शंकर जालान
प्रदेश की नवगठित सरकार एक ओर जहां सरकारी कार्यालयों में कार्य संस्कृति
को पैदा करने की वकालत कर रही है, वहीं दूसरी ओर जंगल महल में तैनात
सुरक्षा बलों को सरकारी कार्यालयों में ठहराए जाने से कामकाज बाधित हो
रहा है। ऐसे ही कार्यालयों में शामिल हैं पश्चिम मेदिनीपुर जिलांतर्गत
झाड़ग्राम तहसील के झाड़ग्राम शहर स्थित शिक्षा विभाग से संबंधित दो एसआइ
दफ्तर। झाड़ग्राम प्रखंड में शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे
घोड़ाधाड़ा स्थित पश्चिम चक्र के एसआइ कार्यालय व राज कॉलेज कॉलोनी स्थित
पूर्व चक्र एसआइ कार्यालय में नवंबर 2009 तक सामान्य कामकाज चल रहा था।
2009 दिसंबर में माओवादी समस्या से मुकाबले के लिए पहुंचे सुरक्षा बलों
को उक्त कार्यालयों में ठहराया गया। इसके साथ ही उक्त दोनों एसआइ
कार्यालयों को झाड़ग्राम बीडीओ कार्यालय के एक कमरे में स्थानांतरित कर
दिया गया है। इसके बाद से ही उक्त विभाग का कामकाज पर्याप्त स्थान व
संसाधनों के अभाव में बाधित हो रहा है। पूर्व चक्र के एसआइ नवेंदु विकास
गिरि व पश्चिम चक्र के एसआइ शुभाशीष मित्र कहते हैं कि उक्त दोनों
कार्यालयों में 28 सामान्य कर्मी, दो एसआइ व एक विशेष अधिकारी मिलाकर कुल
31 लोग सेवारत हैं। यहां से प्रखंड के 146 प्राथमिक विद्यालयों व 37 उच्च
विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था के साथ ही शिक्षकों व पैरा टीचरों का
वेतन, अवकाश प्राप्त शिक्षकों व कमिर्यों की पेंशन, सर्व शिक्षा अभियान
का संचालन व दोपहर का भोजन योजना संबंधी क्रियान्वयन संचालित होता है।
आवंटित स्थल पर सभी कमर्चारियों को बैठने व कागजात रखने की सुविधा ही
नहीं मिल पा रही है तो कामकाज कैसे पूरा होगा। इस बाबत उच्चाधिकारियों का
ध्यानकर्षण करने के बावजूद कोई लाभ नहीं हुआ। पश्चिमांचल विकास मंत्री
डॉ. सुकुमार हांसदा ने भी जून माह में उक्त कार्यालय से संबंधित समस्याओं
को भी देखा था। जिला प्राथमिक विद्यालय संसद के चेयरमैन सपन मुर्मू भी
समस्या को स्वीकार करते हैं।
Thursday, September 15, 2011
दुर्गापूजा - महंगाई की मार से त्रस्त मूर्तिकार
शंकर जालान
पश्चिम बंगाल के मुख्य पर्व पांच दिवसीय दुर्गोत्सव के लिए दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की मूर्तियों के निर्माण में जुटे उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकार इस बार महंगाई से त्रस्त हैं। इसके अलावा मजदूर व मेघ (बारिश) ने भी मूर्तिकारों की परेशानियों में इजाफा किया है। मूर्तिकारों ने शुक्रवार को बताया कि उन्हें इनदिनों बारिश का भय सता रहा है। इस कारण वे सही ढंग से अपना काम नहीं कर पा रहे हैं। एकचाल (एक साथ पांचों मूर्ति) के मूर्ति बनाने वाली महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि बारिश के दौरान उन्हें अन्य मूर्तिकारों की तरह पॉलीथीन के नीचे काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि इस बार वे कुल 32 मूर्तियां बना रही हैं। अब तक दस प्रतिमाओं के आर्डर मिले चुके हैं। पाल ने बताया कि जगह की कमी व बारिश के दौरान उन्हें काम करने में काफी असुविधा हो रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से मूर्तिकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण यह समस्या प्रतिवर्ष रहती है। उन्होंने मांग की कि इस समस्या के समाधान के लिए शहर में मूर्तिकारों के लिए एक जगह आबंटित की जानी चाहिए, जिससे वहां पर मूर्तिकार अपना काम कर सकें।
चंदन दास नामक मूर्तिकार ने शुक्रवार से कहा कि उनके पास छोटी-बड़ी 15 प्रतिमाओं के निर्माण का आर्डर है। हालांकि महंगाई और बारिश के कारण काफी काम बाधित हुआ है। समयपर काम पूरा करने के लिए बारिश के दौरान पॉलीथीन लगाकर काम करना पड़ रहा है। एक मूर्तिकार ने बताया कि पांच दिनों तक धूमधाम से मनाए जाने वाले पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा उत्सव क लिए मूर्तियां गढ़ने वाले मूर्तिकार इस बार महंगाई, मजदूर व बारिश की मार से पीड़ित हैं। मूर्तिकार बासुदेव रुद्र ने बताया कि कच्चे माल की कीमत पिछले साल की तुलना में
दोगुनी हो चुकी है। मूर्ति बनाने में काम आने वाली हर एक वस्तु की कीमत आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए प्रमुख रूप से बांस, बिचाली, रस्सी, मिट्टी, रंग, नकली बाल और कपड़ों की जरूरत होती है।
रुद्र कहते हैं- बीते कुछ महीनों में बांस समेत मूर्ति निर्माण के काम आने वाली अन्य चीजों की कीमत में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीते साल जिस बांस की कीमत 25 से 30 रुपए हुआ करती थी, आज उसकी
कीमत 45 से 60 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कालीपद दास नामक मूर्तिकार बताते हैं कि मंदी के कारण दुर्गापूजा आयोजन समितियों का बजट भी काफी कम हो गया है। उनके शब्दों में मंदी के कारण लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। जो आयोजक कभी 20 फुट ऊंची मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देते थे। इस साल उन्होंने 12 से 15 फीट की मूर्ति का ही आर्डर दिया है। वे कहते हैं कि महंगाई के साथ-साथ मजदूरों की कमी और बीते दो दिनों से हो रही लगातार बारिश ने उनके लिए आग में घी डालने का काम
किया है। दास ने बताया कि बीते साल 80 से एक सौ रुपए के बीच देहाड़ी मजदूर मिल जाते थे, लेकिन इस वर्ष रोजाना डेढ़ सौ रुपए देने पर भी मनमाफिक और इस काम के जानकार मजदूर नहीं मिल रहे हैं, लिहाजा वे कई आयोजकों का आर्डर नहीं ले पा रहे हैं।
