Thursday, May 26, 2011

अभी बाकी है अग्निकन्या की अग्निपरीक्षा


शंकर जालान
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने ३४ साल के वाममोर्चा शासनकालको ध्वस्त करते हुए पश्चिम बंगाल में सत्ता की चाबी हासिल कर ली है।बावजूद इसके अभी ऐसे कई मुकाम आने बाकी हैं, जिसे ममता को बेहिचक पारकरना है। कहने और सुनने में भले ही यह सहज लगे, लेकिन इसे व्यवहार मेंलाने के लिए अग्निकन्या यानी ममता बनर्जी को कई अग्निपरीक्षा देनी होगी।कहते हैं कुर्सी छोड़ना जितना आसान है. उस पर बने रहना और कही तरीके सेअपने काम को अंजाम देना उतना ही कठिन।ममता बनर्जी के सामने कई चुनौतियां हैं। मसलन राज्य में विकास की गति कोतेज करना, गोरखालैंड और जंगलमहल की समस्याओं का समाधान करना, सिंगुर केअनिच्छुक किसानों की जमीन लौटाना। हिंसा और हत्या की राजनीति का आरोपलगाकर ममता ने वाममोर्चा को सत्ता से दूर किया उस पर अंकुश लगाना। इसकेअलावा ममता ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कोलकाता को लंदन, उत्तर बंगालको स्विजरलैंड और दीघ को गोवा बनाने की बात कही थी उस पर भी उसे खराउतरना है।राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जीने बंगाल की महिला मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता तो संभाल ली है, लेकिनउनकी असली अग्निपरीक्षा अब शुरू होगी। राज्य में साढ़े तीन दशक लंबेवाममोर्चा राज को खत्म करना अबकी भले उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं साबितहुआ हो, अब सरकार की मुखिया होने के बाद उनकी राह आसान नहीं होगी।वामपंथी शासन बदलने के बाद उनके कंधों पर उम्मीदों का जो भारी बोझ है,उससे ममता खुद भी अवगत हैं।चुनावी नतीजे आने और शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एक सप्ताह के बीच राज्यके कई जिलों या यूं कहें कि तृणमूल कांग्रेस प्रभावित जिलों में कईहत्याएं और एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर तोड़फोड़ व हंगामा हुआ है।तृणमूल समर्थकों ने कई जगहों पर कब्जा किया है और कई निर्माणों को रूकवादिया है।राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि सरकार का विरोध करना और सरकार चलानादोनों अलग-अलग बात है। तृणमूल कांग्रेस ने सदैव वाममोर्चा सरकार का विरोधकिया है, लेकिन अब उसे सत्ता का सुख मिला है, देखना यह है कि वह इस परकितनी खरी उतरती है।ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद बतौर मुख्यमंत्री पहलीबार पत्रकारों से बातचीत में ममता बनर्जी ने कहा कि- अगले तीन महीनों केभीतर गोरखालैंड व जंगलमगल की समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा। हुगलीजिले के सिंगुर के अनिच्छुक किसानों को ४०० एकड़ जमीन लौटा दी जाएगी।अल्पसंख्यक (मुसलमान) समुदाय के लोगों के लिए विशेष प्रावधान हेतु सच्चरकमेटी से बातचीत की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने रात-दिन सात दिनों तकलगातार काम करने का एलान किया।ममता बनर्जी यह भली-भांति जानती हैं कि उनके सामने सामने चुनौतियों कीसूची काफी लंबी है। इनमें राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति सुधारनेके अलावा कर्ज से कराहते बंगाल को इस हालत से उबारना, सरकारी कर्मचारियोंमें कार्य संस्कृति बहाल करना, उत्तर में सिर उठाते अलगाववादियों औरदक्षिण में मजबूत हो चुके माओवादियों से निपटना शामिल है। ममता की सबसेप्रमुख चुनौती राज्य में चुनावी नतीजों के बाद जारी हिंसा पर काबू पा करहालात को सामान्य बनाए रखने की है। वैसे, अपनी पार्टी के विधायकों कीपहली बैठक में ही उन्होंने साफ कर दिया था कि बदले की भावना नहीं रखनीचाहिए। उन्होंने कहा था कि लोगों ने सत्ता से बेदखल कर माकपा को उसकीगलतियों की सजा दे दी है। लेकिन बावजूद इसके राज्य में हिंसा और हथियारोंकी बरामदगी का सिलसिला जारी है। ममता यह जानती है कि राज्य की जनता बदलावके मूड में थी, इसलिए जनता ने वाममोर्चा को बहार का रास्ता दिखा दिया।