Sunday, July 12, 2009

पश्चिम बंगाल - जमीन अधिग्रहण मामले में वाममोर्चा सरकार की हुई किरकिरी

कोलकाता। पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार को जमीन अधिग्रहण मामले में एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार (८ जुलाई) को राज्य सरकार की उस नोटिस को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार ने ४७ कट्टा में फैले रवींद्र सरणी स्थित गणेश गढ़ को अधिग्रहण करने की बात कही थी। विगत दो सालों से लटके मामले में बुधवार को उस वक्त विराम लग गया, जब कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य ने राज्य सरकार की अपील को खरिज करते हुए यशोदा देवी लाखोटिया व अन्य के पक्ष में फैसला सुना दिया।
मालूम हो कि १९ जुलाई २००८ को महानगर के कुछ अखबारों में राज्य सरकार की ओर से एक अधिसूचना प्रकाशित कारई गई थी। जिसके अनुसार रवींद्र सरणी स्थित (रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के विपरीत) गणेश गढ़ की खाली हुई जमीन को अधिग्रहण करने की पेशकश की गई थी। अधिसूचना में इस बात का जिक्र किया गया था कि यहां (गणेश गढ़) बैथून कॉलेज के कुछ विभागों का स्थानांतरण किया जाएगा। इसलिए राज्य सरकार इसका अधिग्रहण करना चाहती है। इस अधिग्रहण के खिलाफ यशोदा देवी लाखोटिया ने ७ अगस्त २००८ को अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसका फैसला ७ जुलाई २००९ को उनके पक्ष में आया।
उल्लेखनीय है कि १९९५ में लाखोटिया परिवार ने गणेश गढ़ खरीदा था। उसके बाद सालों तक न्यायालय के चक्कर काटने और कई जद्दोजेहद झेलने के बाद उन्होंने यह मकान खाली करवाया था। तत्कालीन सांसद और माकपा नेता सुधांशु शील की इस खाली पड़े भूखंड पर नजर पड़ी और जब उनका निजी स्वार्थ पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने इसकी अधिग्रहण की बात उछाल दी। इस बाबत शील की सह पर राज्य सरकार ने २००६ में माहेश्वरी विद्यालय के विस्तार के लिए गणेश गढ़ के अधिग्रहण बाबत अधिसूचना जारी की थी, जिसे लाखोटिया परिवार ने चुनौती दी और न्यायालय ने चुनौती पर गौर करते हुए राज्य सरकार की नोटिस को खारिज कर दिया।
बुधवार को न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस अधिग्रहण के पीछे गलत मंशा है। अदालत में पेश किए गए कागजात के मद्देनजर यह समझ में आ गया है कि कॉलेज का विस्तार महज एक बहाना है यहां मुख्य मुद्दा जमीन के मालिक को परेशान करना हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के विपरीत बने गणेश गढ़ की जमीन पर जहां राज्य सरकार शिक्षण संस्थान बनाना चाह रही थी वहां के माहौल को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग शिक्षा के लिए प्रतिकुल बताया है इसीलिए अनुदान की सिफारिश पर रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के शिक्षण विभाग को रवींद्र सरणी से बीटी रोड स्थानांतरित कर दिया गया है।
मजे की बात यह है कि जिस बैथून कॉलेज की विस्तार की बात की जा रही थी उसकी प्रभारी भी मानती है कि बड़ाबाजार का भीड़भाड़ वाला इलाका उच्च शिक्षण संस्थान के निर्माण के नजिरए से अनुकूल नहीं है। लाखोटिया परिवार की तरफ से इस मामले की पैरवी एडवोकेट बीके बच्छावच, गौरीशंकर मित्रा, एस. पाल कर रहे थे, जबकि राज्य सरकार की ओर से बलाई राय और सुधांशु शील की तरफ से अशोक बनर्जी अपनी बात रख रहे थे।

Friday, June 26, 2009

वंदेमातरम स्वतंत्रता सेनानियों का कंठहार

देश के आजादी आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों का कंठहार बनी बांग्ला रचनाकार बंकिमचंद चटर्जी की कालजई रचना 'वंदेमातरम' बेहद सामान्य परिस्थितियों में पहली बार प्रकाशित हुई थी और उस समय शायद इसके लेखक को भी यह अनुमान न होगा कि आने वाले दिनों में यह गीत एक मंत्र की तरह सारे देश में गूंजेगा। वंदेमातरम के प्रकाशन का एक दिलचस्प इतिहास है।

बंकिम एक पत्रिका 'बंगदर्शन' निकालते थे और इसकी अधिकतर रचनाएं वह स्वयं ही लिखते थे। एक बार पत्रिका छपने के समय कंपोजीटर बंकिम के पास आया और कहा कि उसे थोड़े से बचे स्थान के लिए कुछ सामग्री चाहिए। बंकिम ने अपनी दराज खोली और सामने पड़ा अपना गीत वंदेमातरम का एक अंश छपने को दे दिया। यह घटना 1875 की है। यह जानकारी अमलेश भट्टाचार्य की पुस्तक 'वंदेमातरम' में दी गई है। इस तरह पहली बार वंदेमातरम गीत छपा। जाहिर सी बात है लोगों की नजर में उस समय यह गीत नहीं चढ़ा। बाद में बंकिम ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंदमठ' में इस गीत को जब शामिल किया तो लोगों ने इसे गौर से पढ़ा। आनंदमठ में छपने के बाद बंकिम को अपनी इस रचना की प्रभावोत्पादकता का कुछ-कुछ अनुमान तो होने लगा था, लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि आने वाले दिनों में यह रचना जादुई असर करेगी और महान रचना के रूप में इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगी। वर्ष 1886 में कोलकाता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार वंदेमातरम गाया गया था।

बंकिम की मृत्यु के दो साल बाद 1896 में कोलकाता में ही आयोजित कांग्रेस के एक अन्य अधिवेशन में स्वयं गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया था। स्वतंत्रता प्रेमियों में उत्साह का संचार करने वाली इस रचना का वास्तविक उत्कर्ष 1905 के बंगाल विभाजन के दौरान हुआ। वंदेमातरम जब पूरे देश में आजादी का नारा फूंकने वाला मंत्र बना तो उस समय बंकिम जीवित नहीं थे।

आजादी के बाद भारत में इसे राष्ट्रगीत का गौरव हासिल हुआ। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बांग्ला विभाग में रीडर पी के मैती के अनुसार वंदेमातरम बंकिम की सर्वाधिक लोकप्रिय कृति है जो विभिन्न कारणों से आजादी का नारा बन गई। मैती ने कहा कि बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद रविन्द्र नाथ टैगोर से भी आगे हैं। उन्होंने कहा कि बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।

बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। चटर्जी का जन्म 26 जून 1838 को एक रूढि़वादी परिवार में हुआ था। आठ अप्रैल 1894 को उनका निधन हो गया था। बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ थी। इसकी रचना अंग्रेजी में की गई थी। बांग्ला में प्रकाशित उनकी प्रथम रचना दुर्गेश नंदिनी [1865] थी, जो एक रूमानी रचना है। उनकी अगली रचना का नाम कपालकुंडला [1866] है। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने विषवृक्ष [1873] उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। कृष्णकांतेर विल में चटर्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है।

आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। चटर्जी का अंतिम उपन्यास सीताराम [1886] है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है। उनके अन्य उपन्यासों में दुर्गेशनंदिनी, मृणालिनी, इंदिरा, राधारानी, कृष्णकांतेर दफ्तर, देवी चौधरानी और मोचीराम गौरेर जीवनचरित शामिल है। उनकी कविताएं ललिता ओ मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामायिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध भी लिखे।

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जूट उद्योग गुमनामी के कगार पर, बजट से आस

कोलकाता। जूट ईकोफ्रेंडली होने का साथ-साथ आजकल फैशन में भी है। फिर भी जूट इंडस्ट्री मंदी की आगोश में है। लोग जूट के बने ड्रेस, जूट के खिलौने, जूट का बैग, जूट के पर्दे और न जाने क्या-क्या इस्तेमाल करते हैं।दुनिया भर में मशहूर कोलकाता की जूट इंडस्ट्री आज बर्बादी की कगार पर है।


दुनिया भर में मशहूर कोलकाता की जूट इंडस्ट्री आज बर्बादी की कगार पर है। कभी चांदी काटने वाले यहां के जूट व्यापारियों और मजदूरों के सामने आज रोजी-रोटी के लाले हैं। ये इंडस्ट्री आज अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है। पिछले तीन सालों में जूट की हर एक मिल को करीब 25 से 50 लाख का घाटा हो चुका है।


दरअसल कच्चे जूट की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। जिसकी वजह से जूट से बने सामानों की लागत ज्यादा हो गई है और मांग में कमी आई है। जानकारों की मानें तो साल भर में कच्चे जूट की कीमत 60 फीसदी तक बढ़ गई है। बाकी का कसर सूखे और आर्थिक मंदी ने पूरी कर दी।


जूट इंडस्ट्री की दुर्दशा के लिए अकेले मंदी ही नहीं बल्कि लोगों की बदलती लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार है। लोग जूट की जगह प्लास्टिक बैग को ज्यादा तरजीह देते हैं। एक तो प्लास्टिक के बैग जूट के मुकाबले सस्ते हैं और देश के हर कोने में आसानी से उपलब्ध हैं। यही वजह है कि सीमेंट और फर्टिलाइजर की तर्ज पर दूसरी इंडस्ट्रीज़ भी जूट की जगह प्लास्टिक बैग का धड़ल्ले से इस्तेमाल करती हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल जूट की गैर सरकारी खरीददारी करीब 30 फीसदी घटी है।


कोलकाता में जूट की कई फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। सालों पुराना कारोबार मंदी की भेंट चढ़ रहा है। लेकिन कारोबारियों की उम्मीद बरकरार है। वो चाहते हैं कि सरकार कुछ दिनों के लिए जूट की फॉर्वर्ड मार्केट में ट्रेडिंग करके उनके व्यापार को बचा ले। साथ ही जूट इंडस्ट्री की अब आने वाले बजट पर आस टिकी है।

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Saturday, June 20, 2009

कोलकाता का मशहूर काली मंदिर

कोलकाता। यहां दक्षिणेश्वर काली मंदिर है। इस मंदिर से नाता है विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस का।
इस मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। लंबी-लंबी कतारों में घंटो खड़े होकर मां के दर्शन का इंतजार करते हैं।
इसी मंदिर में रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर काली ने दर्शन दिया था। आज पूरी दुनिया में रामकृष्ण मिशन के लोग शांति और सुख का संदेश देते हैं। लेकिन रामकृष्ण परमहंस की खुद की मौत कैंसर से हुई थी।
जिस गुरु की कृपा से विवेकानंद पूरी दुनिया में मशहूर हुए उस गुरु के आखिरी दिन इतने संकट से क्यों गुजरे।
जिन्होंने लाखों लोगों को अध्यात्मिक रास्ता दिखाया उनकी मौत कैंसर की वजह से क्यों हुई। कहानी बड़ी विचित्र है। लेकिन एक ऐसे सच के दायरे में है जिसे जानकर रुह तक कांप जाती है।
क्या है इस काली मंदिर का रहस्य
1847 की बात है। देश में अंग्रेजों का शासन था। पश्चिम बंगाल में रानी रासमनी नाम की एक बहुत ही अमीर विधवा थी।
उनकी जिंदगी में सबकुछ था लेकिन पति का सुख नहीं था। रानी रासमनी जब उम्र के चौथे पहर में आ गई तो उनके मन में सभी तीर्थों के दर्शन करने का खयाल आया। रानी रासमनी देवी माता की बहुत बड़ी उपासक थी।
उन्होंने सोचा कि वो अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत वराणसी से करेंगी और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी। उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन नहीं थी।
कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए अमीर लोग नाव का सहारा लेते थे। दोनों ही शहर से गंगा गुजरती हैं इसलिए लोग गंगा के रास्ते ही वाराणसी तक जाना चाहते थे।
रानी रासमनी ने भी यही फैसला किया। उनका काफिला वाराणसी जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन जाने के ठीक एक रात पहले रानी के साथ एक अजीब वाकया हुआ।
मन में देवी का ध्यान कर के वो सोई थी। रात में एक सपना आया। सपने में देवी काली प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। आप गंगा के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करिए। एक खूबसूरत मंदिर बनाइए। मैं उस मंदिर की प्रतिमा में खुद प्रकट होकर श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करुंगी।
रानी की आंख खुली। सुबह होते ही वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई।
कहते हैं कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करते करते आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए।
फिर ये जगह खरीद ली गई और मंदिर का काम तेजी से शुरु हो गया। ये बात 1847 की है और मंदिर का काम पूरा हुआ 1855 यानी कुल आठ सालों में।साभार)

Friday, June 19, 2009

बंदरगाहों पर कारोबार बढ़ने के संकेत

भारत के बड़े बंदरगाहों पर कंटेनर ट्रैफिक वाल्यूम में कुल मिलाकर गिरावट का दौर चल रहा है।
हालांकि अप्रैल महीने की तुलना में मई के दौरान कुल लदान में 3.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। उद्योग जगत के विश्लेषकों का कहना है कि अब कारोबार में गिरावट के संकेत मिलने बंद हो गए हैं।
इंडियन पोर्ट एसोसिएशन (आईपीए) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के12 बड़े बंदरगाहों ने चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों के दौरान कुल 10.5 लाख टीईयू माल की ढुलाई की।
केवल मई महीने में ही सभी बंदरगाहों ने मिलकर कुल 5.38 लाख टीईयू माल की ढुलाई की, जिसमें सालाना आधार पर 10.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन पिछले महीने- अप्रैल की तुलना में कारोबार में 3.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के निदेशक एसके मंडल ने कहा, 'सभी बंदरगाहों पर गिरावट की एक प्रमुख वजह यह है कि पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच कारोबार बहुत ज्यादा हुआ है। जहां संपूर्ण कारगो में 7.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई वहीं इस अवधि के दौरान कंटेनर ट्रैफिक में 10.16 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।'
देश के कुल कंटेनर वाल्यूम में जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से ज्यादा है। यहां सालाना आधार पर मात्रा के मुताबिक मई 2009 में 9.4 प्रतिशत की गिरावट रही और कुल कारोबार 3.29 लाख टीईयू का रहा। लेकिन यह पिछले महीने की तुलना में 4.4 प्रतिशत ज्यादा रहा।
भारत के कुल कंटेनर वाल्यूम में चेन्नई की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत है, जहां सालाना आधार पर 16.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। यहां कुल कारोबार 88,000 टीईयू का रहा, जबकि मात्रा का स्तर समान ही बना रहा। सबसे ज्यादा गिरावट मुंबई पोर्ट पर रही।
मंडल ने कहा कि इस वित्त वर्ष में वहां से केवल 10,000 टीईयू का काम हुआ, जो पिछले साल की समान अवधि से 54 प्रतिशत कम है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने तुलनात्मक रूप से बेहतर कारोबार किया। कोलकाता डॉक सिस्टम (केडीएस) के कंटेनर वाल्यूम में 11 प्रतिशत की उछाल आई और यह 57,000 टीईयू रहा।
हल्दिया डॉक सिस्टम (एचडीएस) पर बहरहाल 32 प्रतिशत की गिरावट रही और यहां कुल 18,000 टीईयू कारोबार हुआ। एंजेल ब्रोकिंग के एक विश्लेषक परम देसाई का कहना है कि पिछले साल की पहली छमाही में विकास दर बेहतर थी, जिसके चलते आधार मजबूत है और जब उसकी तुलना चालू वित्त वर्ष से करते हैं तो स्थिति खराब आती है।
लेकिन पिछले साल की दूसरी छमाही से तुलना करने पर स्थिति में सुधार नजर आता है। उन्होंने कहा कि जनवरी और फरवरी -09 बहुत खराब महीने थे। अप्रैल-मई के दौरान जो ट्रेंड मिले हैं वह जून तक जारी रहेगा। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मात्रा के हिसाब से कारोबार गति पकड़ लेगा। (साभार)

बुद्धदेव की काबिलियत पर उठने लगे सवाल

नंदीग्राम की तरह अब लालगढ़ को लेकर भी पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की प्रशासनिक काबिलियत पर सवालिया निशान लगाया जाने लगा है। ऐसा करने वाले कोई और नहीं बल्कि वाममोर्चा में माकपा के ही सहयोगी दल हैं।
लालगढ़ में माओवादियों पर सख्त पुलिस कार्रवाई के लिए सहयोगी वामदलों ने बुद्धदेव को भले ही सहमति दे दी हो लेकिन उन्होंने वहां के हालात इस कदर बिगड़ने के लिए मुख्यमंत्री को कठघरे में भी खड़ा करना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि सूबे के मुखिया में कहीं न कहीं प्रशासनिक क्षमता की कमी जरूर है।
नंदीग्राम संग्राम को लेकर तो बुद्धदेव में यह कमी तो भाकपा नेता ए.बी. बर्धन समेत दूसरे कामरेड खुलकर बताते रहे हैं, लेकिन लालगढ़ कांड के आधार उनकी आलोचना फिलहाल बंद कमरे तक सीमित रखे हुए हैं। हां, अगर लालगढ़ भी नंदीग्राम का दूसरा पार्ट बन जाए तो बुद्धदेव की खिंचाई सार्वजनिक तौर पर करने से कोई नहीं चूकेगा। वहीं माकपा केंद्रीय समिति की यहां शुक्रवार से शुरू हो रही तीन दिन की बैठक में इस मसले पर भी विस्तृत चर्चा होगी।
तीसरा मोर्चा और परमाणु करार से समर्थन वापसी के अपने फैसले की समीक्षा तो माकपा नेतृत्व करेगा ही, लेकिन साथ ही बुद्धदेव को भी लालगढ़ पर जवाब देना होगा।
सूत्रों के मुताबिक कोलकाता में वाममोर्चा की बैठक के दौरान आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक के वरिष्ठ नेताओं ने लालगढ़ के हालात बेकाबू होने के पीछे बुद्धदेव की कमजोरी ही बताई। वाममोर्चा के संयोजक व माकपा सचिव बिमान बोस को अपनी भावना से अवगत कराते हुए कामरेडों ने कह दिया कि वक्त रहते ठोस कार्रवाई कर ली जाती तो माओवादी लालगढ़ को अपने कब्जे में नहीं कर पाते।
यानी सीधे-सीधे वाममोर्चा के घटक दलों ने मुख्यमंत्री की प्रशानिक काबिलियत पर निशाना साधा है। सूत्रों की माने तो कुछ कामरेड तो किसी भी मामले को संभाल पाने में उनकी नाकामी को भी रेखांकित करने सुने गए हैं।
जाहिर है भाकपा समेत सभी वामदलों को बुद्धदेव के कामकाज का तरीका कतई पसंद नहीं रहा है। लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों की हार के बाद तो बुद्धदेव के खिलाफ उनका गुस्सा बढ़ा ही है। इस मोर्चे पर बर्धन ने तो भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद माकपा महासचिव प्रकाश करात के साथ बुद्धदेव को भी लपेट लिया था। उनका कहना था कि इसे दोनों की तरफ से हुई लापरवाही का खामियाजा सभी वामदलों ने भुगता।
जाहिर है उस समय उन्होंने यह बात नंदीग्राम के संदर्भ में ही कही थी। अब लालगढ़ एक नई समस्या के रूप में सामने है। परिस्थितियां भी बदली हुई हैं। केंद्र में वामदलों का दबदबा समाप्त हो चुका है और उनके धुर विरोधी दल तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव बढ़ गया है। ऐसे में सहयोगी वामदल कदम फूंक-फूंक कर उठाने की सलाह ही बुद्धदेव को दे रहे हैं। यही वजह है कि पुलिस कार्रवाई के लिए सहमत होते हुए उन्होंने चेतावनी दे दी है कि नंदीग्राम दोबारा न हो। वहीं बुद्धदेव भी इस बार सहयोगी घटक दलों को विश्वास में लेकर चल रहे हैं, ताकि उन पर एकतरफा फैसला करने की तोहमत फिर न मढ़ी जाए।(साभार)