बासठ वर्षीय साल अरुण पाल नामक मूर्तिकार को इनदिनों नींद नहीं आ रही है। वे कहते हैं कि २७ सितंबर से महालया और २ अक्तुबर से पूजा आरंभ होगी। इस बीत उन्हें २२ प्रतिमाओं को फाइनल टच देना है। लेकिन मुसीबत यह है कि कुम्हारटोली में मजदूर नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि मनरेगा की वजह से मजदूरों ने अलग राह पकड़ ली है। इस बात से दुखी वे कहते हैं कि 'मैने इस साल ६ मजदूर रखे हैं और उन्हें भोजव व आवास की सुविधा के साथ रोजाना एक हजार रुपए दे रहा हूं। पाल ने बताया कि बीते साल उन्होंने साढे़ तीन सौ रुपए रोज पर मजदूर रखे थे। यही हालत कुम्हारटोली के ज्यादातर मूर्तिकारों की है। हर मूर्तिकार सात सौ से एक हजार रुपए के बीच प्रतिदिन की मजदूरी दे रहा है, जबकि पिछले साल इन लोगों से ३५०-४०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया था।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के अध्यक्ष निमाई चंद्र पाल कहते हैं कि 'मजदूरों की संख्या ४० प्रतिशत तक कम है। इससे हमारे उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है और हम और ज्यादा ऑर्डर नहीं ले रहे हैं। हम अभी इस बात को लेकर
ही चिंतित हैं कि वर्तमान ऑर्डर किस तरह से पूरे किए जाएं। अगर पिछले साल किसी ने 35 ऑर्डर लिए थे तो वह इस साल 20 मूर्तियों की परियोजना पर काम कर रहा है। साथ ही उन्होंने कच्चे माल की बढ़ी कीमतों को भी लेकर चिंता जताई, जिसे आखिर में खरीदारों पर ही डालना है। बांस, सीसे, पेंट्स और पिथ की कीमतों में पिछले साल की तुलना में ३० प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के सचिव मोंटू पाल ने कहा कि इस साल मैं सिर्फ 2 मूर्तियां ही विदेश भेज रहा हूं। एक कैंब्रिज जा रही है और दूसरी ऑस्ट्रेलिया। हर साल मैं ज्यादा मूर्तियां बेचता हूं, लेकिन इस साल ऑर्डर
ज्यादा मिले हैं। मुनाफे में भी 15-20 प्रतिशत की कमी आई है।
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में रहने वाले हर परिवार को दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है। पूजा के मौके पर शहर में हर तरफ उत्सव का माहौल छा जाता है जिससे यहां की रौनक में चार चांद लग जाते हैं। लोगों को इसका इंतजार तो है ही साथ ही यहां दुर्गा पूजा के मौके पर निकलने वाली ढेर सारी पत्रिकाओं का भी लोगों को
बेसब्री से इंतजार है।
इसी तरह यंग ब्यावज क्लब के प्रमुख राकेश सिंह बताते हैं कि महंगाई के कारण मूर्तियों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। साथ ही पंडालों को तैयार करने में भी ज्यादा खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल जिस पंडाल को बनाने में पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। इस साल वैसा पंडाल बनाने में आठ लाख रुपए की लागत आ रही है। साथ ही पिछले साल हमने जिस आकार की मूर्ति जिस कीमत पर ली थी। इस बार मूर्तिकार लगभग वैसी मूर्ति के लिए 50 हजार रुपए अतिरिक्त मांग रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के मुख्य पर्व पांच दिवसीय दुर्गोत्सव के लिए दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की मूर्तियों के निर्माण में जुटे उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकार इस बार महंगाई से त्रस्त हैं। इसके अलावा मजदूर व मेघ (बारिश) ने भी मूर्तिकारों की परेशानियों में इजाफा किया है। मूर्तिकारों ने शुक्रवार को बताया कि उन्हें इनदिनों बारिश का भय सता रहा है। इस कारण वे सही ढंग से अपना काम नहीं कर पा रहे हैं। एकचाल (एक साथ पांचों मूर्ति) के मूर्ति बनाने वाली महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि बारिश के दौरान उन्हें अन्य मूर्तिकारों की तरह पॉलीथीन के नीचे काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि इस बार वे कुल 32 मूर्तियां बना रही हैं। अब तक दस प्रतिमाओं के आर्डर मिले चुके हैं। पाल ने बताया कि जगह की कमी व बारिश के दौरान उन्हें काम करने में काफी असुविधा हो रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से मूर्तिकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण यह समस्या प्रतिवर्ष रहती है। उन्होंने मांग की कि इस समस्या के समाधान के लिए शहर में मूर्तिकारों के लिए एक जगह आबंटित की जानी चाहिए, जिससे वहां पर मूर्तिकार अपना काम कर सकें।
चंदन दास नामक मूर्तिकार ने शुक्रवार से कहा कि उनके पास छोटी-बड़ी 15 प्रतिमाओं के निर्माण का आर्डर है। हालांकि महंगाई और बारिश के कारण काफी काम बाधित हुआ है। समयपर काम पूरा करने के लिए बारिश के दौरान पॉलीथीन लगाकर काम करना पड़ रहा है। एक मूर्तिकार ने बताया कि पांच दिनों तक धूमधाम से मनाए जाने वाले पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा उत्सव क लिए मूर्तियां गढ़ने वाले मूर्तिकार इस बार महंगाई, मजदूर व बारिश की मार से पीड़ित हैं। मूर्तिकार बासुदेव रुद्र ने बताया कि कच्चे माल की कीमत पिछले साल की तुलना में
दोगुनी हो चुकी है। मूर्ति बनाने में काम आने वाली हर एक वस्तु की कीमत आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए प्रमुख रूप से बांस, बिचाली, रस्सी, मिट्टी, रंग, नकली बाल और कपड़ों की जरूरत होती है।
रुद्र कहते हैं- बीते कुछ महीनों में बांस समेत मूर्ति निर्माण के काम आने वाली अन्य चीजों की कीमत में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीते साल जिस बांस की कीमत 25 से 30 रुपए हुआ करती थी, आज उसकी
