में अपनी इच्छानुसार बदलाव करवाए हैं। इसमें लगभग 2 लाख रूपए का खर्च आया है। सचिवालय सूत्रों के अनुसार ममता ने हाल में ही में बेची गई उनकी पेंटिंग से यह राशि अर्जित की थी।
लोगों की बीच यह चर्चा है कि ममता की ईंमानदारी और सादगी पर तो उन्हें कभी शक था ही नहीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले तक इतनी उग्र लगने वाली ममता चुनावी नतीजे आने के बाद एकाएक इतनी संतुलित कैसे हो गए।
इसके अतिरिक्त माओवादी समस्या, दार्जिलिंग समस्या के सटीक समाधान की दिशा में ममता अग्रसर हो रही है। एक ओर जहां हुगली जिले के सिंगूर के किसानों को ४०० एकड़ जमीन वापस कर उनके दिलों में और जगह बना रहा है। वहीं टाटा मोटर्स के प्रमुख रतन टाटा को शेष ६०० एकड़ जमीन पर कारखाना लगाने का न्यौता देकर औद्योगिक विकास की गति भी जारी रखना चाहती है।

चीफ मिनिस्टर के च्वायंस का चेंबर

शंकर जालान




पश्चिम बंगाल की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय ( राइटर्स भवन ) में अपने च्वायंस का चेंबर यानी खुद की पसंद का कक्ष बनवाया है। इस पर आई लागत का खर्च उन्होंने खुद वहन किया है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की बाद ममता के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग के के 25 से 30 मस्त्रियों ने लगातार आठ दिनों तक रात-दिन एक कर इसे सजाया है। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य के समय की हर चीज को हटाकर ममता बनर्जी के पसंद के सामानों से सजाया गया है। मुख्यमंत्री के कार्यालय को उनके पसंद के अनुसार ही आफ व्हाइट रंग दिया
गया है, जो पहले लाइट पीले रंग का था। साथ बुद्धदेव भंट्टाचार्य के समय की कीमती लकड़ी के टेबुल को हटाकर वहां अधगोल बड़ा टेबुल लगाया गया है, जिसपर सफेद रंग चढ़ा है। इसके साथ ही दस चाकलेट रंग के पालिश की हुई
लकड़ी की कुर्सी भी रखी गईं है। फ्लोर से लाल कारपेट हटाकर प्लाइवुड लगाया गया है। पुराने फर्नीचर को हटाकर मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार नए लगाए गए हैं। पुराने ट्यूबलाइट को भी बदलकर फ्लूरोसेंट लैंप लगाए गए हैं।
वहीं मुख्यमंत्री ने अपने टेबुल पर एक बड़ा लैंप लगाने को भी कहा है। साथ ही दीवारों को मनीषियों के तस्वीरों से सजाया जाएगा, जिसे ममता बनर्जी आने वाले दिनों अपने घर से लाएंगी। इनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चित्तरंजन दास, विधानचंद्र राय, महात्मा गांधी, कवि नजरुल, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे मनीषियों की तस्वीर शामिल हैं। इसके अलावा हरे रंग व हरियाली को भी यहां तरजीह दी गई है। इसके लिए मनीप्लांट के साथ विभिन्न बोनसाई, छोटे-छोटे फूलों के पौधें भी रखे गए हैं। मालूम हो कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ममता बनर्जी सीएम के
एंटी चेंबर में बैठकर कार्य कर रही थीं।

बंगाल की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल, केंद्र रखेगा ख्याल