ट्रैफिक मैनिजमंट में पैदल चलने वालों की अनदेखी

आजादी के बाद पैदल चलने वालों की जैसी दुर्गति हमारे देश में हुई ह ै, उसकी दूसरी मिसाल मिल पाना मुश्किल है। भारतीय नगर नियोजकों की नजर में पैदल चलने वाले और साइकल सवारों की हैसियत कीड़े-मकोड़े जैसी है, जबकि आज भी शहरों का बहुसंख्य वर्ग कहीं आने-जाने के लिए अपने पैरों पर ही निर्भर है।
दिल्ली आईआईटी की प्रफेसर गीतम तिवारी पैदल चलने वालों का आंकड़ा प्राप्त करने का असफल प्रयास कर चुकी हैं। उन्हें 1994 के पहले का ऐसा कोई आंकड़ा नहीं मिला, जबकि वाहनों के आंकड़े 1950 से ही उपलब्ध हैं। इससे पता चलता है कि शहर की योजनाओं और यातायात संरचना में पैदल चलना किसी प्राथमिकता में नहीं आता।
वर्ष 2008 में 30 शहरों के अध्ययन से पता चला कि 16 से 57 प्रतिशत तक यात्राओं में किसी भी वाहन का इस्तेमाल नहीं होता। छोटे शहरों और पर्वतीय स्थानों के लोग अधिक पैदल चलते हैं। बड़े शहरों में पैदल चलने की स्थितियों को लेकर भी एक अध्ययन हुआ है। सर्वेक्षण में बताया गया कि दिल्ली में 21 प्रतिशत यात्राएं पैदल ही की जाती हैं। रिट्स लिमिटेड नामक एक सरकारी सलाहकार कंपनी द्वारा 2008 के एक सर्वेक्षण के अनुसार यह 34 प्रतिशत है। मुंबई में और अधिक लोग पैदल चलते हैं। वर्ष 2005 में विश्व बैंक द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार वहां 43 प्रतिशत लोग पैदल चलते हैं जो कि निजी वाहनों द्वारा यात्रा करने वालों से चार गुना अधिक है। मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकारी के सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़ा 52 प्रतिशत है। अहमदाबाद में 2005 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार यहां 54 प्रतिशत यात्राएं पैदल या साइकल से होती हैं। भारतीय शहरों में वाहनों से चलने की बजाय लोग पैदल ज्यादा चलते हैं।
अगर इन आंकड़ों में सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करने वालों को शामिल करें तो वस्तुस्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कोलकाता में पैदल चलने वालों का प्रतिशत वैसे तो 19 ही है, परंतु यहां सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करने वाले 54 प्रतिशत हैं। हमारे शहरों में सड़कें पहले से तो बेहतर हुई हैं, परंतु वे साइकल चालकों के लिए अधिक खतरनाक होती जा रही हैं। अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय और आईआईटी, दिल्ली के संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि पिछले दशक में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में प्रतिवर्ष आठ प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। शहरी क्षेत्रों में इस दौरान दुर्घटना से हुई 80 हजार मौतों में से 60 प्रतिशत पैदल चलने वालों की हुई थी।
त्रुटिपूर्ण डिजाइन और शहरी भू-उपयोग नीतियां भारत में पैदल चलने के वातावरण को बर्बाद कर रही हैं। सड़कों को चौड़ा करने के दौरान फुटपाथों को समाप्त करने और फ्लाईओवर बनाने से पैदल चलने वालों के रास्ते में बाधा पड़ती है। समय बचाने की कोशिश में काबू से बाहर हुए वाहन हरेक छह मिनट में एक व्यक्ति को मार डालते हैं। इंडियन सड़क कांग्रेस के अनुसार फुटपाथ की चौड़ाई कम से कम 1.5 मीटर से चार मीटर के बीच होनी चाहिए, परंतु कोई भी शहरी इकाई इन मानकों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। मुंबई में तो जेबरा क्रॉसिंग से भी सड़क पार करने पर तेज दौड़ लगानी पड़ती है। मुंबई के कई उपनगरों में सड़कों के किनारे फुटपाथ ही नहीं हैं। यहां विकास प्राधिकरण अरबों रुपये की लागत से मेट्रो, मोनो रेल, समुद्री लिंक, एक्सप्रेस व फ्लाईओवर बनाने में जुटा है, परंतु फुटपाथ निर्माण की ओर उसका ध्यान ही नहीं है।
एक यातायात विशेषज्ञ अशोक दातार का मानना है कि देश के कुल 55 प्रतिशत लोग प्रतिदिन पैदल चलते हैं, परंतु उनकी सुविधा के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है। अब तो लगने लगा है कि विकास प्राधिकरण चाहते हैं कि जनता सिर्फ कारों का ही प्रयोग करें। अगर ऐसा नहीं है, तो क्यों पैदल चलने वालों के लिए ऐसे 'स्काई वॉकर' या फुटओवर ब्रिज बनाए जा रहे हैं जिनका बहुत कम लोग इस्तेमाल करते हैं? अगर सड़कों पर सबका अधिकार है तो फिर पैदल चलने वालों को ही क्यों सताया जा रहा है? कारें समस्या का निराकरण इसलिए नहीं कर सकतीं, क्योंकि वे ही समस्या का कारण हैं। सरकारों पर इस बात के लिए दबाव डालना चाहिए कि वे ऐसे ट्रैक बनाएं, जो सिर्फ साइकल व पैदल चलने वालों के लिए ही हों।
अमेरिका के उलट भारत अति सघन बसाहट वाला देश है। ऐसे में यहां पैदल चलना एक बेहतर विकल्प भी है। पर वर्ष 2008 के सर्वेक्षण से यह निराशाजनक तस्वीर उभरी कि दिल्ली में बसों में सफर करने वालों की संख्या में जबर्दस्त गिरावट आई है। यह 2001 में 60 प्रतिशत से घटकर 2008 में 41 प्रतिशत रह गई है, जबकि इसी अवधि में कार से सफर करने वाले तीन प्रतिशत से बढ़कर 13 प्रतिशत हो गए। नगर नियोजकों का मानना है कि मुंबई में मेट्रो रेल परियोजना व अन्य यातायात सुविधाओं पर 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की बजाय सड़कों को पैदल चलने के अनुकूल बनाना अधिक सस्ता व पर्यावरण के हित में होगा।
इस सुधार हेतु बहुत बड़ी योजनाओं या बड़े स्तर के प्रयासों की जरूरत नहीं है। जेब्रा क्रॉसिंग बनाने व ट्रैफिक सिग्नल की अवधि बढ़ाने से इस समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। जबकि अभी तो पैदल चलने वालों को हतोत्साहित किया जा रहा है। असल में नीति नियंताओं की नजर सार्वजनिक यातायात में होने वाले निवेश पर रहती है, जबकि दिल्ली जैसे शहरों में सार्वजनिक यातायात की मांग में कमी आई है। पैदल चलने वालों के आंदोलन का उद्देश्य वाहनों पर निर्भरता कम करना है, इसलिए नगर नियोजकों को ऐसे वातावरण निर्माण में मदद करनी चाहिए। इसका एक उदाहरण हॉलैंड ने 'वुर्नेफ' के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है सड़कों का ऐसा समूह जहां पैदल चलने वालों एवं साइकल चालकों को प्राथमिकता दी जाएगी।
इस लिहाज से भारतीय शहरों में अभी भी संभावना बाकी है। नगर निकायों को चाहिए कि वे पैदल और साइकल चालकों की समस्याओं से निपटने के लिए एक पूर्णकालिक इकाई बनाएं, ताकि उनका सफर भी सुहाना हो सके। (साभार)

आर्थिक मंदी से सबसे तेजी से उबरेंगे छोटे व मझोले उद्योग

आर्थिक मंदी से सबसे तेजी से छोटे व मझोले उद्योगों के उबरेंगे की संभावना जतायी गयी है। यूपीएस ने अपने पांचवें वार्षिक एशिया बिजनेस मानीटर (यूपीएस एबीएम 2009) सर्वेक्षण के निष्कर्षो में इसका जिक्र किया है। यह सर्वेक्षण एशिया के छोटे और मझोले उद्यमों की प्रतिस्पर्धी क्षमताओं के विषय पर आधारित है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अपने कारोबार पर पड़ते मंदी के कुप्रभाव के बावजूद क्षेत्र के अन्य देशों की तुलना में भारत में एसएमई आर्थिक पुनर्सुधार और अपनी बेहतर वृद्धि के लिए अपेक्षाकृत अधिक मजबूती के साथ डटे हुए हैं। भारत के एसएमई अपने क्षेत्रीय जोड़ीदारों की तुलना में अपने विकास और कारोबारी योजनाओं के बारे में अधिक सकारात्मक नजरिया रखते हैं। हालांकि भारत के एसएमई भी वित्तीय अस्थिरता और गिरावट के शिकार हुए हैं और कई तरह की बाधाओं व समस्याओं का सामना करना रहे हैं लेकिन वे तगड़ी वापसी करने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर हैं।
2009 को लेकर भारतीय एसएमई आशावादी नजरिया अपनाए हुए हैं जबकि उनके एशियाई जोड़ीदारों में से बहुमत का रवैया ऐसा नहीं है। केवल 40 फीसदी ही भारत में किसी आर्थिक वृद्धि की संभावना को देखते हैं। वे अपने खुद के कारोबार के प्रति भी समान आशावादी नजरिया रखते हुए 42 फीसदी की संभावित वृद्धि की अपेक्षा रखते हैं। संपूर्ण रूप में भारतीय एसएमई का कारोबारी नजरिया, सर्वेक्षण में शामिल अन्य एशियाई बाजारों की तुलना में अधिक गिरावट दर्शाने वाला है। बहरहाल एशिया प्रशांत क्षेत्र में व्यापार पिछले साल के 69 फीसदी की तुलना में मजबूत 48 फीसदी बना रहेगा। हालांकि बाहरी व्यापार में गिरावट दर्ज हुई है लेकिन भारत का घरेलू बाजार लगातार बढ़ा है इसलिए अर्थव्यवस्था के प्रभाव ने अलग तरीके से उद्यमियों को प्रभावित किया है। यह प्रभाव इस पर निर्भर है कि उनके प्रमुख बाजार क्षेत्र कहां स्थित हैं। भारतीय उद्यमी टिके रहना और मजबूत बने रहना जानते हैं। अर्थव्यवस्था में सुधार होने पर हम इनसे तीव्र विकास की उम्मीद कर सकते हैं।(साभार)

सुंदरवन को हो रहे नुकसान का सर्वेक्षण

दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल सुंदरवन के पारिस्थतिकी तंत्र को हो रहे नुकसान के आकलन के लिये राज्य का वन विभाग सर्वेक्षण शुरू करेगा। केन्द्रीय संगठन जूलाजिकल व बोटेनिकल सर्वे आफ इंडिया को इस बारे में राज्य सरकार की तरफ से प्रस्ताव भेजा जायेगा। सर्वेक्षण कार्य दो साल तक जारी रहेंगे। वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि सर्वेक्षण के तहत सुंदरबन की वनस्पतियों व वन्य जीवों पर हुए परिवर्तन के असर का आकलन किया जायेगा। लम्बे समय तक सुंदरवन के पारिस्थतकी तंत्र पर कोई वैज्ञानिक सर्वेक्षण नहीं किया गया है। केन्द्र सरकार की मदद के बिना सुंदरबन इलाके में प्रदूषण से हुए नुकसान तथा वनस्पतियों और वन्यजीवन पर इसके प्रभाव का सटीक आकलन नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि अब तक इस विस्तृत मैंग्रोव जंगल में राज्य वन विभाग तथा कुछ गैरसरकारी संगठनों द्वारा अल्पकालीन सर्वेक्षण किया गया है। सर्वेक्षण में सुंदरवन के तटीय इलाकों के समुद्री जल के प्रदूषण के आकलन की भी योजना है। सुंदरवन बायोस्फेयर रिजर्व के संयुक्त निदेशक राजू दास ने बताया कि सर्वेक्षण के प्रस्ताव पर जल्द बैठक होगी जिसके बाद इसकी रिपोर्ट केन्द्र को भेजी जायेगी। उल्लेखनीय है कि कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं तथा संगठनों ने भी सर्वेक्षण पर जोर दिया है। हाल में आये चक्रवाती तूफान आयला से सुंदरवन की वनस्पतियों और वन्यजीवों के काफी नुकसान पहुंचने की आशंका प्रकट की गयी है।(साभार)

Sunday, June 14, 2009

हाईस्कूलों की चौखट से मायूस लौट रहे विद्यार्थी

बढ़ती विद्यार्थियों की संख्या व स्कूलों में सीमित सीटों के चलते प्रतिवर्ष डुवार्स के हजारों छात्र-छात्राओं को बीच में ही पढ़ाई छोड़ना पड़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष दस हजार छात्र शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। नामांकन के लिए विद्यार्थी व अभिभावकों को उच्च विद्यालय का चक्कर काटना पड़ता है फिर भी निश्चितता नहीं। यह स्थिति है उदलाबाड़ी हाईस्कूल, मालबाजार हाईस्कूल, नागरकाटा हाईस्कूल, बानारहाट हाईस्कूल, भती पाठशाला न्यु-डुवार्स, महावीर हाईस्कूल वीरपाड़ा का। इन स्कूलों के साथ-साथ जुनियर हाईस्कूलों की स्थिति भी यही है। दिन व दिन बढ़ती छात्रों की संख्या व स्कूलों में सीमित सीटों के चलते बच्चों को जुनियर हाईस्कूल व उच्च विद्यालय में प्रवेश के लिए पहुंचते हैं तो उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ता है। गौरतलब है कि बानारहाट थाने के अंतर्गत बिन्नागुड़ी जूनियर हाईस्कूल में पिछले वर्ष 2008 में बिन्नागुड़ी जुनियर हाईस्कूल के छात्रों का नामांकन बानारहाट आदर्श विद्या मंदिर में हुई और वहां छात्रों को बैठने का स्थान न मिलने पर इन्हें बिन्नागुड़ी जुनियर हाईस्कूल में पढ़ाई करनी पड़ी पर इसबार बानारहाट आदर्श विद्या मंदिर हाईस्कूल एवं बालका परिमल हिन्दी हाईस्कूल में सीटे खाली ही नहीं है जिससे इसबार बाहरी स्कूलों के छात्रों का नामांकन करना मुश्किल है। ज्ञात हो कि विद्यालय में तीन-तीन सेक्शन होने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। वहीं बानारहाट बालका परिमल हिन्दी हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर प्रसाद ने बताया कि यदि बानारहाट में हिन्दी ग‌र्ल्स हाईस्कूल बन जाने पर बानारहाट स्थित आदर्श विद्या मंदिर हाईस्कूल व बालका परिमल हाईस्कूल पर विद्यार्थियों का बोझ कम हो जायेगा। दूसरी तरफ डुवार्स इलाके में चाय बागानों में केवल प्राथमिक विद्यालय ही है। पंचायरत स्तर पर केवल एक ही जुनियर हाईस्कूल है, कहीं कहीं तो वो भी नहीं है। इस वजह से चाय बागानों में रहने ावाले बच्चों के लिए उच्च शिक्षा मिलना मुश्किल हो रहा है। दैनिक मजदूरी करने वाले लोग अपने बच्चों की पढ़ाई के भलिए दर-दर की ठोकरें खा रहे है। कहां अपनी गरीबी से जूझते ये लोग अपने बच्चों को शिक्षा देकर बेहतर भविष्य का सापना देख रहे हैं वहीं इनके बच्चों को सरकार की ओर से मदद न मिलने से पढ़ाई छोड़ना पड़ रहा है।(साभार)

Thursday, June 4, 2009

मेट्रो शहरों पर फिर फिदा हो रहे रिटेलर

व्यावसायिक परिसरों के किराए में गिरावट को देखते हुए रिटेल कंपनियां-आदित्य बिडला रिटेल, रिलायंस रिटेल और शॉपर्स स्टॉप के अलावा, फूड चेन कंपनियां मेट्रो और मिनी मेट्रो में विस्तार की योजना बना रही है।
रिटेलरों और सलाहकार संस्थाओं का कहना है कि पिछले 6 माह के दौरान रिटेल किराए में करीब 40 फीसदी की कमी आई है। इससे रिटेल कंपनियों को विस्तार योजनाएं पूरा करने में आसानी होगी।
किराए में इजाफा होने से जहां रिटेल कंपनियां मेट्रो को छोड़कर मैसूर, इंदौर, विजयवाड़ा आदि शहरों का रुख कर रही थीं, वह अब दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता में आक्रामक विस्तार की योजना बना रही है।
आदित्य बिड़ला रिटेल चालू वित्त वर्ष में 60 सुपरमार्केट और वर्ष 2011 तक 12 हाइपरमार्केट खोलने की योजना बना है। कंपनी इसके लिए दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई में जगह तलाश रही है। आदित्य बिड़ला रिटेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 25 रुपये प्रति वर्गफीट मासिक किराया होने पर ही हमें फायदा हो सकता है, लेकिन दो साल से मेट्रो में किराया इतना ज्यादा बढ़ गया था कि रिटेल कंपनियों को बहुत फायदा नहीं हो रहा था।
हालांकि बदले हालात में सभी मॉल मालिक अपने मॉल में हाइपमार्केट खोलना चाहते हैं, जिसके लिए वे मार्केट रेट से भी कम किराया लेने को राजी हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी वित्त्त वर्ष 2011 में फिर 2 टीयर शहरों का रुख करेगी। मुकेश अंबानी की रिलायंस रिटेल भी मेट्रो शहरों में रिलायंस फ्रेश और रिलायंस मार्ट खोलने की तैयारी कर रही है।
स्पेंसर रिटेल बेंगलुरु में दो हाइपरमार्केट, जबकि चेन्नई और कोलकाता में एक-एक हाइपरमार्केट खोलने की तैयारी कर रही है। कंपनी पुणे और हैदराबाद में भी दो हाइपरमार्केट खोलने की योजना बना रही है। स्पेंसर के उपाध्यक्ष, मार्केटिंग समर शेखावत का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार आने से हमारे स्टोरों की मांग में इजाफा हो रहा है। कंपनी प्रतिमाह विकास कर रही है।
रहेजा ग्रुप का शॉपर्स स्टॉप भी बेंगलुरु, अहमादाबाद और हैदराबाद में चार स्टोर खोलने की तैयारी कर रही है। कंपनी का कहना है कि रेंटल में आई गिरावट से कंपनी के स्टोर को खोलने में सुविधा होगी। फूड चेन मैकडॉनल्ड भी चालू वित्त वर्ष में 40 नए आउटलेट खोलने की तैयारी कर रही है, जिन पर करीब 120 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।(साभार)