कीमत 45 से 60 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कालीपद दास नामक मूर्तिकार बताते हैं कि मंदी के कारण दुर्गापूजा आयोजन समितियों का बजट भी काफी कम हो गया है। उनके शब्दों में मंदी के कारण लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। जो आयोजक कभी 20 फुट ऊंची मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देते थे। इस साल उन्होंने 12 से 15 फीट की मूर्ति का ही आर्डर दिया है। वे कहते हैं कि महंगाई के साथ-साथ मजदूरों की कमी और बीते दो दिनों से हो रही लगातार बारिश ने उनके लिए आग में घी डालने का काम
किया है। दास ने बताया कि बीते साल 80 से एक सौ रुपए के बीच देहाड़ी मजदूर मिल जाते थे, लेकिन इस वर्ष रोजाना डेढ़ सौ रुपए देने पर भी मनमाफिक और इस काम के जानकार मजदूर नहीं मिल रहे हैं, लिहाजा वे कई आयोजकों का आर्डर नहीं ले पा रहे हैं।
बासठ वर्षीय साल अरुण पाल नामक मूर्तिकार को इनदिनों नींद नहीं आ रही है। वे कहते हैं कि २७ सितंबर से महालया और २ अक्तुबर से पूजा आरंभ होगी। इस बीत उन्हें २२ प्रतिमाओं को फाइनल टच देना है। लेकिन मुसीबत यह है कि कुम्हारटोली में मजदूर नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि मनरेगा की वजह से मजदूरों ने अलग राह पकड़ ली है। इस बात से दुखी वे कहते हैं कि 'मैने इस साल ६ मजदूर रखे हैं और उन्हें भोजव व आवास की सुविधा के साथ रोजाना एक हजार रुपए दे रहा हूं। पाल ने बताया कि बीते साल उन्होंने साढे़ तीन सौ रुपए रोज पर मजदूर रखे थे। यही हालत कुम्हारटोली के ज्यादातर मूर्तिकारों की है। हर मूर्तिकार सात सौ से एक हजार रुपए के बीच प्रतिदिन की मजदूरी दे रहा है, जबकि पिछले साल इन लोगों से ३५०-४०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया था।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के अध्यक्ष निमाई चंद्र पाल कहते हैं कि 'मजदूरों की संख्या ४० प्रतिशत तक कम है। इससे हमारे उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है और हम और ज्यादा ऑर्डर नहीं ले रहे हैं। हम अभी इस बात को लेकर
ही चिंतित हैं कि वर्तमान ऑर्डर किस तरह से पूरे किए जाएं। अगर पिछले साल किसी ने 35 ऑर्डर लिए थे तो वह इस साल 20 मूर्तियों की परियोजना पर काम कर रहा है। साथ ही उन्होंने कच्चे माल की बढ़ी कीमतों को भी लेकर चिंता जताई, जिसे आखिर में खरीदारों पर ही डालना है। बांस, सीसे, पेंट्स और पिथ की कीमतों में पिछले साल की तुलना में ३० प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
कुम्हारटोली मृदशिल्पी समिति के सचिव मोंटू पाल ने कहा कि इस साल मैं सिर्फ 2 मूर्तियां ही विदेश भेज रहा हूं। एक कैंब्रिज जा रही है और दूसरी ऑस्ट्रेलिया। हर साल मैं ज्यादा मूर्तियां बेचता हूं, लेकिन इस साल ऑर्डर
ज्यादा मिले हैं। मुनाफे में भी 15-20 प्रतिशत की कमी आई है।
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में रहने वाले हर परिवार को दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है। पूजा के मौके पर शहर में हर तरफ उत्सव का माहौल छा जाता है जिससे यहां की रौनक में चार चांद लग जाते हैं। लोगों को इसका इंतजार तो है ही साथ ही यहां दुर्गा पूजा के मौके पर निकलने वाली ढेर सारी पत्रिकाओं का भी लोगों को
बेसब्री से इंतजार है।
इसी तरह यंग ब्यावज क्लब के प्रमुख राकेश सिंह बताते हैं कि महंगाई के कारण मूर्तियों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। साथ ही पंडालों को तैयार करने में भी ज्यादा खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल जिस पंडाल को बनाने में पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। इस साल वैसा पंडाल बनाने में आठ लाख रुपए की लागत आ रही है। साथ ही पिछले साल हमने जिस आकार की मूर्ति जिस कीमत पर ली थी। इस बार मूर्तिकार लगभग वैसी मूर्ति के लिए 50 हजार रुपए अतिरिक्त मांग रहे हैं।
दुर्गापूजा में दिखेगी टेराकोटा की झलक
शंकर जालान
कोलकाता, दुर्गापूजा के दौरान इस बार दर्शनार्थियों को कहीं टेराकोटा की झलक दिखेगी, तो कभी छोटी-बड़ी आकार की हजारों कठपुतलियां। दक्षिण कोलकाता के कालीघाट श्री संघ का पूजा पंडाल कठपुतलियों पर केंद्रित होगा। वहीं मध्य कोलकाता के विप्लवी अनुकूल चंद्र स्ट्रीट के पूजा मंडप में टेराकोटा की झलक दिखेगी।
श्री संघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस बार पूजा पंडाल को कठपुतलियों से सजाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि करीब 80 कारीगर बीते सवा महीने से श्री संघ के पंडाल के लिए छोटी-बड़ी आकार की कठपुतलिया बनाने में जुटे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पंडाल और उसके आसपास करीब चार हजार कठपुतलियों को रखा जाएगा। उन्होंने बताया कि पांच इंच से 14 फीट लंबी रंग-बिरंगी पंडाल को पूजा धूमने आए लोग देख पाएंगे।
वहीं, मध्य कोलकाता के विप्लवी अनुकूल चंद्र स्ट्रीट में नागरिक कल्याण समिति के बैनर तले इस बार टेराकोटा की थीम पर पूजा आयोजित की जा रही है। कमिटी के सचिव दिनेश जायसवाल ने बताया कि इससे पहले उनकी कमिटी ने स्टील के बर्तन का पंडाल, जोधपुर स्थित मंदिर और सहज पथ की थीम पर पूजा आयोजित कर चुकी है।
उन्होंने बताया कि कलाकार आशुतोष शी की परिकल्पना पर मेदिनीपुर के कंटाई स्थित कुसुमोनी डेकोरेटर की दर्जनों कारीगर पंडाल बनाने में जुटे हैं। वहीं, प्रतिमा बनाने का काम मूर्तिकार जयदेव बक्र कर रहे हैं। जायसवाल ने बताया कि बिजली सज्जा की जिम्मेवारी बापी इलेक्ट्रिक को दी गई है।
उन्होंने बताया कि कमिटी पूजा आयोजित करने के साथ-साथ कई तरह के सेवा मूलक काय4 भी करती है। उन्होंने बताया कि कमिटी में करीब 25 सौ कारोबारी है, जो बिजली उपकरण व पंखा का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि कमिटी वेलिंग्टन व्यवसायी वृंद के बैनर तले सेवामूलक कार्यों को अमलीजामा पहनाती है।