शंकर जालान



यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में गठित नई सरकार को आर्थिक संकट विरासत में मिला है। चुनाव से पहले ही आर्थिक संकट की बात सामने आ गई थी, लेकिन तत्कालीन वित्तमंत्री असीम दासगुप्ता इसे आर्थिक समस्या बताते रहे और यथा समय इसके दूर होने की बात दोहराते रहे। सत्ता संभालते ही ममता को दो लाख करोड़ रुपये के ऋण का बोझ व सरकारी खजाना खाली होने का अहसास हुआ। पहले उन्होंने राज्य की जर्जर आर्थिक स्थिति से केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को अवगत कराया। राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा को भी उन्होंने समस्या का समाधान खोजने का निर्देश दिया। बाद में कोलकाता में श्री मुखर्जी के साथ राज्य की आर्थिक समस्या पर ममता की बैठक हुई, जिसमें राज्य के वित्त मंत्री भी शामिल हुए। मुखर्जी ने मुख्यमंत्री को केंद्र से हर तरह से आर्थिक सहयोग करने का आश्वासन दिया। केंद्र से पश्चिम बंगाल को ऋण से लेकर आर्थिक अनुदान तक की मदद मिलेगी। श्री मित्रा ने इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार लघु बचत योजना के तहत केंद्र से 500 करोड़ रुपये का ऋण लेगी। जरूरत पड़ने पर नियमानुसार बाजार से भी धनराशि जुटाई जाएगी। उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार पर केंद्र का अनुदान ठुकरा देने का आरोप लगाया। सूत्रों के मुताबिक पूर्ववर्ती सरकार ने 3 सिंतबर 2010 को केंद्र से 2 हजार 985 करोड़ की आर्थिक मदद मांगी थी। बाद में मदद की राशि में कटौती कर 2 हजार 385 करोड़ मांगा गया लेकिन 4 दिसंबर 2010 को सरकार ने केंद्र को स्पष्ट रूप से कह दिया था कि उसे मदद की जरूरत नहीं है। पूर्व वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने श्री मित्रा के इस तर्क के जवाब में कहा कि सितंबर और नवंबर 2010 में उन्होंने केंद्र से जो आर्थिक मदद मांगी थी, वह अगले वर्ष 2011 में खर्च के लिए था लेकिन चुनाव के कारण वोट आन अकाउंट को ध्यान में रखकर उन्होंने आर्थिक मदद लेने से इनकार किया। श्री दासगुप्ता ने कहा कि 1992 से पश्चिम बंगाल को कोयले की रायल्टी से वंचित किया जा रहा है। कोयले की रायल्टी के बाबत केंद्र पर सरकार का 5 हजार करोड़ रुपया बकाया है। राज्य में लघु बचत योजना के तहत जो करोड़ों की राशि जमा होती है, उसपर राज्य को सहज ऋण उपलब्ध होता है। पूर्ववर्ती सरकार केंद्र पर इस योजना के तहत ऋण माफ करने के लिए दबाव डाल रही थी। ममता के मुख्यमंत्री बनने के बाद आर्थिक समस्या दूर करने पर जो तस्वीर उभर कर सामने आयी है, उसमें केंद्र राज्य को हर तरह से आर्थिक सहयोग करेगा। चाहे वह ऋण के रूप में हो या अनुदान के रूप में, ममता वह ग्रहण करेंगी। पूर्व वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने ममता सरकार के प्रति केंद्रीय वित्त मंत्री के सकारात्मक रूख को देखते हुए कहा है कि वाममोर्चा सरकार बहुत पहले से केंद्र से मदद मांग रही थी लेकिन उसे नहीं मिली।
वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य को औद्योगिक विकास की पटरी पर वापस लाने के लिए निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिशें शुरू कर दी है। सिंगुर से टाटा मोटर्स के हटने के बाद माकपा ने ममता को उद्योग विरोधी के रूप में प्रचारित किया था। यह और बात है कि इसका विधानसभा चुनाव में उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। सिंगुर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन से ममता को जनता का विपुल समर्थन मिला और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव पूर्ण बहुमत से जीत गईं।
माकपा ने ममता को जिस तरह उद्योग विरोधी बताया था, उसका मलाल आज भी सुश्री बनर्जी को है। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा है कि मुख्यमंत्री यह संदेश देना चाहती हैं कि वह उद्योग विरोधी नहीं है। राज्य के औद्योगिक विकास को लेकर वे गंभीर हैं और राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए उद्योगपतियों व पूंजीपतियों का विश्वास जीतना चाहती हैं। राइटर्स सूत्रों के मुताबिक सुश्री बनर्जी ने वित्त मंत्री अमित मित्रा और उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी को देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों से संपर्क करने को कहा है। दोनों रतन टाटा से लेकर मुकेश व अनिल अंबानी तक से संपर्क साध रहे हैं। जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह उद्योगपतियों का सम्मेलन बुलाने की भी योजना है जिसमें देश के प्रमुख उद्योगपतियों को आमंत्रित किया जाएगा। सुश्री बनर्जी सम्मेलन में उद्योगपतियों को बंगाल में निवेश का न्योता देंगी।
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद सुश्री बनर्जी ने सिंगुर में अनिच्छुक किसानों को भूमि लौटाने की घोषणा की थी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शेष 600 एकड़ भूमि में टाटा मोटर्स यदि कारखाना लगाना चाहे है तो इसका स्वागत किया जाएगा। सुश्री बनर्जी ने टाटा के साथ टकराव में नहीं जाने का संकेत दिया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद टाटा ने उन्हें जो बधाई संदेश भेजा था उसका सुश्री बनर्जी ने औपचारिक रूप से जवाब दिया है।

गोरखालैंड : कहना मुश्किल कौन जीता, कौन हारा ?