भूमि अधिग्रहण मामले में पड़ सकता है उलटा दांव

कोलकाता. रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चलाया गया आंदोलन अब उनके मंत्रालय की आगामी योजनाओं पर ही भारी पड़ सकता है। बर्दवान जिले में ब्रॉड गैज रेललाइन के विस्तार के लिए हाल में एक विज्ञापन दिया गया है।
केंद्रीय रेल विभाग ने इस विस्तार के लिए राज्य के भूमि एवं भूमि सुधार विभाग को विभिन्न चरणों में 55 एकड़ भूमि अधिगृहीत करने की अनुमति दी है। लेकिन जिन जमीनों को अधिगृहीत करने का प्रस्ताव है, वे एक से अधिक फसल देने वाली उपजाऊ जमीनें हैं। जबकि ममता की मांग रही है कि केवल सूखी और एक फसल देने वाली जमीनों को ही अधिगृहीत किया जाना चाहिए।
संविधान के तहत राज्य सरकार किसी भी केंद्रीय परियोजना को लागू करवाने के लिए बाध्य है, इसलिए भूमि एवं भूमि सुधार विभाग के यह विस्तृत विज्ञापन जारी करना जरूरी था। लेकिन विभाग ने भी परियोजना की पूरी जिम्मेदारी रेल विभाग डाल दी है। विज्ञापन में कहा गया, ‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 के तहत राज्य सरकार को केंद्र सरकार के लिए जमीन अधिगृहीत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है..।’
रोचक बात यह है कि पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार ने सिंगूर में नैनो परियोजना के लिए इसी कानून के तहत भूमि अधिगृहीत की थी। ममता ने इस परियोजना का जमकर विरोध किया था।
विज्ञापन में विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि भूमि अधिग्रहण के लिए जबरदस्ती के बजाय लोगों की राय को तवज्जो दी जाएगी। विभाग ने अधिग्रहण के बारे में लोगों की आपत्तियां मंगाई हैं।(साभार)

कोलकाता के बच्चों की सहायता करेगा रोटरी इंटरनेशनल

कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय संगठन रोटरी इंटरनेशनल ने कोलकाता में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की सहायता के लिए विश्व भर में श्रृंखलाबद्ध तरीके से संगीत कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है।श्रृंखला का पहला कार्यक्रम छह जून को जर्मनी की ऐतिहासिक सेंट जॉन चर्च में आयोजित किया जाएगा। यह जानकारी संतूर वादक तरुण भट्टाचार्य ने दी। वह रोटरी के संगीत कार्यक्रम में शामिल हैं।भट्टाचार्य ने कहा कि बेघर बच्चों की सहायता करने की उनकी हमेशा इच्छा रही है। उन्होंने कहा कि रोटरी संगीत दौरे का हिस्सा बनकर उन्हें खुशी है। संगीत कार्यक्रमों से मिलने वाली राशि बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था 'फोरम' को दी जाएगी।(साभार)

Wednesday, June 3, 2009

कोलकाता से ही देश भर में रेल चलाएंगी ममता

कोलकाता। नई रेलमंत्री ममता बनर्जी के लिए रेल मंत्रालय से ज्यादा अहम बंगाल की राजनीति है। इसलिए उन्होंने रेल मंत्रालय को कोलकाता से ही चलाने का फैसला कर लिया है। रेल विभाग उनकी मंशा को समझते हुए कोलकाता में एक अत्याधुनिक ऑफिस तैयार कर रहा है ताकि ममता ज्यादा से ज्यादा वक्त बंगाल को दे सकें।कोलकाता के मान्झेर हाट रेलवे स्टेशन के ठीक सामने वर्षों से उपेक्षित पड़ी जर्जर इमारत की किस्मत बदलने वाली है। सियालदह सब डिविजन के तहत आने वाली रेल विभाग की इस इमारत की तरफ कल तक कोई झांकता भी नहीं था, लेकिन अब रेलवे के तमाम आला अफसर यहां हो रहे काम की पल-पल की जानकारी ले रहे हैं। उनके लिए इससे महत्वपूर्ण काम कोई दूसरा हो भी नहीं सकता क्योंकि ममता बनर्जी यहीं बैठकर रेल की कमान संभालेंगी।हालांकि यह सबको पता है कि इतने युद्ध स्तर पर चल रहा काम ममता के ऑफिस के लिए ही है लेकिन अधिकारी कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं लेने के देने न पड़ जायें।पता चला है कि इस ऑफिस को तैयार होने में लगभग एक हफ्ते का वक़्त लगेगा। यहां ममता के चैम्बर के अलावा कांफ्रेंस रूम भी बनाया जा रहा है जहां से वीडियो कांफ्रेंसिंग भी हो सकेगी। ऐसे तमाम उपकरण लगाए जा रहे हैं जिससे रेलवे की सभी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। कोशिश ये है कि ममता बनर्जी कोलकाता में रहते हुए ही रेल मंत्रालय का कामकाज देख सकें। विशेष परिस्थितियों में ही उन्हें दिल्ली जाना पड़े।वैसे कभी लालू ने भी रेल को पटना से चलाने की कोशिश की थी। लेकिन वो बिहार के ऑफिस को समय नहीं दे पाए और दिल्ली से ही रेल चलाते रहे। अब बिहार से दूरी का दंड वो भुगत रहे हैं। ममता वो गलती नहीं दोहराना चाहती हैं। उन्हें पता है कि दिल्ली में उनका जलवा तभी तक है जब तक बंगाल उनके साथ है। डेढ़ साल बाद वहां चुनाव होने हैं। कहीं ऐसा न हो कि दिल्ली की हवा उनसे बंगाल की जमीन छीन ले। और ममता इस बार चूकना नहीं चाहतीं।(साभार

लोकसभा में भाई भतीजावाद की झालाक

नयी दिल्ली। लोकसभा में आज परिवारवाद की झलक देखने को मिली जब कई बेटे बेटियों और नाते रिश्तेदारों ने सदन की सदस्यता की शपथ ली। कांग्रेस और भाजपा के दो युवा गांधी राहुल और वरूण ने भी आज ही शपथ ग्रहण की।जहां विपक्षी सदस्यों की मेजों की थपथपाहट के बीच वरूण और उनकी मां मेनका गांधी ने शपथ ली वहीं सत्ता पक्ष की ओर से उससे जोरदार मेजों की थपथपाहट के बीच राहुल गांधी ने भी शपथ ली। उनकी मां सोनिया गांधी कल शपथ ले चुकी हैं। राहुल को शपथ लेते देखने बहन प्रियंका पति राबर्ट वाडेरा के साथ सदन की विशिष्ट दीर्घा में मौजूद थीं।रालोद प्रमुख अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने भी आज ही शपथ ली। जयंत पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। वह मथुरा से चुनाव लडे थे।पिता पुत्र की कड़ी में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव ने भी शपथ ली। मुलायम मैनपुरी से तो अखिलेश कन्नौज से जीते हैं। अखिलेश फिरोजाबाद सीट पर भी चुनाव जीते थे लेकिन उन्होंने 21 मई को वहां से इस्तीफा दे दिया। मुलायम के भतीजे धर्मेन्द्र यादव ने भी शपथ ली जो बदायूं से सांसद चुने गये हैं।पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर ने सदन की सदस्यता की शपथ ली। वह अपने पिता की परंपरागत सीट बलिया से जीतकर आये हैं।अन्य जिन मंत्रियों ने आज शपथ ली उनमें प्रतीक पाटिल श्रीप्रकाश जायसवाल ,हरीश रावत और रेल मंत्री ममता बनर्जी प्रमुख रहीं। कल ममता कोलकाता में थी। क्रिकेटर से नेता बने अजहरूददीन के शपथ ग्रहण के समय उनकी पत्नी संगीता बिजलानी दर्शक दीर्घा में मौजूद थीं। सदस्यों के शपथ लेने की प्रक्रिया आज लगभग पूरी हो गयी। 543 सदस्यीय लोकसभा के 335 सदस्यों ने कल शपथ ली थी। शेष में से अधिकांश ने आज शपथ ली। जिन सदस्यों की शपथ अभी नहीं हो सकी है वे आने वाले दिनों में सदस्यता की शपथ लेंगे।वरूण आज जब शपथ ले रहे थे उनकी ताई सोनिया और चचेरी बहन प्रियंका मुस्कुराते देखी गयीं। उन्होंने सोनिया को नमस्कार भी किया जबकि उनकी मां मेनका ने सत्ता पक्ष की ओर नहीं देखा।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरागत सीट लखनऊ से जीतकर आये लालजी टंडन का उनके पार्टी सहयोगियों ने शपथ लेते समय जबर्दस्त स्वागत किया। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत कुमार ने भी आज शपथ ली। अन्नाद्रमुक के सभी नौ सांसदों ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली जबकि द्रमुक सांसदों ने सत्यनिष्ठा के नाम पर शपथ ली। तमिलनाडु के सभी सांसदों में हालांकि एक समानता रही कि उन्होंने तमिल में शपथ ली।भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और सपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव जीते कल्याण सिंह ने भी आज ही शपथ ग्रहण की।शपथ लेने वालों में कई बालीवुड, टालीवुड और कालीवुड सितारे शामिल थे। इनमें सपा की जयाप्रदा, बिहारी बाबू के नाम से मशहूर भाजपा के शत्रुघन सिन्हा, दक्षिण भारतीय फिल्मों की लेडी अमिताभ के नाम से मशहूर विजया शांति, बांग्ला फिल्मों की अभिनेत्री शताब्दी राय और अभिनेता तापस पाल तमिल फिल्म स्टार शिवकुमार प्रमुख थे।

Tuesday, June 2, 2009

नजारे कंचनजंघा के

सिक्किम प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा स्थान तो है ही, ट्रेकिंग के लिए रोमांच भरे अनेक क्षेत्रों के कारण ट्रेकर्स को भी विशेष रूप से आकर्षित करता है। विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा भी यहीं है जिसकी सूर्योदय की सुनहरी आभा दिल-दिमाग पर गहरी छाप छोड जाती है। जाहिर है ऐसे पर्वत के साये में साधारण से लेकर ऊंचाई वाली ट्रेकिंग के लिए अनेक क्षेत्र मौजूद है जिनमें पैदल सैलानियों के दमखम का जोरदार इम्तिहान होता है। यूं तो प्रकृति का अपना बगीचा और फूल का प्रदेश कहलाने वाले सिक्किम में अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए चारों दिशाओं में अनेक स्थान नदियां और बर्फीले इलाके मौजूद हैं परंतु पश्चिम सिक्किम में ऊंचाई वाली ट्रेकिंग का रोमांच अलग ही है। युकसम सिक्किम की पहली राजधानी रही है, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई 5600 फुट है। जोगरी जेमाथांग जैसे ट्रेक और कंचनजंघा पर चढाई के लिए आधार शिविर यहीं लगाए जाते हैं जिससे पश्चिम सिक्किम के इस क्षेत्र का महत्व और बढ जाता है। कई अन्य ट्रेक भी यहां से प्रारंभ होते हैं। थोडी संजीदा ट्रेकिंग के लिए यहां से एक सरकुलर ट्रैक आयोजित किया जाता है जिसके मुख्य पडाव हैं- युकसम-सोका जोंगरी-थानजिंग- सुमिति झील (मिनी मानसरोवर) जेमाथांग-गोछा ला-थानजिंग- लामपोखरी-कस्तूरी ओराल-युकसम। कुछ समय पहले सिक्किम सरकार के पर्यटन विभाग ने नेशनल हाई एल्टीट्यूड ट्रेकिंग प्रोग्राम का आयोजन किया था जिसमें देश के अनेक भागों से आए ट्रेकिंग दलों ने भाग लिया। दिल्ली से हमारा दल जब चला तो दो दिन दार्जीलिंग में रुका जहां इंटरनेशनल हिमालयन माउंटेनियरिंग मीट आयोजित की गई थी। हम उसमें सम्मिलित हुए। सर एडमंड हिलेरी व उनकी धर्मपत्नी, उनके पर्वतारोही पुत्र पीटर हिलेरी, तेनजिंग नोर्गे, नवागं गोम्बू, उनकी बेटी रीटा गोम्बू, फू दौरजी जैसे महान पर्वतारोहियों के अतिरिक्त इटली और स्पेन के कुछ पर्वतारोहियों से यहां हमारी भेंट हुई। दार्जीलिंग से हम सिक्किम की ओर बढे। हमारी बस ने रंगित नदी को पार किया जो पश्चिमी बंगाल और सिक्किम की सीमा निर्धारित करती है। पेलिंग में हम एक रात रुके। रक्षित नामक स्थानीय मादक पेय का अधिकतर साथियों ने सेवन कर आनंद लिया। अगले दिन हम युकसम में थे। जैसा कि आम तौर पर किसी भी ऊंचाई वाले इलाके (13-14 हजार फुट से ऊपर) में जाने के लिए जरूरी होता है, अपने शरीर को यहां के मौसम के हिसाब से ढालने (एक्लीमेटाइजेशन) के लिए हमें यहां दो दिन रुकना था। सीलन और नमी भरे इस क्षेत्र में जोंकों का जबरदस्त बोलबाला है। खुली जगह से लेकर आपके बिस्तर तक में भी वे आपको मिल सकती हैं। इनसे बचने के लिए हमें जूतों में नमक डालने के लिए दिया गया। फिर भी इनके आक्रमण से शायद ही कोई अछूता बचता हो। पास ही में ऊंचे स्थान पर एक प्राचीन बौद्ध मठ (मोनेस्ट्री) है। दूसरे दिन हम वहां गए और लौटकर अगले दिन ट्रेकिंग पर जाने की तैयारी में जुट गए।सोका (10 हजार फुट) : जूतों में नमक डालकर हम अपने पहले पडाव सोका के लिए चल पडे। कुछ साथियों को जोंको ने काटने से नहीं छोडा। बुरांश (रोडोडेंड्रोन) के सुंदर पौधों पर कई जगह फूल थे जिनके बीच से हम आगे बढते रहे। कहीं जंगल और कहीं पानी के बहाव देखकर हम कुछ क्षण के लिए अपनी थकान भूल जाते थे। रास्ते में याक भी मिले। शाम होने से पहले हम सोका पहुंच चुके थे। जोंगरी (12800 फुट) : अगले पडाव जोंगरी के लिए हम चले तो कुछ देर बाद वर्षा ने आ घेरा। काफी तेज बारिश ने हमारी समस्याएं बढा दी। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ रहे थे वनस्पति कम होती जा रही थी। केवल बुरांश के फूल अधिक दिखाई दे रहे थे। दोपहर बाद हम जोंगरी पहुंच चुके थे। वहां हिमपात हुआ था। चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी और ठंड भी अधिक थी। चाय और भोजन का प्रबंध तो हर स्थान पर सरकारी था और हमको भोजन बनाने की आवश्यकता नहीं थी परंतु ऊंचाई के प्रभाव के कारण कुछ भी खाने को मन नहीं कर रहा था। सिर दर्द और मितली इसके असल की निशानी हैं। रात को सोना भी मुश्किल हो जाता है। अगली सुबह कुछ सदस्य आगे बढने से कतरा रहे थे। लेकिन हिम्मत करके सब साथ चल पडे।थानजिंग (12400 फुट) : ऊंचाई वाले ट्रैक का अभ्यास न होने के कारण ऑक्सीजन की कमी कैसे पूरी की जाए, इस बात का ज्ञान मुझे नहीं था। थानजिंग की ओर बढते हुए हमें नरसिंह पर्वत और पंडिम शिखर के भव्य दर्शन हुए। खिली धूप में दोनों पर्वतों पर पडी बर्फ की चमक ज्यादा देर अपनी ओर निहारने नहीं दे रही थी। गंतव्य स्थान तक पहुंचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा क्योंकि जोंगरी की ऊंचाई से हम कुछ नीचे की ओर जा रहे थे और दूरी भी अधिक नहीं थी। सुमति झील (14130 फुट) और जेमाथांग : सुमिति झील को सिक्किम में मिनी मानसरोवर भी कहते हैं। समय-समय पर यहां काले हंस भी दिखाई देते हैं। जेमाथांग भी झील के साथ ही है। अद्भुत नजारा था। प्रकृति ने मानो हम पर कृपा करके मौसम खुशगवार रखा परंतु दोपहर से पहले ही मौसम खराब होने लगा। हमने झील के किनारे अच्छा खासा समय बिताया। 16200 फुट की ऊंचाई पर स्थित गोछा शिखर का प्रतिबिंब झील में पड रहा था। गोछा ला तक शायद ही कोई गया था। दोपहर को हम थानजिंग वापिस लौट आए। युकसम की ओर वापसी शुरू हो चुकी थी। हालांकि झील की खूबसूरती को छोडकर लौटने का किसी का मन नहीं कर रहा था। थानजिंग से सुमति झील के सफर में ही ओंगलाथांग से कंचनजंघा का शानदार नजारा देखा जा सकता है।लामपोखरी (13890 फुट) : अगली सुबह हमने नाश्ता किया तथा फिर कुछ आराम करके ट्रेकिंग शुरू की। दुर्भाग्य से मुझे ऊंचाई का असर महसूस होने लगा था। मुझसे एक कदम भी आगे चला नहीं जा रहा था। कुछ साथियों ने सहारा देने की कोशिश तो की लेकिन मुझसे चला नहीं जा रहा था। मैं बैठा रहा और पहले दल के सदस्य और फिर दल के उपनेता और नेता भी चुपचाप आगे निकल गए। अंत में सबसे धीमे चलने वाले दो सदस्य डाक्टर यादव और प्रोफेसर शेखर मेरे पास आए। मेरी हालत को गंभीरता से लेते हुए वे दोनों वहीं रुक गए। उनके साथ एक पोर्टर भी था। पहले तो डाक्टर यादव ने मुझे मीठा पेयजल खूब पिलाया ताकि पानी से मेरे अंदर आक्सीजन की मात्रा बढाई जाय। फिर मुझे सुला दिया। लगभग डेढ घंटा मैं सोया रहा और वे तीनों भी मेरे समीप बैठे रहे। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि मुझे थानजिंग वापिस ले जाया जाए। डाक्टर यादव और पोर्टर ने कष्ट उठाते हुए सहारा दे देकर कैंप तक पहुंचाया। प्रोफेसर शेखर धीरे-धीरे आगे बढते रहे ताकि डाक्टर यादव उनसे वापिस आ मिलें। रात हो चुकी थी। डाक्टर और पोर्टर मुझे कैंप में पहुंचाकर लामपोखरी की तरफ चल पडे। कैंप लीडर ने वायरलेस सेट से इधर-उधर सूचना देकर पांच पोर्टरों का प्रबंध किया और अगले दिन मुझे वे पोर्टर बारी-बारी से पीठ पर उठाकर किसी छोटे रास्ते से सोका कैंप पर ले गए। यहां पर कम ऊंचाई के चलते मेरी स्थिति सुधरने लगी। मैं उन पोर्टरों का आभारी था जिन्होंने ऐसी स्थिति में मेरी सहायता की। पहाड के लोग ऐसे ही मददगार स्वभाव के लिए जाने भी जाते हैं।कस्तूरी ओराल (9880 फुट) : लामपोखरी में रात बिताकर मेरे साथी कस्तूरी ओराल आए और मैं सोका से युकसम पहुंच गया। अगले दिन सभी साथी भी आ मिले। सबने अपनी-अपनी कथा-व्यथा सुनाई और ट्रेकिंग अभियान पूरा होने की खुशी मनाई।ट्रेकिंग शुरू करने से पहले हमने मुंबई से आए दल की एक महिला सदस्य को बीमार होते देखा था। वह आगे नहीं जा सकी थी। उसकी एक साथी लडकी ने उसे अकेला नहीं छोडा और बिना ट्रेकिंग किए अपनी सहेली को लेकर मुंबई लौट गई थी। आयोजकों ने उस लडकी की सराहना तो की ही साथ ही डाक्टर यादव और प्रोफेसर शेखर की भी भूरी-भूरी प्रशंसा की। अगले दिन हमें सिक्किम सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से प्रमाणपत्र देकर विदा किया गया। हम गंगटोक होते हुए दिल्ली लौट चले।सिक्किम एक नजर में कैसे : सिक्किम में न तो कोई रेलवे स्टेशन है और न ही हवाई अड्डा। लेकिन बावजूद इसके वहां पहुंचने में कोई मुश्किल नहीं। पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में बागडोगरा हवाई अड्डा सिक्किम के लिए सबसे समीप है। गुवाहाटी, कोलकाता और दिल्ली से रोजाना बागडोगरा के लिए उडानें हैं। हवाई अड्डे से सिक्किम की राजधानी गंगटोक 124 किमी दूर है। यह रास्ता आप सडक मार्ग से भी तय कर सकते हैं और चाहें तो सिक्किम पर्यटन विभाग की बागडोगरा और गंगटोक के बीच हेलीकॉप्टर सेवा का भी फायदा उठा सकते हैं। सिक्किम के लिए सबसे समीप के दो स्टेशन सिलीगुडी और न्यू जलपाईगुडी हैं। गंगटोक से इनकी दूरी क्रमश: 114 व 125 किलोमीटर है। सिक्किम में सडकें अच्छी हैं और दूर-दराज के भी ज्यादातर हिस्से अच्छी सडक से जुडे हैं।परमिट : सीमांत प्रांत होने के कारण विदेशी नागरिकों को यहां आने के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) लेना होता है जो उन्हें वीजा के आधार पर मिल जाता है। परमिट सिक्किम पहुंच कर भी मिल जाता है जिसकी अवधि 15 दिन होती है। यह अवधि बढवाई जा सकती है।ठहरने के लिए स्थान: सिक्किम में होटलों और लॉज की कमी नहीं है। प्रत्येक आय वर्ग के अनुकूल रहने के लिए उचित स्थान मिल जाता है। चाहे सरकारी क्षेत्र में या फिर निजी क्षेत्र में।मौसम एवं तापमान : हिमालय की तलहटी में होने के कारण यहां का मौसम अन्य हिमालयी राज्यों जैसा ही है। सर्दियां काफी ठंडी और गरमियां सुहानी। बस बारिश से बचें क्योंकि बारिश में पहाड घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है। मार्च से जून और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक का समय यहां जाने के लिए सबसे दुरुस्त है।(साभार)

