Friday, July 1, 2011

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, जो वादा किया वे निभाना...

शंकर जालान


34 साल के वाममोर्चा के शासनकाल को ध्वस्त करते हुए पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए अब चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादे निभाने का वक्त आ गया है। ममता ने दावा किया था कि माओवाद, गोरखालैंड, सिंगुर समेत कई गंभीरर समस्याओं को वे न केवल बहुत जल्द सुलझा लेंगी बल्कि राज्य में विकास की तेजी को भी जारी रखेगी। बतौर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते 20 जून को एक महीना का कार्यकाल पूरा किया और इन चार सप्ताह यानी 30 दिन के दैरान ममता ने मानो तूफानी अंदाज में काम किया। उन्होंने तेजी के साथ कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। छापामार अंदाज में औचक निरीक्षण किया। अधिकारियों, उद्योगपतियों के साथ बैठक की। अपने चेंबर (कक्ष) को सुसज्जित करने में हुए खर्च बाबत दो लाख की राशि का चेक राज्य के मुख्य सचिव समर घोष का सौंपना। राज्य की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए निजी खाते (चित्रों की बिक्री से हुई आय) से एक करोड़ रुपए मुहैया करना। कई नयी घोषणाएं करना। गोरखलैंड जैसी समस्याओं को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाना। सत्ता के सफर में इसे ममता की कामयाबी कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बीते 20 मई को मुख्यमंत्री की शपथ लेने के साथ कैबिनेट की पहली बैठक में उन्होंने सिंगुर में अनिच्छुक किसानों की 400 एकड़ जमीन लौटा देने की घोषणा की। तीन महीने के भीतर गोरखालैंड और माओवाद समस्या दूर करने की बात कही। इन सबसे भी खास बात यह रही कि 30 मई को पंद्रहवीं विधानसभा में पहला भाषण देने के साथ-साथ सदन में विपक्ष को महत्व देने का निर्देश भी दिया।
जून की पहली तारीख को माओवाद प्रभावित इलाकों में अधिक से अधिक एससी व एसटी को दो रुपया किलो चावल देने के लिए आय की सीमा बढ़ाने की घोषणा। रिटायर होते ही शिक्षकों को पेंशन उपलब्ध कराने की घोषणा। शिक्षकों को माह की पहली तारीख से वेतन भुगतान की शुरूआत। स्कूली शिक्षा में वन विंडो सिस्टम लागू करने की घोषणा। कालीघाट स्थित अपने निवास पर जनता दरबार लगाना। ममता के इन सब कारनामों के कारण ही अगर यह कहा जाता कि ममता जैसा कोई नहीं... तो कुछ गलत नहीं होगा।
सरकारी अस्पतालों व पुलिस बैरक के अचानक दौरे को कुछ लोग तानाशाही कह रहे हैं, तो कई लोगों का कहना है कि
ममता बनर्जी ने दोस्ताना संबंध वाले बॉस की छवि स्थापित करने के लिए ऐसा किया।
पश्चिम बंगाल की ही नहीं, पूरे देश में वे सभ्भवत: पहली मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने ऐसा किया है।
राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री ने सरकार की जनहितकारी छवि पेश करने के लिए शीर्ष प्रशासनिक स्तर पर बदलाव भी किए। इसके साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों को अपने पहले संदेश में उन्होंने कहा कि यदि कोई राजनीतिक नेता हस्तक्षेप करता है, तो आप सीधे तौर पर उनसे (ममता) से संपर्क करें।
हां, जब लड़ी तो कट्टर राजनैतिक दुशमनों की तरह मगर जा सौजन्यता पेश करने की बात आई तो उसमें भी मिसाल पेश कर दिया। संपन्नता के बावजूद सादगी में भरोसा, जरूरत पड़ी तो तीखे तेवर मगर गरीबों के लिए ममता की प्रतिरूप ममता बनर्जी सचमुच में बेनजीर हैं। अचानक काफिले से छिटककर रोड के किनारे किसी खोमचे वाले से हालचाल पूछने चली जाती हैं। यह भी भूल जाती हैं कि वे मुख्यमंत्री भी हैं। ये कुछ बातें हैं जो ममता की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें देश के अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री से अलग करती हैं। ममता पुलिस को हिदायत देती रहती हैं कि उनके लिए ट्रैफिक रोककर आम आदमी की मुश्किलें न बढ़ाए। सिगनल लाल होने पर खुद भी आम आदमी की तरह सिगनल हरा होने का इंतजार करती रहती हैं। खुद को विशिष्ट की जगह आम लोगों की तरह बनाए रखने का यह जज्बा ही बताता है कि सचमुच ममता जैसा कोई नहीं।
राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि ममता ने जिस तन्मयता, एकाग्रता और सोच से ३४ सालों से सत्तासीन वाममोर्चा को राज्य सचिवालय (राइटर्स बिल्डिंग) से बेदखल किया ठीक उसी तरह अब वह (ममता) जनता और नेता के बीच की दूरी पाटने में जुटी हैं।
कुछ लोग ममता बनर्जी को नायक फिल्म के मुख्य कलाकार अनिल कपूर के रूप में देख रहे हैं। लोगों का कहना है कि अनिल कपूर ने एक दिन के लिए मुख्यमत्री का पदभार संभाला था और पूरी व्यवस्था को बदल कर रखी दी थी बेशक वह एक फिल्म के दृश्य था, लेकिन ममता बनर्जी जिस गंभीरता से काम ले रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि एक दिन, एक सप्ताह या एक महीने में तो नहीं, लेकिन एक साल में ममता पश्चिम बंगाल की पूरी व्यवस्था अवश्य बदल देगी।
लोगों की बीच यह चर्चा है कि ममता की ईंमानदारी और सादगी पर तो उन्हें कभी शक था ही नहीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले तक इतनी उग्र लगने वाली ममता चुनावी नतीजे आने के बाद एकाएक इतनी संतुलित कैसे हो गई।

No comments:

Post a Comment