शंकर जालान



उत्तर बंगाल के पर्वतीय इलाके में गोरखालैंड की मांग करते गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमोमो) के हजारों कार्यकर्ता और इसी बीच अचानक प्रत्याशी के आते ही जय गोरखालैंड की गूंज होने लगती। गजब का उत्साह और उल्लास पर्वतीय इलाके में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले। कुछ भी कर गुजरने को आमादा गोजमुमो कार्यकर्ताओं को देखकर लग रहा था कि यह चुनाव किसी के लिए महत्वपूर्ण हो चाहे नहीं, लेकिन गोरखालैंड प्रेमियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण रहेगा। नारे गूंजते थे और पीले टीके लगाकर, ढोलक बजाती महिलाओं के नाचने-गाने का सिलसिला चलता रहता था। यह उत्साह किसी और चीज के लिए नहीं बल्कि गोरखालैंड के लिए था। वर्षो पुराने सपने को लोग सच होते देख रहे थे। तय था कि पर्वतीय इलाके में गोजमुमो ही रहेगा और हुआ भी यही। भारी मतों या यह कहें कि जनता ने उम्मीदवारों को एकतरफा वोट दिया। चुनावी नतीजे आने और राज्य में तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस की गठजोड़ वाली सरकार बनने के बाद राज्य सचिवालय में इस मुद्दे पर हुई वार्ता कई मसले पर अच्छी और कई पर अनिर्णायक रही। गोजमुमो के पदाधिकारियों व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच हुई बातचीत में यह किसी को भी समझ में नहीं आया कि कौन जीता और कौन हारा। अलबत्ता गोजमुमो के महासचिव के सामने की संयुक्त प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री ने कह दिया कि गोरखालैंड की समस्या का समाधान हो गया है। मजे की बात यह रही किन गोजमुमो महासचिव रोशन गिरि ने चुप्पी साधे रखी। इधर, पर्वतीय इलाके में भी सरगर्मी शुरू हो गई और गोजमुमो के नेताओं पर स्थानीय दलों के नेताओं ने कई गंभीर आरोप भी लगाए।
धयान रहे कि अलग राज्य गोरखालैंड के गठन के लिए मांग नई नहीं है। आजादी के पूर्व 1907 में मैन एसोसिएशन ने इसकी मांग उठाई थी, लेकिन उस समय गोरखाओं की आबादी यहां हजारों में ही थी। इसके बाद फिर वर्ष 1980 में प्रांत परिषद का गठन हुआ और इस दल ने यहां आंदोलन किया, लेकिन इसे लोगों का समर्थन नहीं मिल पाया। इसी वर्ष गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रमुख सुभाष घीसिंग ने अस्त्रधारी आंदोलन किया और इस दौरान वृहद आंदोलन हुआ। इससे लोगों के जुड़ने का सिलसिला चला और इसे भारी जनसमर्थन मिला। इस बीच भारी हिंसा भी हुई थी और इसमें सैकड़ों जानें गई थी और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। उस समय सुभाष घीसिंग को हिल्स टाईगर की संज्ञा दी गई थी। इसी बीच 23 अगस्त 1988 को गोरामुमो, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के साथ त्रिपक्षीय वार्ता हुई। इस दौरान दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद का गठन हुआ। परिणाम हुआ कि गोरखालैंड के नाम पर आंदोलन कर रहे लोगों को निराशा हाथ लगी। लंबे समय तक हिल्स पर राज करने के बाद वर्ष 2005 में सरकार और गोरामुमो के बीच फिर वार्ता हुई। इस दौरान हिल्स में छठी अनुसूची लागू कराने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया गया, लेकिन संसद के दोनों सदन में यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। इसी दौरान जनता घीसिंग के खिलाफ खड़ी होने लगी और सात अक्टूबर 2007 को गोजमुमो का गठन हुआ। गोजमुमो सुप्रीमो विमल गुरुंग का दायरा बढ़ता गया और उनके बढ़ते जनाधार व अपने विपरीत माहौल देखकर घीसिंग को पहाड़ छोड़ना पड़ा। इसके बाद गोरखालैंड की बात ही होती रही। ऐसे में इस दल के उम्मीदवारों ने पूर्व में यह भी घोषणा की थी कि वह गोरखालैंड का मुद्दा विधानसभा में उठाएंगे। इस मसले पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा और भी कई बातें कही गई थी। हालांकि अब भी गोजमुमो कह रहा है कि वह अपने मुद्दे पर कायम है।