Sunday, May 31, 2009

शहीद भगत सिंह नगर में बिक रहे हैं उत्तराखंड के

नवकांत भरोमजारा, बंगा केंद्र सरकार एक तरफ आंगनबाड़ी केंद्रों में पढ़ रहे बच्चों के खाने-पीने के लिए दलिया, पंजीरी, दूध, बिस्कुट व अन्य पदार्थ निशुल्क उपलब्ध करवाने के दावे कर रही है, वहीं उत्तराखंड प्रशासन द्वारा आंगनबाड़ी के लाभार्थियों के लिए निशुल्क वितरण के लिए बनाए गए बिस्कुट के पैकेट जिला शहीद भगत सिंह नगर के ग्रामीण क्षेत्रों में बिक रहे हैं। इससे केंद्र सरकार की योजनाओं की पोल खुलती नजर आ रही है कि कैसे बच्चों को दी जाने वाली खाद्य सामग्री का गोरखधंधा चल रहा है, जिससे प्रशासन बेखबर है। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने बिस्कुट के इन पैकेटों पर नि:शुल्क वितरण के बारे में भी लिखा है। इसके बावजूद इन्हें बेचा जा रहा है। सूत्रों से अनुसार 40 रुपये में बिस्कुट के 60 पैकेट बेचे जा रहे हैं। परचून में 75 ग्राम का एक पैकेट एक रुपये में बेचा जा रहा है और उस पर पैकिंग की तारीख अप्रैल, 2008 है। पैकेट कोलकाता व ग्रेटर नोएडा में बनाए गए है। इस संबंध में एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये पैकेट उन्हे एक होल सेलर बेच रहा है। जब इस संबंध में बंगा के सीडीपीओ जीवन कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मामला उनके ध्यान में आ गया है और उन्होंने क्षेत्र की आंगनबाड़ी सुपरवाइजर व आंगनबाड़ी वर्करों की इस संबंध में अधिक जानकारी एकत्रित करने की ड्यूटी लगाई है। इस कार्य में संलिप्त लोगों की धरपकड़ के लिए उचित कार्रवाई की जाएगी। इस संबंध में समाज सेवी संस्थाओं के दिलबाग सिंह बागी, वीपी बेदी, मनधीर सिंह चट्ठा, डा. बलवीर शर्मा, संजीव जैन, रजनीश नैयर ने मांग की है कि इस ओर शीघ्र उचित कदम उठाए जाएं।(साभार)

कैसे रखे जाते हैं तूफानों के नाम?

सिद्र, कैटरीना, टीना, नरगिस, बिजली और अब आइला। ये उन तूफानों के नाम हैं जो समय-समय पर अलग-अलग इलाकों में कहर मचा चुके हैं। आखिर इन्हें यह नाम कैसे मिले? तूफानों के नामकरण का अपना ही फामरूला है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह नाम छोटा हो और उस क्षेत्र विशेष के लिए जाना पहचाना हो। इसके पीछे मकसद यही होता है कि तूफान के दौरान मौसम विभाग के अधिकारियों को स्थानीय लोगों को चेतावनी व राहत अभियानों के बारे में जानकारी देने में दिक्कत नहीं हो। हाल ही में आने वाले तूफान आइला का नामकरण मालदीव के मौसम विभाग ने किया था। तूफानों के नामकरण का भी अपना दिलचस्प इतिहास है। तूफानों के नामकरण की शुरुआत का श्रेय बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में एक आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी को जाता है। उन्होंने तूफानों का नामकरण उन नेताओं के नाम पर किया, जिन्हें वह नापसंद करता था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के जवान तूफानों को अपनी पत्नी या महिला मित्र के नाम से पुकारते थे। आजकल अधिकांश नामकरण फूलों, पशुओं, पक्षियों और खाद्य सामग्री के नाम पर किया जाता है। इसकी भी एक तयशुदा प्रक्रिया है। विश्व मौसम संगठन (डल्ब्यूएमओ) की टाइफून समिति के सदस्य देश स्थानीय शब्दावली के अनुसार तूफानों के नाम रखते हैं। भावी तूफानों का नामकरण पहले ही कर दिया जाता है। उत्तरी हिंद महासागर के आठ देशों के समूह ने आने वाले 64 तूफानों के नामों की सूची बना ली है। इस समूह में भारत भी शामिल है। इस क्षेत्र में आने वाले भावी तूफान का नाम ‘फ्यान’ होगा। यह नाम म्यान्मार ने दिया है।(साभार)

उन्हें चाहिए बस पांच मिनट! अमिताभ बच्चन

जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार नहीं किया। वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। अतिथि x अमिताभ बच्च्नमुझे आज पूर्णता का एहसास हो रहा है। मैं दिन भर अपने पिता की स्मृतियों से गुजरता रहा। मैं एक प्रस्तावना के लिए अंधेरे में ही उन समुचित भावनाओं और शब्दों की तलाश करता रहा, जिनमंे मेरे पिता की शख्यिसत संपूर्णता के साथ अभिव्यक्त हो सके।यह कुछ-कुछ वैसा ही संघर्ष था, जैसा मधुशाला के दौरान करना पड़ा था। मेरी नई फिल्म ‘अलादीन’ की डबिंग और अगली फिल्मों के निर्माताओं व टीवी चैनलों के साथ चर्चा के दौरान अंतिम प्रारूप अब तैयार होने की स्थिति में आ चुका है।पिता ने अपनी भूमिकाओं में जो कहा, मैंने इस प्रस्तावना के लिए बहुत कुछ उसी से लिया है। उन्होंने काफी कुछ लिखा है, लेकिन इसके बावजूद उनकी लिखने की चाहत कम नहीं हुई। उनके प्रति न्याय करना बेहद मुश्किल है। माता-पिता, उनके स्वार्थरहित प्रेम और शर्तविहीन देखभाल के प्रति न्याय करना लगभग असंभव है। जब मैं उनकी उपस्थिति की कल्पना करता हूं तो उनके सामने स्वयं को बौना महसूस करने लगता हूं। मैं जब पुरानी बातों के बारे में सोचता हूं तो महसूस होता है कि उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के जरिए कैसे हमारा लालन-पालन किया होगा।अपने लिए तो उनकी कोई चाहत थी ही नहीं। कदम-कदम पर आने वाली आर्थिक परेशानियों का उन्होंने किस तरह से सामना किया होगा। जब वे अपने बच्चों की असीमित और अनगिनत मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं पाते होंगे तो दुनिया का सामना कैसे करते होंगे। हमें जल्दी ही एहसास हो गया था कि हम हमारी कक्षा के अन्य अमीर बच्चों से मुकाबला नहीं कर सकते। उस समय हमारे दिमाग में कितनी उथल-पुथल मची होगी, जब हमें स्वयं के मन को यह समझाकर पीछे बैठना पड़ा कि हमारी आर्थिक स्थिति उन अमीर बच्चों की स्थिति से अलग है।मैं उस समय तो निराशा में लगभग चीख उठा था, जब मेरी मां मुझे दो रुपए नहीं दे पाई। जी हां, केवल दो रुपए। ये दो रुपए मुझे अपनी कक्षा की क्रिकेट टीम में शामिल होने के लिए चाहिए थे। हमें हमारे दोस्त की बर्थ डे पार्टी में साइकिल चलाकर क्यों जाना पड़ता था, जबकि अन्य साथी चमकदार कारों में बैठकर आते थे। यह भी जल्दी ही समझ में आ गया था कि क्यों मेरे ड्रॉइंग रूम में एयरकंडीशनर नहीं लगा था, जो मेरे अमीर दोस्त के कमरे मंे लगा हुआ था।क्यों मेरे पास केवल एक जोड़ी जींस और एक ही कोट था। दिक्कत इसलिए होती थी, क्योंकि मुझे सभी बड़े अवसरों पर यही ड्रेस पहननी पड़ती थी। मुझे अब भी याद है दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम था। इसमें हर्बर्ट वॉन करंजन प्रस्तुति देने वाले थे।उसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन वहां जाने में मैं बहुत शर्मिदगी महसूस कर रहा था। इसकी वजह यह थी कि मेरे पास केसरिया रंग का एक ही कोट और एक काले रंग का ट्राउजर था। उसे शायद ही कभी ड्राईक्लीन के लिए भेजा गया होगा, क्योंकि उसका खर्च हम वहन नहीं कर सकते थे। यूनिवर्सिटी में मुझे कैसा महसूस हुआ होगा, जब मैं कोका कोला की एक बॉटल नहीं खरीद सका। वह चार आने में मिलती थी और इतना पैसा मेरे पास नहीं था। न ही मैं स्वादिष्ट खीरे के टुकड़े खरीद पाता था। यह खीरा रोजाना मेरे कॉलेज परिसर के दरवाजे पर एक व्यक्ति छोटी-सी ठेलागाड़ी में रखकर बेचता था।सालों के बाद मैं स्थापित हो गया। जिंदगी अच्छे ढंग से चलने लगी। अब मैं कोका कोला के क्रेट्स खरीद सकता था, अत्याधुनिक मॉडलों की लक्जरी कारों में सफर कर सकता था, महंगे से महंगे रेस्टोरेंट में जा सकता था और अच्छे से अच्छा खाना खा सकता था। जब हम कोलकाता में थे तो 10 बाई 10 के छोटे-छोटे कमरों में रहा करते थे। अब हमारे पास अपना स्वयं का भव्य मकान था। जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, उनसे कहा कि जो चाहिए, मांग लीजिए तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब क्यों नहीं मिला? उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार क्यों नहीं किया? ऐसा इसलिए क्योंकि वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। बस वे इतना ही तो चाहते थे!वे मेरे अपने ही थे जिन्होंने हमारे पालन-पोषण और हमारी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आज उन्हें किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। वे तो इतना ही चाहते थे कि हम अपने पांच मिनट उन्हें दे दें। वे केवल पांच मिनट ही चाहते थे!मेरे माता-पिता तो आज नहीं रहे, लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने हैं जो अपनी दिनचर्या में से थोड़ा समय निकालकर अपने पिता या माता के साथ बैठते हैं, उनसे बतियाते हैं!(साभार)

प्रकृति के प्रकोप से पर्यटकों का आगमन घटा

दार्जिलिंग आइला के तांडव से पार्वत्य क्षेत्र में पर्यटकों का आगमन प्रभावित हुआ है। उक्त मंतव्य गोर्खा पार्वत्य परिषद के टूरिज्म डाइरेक्टर दीपक लोहार ने शनिवार को व्यक्त किया। वैसे मई माह में पहाड़ पर अत्यधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। विगत वर्ष की तुलना में इस वर्ष पर्यटकों के आगमन में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई थी परन्तु 26 मई को पार्वत्य क्षेत्र में आइला का जो तांडव मचा उससे पर्यटकों का आगमन काफी प्रभावित हुआ डाइरेक्टर लोहार ने कहा कि इस वजह से परिषद की आय में डेढ़ करोड़ की क्षति हुई है। उन्होंने बताया कि परिषद से जुड़े करीब 22 पर्यटन स्थल व लाज हैं जिससे परिषद को अच्छी आय होती है परन्तु 26 मई को हुए भूस्खलन से पार्वत्य क्षेत्र में पर्यटकों से प्राप्त होने वाली आय पर अच्छा खासा प्रभाव पड़ा है। जिससे डेढ़ करोड़ की आय प्रभावित हुई है। इधर इस संदर्भ में दार्जिलिंग होटल आनर्स एसोसिएशन के पाल्देन लामा ने बताया कि 26 मई को हुए प्राकृतिक प्रकोप की वजह से पर्यटकों का यातायात प्रभावित हुआ था लेकिन स्थानीय प्रशासन व होटल आनर्स एसोसिएशन ने पर्यटकों को यातायात की सुविधा दिलाने में मदद की थी परन्तु राज्य की वामफ्रंट सरकार इसे दूसरे रुप में प्रचारित कर लोगों को भयभीत किया लेकिन फिर भी पहाड़के होटलों में वर्तमान समय में भी पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ है विगत वर्ष की तुलना में पहाड़ पर काफी तादाद में पर्यटक आये। दार्जिलिंग पहाड़ में करीब तीन सौ के आसपास होटल हैं जिनमें पर्यटकों की अत्यधिक भीड़ है।

Saturday, May 30, 2009

अलीपुर पुलिस कोर्ट में साफ-सफाई का अभाव

कोलकाता अलीपुर पुलिस कोर्ट में साफ-सफाई की कमी की वजह से परेशानियां हो रही हैं। यहां व्याप्त गंदगी की समस्या से वकीलों तथा क्लर्क के साथ न्याय की तलाश में आने वाले लोगों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि अलीपुर पुलिस कोर्ट में महानगरी कोलकाता के साथ ही दक्षिण चौबीस परगना जिले के विभिन्न प्रांतों से रोजाना अनेकों लोग आते हैं। अलीपुर पुलिस कोर्ट की इस समस्या के संबंध में पुलिस कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार दत्त ने बताया कि कोर्ट में स्थित खुले नाले व‌र्ज्य पदार्थो से भरे हुए हैं। इन ओपन ड्रेन में जमे गंदे पानी से बदबू निकलती है जिससे यहां काम-काज निपटाना बेहद दूभर हो रहा है। इसके साथ जमे गंदे पानी में मच्छर अंडे दे रहे हैं। इससे पुलिस कोर्ट परिसर में मच्छरों का उपद्रव बेहद बढ़ गया है। मच्छरों की भारी संख्या से लोगों को मलेरिया, डेंगू तथा चिकुनगुनिया फैलने का डर सताता रहता है। कोर्ट परिसर में कूड़े-कचरे का अंबार लगाने में यहां के दुकानदार भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। दस वर्ष पूर्व तक कोर्ट परिसर में जमादारों द्वारा नित्य साफ-सफाई की जाती थी परंतु अब यहां ज्यादातर केवल कुछ सीमित क्षेत्रों की सफाई करते हैं। इधर अलीपुर पुलिस कोर्ट में पेयजल की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। यहां एक ट्यूबवेल है तथा इसके आसपास लोग खुलेआम मूत्र त्यागते हैं। इस स्थिति से ट्यूबवेल से पानी लेना भी यहां के लोगों को अच्छा नहीं लग रहा। दूसरी ओर अलीपुर पुलिस कोर्ट में नित्य साफ-सफाई की मांग तथा खुले नालों को भूमिगत करने जैसी मांगों को लेकर अलीपुर बार एसोसिएशन द्वारा दक्षिण चौबीस परगना जिला के अतिरिक्त जिलाधिकारी को कई बार ज्ञापन सौंपा गया है।