उन्होंने बताया कि तीस फीट लंबे, तीस फीट चौड़े और चालीस फीट ऊंचे बांकुड़ा, बिष्णुपुर व कृष्णनगर की लाल मिट््टी से बने पंडाल का उद्घाटन 30 सितंबर को श्यामल सेन, सौमेन मित्र व सुदीप बंद्योपाध्याय की उपस्थिति में होगा। उन्होंने बताया कि विधि-विधान के पूजा अर्चना करने के बाद सात अक्तूबर को प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।
बजट के बारे में उन्होंने बताया कि इस साल करीब 12 लाख का बजट निर्धारित किया गया है। पूजा पंडाल में आए लोगों को पंडाल, प्रतिमा व बिजली सज्जा में गजब सा समानता देखने को मिलेगी। उन्होंने कहा- जमाना एकरुपता का है। इस बात पर पूरा ध्यान रखा जा रहा है। पंडाल के साथ-साथ प्रतिमा ऐसी लगेगी मानो इसे बनाने में लाल मिट््टी का इस्तेमाल किया गया हो। उन्होंने बताया कि चेयरमैन रतन अग्रवाल, अध्यक्ष जगनाथप्रसाद साव, कोषाध्यक्ष दयानंद जायसवाल समेत कमिटी के कई सदस्य पूजा आयोजन को सफल बनाने में जुटे हैं।
कोलकाता, दुर्गापूजा के दौरान इस बार दर्शनार्थियों को कहीं टेराकोटा की झलक दिखेगी, तो कभी छोटी-बड़ी आकार की हजारों कठपुतलियां। दक्षिण कोलकाता के कालीघाट श्री संघ का पूजा पंडाल कठपुतलियों पर केंद्रित होगा। वहीं मध्य कोलकाता के विप्लवी अनुकूल चंद्र स्ट्रीट के पूजा मंडप में टेराकोटा की झलक दिखेगी।
श्री संघ के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस बार पूजा पंडाल को कठपुतलियों से सजाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि करीब 80 कारीगर बीते सवा महीने से श्री संघ के पंडाल के लिए छोटी-बड़ी आकार की कठपुतलिया बनाने में जुटे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पंडाल और उसके आसपास करीब चार हजार कठपुतलियों को रखा जाएगा। उन्होंने बताया कि पांच इंच से 14 फीट लंबी रंग-बिरंगी पंडाल को पूजा धूमने आए लोग देख पाएंगे।
वहीं, मध्य कोलकाता के विप्लवी अनुकूल चंद्र स्ट्रीट में नागरिक कल्याण समिति के बैनर तले इस बार टेराकोटा की थीम पर पूजा आयोजित की जा रही है। कमिटी के सचिव दिनेश जायसवाल ने बताया कि इससे पहले उनकी कमिटी ने स्टील के बर्तन का पंडाल, जोधपुर स्थित मंदिर और सहज पथ की थीम पर पूजा आयोजित कर चुकी है।
उन्होंने बताया कि कलाकार आशुतोष शी की परिकल्पना पर मेदिनीपुर के कंटाई स्थित कुसुमोनी डेकोरेटर की दर्जनों कारीगर पंडाल बनाने में जुटे हैं। वहीं, प्रतिमा बनाने का काम मूर्तिकार जयदेव बक्र कर रहे हैं। जायसवाल ने बताया कि बिजली सज्जा की जिम्मेवारी बापी इलेक्ट्रिक को दी गई है।
उन्होंने बताया कि कमिटी पूजा आयोजित करने के साथ-साथ कई तरह के सेवा मूलक काय4 भी करती है। उन्होंने बताया कि कमिटी में करीब 25 सौ कारोबारी है, जो बिजली उपकरण व पंखा का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि कमिटी वेलिंग्टन व्यवसायी वृंद के बैनर तले सेवामूलक कार्यों को अमलीजामा पहनाती है।
उन्होंने बताया कि तीस फीट लंबे, तीस फीट चौड़े और चालीस फीट ऊंचे बांकुड़ा, बिष्णुपुर व कृष्णनगर की लाल मिट््टी से बने पंडाल का उद्घाटन 30 सितंबर को श्यामल सेन, सौमेन मित्र व सुदीप बंद्योपाध्याय की उपस्थिति में होगा। उन्होंने बताया कि विधि-विधान के पूजा अर्चना करने के बाद सात अक्तूबर को प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।
बजट के बारे में उन्होंने बताया कि इस साल करीब 12 लाख का बजट निर्धारित किया गया है। पूजा पंडाल में आए लोगों को पंडाल, प्रतिमा व बिजली सज्जा में गजब सा समानता देखने को मिलेगी। उन्होंने कहा- जमाना एकरुपता का है। इस बात पर पूरा ध्यान रखा जा रहा है। पंडाल के साथ-साथ प्रतिमा ऐसी लगेगी मानो इसे बनाने में लाल मिट््टी का इस्तेमाल किया गया हो। उन्होंने बताया कि चेयरमैन रतन अग्रवाल, अध्यक्ष जगनाथप्रसाद साव, कोषाध्यक्ष दयानंद जायसवाल समेत कमिटी के कई सदस्य पूजा आयोजन को सफल बनाने में जुटे हैं।
Wednesday, September 14, 2011
राजस्थान की थीम पर बंगाल में पूजा
शंकर जालान
कोलकाता, बीते कुछ सालों से दुर्गापूजा किसी ने किसी थीम पर आधारित होने लगी है। ज्यादातर पूजा कमिटियां विशेष थीम पर पूजा आयोजित कर खूब वाह-वाही लूट रही है। दक्षिण, मध्य और उत्तर कोलकाता की कुछ पूजा इतनी चर्चित हो गई हैं, कि उनमें दर्शनार्थियों की भारी देखी जाती है। उन्हीं चर्चित पूजाओं में से एक है- दक्षिण कोलकाता स्थित त्रिधारा सम्मिलनी की दुर्गा पूजा। मनोहरपुकुर रोड और रास बिहारी एवेन्यू के संगमस्थल पर आयोजित होनी वाली पूजा इस बार राजस्थान की थीम पर आधारित है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. अनुपम दासगुप्ता व सचिव देवाशीष कुमार ने बताया कि संस्था के बैनर तले पूजा आयोजन के अलावा कई तरह के सेवामूलक कार्य भी किए जाते हैं।
संस्था के एक अन्य सदस्य लालटू मुखर्जी ने बताया कि इस बार भव्य रुप में राजस्थान को ध्यान में रखकर पूजा आयोजित की जा रही है। इसलिए पूजा पंडाल का उद्घाटन भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करेंगे। इसके अलावा उद्घाटन के मौके पर राजस्थान सरकार के कई मंत्री व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष भी उपस्थित रहेंगे।
मुखर्जी के मुताबिक संस्था के सदस्यों की सहमति से इस बार थीम के रुप में राजस्थान का चयन किया गया। उन्होंने बताया कि दीपक घोष की परिकल्पना पर सैंकड़ों कारीगर पंडाल निर्माण में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि पंडाल को राजस्थानी हवेली का आकार दिया जा रहा है। उन्होंने कहा- हमारे पंडाल में आने वाले दर्शनार्थियों को ऐसा महसूस होगा कि वे बंगाल में नहीं राजस्थान की धरती पर हैं।