संप्रग यानि अली बाबा और चालीस चोरों की सरकार - नकवी

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अली बाबा और चालीस चोरों की सरकार है। संप्रग सरकार की दूसरी पारी में जितने घोटाले हुए हैं उतने स्वतंत्र भारत में अब तक नहीं हुए होंगे। बावजूद इसके सरकार इस पर अंकुश लगाने के कालेधन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाले योग गुरू बाबा रामदेव पर असभ्य टिप्पणी कर रही है। कांग्रेस के एक नेता बाबा रामदेव को ठग की अपमा दे रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान मौन हैं। बीते महीने पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की शर्मनाक हार, कालेधन-भ्रष्टाचार-घोटाले पर पार्टी की रणनीति और उमा भारती की घर वापसी के मुद्दे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता व पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और सांसद मुख्तार अब्बास नकवी से कोलकाता में शंकर जालान ने बातचीत की। पेश है बातचीत के चुनिंदा अंश-

० काले धन व भ्रष्टाचार के मसले में क्या भाजपा योग गुरू बाबा रामदेव और सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे के साथ है?
--हमारी पार्टी किसी बाबा और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ नहीं हैं। हां, इन लोगों द्वारा उठाए गए मुद्दों के साथ भाजपा अवश्य हैं। आप को ध्यान हो इन मुद्दों पर आंदोलन की शुरुआत करने वाली भाजपा ही है। रामदेव व हजारे तो अभी यानी कुछ सप्ताह पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन व सत्याग्रह शुरू किया है।

० आप के शब्दों में भाजपा के उठाए गए मुद्दों को रामदेव व हजारे हवा दे रहे हैं?
--मैंने ऐसा नहीं कहा। मेरे कहने का मतलब है कि काले धन व भ्रष्टाचार के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम सबसे पहले भाजपा ने किया है। यह और बात है कि उस वक्त हमें इतना समर्थन नहीं मिला।

० तो क्या रामदेव व हजारे के सहारे भाजपा फिर खड़ी होना चाहती है?
--भाजपा बैठी ही कब थी, कि उसे खड़ी होने की जरूरत पड़े। भाजपा लगातार जनता हित, समाज हित और देश हित में काम करती आ रही है और करती रहेगी।

० बीते महीनें हुए पांच राज्यों के चुनाव परिणाम तो यहीं बताते हैं कि पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडू, केरल व पांडूचेरी में भाजपा लगभग सोई हुई नजर आई?
--इन पांच राज्यों में ही भारत सिमटा हुआ नहीं है। गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ और बिहार में न केवल हमारी सरकार है, बल्कि बेहतर काम भी कर रही है।

० आपको नहीं लगता कि रामदेव का सत्याग्रह और अण्णा हजारे का अनशन अब राजनीति रंग लेता जा रहा है?
--भले ही बाबा रामदेव व अण्णा हजारे सक्रिय राजनीति से न जुड़े हो, लेकिन इन लोगों ने जो मुद्दा उठाया है उसका समाधान तभी संभव है राजनीति स्तर से ही संभव है। इसलिए यह कहना शायद गलत होगा कि मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया है। इसके बदले अगर यह कहे कि मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, तो ज्यादा ठीक होगा।

०कौन मुद्दों के राजनीतिक रंग दे रहा है?
--बेशक कांग्रेस और उसके नेता।

०सुना तो यह जा रहा है कि बाबा रामदेव व अण्णा हजारे भाजपा के एजंट के रूप में काम कर रहे हैं? इस पर आप की क्या प्रतिक्रिया है?
--मेरे कानों तब अभी ऐसी कोई बात नहीं आई है। वैसे तो कांग्रेस की आदत ही है कि जो काले धन की बात करे वह भाजपा का आदमी है, जो भ्रष्टाचार की बात करे वह आरएसएस का।

०कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्गविजय सिंह ने भाजपा को नाचने वालों की पार्टी करार दिया है। इस पर आप का क्या कहना है?
--जो कहेगी, देश की जनता कहेगी। देश की जनता जानती है कि किस पार्टी में कितने सभ्य और सुलझे हुए विचारों के नेता हैं।

० काले धन, भ्रष्टाचार व घोटाले पर संप्रग सरकार से क्या आशाएं रखते हैं?
-- कुछ नहीं, संप्रग सरकार सही मायने में अली बाबा चालीस चोरों की सरकार है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व संप्रग की चेयरमैन सोनिया गांधी को सबसे पहले देशवासियों को यह बताना चाहिए कि चार जून की रात ऐसा क्या हुआ कि रामलीला मैदान पर सत्याग्रह पर बैठे लोगों को पुलिस ने बेहरमी से खदेड़ दिया। केंद्र सरकार की इस कार्रवाई ने लोगों को यह बता दिया कि संप्रग सरकार में कोई भरोसे लायक नहीं है।

०क्या तृणमूल कांग्रेस प्रमुख व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी नहीं?
-बेशक ममता बनर्जी की छवि एक ईमानदारी नेता के रूप में है, लेकिन काले धन, भ्रष्टाचार व घोटालों पर उनकी चुप्पी उनकी छवि पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।

०केंद्र सरकार अब बाबा की संपत्ति को लेकर उसे घेरने के मूड पर, इस बार आप की क्या राय है?
-सरकार जांच किसी पर भी करवा सकती है। चाहे वह बाबा हो या फिर हजारे। मैं आप को बता दूं भाजपा न तो रामदेव को जयप्रकाश नारायण मानते हैं और न ही अण्णा को महात्मा गांधी।

०उमा भारती की घर वापसी यानी भाजपा में लौटने को आप क्या मानते हैं?
-निश्चित तौर पर इससे पार्टी मजबूत होगी।

