Thursday, December 15, 2011

धू-धू कर जल रहा था अस्पताल

शंकर जालान


कोलकाता,। महानगर कोलकाता के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट हाउस अग्निकांड, न्यू हावड़ा ब्रिज एप्रोच रोड पर बने नंदराम मार्केट अग्निकांड, हावड़ा मछली बाजार अग्निकांड के बाद यह ऐसा बड़ा हादसा है, जिसमें कोलकाता के निजी अस्पतालों में सबसे बड़ा और आधुनिक सुविधाओं से लैस एएमआरआई (आमरी) अस्पताल ऐसा अस्पताल साबित हुआ, जो वृहस्पतिवार की आधी रात से धू-धू कर जल रहा था और दमकलवाहिनी के लोगों को जब इसकी जानकारी मिली तब तक सब कुछ खाक में मिल चुका था। स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में चालीस से ज्यादा लोगों की जान गई थी, लेकिन तब सरकार वाममोर्चा की थी। उस वक्त तत्कालीन राज्य सरकार ने एक उच्च स्तरीय कमिटी बनाई थी। यह कमिटी स्टीफन कोर्ट घटना के तत्काल बाद सभी बड़े स्थलों का मुआयना करने में जुटी थी। अगर सचमुच यह कमिटी काम रही थी, तो आमरी जैसे शहर के बड़े अस्पताल में इतना भयावह अग्निकांड जैसे घट गया। यह सवाल अभी भी मुंह बाएं खड़ा है।
आमरी अस्पताल में 70 वर्षीय कैंसर के मरीज अजय घोषाल के परिजनों से कोई जाकर पूछे कि यह हादसा आखिर कैसा हुआ। अजय के घरवाले शुक्रवार की सुबह उन्हें अस्पताल से रिलीज करा कर घर लाने वाले थे, लेकिन किस्मत ऐसी कि वे अपने घर की जगह मरघट पहुंच गए।
ठीक इसी तरह लाश बन चुके अन्य 20 रोगियों के परिजनों से कोई पूछे मरघट का सन्नाटा उनके कलेजे को किस तरह चीर रहा है।
एक अन्य मरीज शिवानी की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी। शिवानी के पिता भानू भट््टाचार्य ने बताया कि बेटी के इलाज के लिए मैंने इस अस्पताल में लाखों रुपए दे दिए, लेकिन बदले में मिली बेटी की लाश।
एक अन्य की परिजन शंपा चौधरी ने बताया कि वे लोग त्रिपुरा के अगरतला से अपने चाचा राम दास का इलाज कराने यहां लाए थे, लेकिन राम दास अब ‘राम’ को प्यारे हो गए। शंपा ने बताया कि वे लोग वृहस्पतिवार की काली रात आमरी के विश्राम कक्ष में ठहरे हुए थे। आग जब धू-धू कर जलने तो हम लोग वहां के सुरक्षाकर्मी से मदद के लिए चिल्लाने लगे कि हमारे चाचा को जल्दी से नीचे लाओ। तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। आमरी चंद घंटों में मरघट में तब्दील हो चुका था।
एक स्थानीय व्यक्ति उत्तम हालदार ने बताया कि आसपास के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों ने सबसे पहले आग का गोला उड़ते देखा। उसके बाद शोर मचाया कर लोगों को जगाया। अस्पताल के सुरक्षाकर्मी भी उस वक्त झपकी ले रहे थे। दमकल को आने में काफी देर हो चुकी थी। उत्तम ने बताया- जिंदगी में पहली दफा जीवन-मृत्यु का खेल मैंने अपनी व करीब से देखा। इसे मैं कभी नहीं भूला सकता।

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