Saturday, May 23, 2009

मुन्ना महाराज को कौन नहीं जानता

कोलकाता के अलीपुर इलाके के जज कोर्ट रोड के उस आकाश चूमते अपार्टमेंट के बाहर अंगरेजी के मोटे अक्षरों में लिखा है ‘मारवाड़’. सुरक्षा के चाक-चौबंद प्रबंध की औपचापरकता से गुजरने के बाद सामने के जिस हॉल में हम पहंचे हैं, वहां चप्पे-चप्पे पर ‘राजस्थान’ दिख रहा है. रेगिस्तान में ऊंट सवार और राजस्थानी पपरधानों में सजे-संवरे स्त्रियों-पुरुषों की पेंटिग्स. राजस्थानी शैली के फ़र्नीचर व बरतन. कहीं हम गलत जगह पर तो नहीं आ गये? थोड़ी देर में हम अपार्टमेंट के फ़स्र्ट फ्लोर पर कैटपरंग व्यवसाय से जुड़े दीपक कुमार सिंह उर्फ़ मुन्ना महाराज के ऑफ़िस में पहंचते हैं. गरमजोशी से स्वागत के बाद बातचीत में कंपनी का नाम पूछते ही तपाक से मुन्ना महाराज जवाब देते हैं, ‘अरे, कंपनी की क्या जरूरत है? मुन्ना महाराज को कौन नहीं जानता?’ मुन्ना महाराज का यह दावा घमंड नहीं, आत्मविश्वास से भरा है. कभी कोलकाता की गलियों में 100-200 रुपयों में हलवाई व रसोईया का काम करनेवाले मुन्ना महाराज आज बिड़ला,जिंदल, मित्तल, मोदी समेत देश-दुनिया के प्रमुख औद्योगिक घरानों के आयोजनों में कैटपरंग के लिए पहली पसंद हैं. दुनिया के जाने-माने उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल अपने बेटे की शादी पेपरस में करते हैं, तो कोलकाता से मुन्ना महाराज की कैटपरंग टीम वहां जाती है. कुमार मंगलम बिड़ला के शादी समारोह से लेकर मुंबई के होटल ओबेरॉय में माइकल जैक्शन के आगमन की पार्टी तक सैकड़ों आयोजनों में मुन्ना महाराज की कैटपरंग ने चार-चांद लगाये हैं. कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, राजस्थान जैसे महानगर हो, धनबाद, रांची, पटना, जमशेदपुर जैसे शहर हो या फ़िर मलयेशिया, बैंकॉक, सिंगापुर, पेपरस की विदेशी धरती, मुन्ना महाराज की कैटपरंग टीम का जलवा सभी जगह छाया रहा. आज मुन्नाज ग्रुप के नाम से देश के विभिन्न इलाकों में मुन्ना महाराज कीकैटपरंग के दर्जन भर ऑफ़िस चल रहे हैं. कैटपरंग के अलावा कोलकाता में मुन्ना महाराज के रेस्टोरेंट, मिठाई दुकान, फ़ास्ट फ़ूड सेंटर व बेकरी के भी धंधे हैं. उनके व्यवसाय से 700 लोगों को सीधे रोजगार मिला है.यह सब कैसे संभव हो पाया? मुन्ना महाराज कहते हैं ‘व्यवहार, चपरत्र व भरोसे की लाज. यही मेरी सफ़लता का मंत्र है. जिसका काम लिया, मेहनत व ईमानदारी से उसे पूरा किया. विश्वास जीत पाया, तो सफ़लता के रास्ते खुलते गये.’ हिम्मत, विश्वास जीतने की क्षमता, विनम्र स्वभाव, कड़ी मेहनत और दूरदृष्टि के मेल से क्या चमत्कार हो सकता है, मुन्ना महाराज इसकी जीवंत मिसाल हैं. आधे घंटे की बातचीत के दौरान मोबाइल पर आनेवाले तमाम कॉलों को अटेंड करते हुए अनगिनत बार मुन्ना महाराज ‘जी भईया, ओके भईया, आदेश भईया’ बोलते हैं. बिहार के गया जिले के मटुकबीघा गांव से मुन्ना महाराज के पिता महावीर सिंह कोलकाता आये थे. पिता ने हलवाई व रसोईया का काम शुरू किया. 15 साल के थे मुन्ना महाराज, जब 1979 में एक दुर्घटना में पिताजी चल बसे. पपरवार अनाथ हो गया. 10वीं के बाद पढ़ाई ूट गयी. मां, तीन भाइयों व दो बहनों से भरे पपरवार का पेट भरने की चुनौती सामने थी. मुन्ना महाराज ने पिता से विरासत में मिले हलवाई व रसोईया का काम शुरू किया. पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद बदलते बाजार की समझ थी, सो उस हिसाब से खुद को तैयार करते चले गये. मुन्ना महाराज बताते हैं, ‘छोटे स्तर पर कैटपरंग का धंधा शुरू किया, तो बदलते समय को ध्यान में रखते हए खाने की क्वालिटी और नये कांसेप्ट का खास ध्यान रखा.’ (साभार)

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