Sunday, June 5, 2011

धूएं में उड़ता रहा विश्व धूम्रपान विरोधी दिवस

शंकर जालान


कोलकाता, विश्व धूम्रपान विरोधी दिवस यानी मंगलवार (31 मई) को महानगर और आसपास के इलाकों में ऐसे कई नजारे देखने को मिले, जिसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सिरगेरट-बीड़ी पीने के आदि लोग धूम्रपान विरोधी दिवस को नि:संकोच धुआं उड़ाते रहे। केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों की ओर से धूम्रपान के खिलाफ लोगों को आगाह करने के बावजूद आज कई लोग खुले आम धुआं उड़ाते देखे गए।मंगलवार को शहर में कई स्थानों पर धूम्रपान विरोधी दिवस के मद्देनजर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। कहीं संगोष्ठी, कहीं सभा तो कही रैली निकाली गई। इन कार्यक्रम में लोगों ने धूम्रपान को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताते हुए इसे जानलेवा कहा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से धूम्रपान के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाया गया। इस मौके पर कोलकाता के पुलिस आयुक्त आरके पचनंदा भी मौजूद थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में हर साल तंबाकू से 5.4 मिलियन लोगों की मौत होती है। वहीं, एएमआरआई अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक प्रसनजीत चटर्जी के मुताबिक धूम्रपान जानलेवा है। उन्होंने कहा कि 90 से 95 फीसद लोगों को सिगरेट की वजह कैंसर होता है। इस मौके पर डॉ. आशीष मुखर्जी ने कहा कि सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी प्रकाशित करने के बावजूद दिल्ली, मुंबई और चेन्नई के मुकाबले कोलकाता में सिगरेट पीने वालों की तादाद ज्यादा है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में हर साल कैंसर के 75 हजार नए मरीज सामने आ रहे हैं।एक सर्वेक्षण के मुताबिक तमाम तरह की चेतावनी और सिगरेट के पैकेट पर छपी गंभीर फोटो के बाद भी सिगरेट पीने वालों की तादाद में गिरावट नहीं आ रही है और यह चिंता का विषय है। व्यस्क युवकों के अलावा इनदिनों महिलाओं व किशोर में भी सिगरेट पीने का चलन बढ़ा है। इस एक मात्र कारण खुलेआम सिगरेट-बीडी की बिक्री माना जा रहा है। कानूनत: दुकानदार 18 वर्ष से कम के आयु के किशोर को सिगरेट-बीड़ी नहीं बेच सकते, लेकिन न तो दुकानदार इस कानून को मान रहे हैं और न ही किशोर सिगरेट-बीड़ी खरीदने व पीने से बाज आ रहे हैं।विशेषज्ञों के मुताबिक शहरों में युवाओं में धूम्रपान की आदत में लगातार इजाफा हो रहा है। अब लड़कियां भी इसमें पीछे नहीं। धूम्रपान का यह शौक कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का कारण भी बन रहा है। लगातार धूम्रपान करने वाली लड़कियों में गर्भावस्था में बच्चे में विकार पैदा होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। हुक्का पीना इन दिनों शहर के युवाओं का नया शगल बन गया है। चिकित्सकों के मुताबिक हुक्के के धुएं से सांस की बीमारी और दूसरी समस्या होना आम है। आधुनिक युग में रॉक म्यूजिक, रंग-बिरंगी रोशनी, गड़ाड़ाहट की आवाज के साथ उठता धुआं। ब्रेफिक बिंदास युवा पीढ़ी गम के साथ खुशियों को भी सिगरेट और हुक्के के धुएं में उड़ा रही है। अपने भविष्य से अनजान ये युवा हर कश के साथ अनचाही बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं। दुखद यह है कि सिगरेट के धुएं को लड़कों के साथ लड़कियां भी बिंदास अंदाज में उड़ा रही है। विशेषज्ञों ने बताया कि छोटी उम्र में धूम्रपान की आदत गर्भावस्था के समय परेशानी का कारण बनती है। मां बनने के समय बच्चे में इस धूम्रपान का बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बच्चे में कई विकार दिखते हैं।डॉक्टरों का कहना है कि धुआं किसी भी प्रकार से लिया जाए वह फेफड़ों के लिए नुकसानदायक होता है। इससे सांस की बीमारी, फेफड़े कमजोर होना, खांसी, दमा और इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा होता है। हुक्का में धुएं उड़ाने की आदत युवाओं को सिगरेट और दूसरे व्यसनों की ओर बढ़ाती है। सिगरेट और गुटखा से फेफड़ों का कैंसर और ओरल कैंसर होते हैं। धूम्रपान से हृदय गति और याददाश्त कमजोर होना जैसी समस्या भी हो रही है।