मुखर्जी ने जनसत्ता को बताया कि 65 सालों से यहां पूजा आयोजित होती आ रही है और इस बार पूजा पंडाल का उद्घाटन 30 सितंबर को होगा और इसके ठीक सात दिन बाद यानी छह अक्तूबर को मां दुर्गा को विदाई दी जाएगी।
मुखर्जी ने बताया कि मूर्तिकार बबलू बनिक त्रिधारा सम्मिलनी के पूजा पंडाल के लिए मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पूजा पंडाल में आए दर्शनार्थियों को अंबा के रूप में मां दुर्गा के दर्शन होंगे। उन्होंने बताया कि सीताराम शर्मा को चेयरमैन और राम अवतार पोद्दार, संतोष सराफ व विपीन कुमार वोहर को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि दुर्गोत्सव के दौरान राजस्थानी कला-संस्कृति की झलक, राजस्थानी खानपान की व्यवस्था तो रहेगी ही साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पूजा आयोजन में कलकत्ता हाई कोर्ट, कोलकाता नगर निगम, दमकल विभाग और कोलकाता पुलिस के निर्देशों को पूरी तरह ध्यान में रखा जा रहा है, ताकि पूजा घूमने आए लोगों को किसी तरह की कोई परेशानी ने हो।
कोलकाता, बीते कुछ सालों से दुर्गापूजा किसी ने किसी थीम पर आधारित होने लगी है। ज्यादातर पूजा कमिटियां विशेष थीम पर पूजा आयोजित कर खूब वाह-वाही लूट रही है। दक्षिण, मध्य और उत्तर कोलकाता की कुछ पूजा इतनी चर्चित हो गई हैं, कि उनमें दर्शनार्थियों की भारी देखी जाती है। उन्हीं चर्चित पूजाओं में से एक है- दक्षिण कोलकाता स्थित त्रिधारा सम्मिलनी की दुर्गा पूजा। मनोहरपुकुर रोड और रास बिहारी एवेन्यू के संगमस्थल पर आयोजित होनी वाली पूजा इस बार राजस्थान की थीम पर आधारित है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. अनुपम दासगुप्ता व सचिव देवाशीष कुमार ने बताया कि संस्था के बैनर तले पूजा आयोजन के अलावा कई तरह के सेवामूलक कार्य भी किए जाते हैं।
संस्था के एक अन्य सदस्य लालटू मुखर्जी ने बताया कि इस बार भव्य रुप में राजस्थान को ध्यान में रखकर पूजा आयोजित की जा रही है। इसलिए पूजा पंडाल का उद्घाटन भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करेंगे। इसके अलावा उद्घाटन के मौके पर राजस्थान सरकार के कई मंत्री व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष भी उपस्थित रहेंगे।
मुखर्जी के मुताबिक संस्था के सदस्यों की सहमति से इस बार थीम के रुप में राजस्थान का चयन किया गया। उन्होंने बताया कि दीपक घोष की परिकल्पना पर सैंकड़ों कारीगर पंडाल निर्माण में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि पंडाल को राजस्थानी हवेली का आकार दिया जा रहा है। उन्होंने कहा- हमारे पंडाल में आने वाले दर्शनार्थियों को ऐसा महसूस होगा कि वे बंगाल में नहीं राजस्थान की धरती पर हैं।
मुखर्जी ने जनसत्ता को बताया कि 65 सालों से यहां पूजा आयोजित होती आ रही है और इस बार पूजा पंडाल का उद्घाटन 30 सितंबर को होगा और इसके ठीक सात दिन बाद यानी छह अक्तूबर को मां दुर्गा को विदाई दी जाएगी।
मुखर्जी ने बताया कि मूर्तिकार बबलू बनिक त्रिधारा सम्मिलनी के पूजा पंडाल के लिए मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पूजा पंडाल में आए दर्शनार्थियों को अंबा के रूप में मां दुर्गा के दर्शन होंगे। उन्होंने बताया कि सीताराम शर्मा को चेयरमैन और राम अवतार पोद्दार, संतोष सराफ व विपीन कुमार वोहर को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
उन्होंने बताया कि दुर्गोत्सव के दौरान राजस्थानी कला-संस्कृति की झलक, राजस्थानी खानपान की व्यवस्था तो रहेगी ही साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पूजा आयोजन में कलकत्ता हाई कोर्ट, कोलकाता नगर निगम, दमकल विभाग और कोलकाता पुलिस के निर्देशों को पूरी तरह ध्यान में रखा जा रहा है, ताकि पूजा घूमने आए लोगों को किसी तरह की कोई परेशानी ने हो।
Monday, September 12, 2011
स्वर्ग लोक में होंगे दुर्गा के दर्शन
शंकर जालान
कोलकाता। मध्य कोलकाता के बड़तला स्ट्रीट स्थित बड़ाबाजार सार्वजनिक
दुर्गोत्सव कमिटी (जौहरी पट््टी) के पूजा पंडाल इस बार काल्पनिक मंदिर की
तर्ज पर बन रहा है और मंडप जहां, दुर्गा विराजेगी उसे स्वर्ग लोक जैसा
बनाया जा रहा है। आड़ी बांसतला और बड़तला स्ट्रीट के संगमस्थल पर 1944 से
दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है। पूजा कमिटी के सचिव मनोज चांदगोठिया
ने बताया कि 65 साल पहले स्थानीय लोगों ने छोटे रुप में पूजा आयोजन की
शुरुआत की थी, जो समय के साथ-साथ बदलते हुए इलाके की श्रेष्ठतम पूजा में
शुमार हो गई है। चांदगोठिया ने बताया कि हर साल पूजा के पहले नई कमिटी का
गठन किया जाता है और पूजा आयोजन की पूरी जिम्मेवारी कमिटी के
पदाधिकारियों व सदस्यों पर होती है। उनके मुताबिक उस साल बनवारीलाल शर्मा
को चेयरमैन, पवन सराफ को अध्यक्ष, नरेश शर्मा व पंकज सोनकर को संयुक्त
सचिव और नवीन सराफ व अनिस लखोटिया को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। सचिव ने
बताया कि 1980 से 1990 तक जौहरी पट््टी के पूजा पंडाल में बिजली चालित
आयोजित की गई थी। इन दस सालों में हमने बीते साल की बड़ी घटना को दर्शाया
था। पनडूबी, ग्लोब और रॉकेट पर आधारित बिजली चालित पूजा को देखने के लिए
दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी थी, जिसका विपरीत असर ट्रैफिक व्यवस्था पर
पड़ता था और सड़क पर घंटों जाम लग जाता था। पुलिस और प्रशासन के अनुरोध
कमिटी से बिजली चालित पूजा बंद की और तब से यहां राजस्थानी रूप में पूजा
आयोजित की जाने लगी। इस बार की प्रतिमा, पंडाल और बिजली सज्जा का जिक्र
करते हुए चांदगोठिया ने बताया कि 35 फीट ऊंचे, 20 फीट चौड़े और 35 फीट
