हिंदी फिल्मों में कपूर खानदान की नींव रखने वाले पृथ्वीराज कपूर बहुचर्चित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की भूमिका के कारण आज भी लोगों की स्मृतियों में अपना स्थान बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने अपने दौर में फिल्म ही नहीं रंगमंच को भी काफी सशक्त योगदान दिया।
आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने करीब 16 वषरें में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी।
पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त जोर दिया गया। उनके नाटकों मे दीवार, पठान, गद्दार, किसान, पैसा, आहुति, कलाकार आदि शामिल हैं। तीन नवंबर 1906 को अविभाजित पंजाब में पैदा हुए पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर पुलिस अधिकारी थे और वह अपने पुत्र को वकील बनाना चाहते थे। वकालत की पढ़ाई के दौरान ही उनका नाट्य प्रेम जगा और उन्होंने सपनों की नगरी मुंबई की राह ले ली।
पृथ्वीराज कपूर मूक फिल्मों के दौर से ही सिनेमा से जुड़ गए। उन्होंने पहली बोलती फिल्म आलमआरा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में वह एक नाट्य कंपनी ग्रांट एंडरसन थिएटर से जुड़ गए और उस कंपनी की प्रस्तुति हैमलेट में काम किया। उन दिनों कोलकाता फिल्म निर्माण का प्रमुख केंद्र बन गया था और वह भी कोलकाता चले गए। वहां वह प्रसिद्ध न्यू थिएटर में शामिल हो गए। वहां उन्होंने कई चर्चित फिल्मों में काम किया। उन फिल्मों में सीता, मंजिल और विद्यापति शामिल हैं। उनकी जबरदस्त अभिनय प्रतिभा का परिचय 1941 में प्रदर्शित सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर में मिला। उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी से सिकंदर के किरदार को अमर बना दिया। इसी प्रकार उन्होंने 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगल-ए-आजम में शहंशाह अकबर की स्मरणीय भूमिका की।
फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के बावजूद उन्हें तृप्ति नहीं मिली और उनका ध्यान रंगमंच की ओर ही लगा रहा। कलाकार मन की इसी बेचैनी के बीच उन्होंने 1944 में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। पृथ्वीराज कपूर ने मुगल-ए-आजम, सिकंदर के अलावा अपने पुत्र राजकपूर के निर्देशन में बनी फिल्म आवारा में एक जज की अविस्मरणीय भूमिका की। उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में कल आज और कल, तीन बहूरानियां, आसमान, महल आदि शामिल हैं।
पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था। फिल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली इस महान हस्ती का 29 मई 1972 को निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया था।
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