खामियों को दूर करने पर जोर देगी सरकार

कोलकाता वाममोर्चा सरकार अपने 32 वषरें के शासन में उपलब्धियों का बखान करने के बजाय अब खामियों को चिन्हित करेगी और उसे दूर करने पर जोर देगी। त्रुटियों को चिन्हित कर उसे दूर करने पर विशेष जोर देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने अपने सहयोग मंत्रियों को अगले दो वषरें के लिए प्राथमिकता के आधार पर विकास कार्य का खाका तैयार करने का जो दिशा निर्देश दिया है, उसमें उन्होंने कहा है कि भूमि का वितरण, कृषि, पशु संसाधन, मत्स्य पालन, सिंचाई और उन्नत बीज पर विशेष नजर रखनी होगी। उद्योग के लिए राज्य में पूंजी का निवेश बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए बिजली का उत्पादन बढ़ाना होगा। नये सिरे से बीपीएल कार्ड तैयार करने के लिए गरीबों से संपर्क करना होगा। समाज के पिछड़े वर्ग खास कर अल्पसंख्यकों के लिए रोजगार और शिक्षा के समान अवसर तैयार करने होंगे। उनके लिए आवास योजना को मूर्त रूप देना होगा। संपूर्ण साक्षारता के लिए सभी बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयासरत होने की जरूरत है। उर्दू भाषियों के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करना होगा। पंचायत, ग्रामीण विकास और नगर विकास को अपनी अतिरिक्त जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। भ्रष्टाचार और जनसेवा के प्रति नाकारात्मक मनोभाव प्रशासन के लिए बड़ी समस्या है। इसे हर हाल में दूर करना होगा। मंत्रियों को सात जून तक मुख्यमंत्री के को अपनी कार्यसूची की रिपोर्ट सौंपनी है।

अब सिगरेट की बिक्री में कमी की चिंता

अगर स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी चित्रों के जरिए दी जाती है तो इससे घरेलू सिगरेट की मांग प्रभावित हो सकती है।
इस महीने की शुरुआत में ही उच्चतम न्यायालय ने यह चेतावनी दी है कि 31 मई से तंबाकू से जुड़े उत्पादों पर स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी का प्रदर्शन चित्रों के जरिए करना है। ऐसे में इन चित्रों के साथ स्वास्थ्य से जुड़ी चेतावनी से इन उत्पादों की मांग तेजी से गिर सकती है।
इस महीने 6 तारीख को न्यायालय ने सिगरेट और तंबाकू से जुड़े दूसरे उत्पादों के लिए यह नियम बनाया गया है कि इन उत्पादों की पैकेजिंग पर चित्रात्मक चेतावनी दी जानी चाहिए।
टोबैको इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया के निदेशक उदयन लाल को भी यह आशंका है कि इस चेतावनी का गंभीर असर उपभोग पर पड़ सकता है और यह ऐसे समय पर हो रहा है जब अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं कर रही है। उन्हें यह भी आशंका है कि भारत में स्वास्थ्य से जुड़ी चित्रात्मक चेतावनी से तस्करी से लाए गए सिगरेटों की मांग में इजाफा होगा।
इसकी वजह यह भी है कि भारत में तस्करी से लाए गए सिगरेटों का बड़ा बाजार है और दूसरी तरफ घरेलू सिगरेटों पर बहुत ज्यादा कर लगा है। उनका कहना है, 'इस तरह के सिगरेट की मांग बढ़ेगी क्योंकि इन पर स्वास्थ्य की चेतावनी नहीं लिखी होती। ऐसे में इसे कम नुकसानदायक समझा जाएगा।'
तंबाकू संस्थान का कहना है कि घरेलू सिगरेट पर ज्यादा कर लगाए जाने की वजह से वैसे सिगरेटों की मांग बढ़ रही है जो बड़ी संख्या में छोटी इकाइयां बनाती है और कर देने से बचती हैं। लाल का कहना है, 'इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस तरह की इकाइयों द्वारा बनाए गए सिगरेट पर चित्रात्मक स्वास्थ्य चेतावनी लिखी ही हो।
इसी वजह से घरेलू उद्योग जो शुल्क का भुगतान कर रहे हैं उनको ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा।' लाल ने यह सफाई दी कि टोबैको इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया तंबाकू उत्पादों की बिक्री और उसके निर्माण से जुड़े इस तरह के नियमों हटाने या खत्म करने की वकालत नहीं कर रहा है। उनका कहना है, 'यह नियम समानता और अनुसरण करने लायक बनाया जाना चाहिए।'
भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। यहां पर खपत का तरीका अनोखा है। दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग, जहां तंबाकू के कुल उपभोग में सिगरेट का अनुपात 90 प्रतिशत होता है, भारत में सिगरेट की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। शेष 85 प्रतिशत हिस्से की खपत अन्य परंपरागत तरीकों जैसे बीड़ी, खैनी और गुटका में होता है, जिसकी हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है।
इसका उत्पादन असंगठित क्षेत्रों द्वारा होता है। इस अनोखे तरीके से तंबाकू की खपत के परिणामस्वरूप बहुत बड़ी मात्रा में तंबाकू बगैर ब्रांड के और खुले रूप में बेचा जाता है, जिस पर सचित्र वैधानिक चेतावनी भी नहीं लगाई जा सकती।
आईटीसी के प्रवक्ता नजीब आरिफ का कहना है कि सभी सिगरेट विनिर्माताओं को 31 मई के बाद नए पैक में सिगरेट बेचना होगा, जिस पर बदली हुई स्वास्थ्य चेतावनी होगी। यह कठिन प्रक्रिया है, लेकिन हम इसके लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं।

आपदा में भी मेयर को कमाई का लालच

कोलकाता आयला के कहर से अभी भी बंगाल नहीं उबर सका है. कोलकाता नगर निगम के आयुक्त अलापन बंद्योपाध्याय की माने, तो हजारों निगम कर्मचारी 72 घंटे से युद्ध स्तर पर राहत व बचाव कार्य में लगे हैं. इसके उलट मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य को आमदनी की चिंता है. उन्हें शुक्रवार को कलकत्ता हाइकोर्ट में जज प्रसेनजीत मंडल की अदालत में एक मामले की पैरवी करते देखा गया. मामला मतनभागा नगर पालिका के पार्किंग फीस वसूलने का था. मेयर (जो वकील भी हैं) नगर पालिका के विरोध में मामला लड़ रहे हैं. तीन जून को फिर इस मामले की सुनवाई होगी. आपदा की स्थिति में जहां सभी लोग पीड़ितों की सहायता में लगे हैं, वहीं मेयर को धनोपार्जन की पड़ी है. इस संबंध में संवाददाताओं ने जब मेयर से बात करनी चाही, तो उन्होंने बात करने से साफ इनकार कर दिया. उधर, मेयर के इस रवैये से बुद्धिजीवियों में नाराजगी है. नाम नहीं छापने की शर्त पर कलकत्ता हाइकोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि वकालत झूठ- सच का व्यवसाय है. वकीलों को तथ्यों तो तोड़-मरोड़ कर पेश करना पड़ता है. मेयर पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति झूठ-सच का व्यवसाय नहीं कर सकता. अधिवक्ता ने कहा कि मेयर ने कमाई के लिए पद की गरिमा को धूमिल किया है. एक दूसरे वकील ने कहा कि श्री भट्टाचार्य रुपये के लिए कुछ भी कर सकते है. सूत्रों के अनुसार विकास रंजन भट्टाचार्य की पांच मिनट की फीस 50 से 60 हजार रुपये है.

Friday, May 29, 2009

आइला प्रभावित क्षेत्रों में स्थिति गंभीर

चक्रवात 'आइला' के तांडव के तीन दिन बाद भी स्थिति गंभीर है। हजारों लोग फंसे हुये हैं, जिन्हें हेलीकाप्टरों से सेना के जवान खाद्य सामग्री, दवाइयां व पीने का पानी पहुंचा रहे हैं। बुधवार को मौसम ठीक रहने से राज्य प्रशासन व सेना ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्य तेज कर दिया। प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल-बिजली व्यवस्था चौपट है। बिजली व पानी नहीं मिलने से आक्रोशित लोगों ने जगह-जगह प्रदर्शन किया।
सेना, बीएसएफ और जिला पुलिस के जवान हजारों लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंच चुके हैं लेकिन सुंदरवन व संदेशखाली की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुयी है। तूफान से बंगाल में मरने वालों की संख्या सौ के करीब पहुंच गयी है जबकि दर्जनों लोग लापता हैं। सूबे में करीब 20 लाख लोग तूफान से प्रभावित हैं। सेना के प्रवक्ता ने बताया कि उत्तार व दक्षिण चौबीस परगना जिले में दो हेलीकाप्टर व छह स्पीड बोटों से अब तक सैकड़ों टन सूखा खाद्य पदार्थ, पानी पहुंचाया जा चुका है। दूसरी ओर महानगर समेत कई जिलों में बिजली और पानी का संकट व्याप्त है। गर्मी में बिजली व पानी नहीं मिलने से लोग परेशान हो कर सड़क जाम, प्रदर्शन व तोड़फोड़ करने लगे हैं।
बताया जाता है कि संदेशखाली, कुलतली व सुंदरवन इलाके में राहत सामग्री पहुंचाने व फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने में अभी भी दो दिन और लग सकते हैं।
दार्जिलिंग भेजी गयी आपदा प्रबंधन की टीम, गृह सचिव आज जायेंगे : मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने महानगर में विद्युत आपूर्ति सामान्य करने के लिए सीइएससी को निर्देश दिया है। उन्होंने खुद सीइएससी के अधिकारियों से बातचीत की और अतिरिक्त कर्मियों को लेकर बिजली की आपूर्ति स्वाभाविक करने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री ने बुधवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उत्तार बंगाल में भी स्थिति गंभीर होने की सूचना मिली है। दार्जिलिंग में भू धसान से 21 लोगों के मारे जाने की खबर है। वहां आपदा प्रबंधन की दो टीमें भेज दी गयी है। सिलीगुड़ी से सूखा खाना, त्रिपाल और अन्य राहत सामग्री दार्जिलिंग भेजी गयी है। गुरुवार को गृह सचिव अद्र्धेदू सेन पहाड़ में स्थिति का जायजा लेने के लिए वहां जायेंगे।
सुंदरवन के वन्यजीवों पर भी तूफान ने ढाया कहर : आयला ने दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल सुंदरबन को इसने बुरी तरह प्रभावित किया है। सुंदरबन में अब तक व्यवस्थित राहत कार्य शुरू नहीं किया जा सका है। आयला से हुई तबाही ने सबसे ज्यादा यहां के वन्य जीवों को प्रभावित किया है। संवेदनशील पर्यावरण वाले सुंदरबन की मुख्य पहचान रायल बंगाल टाइगर को भी तूफान के कहर का सामना करना पड़ा है। तूफान थमने के बाद वन विभाग द्वारा शुरू किये गये प्रारम्भिक बचाव कार्यो में अब तक तीन हिरणों के शव बरामद किये गये हैं जबकि दो को बचा लिया गया। वन अधिकारियों के मुताबिक नदियों के तटबंध टूटने से अभी भी जंगल का बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। पानी घटने के बाद ही नुकसान का वास्तविक आकलन हो सकेगा।
गांव में पहुंची बाघिन : तूफान के बाद संजेखाली टाइगर रिजर्व से एक बाघिन गोमोर नदी पार कर स्थानीय गांव जमेशपुर पहुंच गयी। यहां के निवासी पिंटू ने बताया कि गांव में खड़ी बाघिन को देखकर लोगों के होश उड़ गये। तूफान के कहर से बाघिन काफी भयभीत दिखायी पड़ रही थी। वन विभाग को सूचना देने के बाद उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर जंगल के अंदरूनी हिस्से में छोड़ा गया।
तूफान की तबाही के बाद स्वाभाविक हुआ महानगर : तूफान से हुई भारी तबाही के बाद तीसरे दिन महानगर लगभग स्वाभाविक हो गया। मौसम सामान्य होने से लोग अपने दैनिक कार्यो में लग गये। कोलकाता की सड़कों पर गिरे वृक्षों को हटा लिया गया है। हालांकि फुटपाथों पर वृक्षों की टहनियां व्यवधान उत्पन्न कर रही थीं।
तूफान पीड़ितों के लिए आज से वामो का धन संग्रह अभियान : वाममोर्चा के कार्यकर्ता गुरुवार से प्राकृतिक आपदा में पीड़ितों के लिए धन संग्रह अभियान शुरू करेंगे। पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए गुरुवार से शुरू होनेवाला धन संग्रह अभियान लगातार 3 जून तक चलेगा।
ममता ने कहा- सरकार विफल : रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य सरकार चक्रवाती तूफान से पीड़ितों को राहत पहुंचाने में विफल रही है। अब भी दक्षिण चौबीस परगना जिले के कई इलाकों में पीड़ित लोग पानी में रहने को विवश हैं। उन्हें खाद्य सामग्री और न पेयजल नहीं मिल रहा है। पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिमी मेदिनीपुर, हावड़ा व हुगली के भी कुछ इलाकों में पीड़ितों तक राहत नहीं पहुंचायी गयी है। बंगाल में आपदा प्रबंधन के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार राहत पहुंचाने के पहले घर बनाने के लिए क्षतिपूर्ति देने की घोषणा कर रही है जबकि जीवन बचाने के लिए भोजन जरूरी है। उन्होंने कालीघाट स्थित अपने निवास पर दिल्ली जाने के पूर्व पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि मैं दिल्ली जा रही हूं वहां प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से पीड़ितों के विशेष पैकेज के लिए बात करुंगी। मैं केन्द्रीय प्रतिनिधि हूं लेकिन मेरे साथ सरकार के किसी प्रतिनिधि ने बात नहीं की।

पेड़ों की भारी क्षति की पूर्ति को पौधारोपण की तैयारी

राज्य सरकार ने चक्रवाती तूफान से महानगर में पेड़ों को पहुंची क्षति की भरपाई करने के लिए पौधारोपण अभियान चलाने का निर्णय किया है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टंाचार्य ने इस बाबत वन विभाग को योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में 1000 पौधे लगाने की योजना है। राइटर्स में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय किया गया। बैठक में अतिरिक्त प्रधान वन संरक्षक समेत वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
गौरतलब है कि सोमवार को आये तूफान में लगभग 2000 पेड़ धराशायी हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के निर्देश पर वन विभाग क्षति का आकलन कर योजना बनाने में जुट गया है। विभाग ईस्ट-वेस्ट मेट्रो परियोजना के लिए काटे गये पेड़ों की भरपाई के लिए भी योजना तैयार कर रहा है। गौरतलब है कि परियोजना कार्य के लिए साल्टलेक में अब तक 800 पेड़ काटे जा चुके हैं। विभाग की साल्टलेक व आसपास के इलाकों में अलग से 3000 पौधे लगाने की योजना है। पिछले दिनों कुछ पौधे लगाये गये थे जो तूफान में उखड़ गये। विभाग महानगर में जगह-जगह गिरे पेड़ों को हटाने में भी कोलकाता नगर निगम की मदद कर रहा है। विभाग की 10 सदस्यीय टीम इस काम में निगम का सहयोग कर रही है। जानकारों के मुताबिक गलत तरीके से रोपण व पेड़ों का आधार कमजोर होने के कारण इतनी बड़ी तादाद में पेड़ गिरे हैं।

कोलकाता पुलिस में गठित होगा आपदा प्रबंधन सेल

कोलकाता पुलिस ने भविष्य में 'आयला' जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावी तौर पर निपटने के लिए आपदा प्रबंधन सेल के गठन का निर्णय किया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सेल के तहत नौ टीमों का गठन किया जायेगा जो केवल तूफान की चपेट में आकर सड़कों व घरों पर गिरे पेड़ों को युद्ध-स्तर पर हटाने का काम करेगी। इनमें अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरणों से लैस एक विशेष टीम भी होगी जो इमारतों में फंसे लोगों के उद्धार का काम करेगी। हरेक टीम में आठ से 10 सदस्य रखने की योजना है। टीम के पास राहत कार्यों के लिए गैस-कटर, वायरलेस सिस्टम युक्त वाहन इत्यादि होंगे। कोलकाता पुलिस ने इन्हें खरीदने के लिए राज्य सरकार से आर्थिक सहयोग देने का अनुरोध किया है।
आपदा प्रबंधन टीमों के लिए नेशनल वोलेन्टियर फोर्स , ग्रीन पुलिस और होम गार्ड के 50 जवानों को चुना गया है जिन्हें उत्तर चौबीस परगना के बादु क्षेत्र में स्थित सीमा सुरक्षा बल के नेशनल सिविल इमरजेंसी फोर्स ट्रेनिंग कैम्प में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया है। वहां उन्हें एक हफ्ते तक प्रशिक्षित किया जायेगा। कोलकाता पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक उनका विभाग भविष्य में इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए पूरी तरह तैयार रहना चाहता है इसलिए यह पहल की गई है। आपदा के समय टीम जरूरत वाली जगहों पर कम से कम समय में पहुंचकर राहत कार्यों में लग जायेगी। इस बार भी पुलिस सतर्क व सक्रिय थी। मोमिनपुर, श्यामपुकुर व क्रिस्टोफर रोड इलाकों से 150 लोगों का उद्धार किया गया।

