Sunday, May 31, 2009

उन्हें चाहिए बस पांच मिनट! अमिताभ बच्चन

जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार नहीं किया। वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। अतिथि x अमिताभ बच्च्नमुझे आज पूर्णता का एहसास हो रहा है। मैं दिन भर अपने पिता की स्मृतियों से गुजरता रहा। मैं एक प्रस्तावना के लिए अंधेरे में ही उन समुचित भावनाओं और शब्दों की तलाश करता रहा, जिनमंे मेरे पिता की शख्यिसत संपूर्णता के साथ अभिव्यक्त हो सके।यह कुछ-कुछ वैसा ही संघर्ष था, जैसा मधुशाला के दौरान करना पड़ा था। मेरी नई फिल्म ‘अलादीन’ की डबिंग और अगली फिल्मों के निर्माताओं व टीवी चैनलों के साथ चर्चा के दौरान अंतिम प्रारूप अब तैयार होने की स्थिति में आ चुका है।पिता ने अपनी भूमिकाओं में जो कहा, मैंने इस प्रस्तावना के लिए बहुत कुछ उसी से लिया है। उन्होंने काफी कुछ लिखा है, लेकिन इसके बावजूद उनकी लिखने की चाहत कम नहीं हुई। उनके प्रति न्याय करना बेहद मुश्किल है। माता-पिता, उनके स्वार्थरहित प्रेम और शर्तविहीन देखभाल के प्रति न्याय करना लगभग असंभव है। जब मैं उनकी उपस्थिति की कल्पना करता हूं तो उनके सामने स्वयं को बौना महसूस करने लगता हूं। मैं जब पुरानी बातों के बारे में सोचता हूं तो महसूस होता है कि उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के जरिए कैसे हमारा लालन-पालन किया होगा।अपने लिए तो उनकी कोई चाहत थी ही नहीं। कदम-कदम पर आने वाली आर्थिक परेशानियों का उन्होंने किस तरह से सामना किया होगा। जब वे अपने बच्चों की असीमित और अनगिनत मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं पाते होंगे तो दुनिया का सामना कैसे करते होंगे। हमें जल्दी ही एहसास हो गया था कि हम हमारी कक्षा के अन्य अमीर बच्चों से मुकाबला नहीं कर सकते। उस समय हमारे दिमाग में कितनी उथल-पुथल मची होगी, जब हमें स्वयं के मन को यह समझाकर पीछे बैठना पड़ा कि हमारी आर्थिक स्थिति उन अमीर बच्चों की स्थिति से अलग है।मैं उस समय तो निराशा में लगभग चीख उठा था, जब मेरी मां मुझे दो रुपए नहीं दे पाई। जी हां, केवल दो रुपए। ये दो रुपए मुझे अपनी कक्षा की क्रिकेट टीम में शामिल होने के लिए चाहिए थे। हमें हमारे दोस्त की बर्थ डे पार्टी में साइकिल चलाकर क्यों जाना पड़ता था, जबकि अन्य साथी चमकदार कारों में बैठकर आते थे। यह भी जल्दी ही समझ में आ गया था कि क्यों मेरे ड्रॉइंग रूम में एयरकंडीशनर नहीं लगा था, जो मेरे अमीर दोस्त के कमरे मंे लगा हुआ था।क्यों मेरे पास केवल एक जोड़ी जींस और एक ही कोट था। दिक्कत इसलिए होती थी, क्योंकि मुझे सभी बड़े अवसरों पर यही ड्रेस पहननी पड़ती थी। मुझे अब भी याद है दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम था। इसमें हर्बर्ट वॉन करंजन प्रस्तुति देने वाले थे।उसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन वहां जाने में मैं बहुत शर्मिदगी महसूस कर रहा था। इसकी वजह यह थी कि मेरे पास केसरिया रंग का एक ही कोट और एक काले रंग का ट्राउजर था। उसे शायद ही कभी ड्राईक्लीन के लिए भेजा गया होगा, क्योंकि उसका खर्च हम वहन नहीं कर सकते थे। यूनिवर्सिटी में मुझे कैसा महसूस हुआ होगा, जब मैं कोका कोला की एक बॉटल नहीं खरीद सका। वह चार आने में मिलती थी और इतना पैसा मेरे पास नहीं था। न ही मैं स्वादिष्ट खीरे के टुकड़े खरीद पाता था। यह खीरा रोजाना मेरे कॉलेज परिसर के दरवाजे पर एक व्यक्ति छोटी-सी ठेलागाड़ी में रखकर बेचता था।सालों के बाद मैं स्थापित हो गया। जिंदगी अच्छे ढंग से चलने लगी। अब मैं कोका कोला के क्रेट्स खरीद सकता था, अत्याधुनिक मॉडलों की लक्जरी कारों में सफर कर सकता था, महंगे से महंगे रेस्टोरेंट में जा सकता था और अच्छे से अच्छा खाना खा सकता था। जब हम कोलकाता में थे तो 10 बाई 10 के छोटे-छोटे कमरों में रहा करते थे। अब हमारे पास अपना स्वयं का भव्य मकान था। जब हमने अपने माता-पिता से उनकी पसंद के बारे में पूछा, उनसे कहा कि जो चाहिए, मांग लीजिए तो हमें उनकी ओर से कोई जवाब क्यों नहीं मिला? उन्होंने हमसे कुछ भी स्वीकार क्यों नहीं किया? ऐसा इसलिए क्योंकि वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि हम उनके साथ बैठें, उनसे बातचीत करें और उन्हें बताएं कि दिनभर क्या हुआ। बस वे इतना ही तो चाहते थे!वे मेरे अपने ही थे जिन्होंने हमारे पालन-पोषण और हमारी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आज उन्हें किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। वे तो इतना ही चाहते थे कि हम अपने पांच मिनट उन्हें दे दें। वे केवल पांच मिनट ही चाहते थे!मेरे माता-पिता तो आज नहीं रहे, लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने हैं जो अपनी दिनचर्या में से थोड़ा समय निकालकर अपने पिता या माता के साथ बैठते हैं, उनसे बतियाते हैं!(साभार)

No comments:

Post a Comment