Saturday, March 3, 2012

कलर कोड कोलकाता

शंकर जालान


पढ़ा है कि रंगों का जीवन में बड़ा महत्व होता है, लेकिन किसी शहर के लिए सत्ताधारी राजनीति दल की ओर से कलर कोड का फरमान जारी करने की घटना देश की पहली घटना है, जिसे पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस शासित सरकार ने जारी किया है। पश्चिम बंगाल की नई सरकार के नए फरमान में कोलकाता शहर को नीला शहर (ब्लू सिटी) बनाने की बात कही गई है।
जानकारों का कहना है कि माक्र्सवादियों की पिछली सरकार को जहां लाल रंग पसंद था। अब वहीं पश्चिमी बंगाल की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) जयपुर की तर्ज पर कोलकाता को नीले रूप में देखना चाहती हैं। इसके लिए ममता बनर्जी सभी सरकारी भवनों, फ्लाईओवर्स, सड़क किनारों की रेलिंग तथा टैक्सियों को हल्के नीले रंग में रंगा हुआ देखना चाहती हैं।
राज्य के शहरी विकास मंत्री फरिहाद हाकिम ने शुक्रवार को बताया कि उनकी नेता ममता बनर्जी ने निश्चय किया है कि रंगों के विषय-वस्तु के रूप में कोलकाता शहर का रंग नीला होना चाहिए क्योंकि नई सरकार की थीम ‘आकाश की सीमा’ है। उन्होंने कहा कि वह निजी भवन मालिकों से भी अनुरोध करेंगे कि वे भी नीले कलर के ‘पैटर्न’ का पालन करें। उन्होंने कहा कि इस संबंधी जरूरी सरकारी आदेश जल्द जारी किए जाएंगे।
कोलकाता के मेयर और ममता बनर्जी के करीबी शोभन चटर्जी ने शुक्रवार से बातचीत में कहा कि अब शहर के फुटपाथ से लेकर फ्लाईओवर, जीर्ण-क्षीर्ण पार्क और पटरियां को सफेद और नीले रंग के नपे तुले इस्तेमाल से शहर को नया रूप दिया जाएगा।
चटर्जी ने बताया कि राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी अपनी राजधानी के लिए एकसमान रंग संयोजन को आवश्यक समझती है। उनके मुताबिक सफेद और नीले का चयन ध्यानपूर्वक उनकी गैर-विवादास्पद विशेषताओं को देखते हुए किया गया है।
उनका दावा हैं कि इस कदम का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्य सरकार के फैसले पर कदाचित क्षेत्रीय राजनीति का प्रभाव है।
लाल रंग का से कोलकाता के बीते वक्त से संबद्ध रहा है। जिसका सटीक उदाहरण वाममोर्चा का ३४ सालों का राज है। जिसने राज्य पर लगातार तीन दशकों से ज्यादा लंबे समय तक शासन किया। जानकार मानते हैं कि ममता बनर्जी का यह कदम बंगाल को उसकी लाल विरासत से छुटकारा दिलाने का प्रयास है।
जानकारों की माने तो तृणमूल कांग्रेस का चिन्ह तिरंगा है। सफेद के अलावा इन दोनों रंगों (भगवा और हरा) के अपने-अपने राजनीतिक नुकसान हैं। भगवा को भाजपा से जोड़कर देखा जाता है और हरे को इस्लाम के साथ। इसी लिए ममता ने चतुराई के साथ कोलकाता को नीला शहर बनाने का एलान किया है।
राज्य सरकार ने शहर में रंग-संयोजन के लिए आठ सौ मिलियन डालर आवंटित किए हैं। तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अनुमानित लागत पर टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया।
पश्चिम बंगाल का पर्यटन मंत्रालय बेशक सरकार के इस कदम से प्रसन्न हो, लेकिन हर कोई नीले और सफेद के रूपांतरण को खुले दिल से नहीं ले रहा। शहर को नीले रंग में रंगने की मुहिम में सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर शहर की पीली टैक्सियों को सफेद और नीले रंग में बदलने का फरमान सुना दिया है।
यह हमारी पहचान को बदल देगा- यह कहना है टैक्सी चालक करतार सिंह का। उन्होंने कहा कि पीली टैक्सियां पिछले पांच दशकों से ज्यादा लंबे समय से शहर में दौड़ रही हैं। पेंट के लिए पैसा आवंटन करने की बजाय, सरकार राज्य परिवहन में पैसा खर्च कर सकती थी।
विपक्ष ने सरकार की इस सौंद्रीयकरण योजना की खंचाई करते हुए इसे धन की बर्बादी करार दिया है। राज्य के परिवहन मंत्री मदन मित्र की दलील है कि टैक्सियों और बसों को एक ही रंग में रंगने पर कलर थीम में समानता आएगी और महानगर का सौंदर्य कई गुना बढ़ जाएगा. लेकिन बंगाल टैक्सी एसोसिएशन ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है. एसोसिएशन के सचिव विमल गुहा कहते हैं- टैक्सी का रंग बदलने में लगभग सात हजार रुपए खर्च होंगे. टैक्सी मालिक यह खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं।
जहां तक आम लोगों का सवाल है, उनकी प्रतिक्रिया मिलीजुली है. एक निजी दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी का कहना है कि नया रंग अच्छा ही लग रहा है. इससे शहर की सुंदरता निखर गई है। वहीं एक बुजुर्ग हैं कि सरकार यह रकम सड़कों और बसों की दशा सुधारने पर खर्च करती तो बेहतर होता। आम लोग या विरोधी चाहे कुछ भी कहें, सरकार महानगर को ब्लू सिटी में बदलने की अपनी योजना पर दिल खोल कर खर्च कर रही है।
दिलचस्प बात यह है कि कोलकाता नगर निगम ने ममता के इस पसंदीदा रंग यानी सफेद और नीले रंग से अपना मकान रंगवाने वाले तमाम मकान मालिकों को संपत्ति कर में भी छूट देने का फैसला किया है।

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