Thursday, December 15, 2011

हादसे के इंतजार में डेढ़ हजार से ज्यादा इमारतें

शंकर जालान


कोलकाता । महानगर कोलकाता में कहीं ना कहीं रोजाना ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिससे यह साबित हो जाता है कि महानगर में सैंकड़ों की संख्या में खस्ताहाल व जर्जर इमारतें हैं, जो हादसे के इंतजार में है। कहना गलत न होगा कि प्रतिदिन किसी ना किसी इलाके से जर्जर इमारत का अंश ढहने और लोगों के जख्मी होने की खबर देखने व सुनने को मिलती है। बावजूद इसके कोलकाता नगर निगम इस दिशा में कोई ठोक कदम नहीं उठा रहा है। कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी, जिनके पास नगर निगम के भवन विभाग की जिम्मेवारी भी है। नगर निगम को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे है, लिहाजा भवन विभाग के कई जरूरी काम नहीं हो पा रहे हैं।
नगर निगम के भवन विभाग के मुताबिक महानगर में १५ सौ यानी डेढ़ हजार से ज्यादा ऐसी इमारतें है, जो कभी भी धरासाई हो सकती है औऱ दर्जनों लोगों को मौत की नींद सुला या जख्मी कर सकती है। इस दिशा में नगर निगम क्या कर रहा है? इस सवाल के जवाब में एक अधिकारी ने बताया कि हमारी जिम्मेवारी उक्त इमारत के लोगों को सूचित करना, मरम्मत के प्रति जागरूक करना और तब भी बात न बने तो इमारत के मुख्यद्वार पर सावधान को बोर्ड लगाना है। इससे अधिक हम कुछ नहीं कर सकते।
मालूम हो कि कोलकाता नगर निगम में कुल १४१ वार्ड हैं और १५ सौ से ज्यादा इमारतें खतरनाक। इस गणित से हर वार्ड में औसतन दस से ज्यादा ऐसी इमारतें हैं, जो किसी भी वक्त हादसे का शिकार हो सकती हैं।
बताते चले, बीते महीने ही दक्षिण कोलकाता के पोर्ट इलाके में वाटगंज स्ट्रीट एक इमारत का छज्जा गिर गया था। इस घटना में एक महिला समेत पांच लोग जख्मी हो गए थे। इस बाबत पुलिस ने मकान मालिक को गिरफ्तार किया था, लेकिन अदालत से उसे जमानत मिल गई। ठीक इसी तरह मध्य कोलकाता के वार्ड नंबर ४५ में बीते दिनों मकान का हिस्सा करने से एक व्यक्ति घायल हो गया था। इसी तरह कई वार्डों में दर्जनों की संख्या में ऐसी इमारते हैं, जो दुर्घटना को बुलावा दे रही हैं। इस बाबत नगर निगम के भवन विभाग के एक उच्चा अधिकारी का कहना है कि जर्जर इमारतों में साफ-साफ शब्दों में लिखा है सावधान, यह इमारत खतरनाक है। इमारत के मुख्यद्वार पर लगे ऐसे बोर्ड का मतलब यही है कि ऐसी इमारतों में खतरे से खाली नहीं है। अब कोई आ बैल मुझे मार वाली कहावत का अनुसरण करता है तो हम क्या कर सकते हैं।
यह जानते हुए भी की इमारत कभी भी गिर सकती है? मकान मालिक मरम्मत क्यों नहीं कराते? किराएदार क्यों जान जोखिमल में डालकर रहने को विवश हैं? बतौर पार्षद आप क्या भूमिका निभा रहे है? इस सवाल के जवाब में लगभग सभी राजनीतिक दलों के पार्षदों ने कहा- नगर निगम या पार्षद का काम लोगों को सचेत करना, सुझाव देना और मरम्मत के लिए प्रेरित करना है। अगर इसके बाद भी किराएदार व मकान मालिक कुछ नहीं करते तो इसमें हमारा क्या कसूर है। तृणमूल कांग्रेस की पार्षद रेहाना खातून ने कहा कि न तो ऐसा कोई कानून है और न हमारे पास अधिकार की हम जर्जर मकानों के किराएदारों को जबरन बेदखल करें या मकान मालिक को मरम्मत के लिए मजबूर।
आप के वार्ड में ही ९८ व १०० महात्मा गांधी रोड स्थित दो इमारतें खस्ता हाल है। बीत सात सालों से मकान के प्रवेशद्वार पर खतरनाक को बोर्ड लगा है। रह-रह कर ईंटें गिर रही है। दरारें बढ़ रही है। आप क्या कर रही है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि दोनो पक्षों (मकान मालिक व किराएदारों) को समझाने की प्रक्रिया जारी है।
वहीं, माकपा के पूर्व सांसद व वार्ड नंबर २० को पार्षद सुधांशु सील का कहना कि तृणमूल कांग्रेस शासित नगर निगम बोर्ड अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। उन्होंने कहा कि मेयर शोभन चटर्जी, जो भवन विभाग भी संभाल रहे हैं, उन्हें नगर निगम मुख्यालय में कम और ममता बनर्जी के आगे-पीछे अधिक देखा जाता है। ऐसे मेयर से कुछ उम्मीद रखनी खुद को धोखे में रखने की तरह है।

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