Monday, April 4, 2011

मतदान के मामले में मन की मालिक हैं महिलाएं

शंकर जालान कोलकाता। विधानसभा चुनाव के लिए महानगर की युवतियां और गृहिणियां अब गंभीरता से विचार करने लगी हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि युवती या महिलाएं अपने पिता या पति के कहने पर वोट नहीं देती। उनका कहना है कि खाना भले ही वे ‘उनकी’ (पिता या पति) की पसंद का बनाती हो, लेकिन वोट अपनी पसंद के उम्मीदवार को देती हैं। मतदान के मामले में वे अपने मन की मालिक हैं। इस बारे में कई युवती और गृहिणियों से बात की गई तो इन लोगों ने कहा कि खाना पिता या पति की पसंद का बनाया जा सकता है, लेकिन जहां तक मतदान की बात है इस बारे में किसी की राय नहीं मानेंगी। कविता सिंह नामक एक गृहिणी ने बताया कि मेरे ससुराल में जिस पार्टी को वोट दिया जाता है, मैं अपना वोट उस पार्टी को नहीं देती। उन्होंने कहा कि मेरे ससुर ने एक-दो बार जरूर पूछा कि वोट किसे देकर आई हो, लेकिन मेरे पति कभी नहीं पूछते। उन्हें पता है कि मेरा वोट किस पार्टी के उम्मीदवार को जाता है। आप किस आधार पर पार्टी या उम्मीदवार का चयन करती हैं? इसके जबाव में उन्होंने कहा कि मैं आलू-प्याज के भाव पर वोट नहीं देती। मैं यह देखती हूं कि कौन सा दल या उम्मीदवार महिला होने के नाते हमें क्या तरजीह देगा। कौन महिलाओं के मान, सम्मान, इज्जत, आबरू की रक्षा के प्रति ईमानदारी से आवाज बुलंद करेगा।पेशे से वकील मंजू देवी अग्रवाल ने बताया कि राजनीति में सक्रिय सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, वसुंधराराजे सिंधिया, सुषमा स्वराज, जयललिता, मायावती, वृंदा करात, शीला दीक्षित जैसी महिलाओं के नाम उन्हें प्रभावित करते हैं, लेकिन अफसोस यह है कि ये नामचीन महिलाएं भी देश की आधी आबादी के बारे में ईमानदारी से नहीं सोचती। सब अपनी जीत और कुर्सी पाने को आतुर रहती हैं।पेशे से शिक्षिका पुष्पा देवी का कहना है कि वोट देना चुनाव लड़ने से बड़ी बात है। वोट देने वाले को हजार बार सोचना पड़ता है, क्योंकि यह मसला उनकी संतुष्टि और राज्य के भविष्य से जुड़ा होता है। उनके शब्दों में चुनाव लड़ने वाले को तो सिर्फ एक ही चिंता रहती है कि किस तरह उनकी जीत सुनिश्चित हो, लेकिन मतदाताओं को यह गंभीरता से सोचना पड़ता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार के पक्ष में जाए और राज्य की बागडोर सही राजनीति पार्टी के हाथों में हो।

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