फ्लाईओवर के कारण बंग होने की कगार पर हैं कई पेट्रोल पंप

महानगर कोलकाता

शंकर जालान


कोलकाता। महानगर कोलकाता के निवासियों को जाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए और वाहन का चक्का हर चौराहे पर न रूके व उसमें बैठे मुसाफिर सही समय पर अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच सके इसके लिए इन दिनों उत्तर से दक्षिण कोलकाता के बीच कई मुख्य रास्तों पर फ्लाई ओवर (उड़ान पुल) का निर्माण कार्य युद्धस्तर पर जारी है। आम लोगों के लिए भले ही यह अच्छी खार हो, लेकिन इन मार्गों पर पड़ने वाले कई पेट्रोल पंपों में बिक्री के लिहाज से यह बुरी खबर है। इस वजह से कुछ पेट्रोल पंप बंद होने के कगार पर है। इन पेट्रोल पंपों के मालिकों का कहना है कि बेशक फ्लाई ओवर बनने से आम लोगों को राहत मिलेगी और शहर की सड़कों की जाम की समस्या भी कम होगी, लेकिन इससे साथ-साथ उनके पेट्रोल पंप की बिक्री भी प्रभावित होगी।आचार्य जगदीशचंद्र बोस रोड पर स्थित एचपी कंपनी के एक पेट्रोल पंप के प्रांधक ने कहा कि जा से रेस कोर्स और पार्क सर्कस को जोड़ने वाला फ्लाई ओवर चालू हुआ है, तब से उनके पेट्रोल पंप की बिक्री लगभग आधी हो गई है। इसमें भी ज्यादा प्रभावित पेट्रोल की बिक्री हुई है। इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि फ्लाई ओवर बनने के बाद अधिकर छोटे वाहन (टैक्सी, निजी गाड़ी, स्कूटर और मोटरसाइकिल) जो पेट्रोल से चलते है वे यह रास्ता तय करने के लिए प्राथमिक तौर पर फ्लाई ओवर का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए अगर उन्हें ईधन की जरूरत होती है तो या तो वे फ्लाई ओवर पर चढ़ने से पहले पेट्रोल खरीद लेते हैं या फिर उड़ान पुल से उतरने के बाद खरीदते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ बस और मिनी बस आदि जो इस रूट पर चलती हैं उन्हीं के चालक हमारे पंप से डीजल खरीदते हैं। इनमें भी ज्यादातर बस वाले एक निर्धारित पंप से ही डीजल खरीदना पसंद करते हैं। कुछ चालक हैं जो नियमित रूप से हमारे पंप से डीजल खरीदते हैं, लेकिन उन्हें अपना ग्राहक बनाए रखने के लिए हमें उधार की सुविधा देनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि हमें कंपनी को अग्रिम चेक या ड्राफ्ट देकर डीजल और पेट्रोल खरीदना और बस चालकों को सात से दस दिन की उधारी पर बेचना पड़ता है। उन्होंने कहा कि फ्लाई ओवर बनने से पहले यह नौबत नहीं थी। डीजल के साथ-साथ अच्छी-खासी मात्रा में पेट्रोल बिकता था और वह भी उधार नहीं नगद, लेकिन आ पेट्रोल खरीदने वाले ग्राहकों का तो घंटों इंतजार करना पड़ता है।इसी तरह दक्षिण कोलकाता के डायमंड हार्बर रोड स्थित तारातला चौराहे पर जाम की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए बने फ्लाई ओवर ने इस समस्या से यात्रियों को निजात तो अवश्य दिला दी, लेकिन तारातला के विपरीत स्थित आईओ कंपनी के पेट्रोल पंप को बंद होने के कगार पर ला दिया। पंप पर काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि फ्लाई ओवर निर्माण के पहले उसे ग्राहकों को डीजल व पेट्रोल देने की फुर्सत नहीं मिलती थी। दिन भर नोजल (डीजल-पेट्रोल डिलीवरी का यंत्र) हाथों में रहता था और पंप पर वाहनों की कतार लगी रहती थी, लेकिन आ तो ऐसा ख्याल मन में लाना स्वपन देखने के बराबर लगता है। पहले जहां दिनभर में एक टैंकर (दस हजार लीटर) डीजल-पेट्रोल आराम से बिक जाया करता था, लेकिन आ तो इतनी मात्रा में डीजल-पेट्रोल की खपत एक सप्ताह में भी नहीं हो पाती है।वहीं, मध्य कोलकाता में गिरीश पार्क और पोस्ता बाजार के बीच बन रहे फ्लाई ओवर ने विवेकानंद रोड स्थित बीपी कंपनी के पेट्रोल पंप के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। पंप के खंजाची का कहना है कि ज्यों-ज्यों फ्लाई ओवर निर्माण के काम में तेजी आ रही है, त्यों-त्यों उनके पंप की बिक्री कम होती जा रही है। उन्होंने बताया कि विवेकानंद रोड वन वे यानी एक तरफा रास्ता है इस रास्ते पर केवल पोस्ता बाजार से आने वाले वाहन ही चलते हैं और फ्लाई ओवर निर्माण के कारण जहां-तहां रास्तों की खुदाई कर दी गई है, जिस वजह से अपने वाहनों के लिए डीजल-पेट्रोल लेने की इच्छुक चालक उनके पंप तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जा अभी से यह हाल है तो फ्लाई ओवर बनने और चालू होने के बाद तो मानों ग्राहकों के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठा रहना पड़ेगा।