मंदिर नुमा पंडाल को मॉडर्न डेकोरेटर के कारीगर तैयार कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पंडाल का बाहरी हिस्सा मंदिर जैसा और भीतरी हिस्सा
स्वर्ग लोक जैसा होगा। मूर्तिकार परेश पाल को प्रतिमा और एनके इलेक्ट्रिक
को बिजली सज्जा की जिम्मेवारी दी गई है। परेश पाल राजस्थानी परिधान में
मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में
जुटे हैं। जौहरी पट््टी के पंडाल में सटीक राजधानी भूषभूसा में महिषासुर
का बध करती नजर आएगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूजा पंडाल
का उद्घाटन महाषष्ठी (दो अक्टूबर) और प्रतिमा का विसर्जन एकादशी (सात
अक्टूबर) को होगा। उद्घाटन कौन करेगा? इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया
कि चूंकि जौहरी पट््टी की पूजा मोहल्लावासी और जौहरियों की पूजा है।
इसलिए कमिटी स्थानीय किसी बुजुर्ग व्यक्ति से उद्घाटन कराती है।
कोलकाता। मध्य कोलकाता के बड़तला स्ट्रीट स्थित बड़ाबाजार सार्वजनिक
दुर्गोत्सव कमिटी (जौहरी पट््टी) के पूजा पंडाल इस बार काल्पनिक मंदिर की
तर्ज पर बन रहा है और मंडप जहां, दुर्गा विराजेगी उसे स्वर्ग लोक जैसा
बनाया जा रहा है। आड़ी बांसतला और बड़तला स्ट्रीट के संगमस्थल पर 1944 से
दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है। पूजा कमिटी के सचिव मनोज चांदगोठिया
ने बताया कि 65 साल पहले स्थानीय लोगों ने छोटे रुप में पूजा आयोजन की
शुरुआत की थी, जो समय के साथ-साथ बदलते हुए इलाके की श्रेष्ठतम पूजा में
शुमार हो गई है। चांदगोठिया ने बताया कि हर साल पूजा के पहले नई कमिटी का
गठन किया जाता है और पूजा आयोजन की पूरी जिम्मेवारी कमिटी के
पदाधिकारियों व सदस्यों पर होती है। उनके मुताबिक उस साल बनवारीलाल शर्मा
को चेयरमैन, पवन सराफ को अध्यक्ष, नरेश शर्मा व पंकज सोनकर को संयुक्त
सचिव और नवीन सराफ व अनिस लखोटिया को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। सचिव ने
बताया कि 1980 से 1990 तक जौहरी पट््टी के पूजा पंडाल में बिजली चालित
आयोजित की गई थी। इन दस सालों में हमने बीते साल की बड़ी घटना को दर्शाया
था। पनडूबी, ग्लोब और रॉकेट पर आधारित बिजली चालित पूजा को देखने के लिए
दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी थी, जिसका विपरीत असर ट्रैफिक व्यवस्था पर
पड़ता था और सड़क पर घंटों जाम लग जाता था। पुलिस और प्रशासन के अनुरोध
कमिटी से बिजली चालित पूजा बंद की और तब से यहां राजस्थानी रूप में पूजा
आयोजित की जाने लगी। इस बार की प्रतिमा, पंडाल और बिजली सज्जा का जिक्र
करते हुए चांदगोठिया ने बताया कि 35 फीट ऊंचे, 20 फीट चौड़े और 35 फीट
मंदिर नुमा पंडाल को मॉडर्न डेकोरेटर के कारीगर तैयार कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पंडाल का बाहरी हिस्सा मंदिर जैसा और भीतरी हिस्सा
स्वर्ग लोक जैसा होगा। मूर्तिकार परेश पाल को प्रतिमा और एनके इलेक्ट्रिक
को बिजली सज्जा की जिम्मेवारी दी गई है। परेश पाल राजस्थानी परिधान में
मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में
जुटे हैं। जौहरी पट््टी के पंडाल में सटीक राजधानी भूषभूसा में महिषासुर
का बध करती नजर आएगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूजा पंडाल
का उद्घाटन महाषष्ठी (दो अक्टूबर) और प्रतिमा का विसर्जन एकादशी (सात
अक्टूबर) को होगा। उद्घाटन कौन करेगा? इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया
कि चूंकि जौहरी पट््टी की पूजा मोहल्लावासी और जौहरियों की पूजा है।
इसलिए कमिटी स्थानीय किसी बुजुर्ग व्यक्ति से उद्घाटन कराती है।
स्वर्ग लोक में होंगे दुर्गा के दर्शन
शंकर जालान
कोलकाता। मध्य कोलकाता के बड़तला स्ट्रीट स्थित बड़ाबाजार सार्वजनिक
दुर्गोत्सव कमिटी (जौहरी पट््टी) के पूजा पंडाल इस बार काल्पनिक मंदिर की
तर्ज पर बन रहा है और मंडप जहां, दुर्गा विराजेगी उसे स्वर्ग लोक जैसा
बनाया जा रहा है। आड़ी बांसतला और बड़तला स्ट्रीट के संगमस्थल पर 1944 से
दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है। पूजा कमिटी के सचिव मनोज चांदगोठिया
ने बताया कि 65 साल पहले स्थानीय लोगों ने छोटे रुप में पूजा आयोजन की
शुरुआत की थी, जो समय के साथ-साथ बदलते हुए इलाके की श्रेष्ठतम पूजा में
शुमार हो गई है। चांदगोठिया ने बताया कि हर साल पूजा के पहले नई कमिटी का
गठन किया जाता है और पूजा आयोजन की पूरी जिम्मेवारी कमिटी के
पदाधिकारियों व सदस्यों पर होती है। उनके मुताबिक उस साल बनवारीलाल शर्मा
को चेयरमैन, पवन सराफ को अध्यक्ष, नरेश शर्मा व पंकज सोनकर को संयुक्त
सचिव और नवीन सराफ व अनिस लखोटिया को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। सचिव ने
बताया कि 1980 से 1990 तक जौहरी पट््टी के पूजा पंडाल में बिजली चालित
आयोजित की गई थी। इन दस सालों में हमने बीते साल की बड़ी घटना को दर्शाया
था। पनडूबी, ग्लोब और रॉकेट पर आधारित बिजली चालित पूजा को देखने के लिए
दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी थी, जिसका विपरीत असर ट्रैफिक व्यवस्था पर
पड़ता था और सड़क पर घंटों जाम लग जाता था। पुलिस और प्रशासन के अनुरोध
कमिटी से बिजली चालित पूजा बंद की और तब से यहां राजस्थानी रूप में पूजा
आयोजित की जाने लगी। इस बार की प्रतिमा, पंडाल और बिजली सज्जा का जिक्र
करते हुए चांदगोठिया ने बताया कि 35 फीट ऊंचे, 20 फीट चौड़े और 35 फीट
मंदिर नुमा पंडाल को मॉडर्न डेकोरेटर के कारीगर तैयार कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पंडाल का बाहरी हिस्सा मंदिर जैसा और भीतरी हिस्सा
स्वर्ग लोक जैसा होगा। मूर्तिकार परेश पाल को प्रतिमा और एनके इलेक्ट्रिक
