Friday, June 26, 2009

जूट उद्योग गुमनामी के कगार पर, बजट से आस

कोलकाता। जूट ईकोफ्रेंडली होने का साथ-साथ आजकल फैशन में भी है। फिर भी जूट इंडस्ट्री मंदी की आगोश में है। लोग जूट के बने ड्रेस, जूट के खिलौने, जूट का बैग, जूट के पर्दे और न जाने क्या-क्या इस्तेमाल करते हैं।दुनिया भर में मशहूर कोलकाता की जूट इंडस्ट्री आज बर्बादी की कगार पर है।


दुनिया भर में मशहूर कोलकाता की जूट इंडस्ट्री आज बर्बादी की कगार पर है। कभी चांदी काटने वाले यहां के जूट व्यापारियों और मजदूरों के सामने आज रोजी-रोटी के लाले हैं। ये इंडस्ट्री आज अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है। पिछले तीन सालों में जूट की हर एक मिल को करीब 25 से 50 लाख का घाटा हो चुका है।


दरअसल कच्चे जूट की कीमत में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। जिसकी वजह से जूट से बने सामानों की लागत ज्यादा हो गई है और मांग में कमी आई है। जानकारों की मानें तो साल भर में कच्चे जूट की कीमत 60 फीसदी तक बढ़ गई है। बाकी का कसर सूखे और आर्थिक मंदी ने पूरी कर दी।


जूट इंडस्ट्री की दुर्दशा के लिए अकेले मंदी ही नहीं बल्कि लोगों की बदलती लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार है। लोग जूट की जगह प्लास्टिक बैग को ज्यादा तरजीह देते हैं। एक तो प्लास्टिक के बैग जूट के मुकाबले सस्ते हैं और देश के हर कोने में आसानी से उपलब्ध हैं। यही वजह है कि सीमेंट और फर्टिलाइजर की तर्ज पर दूसरी इंडस्ट्रीज़ भी जूट की जगह प्लास्टिक बैग का धड़ल्ले से इस्तेमाल करती हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल जूट की गैर सरकारी खरीददारी करीब 30 फीसदी घटी है।


कोलकाता में जूट की कई फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। सालों पुराना कारोबार मंदी की भेंट चढ़ रहा है। लेकिन कारोबारियों की उम्मीद बरकरार है। वो चाहते हैं कि सरकार कुछ दिनों के लिए जूट की फॉर्वर्ड मार्केट में ट्रेडिंग करके उनके व्यापार को बचा ले। साथ ही जूट इंडस्ट्री की अब आने वाले बजट पर आस टिकी है।

साभार

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