केंद्र सरकार में पहली बार बंगाल के आठ मंत्री

केन्द्र की राजनीति में पहली बार बंगाल के कांग्रेस व तृणमूल सांसदों ने महत्वपूर्ण रोल निभाते हुए जनता को आठ मंत्रियों का तोहफा दिया है। इसमें वित्तामंत्री प्रणव मुखर्जी व रेलमंत्री ममता बनर्जी शामिल हैं।
तृणमूल के छह राज्यमंत्रियों के नाम हैं-चौधरी मोहन जटुआ, दिनेश त्रिवेदी, शिशिर अधिकारी, सौगत राय, सुलतान अहमद व मुकुल राय। छह मंत्रियों द्वारा शपथ लेने के बाद महानगर व विभिन्न जिलों में कांग्रेस व तृणमूल के समर्थकों ने एक दूसरे को अबीर लगाया और बधाई दी। तृणमूल सुप्रीमो ममता के कालीघाट स्थित निवास व पार्टी मुख्यालय तृणमूल भवन में समर्थकों के बीच मिठाइयां बांटी गयीं। छह मंत्रियों के घरों पर भी मिठाइयां वितरित हुई। हालांकि तृणमूल की शपथ लिये मंत्रियों के परिवार के अधिकांश सदस्य दिल्ली में हैं इसलिए कहा जा रहा है कि उनके लौटने पर उत्सव मनाया जायेगा। सूत्रों के अनुसार ममता शुक्रवार को छह मंत्रियों के साथ महानगर लौटेंगी और उनका प्रारंभिक काम होगा चक्रवाती तूफान से प्रभावित लोगों तक राहत पहुंचाना।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार बंगाल के इतिहास में कभी पहले एक साथ आठ मंत्री शामिल नहीं हुए। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सबसे अधिक छह मंत्री थे जिसमें अब्दुल गनी खान चौधरी, अशोक सेन, प्रणव मुखर्जी, अजीत पांजा, प्रियरंजन दासमुंशी आदि प्रमुख थे। उसके बाद कभी तीन तो कभी चार मंत्री शामिल हुए। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी, अजीत पांजा, प्रियरंजन दासमुंशी व अजीत पांजा प्रमुख थे। पिछले दिनों वित्तामंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी कहा था कि इस बार बंगाल के सबसे अधिक मंत्री केन्द्र सरकार में शामिल हुए हैं। कांग्रेस के बंगाल से सिर्फ एक मंत्री बनाये जाने पर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है लेकिन वे उसे प्रकट नहीं होने दे रहे हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता डा. मानस भुइयां के अनुसार मंत्री बनाना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। अगले मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस सांसद शामिल किये जा सकते हैं।
तृणमूल के राज्यमंत्री 71 वर्षीय सीएम जटुआ सेवानिवृत आइपीएस अधिकारी हैं। वर्ष 1996 में सेवानिवृत होने के बाद 2001 में राजनीति में सक्रिय हुए और विधायक निर्वाचित हुए। इस बार तृणमूल के टिकट पर मथुरापुर से सांसद निर्वाचत हुए।
59 वर्षीय दिनेश त्रिवेदी लोकसभा चुनाव जीतने के पहले दो बार राज्यसभा के सांसद रहे हैं। अमेरिका के टैक्सास विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद कामर्शियल पायलट का प्रशिक्षण लिया और बैरकपुर में माकपा के हैविवेट प्रत्याशी तडि़त वरण तोपदार को पराजित कर सांसद निर्वाचित हुए और राज्यमंत्री बने। कांथी से निर्वाचित सांसद 69 वर्षीय शिशिर अधिकारी नंदीग्राम कांड के बाद चर्चा में आये और उन्होंने भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का संचालन कर केमिकल हब को नंदीग्राम से हटाने के लिए किसानों का नेतृत्व किया। दो बार विधायक रहे शिशिर पहली बार केन्द्र में राज्य मंत्री बने हैं। 63 वर्षीय सौगत राय कई बार विधायक रह चुके हैं और वर्ष 1977 में केन्द्रीय राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। इस बार केन्द्र में दूसरी बार राज्यमंत्री बन रहे हैं। पेशे से अध्यापक रहे सौगत राय की तृणमूल में प्रतिष्ठा है और जरूरत पड़ने पर ममता भी उनसे सलाह-मशविरा करती हैं।
56 वर्षीय सुलतान अहमद राजनीति के साथ फुटबाल क्लब की भी जिम्मेदारी निभाते हैं। तृणमूल कांग्रेस में वर्षो तक अल्पसंख्यक सेल की वर्षो तक जिम्मेदारी संभालने वाले सुलतान अहमद की पहचान पार्टी में तेज तर्रार नेता की है। इस चुनाव में अल्पसंख्यकों को तृणमूल के करीब लाने में सुलतान ने अहम भूमिका निभायी। वह केन्द्र में पहली बार राज्यमंत्री बने हैं। राज्यसभा सांसद मुकुल राय तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के करीबी नेता माने जाते हैं। सांगठनिक क्षमता नहीं होने के बावजूद पार्टी के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। पिछली बार ममता ने विपक्षी नेता पंकज बनर्जी की इच्छा के बावजूद उन्हें राज्यसभा नहीं भेजकर मुकुल राय को सांसद बना दिया। उसके बाद से पंकज ने अस्वस्थता के नाम पर राजनीति से संन्यास ले लिया। मुकुल राय भी केन्द्र में पहली बार मंत्री बने हैं। मंत्रियों के महानगर पहुंचने पर लोगों का सामूहिक आभार प्रकट किया जायेगा।

रेडियो कैब की लोकप्रियता पर कंपनियां फिदा

देश की रडियो कैब सर्विस देने वाली कंपनियां वित्त वर्ष 2009-10 में अपने गाड़ियों के बेड़े में 100 फीसदी तक इजाफा करने जा रही हैं। इस क्षेत्र की तीन बड़ी कंपनियों के अनुसार, मार्च 2010 तक वे अपने बेड़े में ब्,त्तक्क् गाड़ियां और जोड़ेंगी। रेडियो कैब यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सैटेलाइट तकनीक युक्त टैक्सी सेवा की बढ़ती लोकप्रियता पर कंपनियां फिदा हैं। मेरू कैब चालू वित्त वर्ष में अपने बेड़े में फ्,क्क्क् कारों का इजाफा करने जा रही हैं। कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट (मार्केटिंग) गेविन डेब्रियो ने बिजनेस भास्कर को बताया कि फिलहाल कंपनी मुंबई में ख्,फ्म्क्, बेंगलुरू में 8क्क्, हैदराबाद में स्त्रक्क् और दिल्ली में ब्म्क् गाड़ियां चलाती हैं। उन्होंने बताया कि अब मार्च 2010 से पहले हम इन्हीं शहरों में अपनी कारों की संख्या को 3,000 से बढ़ाकर 5,000 करेंगे। इसी अवधि में मेगा कैब भी अपनी गाड़ियों की संख्या में ख्,भ्त्तम् कारों का इजाफा कर रही है। कंपनी दिल्ली में अपनी टैक्सी संख्या को फ्फ्म् से बढ़ाकर म्क्क्, चंडीगढ़ में म्क् से ख्क्क् और कोलकाता में ख्क्क् से बढ़ाकर फ्म्क् करने जा रही है। इसके अलावा, अमृतसर और लुधियाना में फ्म्-फ्म् गाड़ियों की संख्या को भी बढ़ाकर ख्क्क् करने जा रही है। मेगा कैब की योजना मार्च फ्क्ख्क् तक मुंबई के फ्म्क् कैब के बेड़े को बढ़ाकर ख्,क्क्क् करने की है। कंपनी के जनरल मैनेजर (फ्लीट एंड ऑपरशन) बिनोद मिश्रा ने बताया कि मुंबई में विस्तार करना कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है। वहां टैक्सी का नया परमिट जारी होना बंद हो चुका है। अपनी सेवा बढ़ाने के लिए हमें पुराने टैक्सी चालकों से परमिट खरीदनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि पांच साल पुराना परमिट एक लाख रुपये तक में मिलता है। उधर, मुंबई टैक्सी मेंस यूनियन के महासचिव ए एल क्वाद्रोस ने कहा है कि मुंबई की काली-पीली टैक्सियों के चालक अपने फ्क् वर्ष पुराने परमिट को ख्.स्त्र लाख रुपये तक की कीमत में बेच रहे हैं।एक अन्य कंपनी क्विक कैब भी अपने वर्तमान टैक्यिों की संख्या फ्ब्क् से बढ़ाकर भ्म्क् करने जा रही है। क्विक कैब के एमडी गुरुविंदर सिंह ने बताया कि हम इन सारी टैक्सियों को खरीदकर चलाते हैं जबकि अन्य कंपनियां कार व ड्राइवरों को कांट्रैक्ट पर रखकर यह सेवा प्रदान करती है। यही कारण है कि हम दूसरी कंपनियों की तुलना में लगभग आधी कीमत पर अपनी सेवा दे पाते हैं। ईजी कैब की मार्केटिंग मैनेजर साक्षी विज ने बताया कि उनकी कंपनी भी नए वित्त वर्ष में अपने कारोबार को विस्तार देने के लिए योजनाएं बना रही हैं। उन्होंने बताया कि बीते दो वर्षो में रेडियो टैक्सी का कारोबार तकरीबन पांच गुना बढ़ गया है। यही वजह है कि कंपनियां इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश कर रही हैं।

रेलवे की कमाई घटने से चिंतित हैं ममता

रेलमंत्री ममता बनर्जी ने छठे वेतन आयोग के कारण रेलवे पर पड़ने वाले 14 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त बोझ को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि अभी तक रेलवे ने जो मोटी कमाई की वह बेहतर आर्थिक हालात का नतीजा है, जबकि अब वैसे हालात नहीं हैं। लिहाजा भविष्य के बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी है। बहरहाल, जुलाई में पेश होने वाले रेल बजट से चीजें साफ हो जाएंगी।
ममता ने दो दिन पहले कोलकाता में रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाल लिया था। जबकि गुरुवार को उन्होंने दिल्ली में औपचारिक रूप से कामकाज शुरू किया। राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह से फुरसत पाने के बाद दीदी सीधे रेलभवन के अपने कार्यालय पहुंची और रेलवे बोर्ड के अफसरों के साथ एक घंटे गुफ्तगू की। इसके बाद वह घर चली गई। शाम साढ़े चार बजे के करीब वह पुन: दफ्तर आई और मीडिया से रू-ब-रू हुई। इस दौरान उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि वह ऐसे समय आई हैं जब एक तरफ तो छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से रेलवे भारी वित्तीय बोझ से दबा है। जबकि दूसरी ओर मंदी के कारण कमाई गड्ढे में चली गई है। उन्होंने कहा जब वह पिछली बार रेलमंत्री बनी थीं तो उस समय भी रेलवे को पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों का बोझ ढोना पड़ा था। जब ममता का ध्यान उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद के बयान पर दिलाया गया कि वह रेलवे के खजाने में 90 हजार करोड़ रुपये छोड़कर जा रहे हैं, तो ममता ने कहा, 'कुछ दिन बाद मुझे रेल बजट पेश करना है। तब पता चल जाएगा कितना पैसा है।' ममता ने रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण की योजना का श्रेय खुद को दिया और बोलीं 'जब मैं पिछली मर्तबा एक साल पांच महीने रेलमंत्री थी तो यह योजना मैंने ही प्रारंभ की थी। चाहे तो रिकार्ड में देख लो।' हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब स्थितियों में बहुत फर्क आ चुका है। इस नई रेल को समझना पड़ेगा। इसके लिए एक हफ्ते का समय चाहिए। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि मंत्रालय चलाने के लिए दिल्ली में बैठना जरूरी है। बोलीं, 'बाबा, टेलीफोन किस लिए है।'

कन्वर्जेस के युग में पहुंची हिंदी पत्रकोरिता

तीस मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में उल्लेखनीय है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1826 में कोलकाता से पहला हिंदी पत्र उदंत मार्तण्ड शुरू हुआ। हालांकि इससे बहुत पहले वर्ष 1780 में यहीं से जेम्स आगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर शुरू कर अंग्रेजी पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। इन 183 वर्षों में हिंदी पत्रकारिता में बड़े आमूल चूल परिवर्तन आए।
अंग्रेजी पत्रकारिता के बरक्स इसके कद और ताकत में व्यापक बढ़ोतरी हुई। कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबर मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट और टीवी पर कई रूपों में उपलब्ध है। सूचना प्रौद्यागिकी के इस युग में हिंदी पत्र डिजिटल रूपों में उपलब्ध है। वरिष्ठ पत्रकार और जनसंचार विशेषज्ञ प्रोफेसर कमल दीक्षित ने बताया कि पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए उदंत मार्तण्ड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उस समय पत्रकारिता का उद्देश्य समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था।
उन्होंने बताया उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। युगल किशोर शुक्ल का उदंत मार्तण्ड 79 अंक निकलने पर चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि उसके बाद हिंदी में बहुत सारे पत्र निकले। राजा राम मोहनराय ने हिंदी सहित तीन भाषाओं में 1829 में बंगदूत नामक पत्र शुरू किया।
सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और माइक्रोसाफ्ट मोस्ट वैल्यूबल पर्सन से सम्मानित बालेन्दु दाधीच के अनुसार जो मौजूदा प्रवृत्ति है, उसके अनुसार हिंदी के अखबारों पर प्रासंगिक और तेज बने रहने का भारी दबाव है। ई पेपर उसी दिशा में एक अग्रगामी कदम है। यह अवसर भौगोलिक सीमाओं को पार करने और व्यावसायिक अवसरों के दोहन को लेकर है। प्रोफेसर दीक्षित के अनुसार हिंदी पत्रकारिता में मानवोचित मूल्यों को स्थान देने में पूर्व की अपेक्षा कमी आई है। 1950 से 55 के दशक तक जिस हिंदी पत्रकारिता को बाजार की सफलता के मानकों पर खरा नहीं माना जाता था, उसके प्रति विचारधारा परिवर्तित हुई है।
उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक के बाद से स्थिति यह हो गई कि अंग्रेजी से लेकर बड़ा से बड़ा भाषाई समूह हिंदी में अखबार शुरू करने में रुचि दिखाने लगा। हालांकि विकास के बड़े अवसर हैं, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दाधीच कहते हैं कि हिंदी पत्रकारिता का इंटरनेट के क्षेत्र में जाने का मकसद अपने प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी करना होता है। मीडिया हाउस पर अब खबरों के व्यापार का एकाधिकार नहीं रह गया है। गूगल और याहू जैसी कई कंपनियां भी खबरों के प्रसार के प्रमुख स्रोत के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रिंट मीडिया प्रसार संख्या पर आधारित है, ई पेपर भी अब इसमें शामिल किया जाने लगा है। बालेंदु दाधीच ने बताया कि हिंदी सहित अन्य भाषाओं के वेब पत्रों में बिजनेस माडल का अभाव है। विज्ञापनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, लेकिन जिस प्रकार विदेशों में प्रिंट से वेब में पत्रकारिता की प्रस्तुति बढ़ी है। वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी यही रूप स्वीकार होगा।
प्रोफेसर दीक्षित ने बताया कि हिंदी पत्रकारिता ने एक समय अपना भाषाई समाज रचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। दिनमान और धर्मयुग जैसे पत्रों ने हिंदी पाठक को उन विषयों पर सोचने और समझने का अवसर दिया, जिन पर केवल अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता था। अंग्रेजी में श्रेष्ठत्व के नाम पर दावा करने की कोई चीज नहीं है। हिंदी उस बराबरी पर पहुंच गई है। हालांकि परंपरा में अंग्रेजी पत्रकारिता हिंदी से आगे है लेकिन हिंदी पत्रकारिता ने भी लंबी दूरी तय की है।

‘आएला’ के बाद अब ओएचई का असर

कोलकाता में आई आंधी ‘आएला’ से प्रभावित रेल यातायात पटरी पर आ ही रही थी कि बुधवार की रात ओएचई टूटने की घटना घट गई। इसके कारण हावड़ा-मुंबई लाइन पर यातायात 9 घंटे बाधित रहा और ट्रेनों के लेट-लतीफी का दौर गुरुवार को भी जारी रहा।
सोमवार को कोलकाता में चली आंधी का रेल यातायात पर खासा असर पड़ा था। हावड़ा से आने वाली ट्रेनें मंगलवार को घंटो लेट से यहां पहुंची थीं। इसी तरह रेक लेट मिलने के कारण मुम्बई मार्ग से आने वाली ट्रेनें बुधवार को विलंब से बिलासपुर पहुंची। यात्रियों को उम्मीद थी कि ट्रेनें गुरुवार से निर्धारित समय पर चलेंगी। ऐसा नहीं हुआ।
बुधवार की रात झारसुगड़ा से पहले दघोरा और जामगा स्टेशन के बीच ओएचई टूट गई। बताया जाता है कि ओएचई क्रासिंग पाइंट पर टूटी, जिसके कारण रात 10:45 बजे के बाद अप-डाउन दोनों ही लाइनों पर यातायात ठप हो गया। खबर लगते ही रेल प्रशासन हरकत में आया और सुधार दल रवाना किया गया।
रात 12 बजे से सुधार कार्य शुरू हुआ। रात 2 बजे डाउन लाइन को क्लीयर किया जा सका। बताया जाता है कि अप लाइन की ओएचई दो-तीन जगहों से टूटी थी। सुधार दल ने अप लाइन को दुरुस्त करने 9 घंटे पसीना बहाया। सुबह 8 बजे अप लाइन क्लीयर हुई।
घटना के कारण हावड़ा से बुधवार की रात छूटी सभी ट्रेनें प्रभावित हरुई। इन ट्रेनों को झारसुगड़ा और इससे पहले के स्टेशनों में कंट्रोल किया गया और एक-एक करके डाउन लाइन से पासिंग दी गई। हावड़ा-मुम्बई गीतांजलि एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय रात 1:35 के बजाय साढ़े पांच घंटे लेट से सुबह 7 बजे पहुंची। पुरी-जोधपुर एक्सप्रेस 4 घंटे लेट हुई और देर रात 3:15 के बजाय सुबह साढ़े सात बजे बिलासपुर पहुंची।
शालीमार-कुर्ला एक्सप्रेस सुबह 4:20 के बजाय साढ़े तीन घंटे लेट से 8 बजे पहुंची। यही हाल हावड़ा-मुम्बई मेल का रहा। यह ट्रेन सुबह 7 बजे के बजाय 10 बजे पहुंची। हावड़ा-पुणो आजादहिंद एक्सप्रेस 2 घंटे लेट से सुबह 11 बजे यहां पहुंची। हावड़ा-एलटीटी ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस भी दो घंटे लेट आई।
अप लाइन की सभी ट्रेनों के लेट होने से रेल यात्री तीसरे दिन भी हलाकान रहे। आधी रात के बाद सफर करने वाले मुसाफिरों को स्टेशन में रतजगा करना पड़ा। कुछ यात्रियों को यात्रा भी रद्द करनी पड़ी।

रेलवे की तीव्रगति पार्सल सेवा पर ममता का ‘ब्रेक’

रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कामकाज के पहले दिन ही अपने तीखे तेवरों से रेल अफसरों को वाकिफ करा दिया है। अपने कार्यक्षेत्र कोलकाता की खातिर उन्होंने २ करोड़ रुपए प्रतिदिन के शुरूआती लक्ष्य के साथ दिल्ली-चेन्नई और दिल्ली-मुंबई के बीच शुरू की जाने वाली पार्सल एक्सप्रेस योजना पर फिलहाल ‘ब्रेक’ लगा दिया है।
उन्होंने कोलकाता को भी इसमें जोड़ने का निर्देश दिया गया है। बदलाव के बाद ही अब यह ड्रीम-प्रोजेक्ट शुरू हो पाएगा। रेलवे ने दिल्ली-चेन्नई रूट पर सप्ताह में २ दिन और दिल्ली-मुंबई रूट पर सप्ताह में ४ दिन तीव्रगति पार्सल सेवा की योजना बनाई है। इसके तहत दोनों महानगर में २४ घंटे में पार्सल पहुंचाने का दावा किया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक बड़ा व्यापारिक केंद्र होने के कारण अब कोलकाता रूट पर भी शुरूआत में कम से कम एक रैक रेलगाड़ी चलाने का प्रस्ताव किया गया है।
क्या है कारण: पश्चिम बंगाल में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि यह बदलाव इसी ‘सियासी गणित’ का ध्यान में रखकर किया जा रहा है। तृणमूल को लाभ पहुंचाने के लिए ममता की कोशिश ज्यादातर रेल परियोजनाओं को ‘वाया-कोलकाता’ लागू कराने की है।
पार्सल एक्सप्रेस योजना: १क् हजार करोड़ रुपए के पार्सल के बड़े बाजार को लपकने की जुगत में रेलवे ने तीव्रगति-सेवा (टीजीएस) योजना को आकार दिया है। योजना के अंतर्गत माल भेजने वालों को मौजूदा मालभाड़े से केवल ५ फीसदी ज्यादा रकम देनी होगी। योजना के प्रति ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ‘समय पर माल नहीं तो पैसा वापस’ का फामरूला बनाया गया है।

ममता ने लौटाया टाटा का 27 लाख का चैक

भले ही ममता बैनर्जी को उनका पसंदिदा मंत्रालय मिल गया हो लेकिन उनके तेवरों में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया। आज भी ममत उसी आक्रामक बनें हुए हैं। यूं तो राजनेता जल्दी ही अपने बयानों से पलट जाते हैं लेकिन इसे ममता का दृढ़ निश्चय कहें या जिद वह आज भी टाटा से अपनी दुश्मनी निभाती आ रही हैं। आज भी ममता केमिकल हब के लिए टाटा को जगह देनें के लिए तैयार नहीं हैं।
दूसरा भोपाल नहीं बनने दूंगी
भले ही तूफान आए या बाढ़ ममता कभी नहीं बदलेंगी। केमिकल हब के खिलाफ वह हमेशा डटकर मुकाबला करेंगी। अपने बयान में ममता ने साफ कह दिया है कि केमिकल पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह हैं और जो कंपनी भोपाल गैस कांड में ब्लैक लिस्ट हो चुकी है उसे वह कभी बंगाल में हब बनाने नहीं देंगी। जब इस कंपनी को पर्यावरण एवं प्रदूषण बोर्ड इसे क्लीयरेंट नहीं दे रहा तो हम कैसे दे दें?
टाटा कोई पैसे नहीं बांटता
नैनों को बंगाल भगाने के लिए डटकर ममता दीदी ने मुकाबला किया और सफल भी रही। यही नहीं टाटा का 27 लाख का चैक बड़ी विनम्रता के साथ लौटा भी दिया। वहीं टाटा के प्रवक्ता के अनुसार यह पैसा कोई घूस या पार्टी फंड नहीं बल्कि टाटा इलेक्टोरल ट्रस्ट द्वारा दान में दिया गया था।
इस ट्रस्ट के मानकों के अनुसार ममता फिट बैठती थी और इस लिए टाटा ने पैसा ममता को भिजवाया, वर्ना टाटा कोई पैसे नहीं बांटता। नैनों के मामले में ममता अभी भी अपनी मांग पर अडिग हैं और किसानों के हितों से हटकर जरा सा कोई फैसला नहीं लेंगी।
बंगाल की मंत्री हैं ममता
अपने मंत्रियों के साथ ममता बंगाल के लिए क्या खास करनेवाली हैं इस सवाल पर वह कहती हैं कि एक बार मंत्रालय मिल जाएं फिर देखना हम बंगाल के लिए क्या करते हैं। सभी राज्य मंत्रियों को यह निर्देश दिए जा चुके हैं कि उनका लक्ष्य बंगाल की जनता और उनके विकास का कार्य करना होना चाहिए।
भले ही ममता बंगाल के लिए बहुत कुछ करना चाहती हों पर अपने मनमुताबित करना अभी भी पूरी तरह उनके हाथ में नहीं। वह बंगाल को अपनें तरीके से संवारना चाहती हैं तो राज्य सरकार बदलना होगी।
फिलहाल उन्होंने मिशन बंगाल की शुरूआत करते हुए केंद्र से चक्रवात आइला के पीड़ितों के लिए मुआवजा जुगाड़ना शुरू कर दिया है। उन्होंने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर हरसंभव मदद का भरोसा भी ले लिया है।
अपनें पांचो मंत्रियों को ममता ने राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों का कार्यभार और राहत कार्य दे दिया है। ममता के मंत्री कार्यभार संभालते ही पहली ही गाड़ी से कोलकाता रवाना हो गए। भई जब दीदी ने खुद को बंगाल का रेलमंत्री बना लिया हो तो राज्य मंत्रियों को उनके राज्य के लिए गंभीरता से सोचना ही होगा।

Thursday, May 28, 2009

ममता की पहल

कानून की किसी किताब में यह कहीं नहीं लिखा है कि कोई मंत्री अपने मंत्रालय का कार्यभार किस स्थान पर ग्रह
ण करे। लिहाजा ममता बनर्जी ने यह काम राजधानी दिल्ली के बजाय अपने गृह राज्य प. बंगाल की राजधानी कोलकाता में संपन्न किया तो इसमें कानून या परंपरा का कोई पेच तलाशने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी इसकी सफाई वे इस रूप में दे चुकी हैं कि चक्रवात आइला के रूप में उनका राज्य अभी एक प्राकृतिक आपदा का शिकार है, ऐसे में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होकर वे रेल मंत्रालय में अपनी पहली हाजिरी लगाने दिल्ली कैसे आ सकती हैं। कार्यभार संभालते ही 500 रुपये महीने से कम आय वाले रेलयात्रियों को 100 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए 20 रुपये में मासिक पास जारी करने की उनकी घोषणा बताती है कि लालू प्रसाद यादव की लोकलुभावन परंपरा को वे और आगे ले जाने वाली हैं। अलबत्ता उनका एक बयान देश के लिए चिंता का विषय जरूर है कि तृणमूल कांग्रेस से जुड़े सारे केंद्रीय मंत्रियों को सप्ताह में पांच दिन का समय प. बंगाल में बिताना होगा। माना जा रहा है कि उनकी इस घोषणा की हद ढाई साल बाद होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव तक ही है, लेकिन कौन जाने, दस्तूर बन जाने के बाद उनके मंत्री इसे आगे भी खींच ले जाएं।
वैसे बतौर मंत्री उनका लगातार दिल्ली में बैठे रहना भी कोई अच्छी बात नहीं होगी। कई मंत्रियों की दिनचर्या ऐसी ही हुआ करती है और देश के लिए वह भी कोई कम चिंता का विषय नहीं है। लेकिन अच्छी स्थिति यही होती है कि मंत्री की नजर पूरे देश में अपने विभाग के कामकाज पर हो और तमाम राज्यों में बीच-बीच में उनकी भौतिक उपस्थिति भी होती रहे ताकि सरकारी काम महज खानापूरी तक सिमट कर न रह जाएं। ममता बनर्जी के मंत्री गण अगर उनकी घोषणा पर अक्षरश: अमल करने लगे तो उनके मंत्रालयों को उनके दर्शन हफ्ते में दो ही दिन हो पाएंगे, वह भी तभी जब उनका स्वास्थ्य लगातार सामान्य बना रहे। इसके अपने खतरे हैं और ज्यादा जिम्मेदारी वाले मंत्रालयों के लिए यह घातक सिद्ध हो सकता है। ममता बनर्जी के कोलकाता में कार्यभार ग्रहण को अगर इस खतरे से जोड़ कर देखा जाए तो उनके इस फैसले का एक बुरा आयाम सामने आता है। पश्चिम बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना तृणमूल कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न हो सकता है। लेकिन अच्छा होता कि ममता बनर्जी अपनी इस राजनीतिक चुनौती को ध्यान में रखते हुए या तो केंद्रीय मंत्रालयों का मामला विधानसभा चुनाव तक के लिए टाल ही देतीं, या अपनी पार्टी के लिए सिर्फ ऐसे ही मंत्रालय स्वीकार करतीं जिनमें मंत्रियों की अनुपस्थिति से ज्यादा फर्क न पड़ता हो। ऐसा कुछ भी न तो है और न होने वाला है, लिहाजा इस आशंका के लिए थोड़ी जगह बची हुई है कि ममता बनर्जी की दोहरी प्राथमिकता का असर कहीं उनके राज्य स्तरीय राजनीतिक हितों और यूपीए सरकार के केंद्रीय हितों, दोनों के लिए ही नकारात्मक न देखने को मिले। इस आशंका को एक तरफ रख दें तो ममता बनर्जी जमीन से जुड़ी अनुभवी नेता हैं, और रेल मंत्रालय का जिम्मा उन्होंने पहले भी संभाला है, लिहाजा उनकी क्षमता पर संदेह की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है।

ये हैं कैबिनेट और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री

मनमोहन सरकार के 14 कैबिनेट मंत्रियों, 7 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों और 38 राज्यमंत्रियों ने बृहस्पतिवार को शपथ ली। इनमें से 14 कैबिनेट मंत्रियों और 7 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों का परिचय इस प्रकार है :वीरभद्र सिंह : हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हैं। मंडी से जीतकर आए हैं। पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वे 1962 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीते थे।विलासराव देशमुख : ग्राम पंचायत के सदस्य से शुरुआत कर महाराष्ट्र की दो बार कमान संभालने वाले कद्दावर मराठा नेता देशमुख को संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य नहीं होने के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। 26 मई, 1945 को लातूर जिले के बभलगांव में जन्मे देशमुख ने एलएलबी की पढ़ाई की है। उन्होंने युवावस्था में सूखा राहत से अपनी सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं। महाराजा चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना कर कई शैक्षणिक संस्थान चलाने वाले देशमुख को पढ़ने, शास्त्रीय संगीत सुनने, वॉलीबाल और टेबल टेनिस का शौक है। उनके परिवार में उनकी पत्नी वैशाली, तीन पुत्र अमित, रितेश और धीरज हैं, जिनमें रितेश बॉलीवुड अभिनेता हैं। मुंबई में 26 नवंबर के आतंकवादी हमलों के बाद अपने पुत्र के साथ प्रख्यात निर्देशक रामगोपाल वर्मा को लेकर ताज होटल जाने के कारण विवादों से घिरे देशमुख को उसके बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।दयानिधि मारन : शौकिया हैम रेडियो ऑपरेटर दयानिधि को विरासत में राजनीति मिली है। उनके पिता मुरासोली मारन तमिलनाडु के कद्दावर नेता थे। मुख्यमंत्री एम करुणानिधि रिश्ते में उनके दादा हैं। दयानिधि के बड़े भाई कलानिधि मारन सन नेटवर्क के संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं। यह समूह दक्षिण भारत में चार भाषाओं में सबसे ज्यादा उपग्रह टेलीविजन चैनल चलाता है। चेन्नई के डॉन बॉस्को स्कूल से पढ़ाई करने वाले दयानिधि का जन्म 5 दिसंबर, 1966 को तंजावुर में हुआ। 14वीं लोकसभा के वह सदस्य थे और करुणानिधि परिवार में विवाद के कारण उन्हें पिछली सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। पिछले चुनाव में ही उन्होंने अपनी सम्पत्ति करीब 1.6 करोड़ रुपये घोषित की थी।मल्लिकार्जुन खड़गे : कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन गुलबर्ग से निर्वाचित होकर लोकसभा में दाखिल हुए हैं। लगातार नौ विधानसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुके खड़गे आठ बार गुरमिटकल (सुरक्षित) विधानसभा सीट और एक बार चित्तपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से जीते थे। खड़गे हालांकि अब भी राज्य की राजनीति में ही बने रहना चाहते थे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने उन्हें 15वीं लोकसभा चुनाव में गुलबर्ग ग्रामीण सीट पर चार बार के सांसद भाजपा के रेवू नाइक बेलायगी के खिलाफ उतारा और उन्होंने नेतृत्व को निराश नहीं किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें लिया जाना इसी विश्वास का तोहफा माना जा सकता है।ए राजा : तमिलनाडु के नीलगिरी संसदीय सीट से सांसद राजा पिछली सरकार में भी मंत्री थे।सुबोधकांत सहाय : रांची से सांसद हैं। पिछली सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री थे। वीपी सिंह की सरकार में गृह राज्यमंत्री थे।एमएस गिल : राज्यसभा सदस्य हैं। केन्द्र में खेल राज्यमंत्री। पूर्व में मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं और पद्म विभूषण से सम्मानित हैं।जीके वासन : तमिल मानिला कांग्रेस के नेता जीके मूपनार के बेटे हैं। सोनिया गांधी के कहने पर कांग्रेस में पार्टी का विलय किया और राज्यमंत्री रह चुके हैं।पवन कुमार बंसल : चंडीगढ़ से सांसद बंसल पिछली सरकार में वित्त राज्यमंत्री रहे। इसके पहले उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप की भूमिका अदा की है।कांतिलाल भूरिया : मध्यप्रदेश के झाबुआ से सांसद हैं। पिछली सरकार में कृषि और खाद्य एवं रसद मंत्री रहे।मुकुल वासनिक : महाराष्ट्र के रामटेक से निर्वाचत वासनिक को कांग्रेस संगठन में कार्य करने का खासा अनुभव हासिल है। पहली बार उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। वह कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और पार्टी महासचिव हैं।कुमारी शैलजा : हरियाणा के दलित नेता चौधरी दलबीर सिंह की पुत्री कुमारी शैलजा पहली बार कैबिनेट मंत्री बनी हैं। 24 दिसंबर, 1962 को पैदा शैलजा अविवाहित हैं और उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से एमफिल की उपाधि हासिल की है। उन्होंने महिला कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी और 1990 में इसकी अध्यक्ष बनीं। 1991 में वह पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं और नरसिम्हा राव सरकार में राज्यमंत्री बनीं। पिछली सरकार में वह आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्री थीं। वह अंबाला सीट से सांसद हैं।फारुक अब्दुल्ला : शेर-ए-कश्मीर के नाम से प्रख्यात शेख अब्दुल्ला के पुत्र फारुक अब्दुल्ला वैसे तो पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन राजनीति में उन्होंने अपनी अलग जगह बनाई है। हालांकि उनका राजनीतिक करियर विवादों से अछूता नहीं रहा है। 21 अक्तूबर, 1936 को जम्मू-कश्मीर के सौरा में पैदा हुए फारुक 1981 में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष बने। 1984 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। इससे पहले 1983 में उन्होंने कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी के तालमेल से इंकार कर दिया था। 1987 में अब्दुल्ला कांग्रेस के साथ तालमेल कर चुनाव में उतरे। उन्होंने ब्रिटिश मूल की नर्स मोली से शादी की, जो ज्यादातर इंग्लैंड में रहती हैं। उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला इस वक्त जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं, जबकि मनमोहन सरकार में राज्यमंत्री बनने जा रहे सचिन पायलट उनके दामाद हैं।एम के अझागिरि : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के ज्येष्ठ पुत्र मथुवेल करुणानिधि अझागिरि को उनके पिता के राजनीतिक वारिस के तौर पर देखा जाता है, लेकिन सौतेले भाई एमके स्टालिन से उन्हें प्रतिस्पर्धा मिलती रहती है। अझागिरि करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्मल की संतान हैं। स्टालिन और अझागिरि की राजनीतिक लड़ाई उस समय सार्वजनिक हुई, जब करुणानिधि के बड़े पुत्र के समर्थकों ने मारन परिवार के स्वामित्व वाले सन टीवी समूह के अखबार दिनाकरन के दफ्तर पर हमला किया और आग लगा दी। अझागिरि को आपराधिक मुकदमों का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन उन्हें द्रमुक के एक पूर्व मंत्री की हत्या के मामले में विश्वसनीय सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
स्वतंत्र प्रभार वाले सात राज्यमंत्री
पृथ्वीराज चव्हाण : पिछली संप्रग सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री रहे चव्हाण को इस बार स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया गया है। उन्होंने राजस्थान के बिट्स पिलानी से बीई (ऑनर्स) और अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से एमएस किया है। 1991 में वह पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। फिलहाल वह राज्यसभा के सदस्य हैं।श्रीप्रकाश जायसवाल : उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत पतली रहने के समय भी लोकसभा चुनाव जीतने वाले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्रीप्रकाश जायसवाल पिछली सरकार में गृह राज्यमंत्री थे। कानपुर से सांसद जायसवाल को इस बार स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। 25 सितंबर, 1944 को उनका जन्म हुआ था।सलमान खुर्शीद : पेशे से वकील और लेखक सलमान खुर्शीद के पिता खुर्शीद आलम खां भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। वह देश के तीसरे राष्ट्रपति डा जाकिर हुसैन के पौत्र हैं और दिल्ली के सेंट स्टीफन्स तथा ऑक्सफोर्ड के सेंट एडमंड हॉल से उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई है। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान वह प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष कार्य अधिकारी थे। बाद में वह विदेश राज्यमंत्री के पद पर भी रहे। दो बार उन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संगठन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस बार वह फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए हैं।दिनशॉ पटेल : पिछली सरकार में पेट्रोलियम राज्यमंत्री रहे दिनशॉ को कांग्रेस ने 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मणिनगर सीट से उतारा था। वह हालांकि मोदी के हाथों पराजित हो गए, लेकिन पार्टी ने तब उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश कर दिया था। वह लगातार लोकसभा के लिए निर्वाचित होते आ रहे हैं।जयराम रमेश : रमेश को कांग्रेस के रणनीतिकारों में शुमार किया जाता है। वह राज्यसभा सदस्य हैं और पिछली सरकार में उन्होंने वाणिज्य राज्यमंत्री तथा ऊर्जा राज्यमंत्री का पद संभाला था। 2009 के आम चुनाव से पहले पार्टी की रणनीति तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन उनकी कुर्बानी पार्टी के काम आई और अब पार्टी ने उन्हें फिर मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया है। उनका जन्म 9 अपैल, 1954 को कर्नाटक के चिकमंगलूर में हुआ था, लेकिन वह उच्च सदन में आंध्र प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं।कृष्णा तीरथ : राष्ट्रीय राजधानी में विधायक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाली कृष्णा तीरथ पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बनी हैं। 3 मार्च, 1955 को जन्मी कृष्णा प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। 14वीं लोकसभा के दौरान वह पीठासीन अधिकारियों के पैनल में शामिल थीं।प्रफुल पटेल : कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नेता दिवंगत मनोहरभाई पटेल के सुपुत्र प्रफुल पटेल महाराष्ट्र के गोंडिया जिले से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनका जन्म 17 फरवरी, 1957 को कोलकाता में हुआ था। राजनीति में कदम रखने से पहले वह परिवार का व्यवसाय संभालते थे और उन्होंने वाणिज्य विषय से स्नातक तक की पढ़ाई की है। पटेल 34 साल की उम्र में 1991 में पहली दफा लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। उसके बाद वह लगातार जीतते रहे, लेकिन 1999 और 2004 में वह जनता का समर्थन नहीं पा सके। इस बार वह भंडारा गोदिया से निर्वाचित हुए हैं। पिछली सरकार में भी उन्हें स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री का दर्जा मिला था। वह सफल व्यवसायी हैं और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं।

हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर

हिंदी फिल्मों में कपूर खानदान की नींव रखने वाले पृथ्वीराज कपूर बहुचर्चित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की भूमिका के कारण आज भी लोगों की स्मृतियों में अपना स्थान बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने अपने दौर में फिल्म ही नहीं रंगमंच को भी काफी सशक्त योगदान दिया।
आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने करीब 16 वषरें में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी।
पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त जोर दिया गया। उनके नाटकों मे दीवार, पठान, गद्दार, किसान, पैसा, आहुति, कलाकार आदि शामिल हैं। तीन नवंबर 1906 को अविभाजित पंजाब में पैदा हुए पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर पुलिस अधिकारी थे और वह अपने पुत्र को वकील बनाना चाहते थे। वकालत की पढ़ाई के दौरान ही उनका नाट्य प्रेम जगा और उन्होंने सपनों की नगरी मुंबई की राह ले ली।
पृथ्वीराज कपूर मूक फिल्मों के दौर से ही सिनेमा से जुड़ गए। उन्होंने पहली बोलती फिल्म आलमआरा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में वह एक नाट्य कंपनी ग्रांट एंडरसन थिएटर से जुड़ गए और उस कंपनी की प्रस्तुति हैमलेट में काम किया। उन दिनों कोलकाता फिल्म निर्माण का प्रमुख केंद्र बन गया था और वह भी कोलकाता चले गए। वहां वह प्रसिद्ध न्यू थिएटर में शामिल हो गए। वहां उन्होंने कई चर्चित फिल्मों में काम किया। उन फिल्मों में सीता, मंजिल और विद्यापति शामिल हैं। उनकी जबरदस्त अभिनय प्रतिभा का परिचय 1941 में प्रदर्शित सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर में मिला। उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी से सिकंदर के किरदार को अमर बना दिया। इसी प्रकार उन्होंने 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की स्मरणीय भूमिका की।
फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के बावजूद उन्हें तृप्ति नहीं मिली और उनका ध्यान रंगमंच की ओर ही लगा रहा। कलाकार मन की इसी बेचैनी के बीच उन्होंने 1944 में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। पृथ्वीराज कपूर ने मुगल-ए-आजम, सिकंदर के अलावा अपने पुत्र राजकपूर के निर्देशन में बनी फिल्म आवारा में एक जज की अविस्मरणीय भूमिका की। उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में कल आज और कल, तीन बहूरानियां, आसमान, महल आदि शामिल हैं।
पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था। फिल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली इस महान हस्ती का 29 मई 1972 को निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया था।

Wednesday, May 27, 2009

फौजी भाइयों के लिए जूते बनाएगी बाटा

कोलकाता। फुटवियर बनाने वाली बाटा इंडिया ने रक्षा और अर्द्धसैनिक बलों के लिए फुटवियर तैयार करने की योजना बनाई है और इस संबंध में ठेके हासिल करने के लिए कंपनी ने एक समर्पित टीम का गठन किया है।बाटा इंडिया के गैर कार्यकारी अध्यक्ष पी.एम. सिन्हा ने बताया कंपनी का इरादा रक्षा अर्द्धसैनिक और पुलिस बलों के खंड में उतरने का है जहां कारोबार की व्यापक संभावनाएं हैं। हालांकि इसमें कुछ समय लगेगा।उन्होंने कहा कि कंपनी ने देशभर में 65-70 स्टोर्स खोलने की भी योजना बनाई है। वर्तमान में रक्षा बलों के लिए जूते असंगठित क्षेत्र से खरीदे जाते हैं। सिन्हा ने कहा कि बाटा ग्रामीण बाजारों में भी संभावनाएं तलाश रही है। उन्होंने कहा कि संगठित जूता उद्योग में बाटा 33 फीसद बाजार हिस्सेदारी के साथ अग्रणी स्थिति में है।

छत व पेड़ बने तबाह लोगों के पनाहगाह

कोलकाता सैकड़ों गांव जलमग्न। घरों, अन्य इमारतों की छतों और पेड़ों पर शरण लिए लोग। हजारों की तादाद में खंभे धराशायी, नतीजतन बिजली व्यवस्था ठप। टावरों के गिरने से संचार व्यवस्था भी खामोश। रेल और हवाई सेवा प्रभावित। पश्चिम बंगाल में तबाही की यह निशानियां दे गया है 'आइला' यानी प्रलयंकारी तूफान। सोमवार को मौत बनकर आया यह तूफान 70 से अधिक जिंदगियों को समेट ले गया है। दर्जनों लोग लापता हैं। कम से कम 14 लाख लोग प्रभावित हैं। बहरहाल राहत कार्य युद्ध स्तर पर है।
उत्तर-दक्षिण 24 परगना तबाह पश्चिम बंगाल में 'आइला' ने सर्वाधिक तबाही उत्तर और दक्षिण 24 परगना में मचाई है। इन दोनों जिलों में 50 लोगों की मौत हो गई है। अस्सी हजार से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। 20 हजार से अधिक कच्चे मकान ढह गए हैं। विभिन्न नदियों पर बने करीब 16 बांध टूट चुके हैं। सैकड़ों गांव जलमग्न हैं। हजारों एकड़ फसल बरबाद हो गई है। इन दोनों जिलों में लोग घरों, ऊंची इमारतों की छतों व पेड़ों पर शरण लिए हैं। बिजली आपूर्ति और टेलीफोन ठप हैं। रेल और हवाई सेवा भी प्रभावित है।
हेलीकाप्टर व बोट के साथ जुटी सेना सेना के जवान हेलीकाप्टर व स्पीड बोट की मदद से राहत कार्य में जुटे हैं और फंसे लोगों को निकाल रहे हैं। मंगलवार को सेना के करीब दो सौ जवान राहत कार्य के लिए प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे। दो हेलीकाप्टर और छह स्पीड बोट भी राहत और बचाव कार्य में लगाए गए हैं। सेना की इन टीमों को सबसे प्रभावित संदेशखाली, कुलतली और सुंदरवन के इलाके में राहत सामग्री पहुंचाने और फंसे लोगों को बाहर निकालने में लगाया गया है। सेना के छह कालम को सतर्क भी रखा गया है।
बीस ट्रक खाद्य सामग्री पहुंचीमुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने मंगलवार को दक्षिण चौबीस परगना जिले के कुल्टी इलाके का दौरा कर राहत कैंप और प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया। युद्धस्तर पर राहत और बचाव कार्य चलाने का निर्देश दिया। उन्होंने दो दिन के अंदर क्षतिपूर्ति मुहैया कराने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने बताया कि बीस से अधिक ट्रकों से खाद्य पदार्थ पहुंचाए गए हैं। राहत के लिए प्रधानमंत्री से भी उन्होंने बातचीत की है। तीन मंत्रियों को प्रभावित क्षेत्रों में कैंप करने को कहा गया है। प्रभावितों के बीच हेलीकाप्टर के अलावा आठ ट्रकों से चूड़ा, गुड़ और अन्य सूखा खाना पहुंचाया जा रहा है। राहत शिविर कायम किए गए हैं।
चार्ज लेकर ममता पहुंची काकद्वीप कोलकाता में रेल मंत्री का कार्यभार संभालने के बाद ममता बनर्जी ने मंगलवार को दोपहर विशेष ट्रेन से काकद्वीप का दौरा कर राहत व बचाव कार्य का जायजा लिया। पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री असीम दासगुप्ता और राहत मंत्री मुर्तजा हुसैन ने तूफान प्रभावितों के बीच 25 लाख रुपये अनुदान की घोषणा की।
दार्जिलिंग में भूस्खलन, 15 मरेजबरदस्त बारिश के कारण पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में भूस्खलन के कारण 15 लोगों की मौत हो गई है। नौ तो खास दार्जिलिंग और उपनगर कर्सियांग में छह लोग मरे हैं। दार्जिलिंग के जिला पदाधिकारी सुरेंद्र गुप्ता ने बताया कि सेना की पांच टीमों को राहत व बचाव कार्य में लगाया गया है।
पूर्वोत्तर भी चपेट मेंपश्चिम बंगाल के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में भी खासा नुकसान पहुंचा है। सिक्किम के गंगटोक में तीन सौ घर ढह गए हैं। भू-स्खलन के कारण अवरुद्ध हुए सड़कों पर यातायात शुरू करने के लिए बीएसएफ की आपदा प्रबंधन टीम को भी बुलाया गया है। मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिमी असम में भी दो दिनों से जारी भारी वर्षा और पचास से साठ किलोमीटर की रफ्तार से चल रहे तूफान के कारण सैकड़ों घर ढह गए और खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा है।
बांग्लादेश में पांच सौ लापताआइला तूफान ने बांग्लादेश में कहर बरपाया। 62 लोगों की मौत घरों के गिरने और डूबने से हो गई है। मछुआरों सहित पांच सौ लोग लापता हैं। सोमवार को सौ किलोमीटर की रफ्तार से बांग्लादेश के समुद्रतटीय इलाके से गुजरे 'आइला' ने जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया।

Tuesday, May 26, 2009

महानगर में खुलेगा दमकल विश्वविद्यालय

कोलकाता। केंद्रीय विमानन विभाग कोलकाता में देश का पहला दमकल विश्वविद्यालय खोलेगा। दमकल विश्वविद्यालय एयरपोर्ट इलाके के नारायणपुर में 25 एकड़ भूमि में स्थापित किया जायेगा। इसमें विमान दुर्घटना होने पर उससे निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा। स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई होगी। शुरुआती दौर में इसे हैदराबाद में खोलने की योजना थी। इंटरनेशनल सिविल एवियेशन आर्गनाइजेशन के अनुसार अब इसे कोलकाता में खोला जायेगा। कोलकाता क्षेत्र के डीजीएम जीवब्रत तरफदार ने कहा कि 737 विमान के अंदर जितने तार रहते हैं उससे दिल्ली शहर को सात बार घेरा जा सकता है। इस तरह के तथ्य अधिकारियों को जानने की जरूरत है। विमान में आग लगने पर उसे किस स्थान पर काटकर यात्रियों को निकाला जा सकता है। इसकी भी जानकारी होनी चाहिए। इसमें एयरपोर्ट अधिकारियों के अलावा उच्च माध्यमिक पास विद्यार्थियों को भी पढ़ने का अवसर मिलेगा।

मुख्यमंत्री सचिवालय को जनमुखी बनाने का प्रयास तेज

कोलकाता। राइटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री सचिवालय को अब जनमुखी बनाने का प्रयास शुरू किया जा रहा है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य के निर्देश पर इसे लेकर नौकरशाहों की गतिविधियां तेज हो गयी है। राइटर्स बिल्डिंग सूत्रों के मुताबिक श्री भंट्टाचार्य पहले से ही मुख्यमंत्री सचिवालय में आमुलचूल परिवर्तन करने पर जोर देते रहे हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को झटका लगने के बाद अब वह इसके लिए विशेष रूप से सक्रिय हुए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री सचिवालय के समस्त अफसरों से सरकार की खामियों को ढूढ़ने और जनता के हित में काम करने के लिए राय मांगी है।
मुख्यमंत्री सचिवालय में वर्तमान में दो आइएस अफसर शामिल हैं। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुवेश दास सहित मुख्यमंत्री सचिवालय में दो वरिष्ठ आईएस अफसर हैं। इसके अतिरिक्त दो संयुक्त सचिव, एक उपसचिव, निजी सचिव, और सहायक निजी सचिव भी मुख्यमंत्री सचिवालय टीम में हैं और इसमें 60 योग्य कर्मचारियों का समूह भी है। सरकार के काम की गति बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय को पीएमओ आफिस के ढांचे पर तैयार करने की बात भी उठती रही है लेकिन पार्टी ने इसके लिए हरी झंडी नहीं दी। पीएमओ आफिस का सभी मंत्रालयों पर नियंत्रण होता है लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री सचिवालय अन्य विभागों में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करता। अब बदलते हालात में मुख्यमंत्री सचिवालय विशेष रूप से सक्रिय होगा और महत्वपूर्ण मामलों में वह हस्तक्षेप करेगा। भूमि अधिग्रहण और उद्योग मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय विशेष रूप से नजर रखेगा। शिकायतों को सुनने और उसे तत्काल निपटारा करने के लिए जनता के साथ संपर्क स्थापित करने और जरूरमंदों को हर तरह से मदद करने पर जोर दिया जायेगा। मुख्यमंत्री अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ अक्सर बैठक करेंगे और विकास मूलक कायरें की समीक्षा करेंगे।

Monday, May 25, 2009

सुकांतनगर में बनेगा बैथून कॉलेज का सेकेंड कांप्लेक्स

उत्तर कोलकाता के १८१, विधान सरणी स्थित बैथून कॉलेज की स्थापना १३० साल पहले यानी १८७९ में हुई थी। लड़कियों को शिक्षित करने के मकसद से शहर में यह पहला कॉलेज स्थापित किया गया था। आरंभिक काल में जहां इस कॉलेज में १२५ लड़िकयों के बैठने और पढ़ने की व्यवस्था थी, वहीं आज यहां ११०० लड़कियां शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसके बावजूद कॉलेज के विस्तर की जरूरत है। यह मानना है कॉलेज की प्रभारी मंजुषा सिन्हा (बेरा) का। बातचीत में उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से लोग शिक्षा के महत्त्व को समझ रहे हैं और नारी शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि बैथून कॉलेज पूरी तरह से सरकारी कॉलेज है अौर कॉलेज प्रबंधन बीते कई सालों से राज्य सरकार से कॉलेज के विस्तार के लिए भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर ईएम बाईपास इलाके के समीप जमीन की मांग कर रहा था। काफी विचार-विमर्श के बाद अब यह तय हुआ कि एससीएफ, सेक्टर चार, सुकांतनगर, साल्टलेत में कॉलेज का सेकेंड कांप्लेक्स बनेगा और इसके लिए जगह की पहचान कर ली गई है। बहुत जल्द निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। पेश है कॉलेज के विस्तार के संबंध में प्रभारी मंजुषा सिन्हा (बेरा) के साथ शंकर जालान की हुई बातचीत के मुख्य अंश।
सुकांत नगर में जगह कब मिली और वहां निर्माण कायॆ कब शुरू होगा ?
जगह के बारे में बातचीत को काफी पहले से चल रही थी, इस बाबत अंतिम निर्णय बीते साल सितंबर-अक्तूबर में हुआ। फिलहाल कागजी कार्रवाई चल रही है। इसके पूरे होते ही निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।

वहां कितनी जगह है और कौन सा विभाग खोला जाएगा ?
३८ कठ्ठा जमीन है और वहां पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) विभाग खोला जाएगा। जहां एमए व एमएससी की पढ़ाई होगी।

कॉलेज के विस्तार के लिए कॉलेज प्रबंधन ने राज्य सरकार से काफी पहले ही नोनाडांगा और ईएम बाईपास इलाके में तीन एकड़ जमीन की मांग की थी, उसकी क्या हुआ ?
राज्य सरकार ने नोनाडांगा और ईएम बाईपास इलाके में जगह नहीं उपलब्ध कराई औप ना ही इसका कोई पुख्ता कारण बताया।

सही मायने में बैथून कॉलेज के विस्तार के लिए कितनी जगह चाहिए और कहां ?
कॉलेज के समुचित विकास के लिए तीन एकड़ जमीन चाहिए औप बेहतर हो कि यह जमीन मध्य और उत्तर कोलकाता से दूर शांत वातावरण वाले इलाके में हो। मेरे ख्याल में साल्टलेक और ईएम बाईपास का इलाका शिक्षण संस्थान के निर्माण के लिए बेहतर होगा।

बैथून कॉलेज परिसर में ही काफी जगह खानी पड़ी है, यहां निर्माण क्यों नहीं हो रहा है ?
पहली बात तो यह है कि यह कॉलेज पूरी तरह सरकारी है और यहां की जमीन भी सरकार की। इसलिए निर्णय लेने का अधिकार भी राज्य सरकार को है। मेरे शब्दों में बात कहूं तो यह इलाका अब उच्च शिक्षा ग्रहण के लिए उतना अनुकूल नहीं रह गया है। बीते कुछ सालों में यहां कि आबादी बढ़ी है और इस लिहाज से शोर-शराबा भी बढ़ा है, जो अध्ययन को प्रभावित कर सकता है। इससे पढ़ने वालों की एकाग्रता भंग हो सकती है।

आप ने ठीक कहा, शोर-शराबा पढ़ने वालों की एकाग्रता भंग करता है। इसी वजह से रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के अध्ययन विभाग को यूजीसी की सिफारिश पर जोड़ासांकू से बीटी रोड स्थानांतरित कर दिया गया है। भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर ही उच्च शिक्षण संस्थान का निर्माण होना चाहिए. आप इस बात से सहमत हैं ?
बिल्कुल सहमत हूं।

क्या आप को मालूम है कि इस बाबत राज्य सरकार ने एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया था। कमिटी ने कब और क्या रिपोर्ट दी ?
मैंने सुना जरूर है कि बैथून कॉलेज के विस्तार के सिलसिले में बीते साल एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया गया था, लेकिन मैं उस कमिटी की सदस्य नहीं थी। इसलिए मुझे विशेष कुछ मालूम नहीं है। इतना जरूर कह सकती हूं कि सुकांतनगर में जो जमीन कॉलेज के विस्तार के लिए मिल रही है वह कमिटी की रिपोर्ट से इत्तिफाक जरूर रखती होगी।

मध्य कोलकाता के गणेश टॉकीज के समीप रवींद्र सरणी स्थित किसी की निजी जमीन पर भी कॉलेज के विस्तार या सेकेंड कांप्लेक्स की बात चल रही थी, उसका क्या हुआ ?
इस बारे में पुख्ता नहीं मालूम। मेरी जानकारी के मुताबिक, वह जमीन विवादित है। मामला विचाराधीन है। मामले की सुनवाई और फैसला आने तक कॉलेज के विस्तार को नहीं रोका जा सकता। इसिलए राज्य सरकार ने हमें दूसरी जमीन उपलब्ध करा दी है।