वृक्ष धरा का हैं श्रंगार, इनसे करो सदा तुम प्यार

विश्व पर्यावरण दिवस आज

शंकर जालान


रविवार को विश्व पर्यावरण दिवस है, ऐसा दिवस जो दुनिया वालोंं को याद दिलाए कि उन्हें इस धरती के पर्यावरण को सुरक्षित रखना है। उसे अधिक बिगड़ने से रोकना है, उसे इस रूप में बनाए रखना है कि आने वाली पीढ़ियां उसमें जी सकें । अगर लोग पर्यावरण के विषय पर सजक नहीं हुए तो यह दिवस अपने उद्देश्य में शायद ही सफल हो पाएगा। जब तक लोग वृक्ष को धरती का श्रृंगार नहीं समझेंगे और हरियाली से प्यार नहीं करेंगे, तब तक पर्यावरण दिवस मनाना केवल औपचारिकता भर रहेगा। एक कवि ने कहा है-वृक्ष धरा का हैं श्रंगार, इनसे करो सदा तुम प्यार।इनकी रक्षा धर्म तुम्हारा, ये हैं जीवन का आधार।।कहने को तो दुनिया भर में वैश्विक स्तर पर अनेक दिवस मनाए जाते हैं। जैसे-इंटरनेशनल वाटर डे (22 मार्च), इंटरनेशनल अर्थ डे (22 अप्रैल), वर्ल्ड नो टोबैको डे (31 मई), इंटरनेशनल पाप्युलेशन डे (11 जुलाई), वर्ल्ड पॉवर्टी इरेडिकेशन डे (17 दिसंबर), इंटरनोनल एंटीकरप्शन डे (9 दिसंबर), आदि । इन सभी दिवसों का मूल उद्देश्य विभिन्न छोटी-बड़ी समस्याओं के प्रति मानव जाति का ध्यान खींचना हैं, उनके बीच जागरूकता फैलाना है, समस्याओं के समाधान के प्रति उनके योगदान की मांग करना है, लेकिन यह साफ-साफ नहीं बताया जाता है कि लोग क्या करें और कैसे करें ।जानकारों के मुताबिक पर्यावरण शब्द के अर्थ बहुत व्यापक हैं । सड़कों और खुले भूखंडों पर आम लोगों द्वारा फेंकी जाने वाली प्लास्टिक की थैलियों की समस्या पर्यावरण से ही संबंधित है । शहरों में ही नहीं, गांवों में भी विकसित हो रहे रिहायशी इलााके पर्यावरण को प्रदूषित ही करते हैं । भूगर्भ जल का असमिति दोहन अब पेयजल की गंभीर समस्या को जन्म दे रहा है। ऐसी तमाम समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है, पांच जून को वर्ष में एक बार एक दिवस मनाकर । क्या जागरूकता की बात लगातार चलने वाली प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए? एक दिन विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण दिवस मनाना क्या कुछ ऐसा ही नहीं जैसे हम किसी का जन्मदिन मनाते हैं या कोई तीज-त्योहार ? एक दिन जोरशोर से मुद्दे की चर्चा करो और फिर 364 दिन के लिए उसे भूल जाओ ? ऐसा कर हम सही अर्थों में पर्यावरण की रक्षा नहीं कर पाएंगे।पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इन दिनों पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या से लड़ने के उपाय ढूंढ रही हैं। वहीं, आप और हम अपनी दिनचर्या में थोड़ी सी सावधानी या बदलाकर पर्यावरण को बचाने में बड़ा योगदान कर सकते। प्रदूषण न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की भयानक समस्या है। मनुष्य के आसपास जो वायुमंडल है वह पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण का जीवजगत के स्वास्थ्य और कार्यकुशलता से गहरा संबंध है। पर्यावरण को पावन बनाए रखने में प्रकृति का विशेष महत्व है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ा नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं। पर्यावरण के दूषित होते ही जीव- जगत रोग ग्रस्त हो जाता है। इसीलिए कहा गया है-यदि शुद्ध हो पर्यावरण, यदि प्रबुद्ध हो हर आचरण।भय दूर होगा रोग का, संतुलित होगा जीवन- मरण।।इस बाबत कोलकाता नगर निगम के पर्यावरण विभाग के मेयर परिषद के सदस्य राजीव देव का कहना है कि जब सभी लोग जागरूक होंगे तभी पर्यावरण का संरक्षण हो सकेगा। फिर चाहे वह किसी भी माध्यम से हो हम चाहें पौधरोपण करें, जल संरक्षण करें या फिर ऊर्जा का संरक्षण करें। इसके लिए संकल्प की आवश्यकता होगी। संकल्प भी ऐसा जिसको हम पूरा कर सकें। वार्ड नंबर 22 की पार्षद मीनादेवी पुरोहित ने कहा कि ईश्वर ने जो प्रकृति रूपी वरदान हमें दिया है। उसको हम नागरिकों ने अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए नष्ट कर दिया। इसलिए मैं पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए रविवार को कुछ पौधे जरूर लगाऊंगी।