ममता को यह भी मालूम है कि अगर उसके राज में हिंसा और हत्या हुई तो जनताउसे कभी माफ नहीं करेगी। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने गृहमंत्रालय फिलहाल अपने पास रखा है। ममता के करीबियों के मुताबिक ममत बहुतजल्द राज्य के पुलिस महानिदेशक, कोलकाता के पुलिस आयुक्त व उपायुक्त,विभिन्न जिलों के पुलिस अधीक्षक व जिला अधिकारियों के साथ बैठक कर आंतकरोकने की दिशा पर हर मुमकिन कदम उठाने की हिदायत देगी।राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता को अब अपने व्यक्तितत्व औररवैए में भी बदलाव लाना होगा। कल तक वे प्रमुख विपक्षी पार्टी की नेता केतौर पर सत्तारुढ़ वाममोर्चा के खिलाफ आंदोलन का नारा बुलंद करती रहीं थीं।अब बदली भूमिका में उनके पास सरकार की कमान है। ऐसे में उन तमाम गलतियोंको सुधारने की जिम्मेदारी भी उनके पास आ गई है जिनके लिए वे माकपा कीअगुवाई वाली सरकार के खिलाफ आंदोलन का परचम लहराती रहती थी। वैसे, चुनावीनतीजों के बाद अपने बयानों और पार्टी के कार्यकर्ताओं को संयंम बरतने कीसलाह देकर इस बदलाव के कुछ संकेत तो उन्होंने दिए हैं। लेकिन अभी इस दिशामें काफी कुछ होना है।विपक्ष में रहते ममता दक्षिण बंगाल में माओवादियों के खिलाफ केंद्रीयसुरक्षा बलों की ओर से चलाए जा रहे साझा अभियान की धुर विरोधी रही हैं।अब सत्ता में आने के बाद उनके सामने दिनों-दिन जटिल होती जा रही माओवादकी इस समस्या से निपटने की कड़ी चुनौती है। यहां उनकी अगुवाई वाली सरकारमें कांग्रेस शामिल है और केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार मेंउनकी पार्टी यानी तृणमूल कांग्रेस। ऐसे में साझा अभियान के मुद्दे परउनका पुराना रुख दोनों दलों के बीच समस्याएं खड़ी कर सकता है।ममता ने पुलिस प्रशासन को बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के काम करने की खुलीछूट देने की भी बात कही है। लेकिन कुछ दिनों पहले तक वे आरोप लगाती रहीथीं कि पुलिस प्रशासन का एक गुट माकपा के रंग में रंग गया है और कईअधिकारी काडर के तौर पर काम कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविकहै कि क्या वे पुलिस प्रशासन में बड़े पैमाने पर उलटफेर करते हुए उसे अपनेअनुकूल सजाएंगी या फिर सबकुछ जस का तस ही चलता रहेगा।वैसे तो चुनौतियों की यह सूची काफी लंबी है। लेकिन राज्य मेंकार्यसंस्कृति बहाल करना भी नई मुख्यमंत्री के लिए एक कड़ी चुनौती होगी।राज्य सरकारी कर्मचारियों की बड़ी तादाद माकपा से संबद्ध कोआर्डिनेशनकमिटी से जुड़ी है। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भषचार्य ने सत्ता संभालनेके बाद डू इट नाऊ का नारा दिया था। लेकिन इन कर्मचारियों ने उनके इस नारेको दिन में ही तारे दिखा दिए थे। थक-हार कर बुद्धदेव ने भी चुप्पी साध लीथी। अब अहम सवाल यह है कि जो काम बुद्धदेव नहीं कर सके, क्या ममता वहकरने में कामयाब होगीं। चुनौतियों की सूची में कार्यसंस्कृति का स्थानभले कुछ नीचे हो, नई सरकार की तमाम योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करनेके लिहाज से तो यह अव्वल है।यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता प्राथमिकता के आधार परधीरे-धीरे एक-एक चुनौतियों से निपटने की पहल करेंगी। यही वजह है किउन्होंने अपने मंत्रिमंडल में समाज के विभिन्न तबके के विशेषज्ञों कोचुन-चुन कर जगह दी है। शंकर जालान

No comments:

Post a Comment