को बिजली सज्जा की जिम्मेवारी दी गई है। परेश पाल राजस्थानी परिधान में
मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में
जुटे हैं। जौहरी पट््टी के पंडाल में सटीक राजधानी भूषभूसा में महिषासुर
का बध करती नजर आएगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूजा पंडाल
का उद्घाटन महाषष्ठी (दो अक्टूबर) और प्रतिमा का विसर्जन एकादशी (सात
अक्टूबर) को होगा। उद्घाटन कौन करेगा? इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया
कि चूंकि जौहरी पट््टी की पूजा मोहल्लावासी और जौहरियों की पूजा है।
इसलिए कमिटी स्थानीय किसी बुजुर्ग व्यक्ति से उद्घाटन कराती है।
कोलकाता। मध्य कोलकाता के बड़तला स्ट्रीट स्थित बड़ाबाजार सार्वजनिक
दुर्गोत्सव कमिटी (जौहरी पट््टी) के पूजा पंडाल इस बार काल्पनिक मंदिर की
तर्ज पर बन रहा है और मंडप जहां, दुर्गा विराजेगी उसे स्वर्ग लोक जैसा
बनाया जा रहा है। आड़ी बांसतला और बड़तला स्ट्रीट के संगमस्थल पर 1944 से
दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है। पूजा कमिटी के सचिव मनोज चांदगोठिया
ने बताया कि 65 साल पहले स्थानीय लोगों ने छोटे रुप में पूजा आयोजन की
शुरुआत की थी, जो समय के साथ-साथ बदलते हुए इलाके की श्रेष्ठतम पूजा में
शुमार हो गई है। चांदगोठिया ने बताया कि हर साल पूजा के पहले नई कमिटी का
गठन किया जाता है और पूजा आयोजन की पूरी जिम्मेवारी कमिटी के
पदाधिकारियों व सदस्यों पर होती है। उनके मुताबिक उस साल बनवारीलाल शर्मा
को चेयरमैन, पवन सराफ को अध्यक्ष, नरेश शर्मा व पंकज सोनकर को संयुक्त
सचिव और नवीन सराफ व अनिस लखोटिया को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। सचिव ने
बताया कि 1980 से 1990 तक जौहरी पट््टी के पूजा पंडाल में बिजली चालित
आयोजित की गई थी। इन दस सालों में हमने बीते साल की बड़ी घटना को दर्शाया
था। पनडूबी, ग्लोब और रॉकेट पर आधारित बिजली चालित पूजा को देखने के लिए
दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी थी, जिसका विपरीत असर ट्रैफिक व्यवस्था पर
पड़ता था और सड़क पर घंटों जाम लग जाता था। पुलिस और प्रशासन के अनुरोध
कमिटी से बिजली चालित पूजा बंद की और तब से यहां राजस्थानी रूप में पूजा
आयोजित की जाने लगी। इस बार की प्रतिमा, पंडाल और बिजली सज्जा का जिक्र
करते हुए चांदगोठिया ने बताया कि 35 फीट ऊंचे, 20 फीट चौड़े और 35 फीट
मंदिर नुमा पंडाल को मॉडर्न डेकोरेटर के कारीगर तैयार कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पंडाल का बाहरी हिस्सा मंदिर जैसा और भीतरी हिस्सा
स्वर्ग लोक जैसा होगा। मूर्तिकार परेश पाल को प्रतिमा और एनके इलेक्ट्रिक
को बिजली सज्जा की जिम्मेवारी दी गई है। परेश पाल राजस्थानी परिधान में
मां दुर्गा समेत गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा बनाने में
जुटे हैं। जौहरी पट््टी के पंडाल में सटीक राजधानी भूषभूसा में महिषासुर
का बध करती नजर आएगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूजा पंडाल
का उद्घाटन महाषष्ठी (दो अक्टूबर) और प्रतिमा का विसर्जन एकादशी (सात
अक्टूबर) को होगा। उद्घाटन कौन करेगा? इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया
कि चूंकि जौहरी पट््टी की पूजा मोहल्लावासी और जौहरियों की पूजा है।
इसलिए कमिटी स्थानीय किसी बुजुर्ग व्यक्ति से उद्घाटन कराती है।
Sunday, September 11, 2011
कहीं अण्णा तो कही अन्नपूर्णा के रुप में दिखेगी दुर्गा
शंकर जालान
दुर्गा पूजा में अब तीन सप्ताह शेष रह गए हैं। उत्तर कोलकाता के कुम्हारटोली के मूर्तिकार मां दुर्गा समेत सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। यहां के मूर्तिकार इनदिनों युद्धस्तर पर विभिन्न तरह की मूर्ति गढ़ने में व्यस्त है। कोई मूर्तिकार अण्णा हजारे की इलक तो कोई राक्षस विहीन मूर्ति बना रहा है। कोई अन्नपूर्णा के रुप में तो कई पांच शेरों वाली प्रतिमा बनाने में जुटा है। कोई एक सौ आठ भुजा वाल तो कई नवदुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहा है।
मूर्तिकारों का कहना है कि पांच दिवसीय दुर्गोत्सव की तैयारी में मोटे तौर पर वे पांच महीने पहले से लग जाते हैं। मूर्तिकारों के मुताबिक विसर्जन यानी विजया दशमी के बाद से ही वे अगले साल के लिए प्रतिमा निर्माण के बारे में सोचने लगते हैं।
चायना पाल नामक एक महिला मूर्तिकार ने बताया कि कुछ मूर्तियां का निर्माण वे अपनी कल्पना से करती हैं और कुछ आयोजकों की मांग के मुताबिक। एक अन्य मूर्तिकार ने बताया कि जमाना एकरुपता का है, इसलिए कई आयोजक पंडाल व बिजली सज्जा के अनुरुप मूर्ति बनवाते हैं। वे कहते हैं - जो मूर्ति आयोजकों की मांग पर बनती है उनमें वे खुल कर अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाते, क्योंकि मूर्ति की लंबाई, चौड़ाई व रंग आदि का निर्णय आयोजक लेते हैं।
मूर्तिकार मुरली पाल ने बताया कि एकरुपता देखने में अच्छी लगती है। इसलिए मूर्ति निर्माण में कुछ कमी रह जाती है तो उसे दर्शनार्थी समझ नहीं पाते। उन्होंने कहा कि अगर आयोजकों की बंदिश ने हो तो मूर्तिकार और बेहतर तरीके से अपनी कारीगरी का नमूना पेश कर सकता है। पाल ने कहा- आयोजकों की मांग के मुताबिक जो मूर्तियां बनाई जाती है, बेशक उसकी कीमत उन्हें अधिक मिलती है। आधा से अधिक भुगतान महालया के पहले ही मिल जाता है। उन्होंने बताया कि जो मूर्तियां वे अपनी कल्पना के आधार पर बनाते हैं उसमें स्वतंत्र रुप से कलाकारी की छूट रहती है। हालांकि ऐसी प्रतिमा को बेचने और फिर उसका भुगतान वसूलने में उन्हें काफी दिक्कत होती है।
