Sunday, May 6, 2012

पुरीने सिक्के हैं रोटी का जरिया





शंकर जालान





कोलकाता, महानगर कोलकाता की फुटपाथों पर सिक्कों की खरीद-फरोख्त से जुड़े लोगों पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। क्योंकि उनके लिए सिक्कों का संग्रह करना कठिन हो गया है। इसलिए आमदनी प्रभावित हो रही है।
महानगर कोलकाता में कई लोग प्राचीन मुद्राओं की खरीद-फरोख्त के कारोबार से जुड़े हैं। मुद्राओं का कारोबार वैध है या अवैध, यह इन कारोबारियों को नहीं मालूम। जवाहरलाल नेहरू रोड पर पुरानी मुद्रा बेच रहे डी. साहा कहते हैं कि वह पिछले तीस साल से फुटपाथ पर पुरानी मुद्राओं की दुकान लगाते आ रहे हैं। उनकी दुकान देशी-विदेशी पुरानी मुद्राओं से सजी रहती है और इनकी बिक्री से हुई कमाई से उनका परिवार चलता है। साहा कहते हैं कि अलग-अलग समय के सिक्कों की अलग- अलग कीमत होती है। सिक्कों के संग्रह के शौकीनों को इनकी कीमत देने में कोई दिक्कत नहीं होती है। वहीं, एल. घोष का कहना है कि ब्रिटिश कालीन सिक्कों को यूरोपिय देशों से आये पर्यटक चाव से खरीदते हैं। ऐसे सिक्के जिन पर महारानी विक्टोरिया व एलिजाबेथ की तस्वीर छपी हो, उसे अधिक कीमत देकर वे खरीदते हैं। वे कहते हैं कि अब सिक्कों का संग्रह करना कठिन हो गया है। इसलिए आमदनी भी प्रभावित हो रही है। इटली, सिंगापुर व मलेशिया व खाड़ी देशों की मुद्राएं खासी कीमत में बिकती हैं। मुद्राओं का संग्रह करने वालों की संख्या भी धीरे-धीरे कम हो रही है। अब कारोबार विदेशी पर्यटकों के भरोसे रह गया है।
गौरतलब है कि पुरानी देशी विदेशी मुद्राओं की कीमत वर्तमान में आसमान छू रही है। वर्ष १८३५ के आधा आना के तांबे के सिक्के दो सौ से ढाई सौ रुपए में बिक रहे हैं। वर्ष १९४४ व १९४५ में प्रचलन में रहे दो आने के सिक्के की कीमत दस रुपए, १९१७, १९१८, १९३४ और १९४१ के बने १/४ आना के तांबे के सिक्के १५ रुपए में बिक रहे हैं।

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