मूर्तिकारों के संगठन के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस वर्ष कुम्हारटोली में करीब सात सौ मूर्तियां बनाई जा रह है। इनमें लगभग आधी यानी ३५० मूर्तियां को विभिन्न पूजा कमिटियों ने अग्रिम राशि देकर बुक कर लिया है। उन्होंने बताया कि इस बार करीब ९० प्रतिमा आयोजकों की मांग और उनकी थीम के मुताबिक बनाई जा रही है। शेष करीब छह सौ मूर्तियों को यहां के मर्तिकारों ने अपनी सोच व कल्पना के आधार पर गढ़ा है।
उन्होंने बताया कि इस साल प्रतिमाओं में अण्णा इफेक्ट अधिक है। इसके अलावा राक्षस विहीन, पांच शेरों वाली, अन्नपूर्णा, नवदुर्गा, १०८ भुजा वाली प्रतिमा भी बनाई जा रही है।
अण्णा हजारे की इलक वाली समेत करीब १५ प्रतिमा बनाने में जुटे रुद्र पाल ने बताया कि अण्णा इफेक्ट की मूर्ति गढ़ने का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण है। उन्होंने बताया कि मेरी सोच थी कि ऐसी मूर्ति गढ़ी जाए जो भारत की ज्वलंत समस्या को उजागर करें। उन्होंने बताया कि मेरे लिए खुशी की बात यह है कि सबसे पहले इसी मूर्ति को एक पूजा कमिटी ने बुक करवाया। यह पूछे जाने पर कि किस पूजा कमिटी ने यह प्रतिमा बुक कराई है और कहां के पंडाल में इसे रखा जाएगा? इसका जवाब देने से उन्होंने इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह गोपनीयता के नजरिए से ठीक नहीं है।
इसी तरह पांच शेरों वाली मूर्ति बनाने में जुटे कृष्णा पाल ने बताया कि बीते साल उन्होंने तीन शेर वाली प्रतिमा बनाई थी। वह मूर्ति अच्छी कीमत पर बिकी। उसी से प्रेरित होकर मैंने इस बार पांच शेर वाली प्रतिमा बनाने की ठानी। इसी प्रकार सनातन पाल १०८ भुजा वाली, रामचरण पाल अन्नपूर्णा स्वरुपा और बद्रीनाथ एकरंगी प्रतिमा बनाने में जुटे हैं।
दुर्गा पूजा में अब तीन सप्ताह शेष रह गए हैं। उत्तर कोलकाता के कुम्हारटोली के मूर्तिकार मां दुर्गा समेत सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। यहां के मूर्तिकार इनदिनों युद्धस्तर पर विभिन्न तरह की मूर्ति गढ़ने में व्यस्त है। कोई मूर्तिकार अण्णा हजारे की इलक तो कोई राक्षस विहीन मूर्ति बना रहा है। कोई अन्नपूर्णा के रुप में तो कई पांच शेरों वाली प्रतिमा बनाने में जुटा है। कोई एक सौ आठ भुजा वाल तो कई नवदुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहा है।
मूर्तिकारों का कहना है कि पांच दिवसीय दुर्गोत्सव की तैयारी में मोटे तौर पर वे पांच महीने पहले से लग जाते हैं। मूर्तिकारों के मुताबिक विसर्जन यानी विजया दशमी के बाद से ही वे अगले साल के लिए प्रतिमा निर्माण के बारे में सोचने लगते हैं।
चायना पाल नामक एक महिला मूर्तिकार ने बताया कि कुछ मूर्तियां का निर्माण वे अपनी कल्पना से करती हैं और कुछ आयोजकों की मांग के मुताबिक। एक अन्य मूर्तिकार ने बताया कि जमाना एकरुपता का है, इसलिए कई आयोजक पंडाल व बिजली सज्जा के अनुरुप मूर्ति बनवाते हैं। वे कहते हैं - जो मूर्ति आयोजकों की मांग पर बनती है उनमें वे खुल कर अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाते, क्योंकि मूर्ति की लंबाई, चौड़ाई व रंग आदि का निर्णय आयोजक लेते हैं।
मूर्तिकार मुरली पाल ने बताया कि एकरुपता देखने में अच्छी लगती है। इसलिए मूर्ति निर्माण में कुछ कमी रह जाती है तो उसे दर्शनार्थी समझ नहीं पाते। उन्होंने कहा कि अगर आयोजकों की बंदिश ने हो तो मूर्तिकार और बेहतर तरीके से अपनी कारीगरी का नमूना पेश कर सकता है। पाल ने कहा- आयोजकों की मांग के मुताबिक जो मूर्तियां बनाई जाती है, बेशक उसकी कीमत उन्हें अधिक मिलती है। आधा से अधिक भुगतान महालया के पहले ही मिल जाता है। उन्होंने बताया कि जो मूर्तियां वे अपनी कल्पना के आधार पर बनाते हैं उसमें स्वतंत्र रुप से कलाकारी की छूट रहती है। हालांकि ऐसी प्रतिमा को बेचने और फिर उसका भुगतान वसूलने में उन्हें काफी दिक्कत होती है।
मूर्तिकारों के संगठन के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि इस वर्ष कुम्हारटोली में करीब सात सौ मूर्तियां बनाई जा रह है। इनमें लगभग आधी यानी ३५० मूर्तियां को विभिन्न पूजा कमिटियों ने अग्रिम राशि देकर बुक कर लिया है। उन्होंने बताया कि इस बार करीब ९० प्रतिमा आयोजकों की मांग और उनकी थीम के मुताबिक बनाई जा रही है। शेष करीब छह सौ मूर्तियों को यहां के मर्तिकारों ने अपनी सोच व कल्पना के आधार पर गढ़ा है।
उन्होंने बताया कि इस साल प्रतिमाओं में अण्णा इफेक्ट अधिक है। इसके अलावा राक्षस विहीन, पांच शेरों वाली, अन्नपूर्णा, नवदुर्गा, १०८ भुजा वाली प्रतिमा भी बनाई जा रही है।
अण्णा हजारे की इलक वाली समेत करीब १५ प्रतिमा बनाने में जुटे रुद्र पाल ने बताया कि अण्णा इफेक्ट की मूर्ति गढ़ने का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण है। उन्होंने बताया कि मेरी सोच थी कि ऐसी मूर्ति गढ़ी जाए जो भारत की ज्वलंत समस्या को उजागर करें। उन्होंने बताया कि मेरे लिए खुशी की बात यह है कि सबसे पहले इसी मूर्ति को एक पूजा कमिटी ने बुक करवाया। यह पूछे जाने पर कि किस पूजा कमिटी ने यह प्रतिमा बुक कराई है और कहां के पंडाल में इसे रखा जाएगा? इसका जवाब देने से उन्होंने इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह गोपनीयता के नजरिए से ठीक नहीं है।
इसी तरह पांच शेरों वाली मूर्ति बनाने में जुटे कृष्णा पाल ने बताया कि बीते साल उन्होंने तीन शेर वाली प्रतिमा बनाई थी। वह मूर्ति अच्छी कीमत पर बिकी। उसी से प्रेरित होकर मैंने इस बार पांच शेर वाली प्रतिमा बनाने की ठानी। इसी प्रकार सनातन पाल १०८ भुजा वाली, रामचरण पाल अन्नपूर्णा स्वरुपा और बद्रीनाथ एकरंगी प्रतिमा बनाने में जुटे हैं।
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