Thursday, May 26, 2011

अभी बाकी है अग्निकन्या की अग्निपरीक्षा


शंकर जालान
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने ३४ साल के वाममोर्चा शासनकालको ध्वस्त करते हुए पश्चिम बंगाल में सत्ता की चाबी हासिल कर ली है।बावजूद इसके अभी ऐसे कई मुकाम आने बाकी हैं, जिसे ममता को बेहिचक पारकरना है। कहने और सुनने में भले ही यह सहज लगे, लेकिन इसे व्यवहार मेंलाने के लिए अग्निकन्या यानी ममता बनर्जी को कई अग्निपरीक्षा देनी होगी।कहते हैं कुर्सी छोड़ना जितना आसान है. उस पर बने रहना और कही तरीके सेअपने काम को अंजाम देना उतना ही कठिन।ममता बनर्जी के सामने कई चुनौतियां हैं। मसलन राज्य में विकास की गति कोतेज करना, गोरखालैंड और जंगलमहल की समस्याओं का समाधान करना, सिंगुर केअनिच्छुक किसानों की जमीन लौटाना। हिंसा और हत्या की राजनीति का आरोपलगाकर ममता ने वाममोर्चा को सत्ता से दूर किया उस पर अंकुश लगाना। इसकेअलावा ममता ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कोलकाता को लंदन, उत्तर बंगालको स्विजरलैंड और दीघ को गोवा बनाने की बात कही थी उस पर भी उसे खराउतरना है।राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जीने बंगाल की महिला मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता तो संभाल ली है, लेकिनउनकी असली अग्निपरीक्षा अब शुरू होगी। राज्य में साढ़े तीन दशक लंबेवाममोर्चा राज को खत्म करना अबकी भले उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं साबितहुआ हो, अब सरकार की मुखिया होने के बाद उनकी राह आसान नहीं होगी।वामपंथी शासन बदलने के बाद उनके कंधों पर उम्मीदों का जो भारी बोझ है,उससे ममता खुद भी अवगत हैं।चुनावी नतीजे आने और शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एक सप्ताह के बीच राज्यके कई जिलों या यूं कहें कि तृणमूल कांग्रेस प्रभावित जिलों में कईहत्याएं और एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर तोड़फोड़ व हंगामा हुआ है।तृणमूल समर्थकों ने कई जगहों पर कब्जा किया है और कई निर्माणों को रूकवादिया है।राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि सरकार का विरोध करना और सरकार चलानादोनों अलग-अलग बात है। तृणमूल कांग्रेस ने सदैव वाममोर्चा सरकार का विरोधकिया है, लेकिन अब उसे सत्ता का सुख मिला है, देखना यह है कि वह इस परकितनी खरी उतरती है।ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद बतौर मुख्यमंत्री पहलीबार पत्रकारों से बातचीत में ममता बनर्जी ने कहा कि- अगले तीन महीनों केभीतर गोरखालैंड व जंगलमगल की समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा। हुगलीजिले के सिंगुर के अनिच्छुक किसानों को ४०० एकड़ जमीन लौटा दी जाएगी।अल्पसंख्यक (मुसलमान) समुदाय के लोगों के लिए विशेष प्रावधान हेतु सच्चरकमेटी से बातचीत की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने रात-दिन सात दिनों तकलगातार काम करने का एलान किया।ममता बनर्जी यह भली-भांति जानती हैं कि उनके सामने सामने चुनौतियों कीसूची काफी लंबी है। इनमें राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति सुधारनेके अलावा कर्ज से कराहते बंगाल को इस हालत से उबारना, सरकारी कर्मचारियोंमें कार्य संस्कृति बहाल करना, उत्तर में सिर उठाते अलगाववादियों औरदक्षिण में मजबूत हो चुके माओवादियों से निपटना शामिल है। ममता की सबसेप्रमुख चुनौती राज्य में चुनावी नतीजों के बाद जारी हिंसा पर काबू पा करहालात को सामान्य बनाए रखने की है। वैसे, अपनी पार्टी के विधायकों कीपहली बैठक में ही उन्होंने साफ कर दिया था कि बदले की भावना नहीं रखनीचाहिए। उन्होंने कहा था कि लोगों ने सत्ता से बेदखल कर माकपा को उसकीगलतियों की सजा दे दी है। लेकिन बावजूद इसके राज्य में हिंसा और हथियारोंकी बरामदगी का सिलसिला जारी है। ममता यह जानती है कि राज्य की जनता बदलावके मूड में थी, इसलिए जनता ने वाममोर्चा को बहार का रास्ता दिखा दिया।ममता को यह भी मालूम है कि अगर उसके राज में हिंसा और हत्या हुई तो जनताउसे कभी माफ नहीं करेगी। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने गृहमंत्रालय फिलहाल अपने पास रखा है। ममता के करीबियों के मुताबिक ममत बहुतजल्द राज्य के पुलिस महानिदेशक, कोलकाता के पुलिस आयुक्त व उपायुक्त,विभिन्न जिलों के पुलिस अधीक्षक व जिला अधिकारियों के साथ बैठक कर आंतकरोकने की दिशा पर हर मुमकिन कदम उठाने की हिदायत देगी।राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता को अब अपने व्यक्तितत्व औररवैए में भी बदलाव लाना होगा। कल तक वे प्रमुख विपक्षी पार्टी की नेता केतौर पर सत्तारुढ़ वाममोर्चा के खिलाफ आंदोलन का नारा बुलंद करती रहीं थीं।अब बदली भूमिका में उनके पास सरकार की कमान है। ऐसे में उन तमाम गलतियोंको सुधारने की जिम्मेदारी भी उनके पास आ गई है जिनके लिए वे माकपा कीअगुवाई वाली सरकार के खिलाफ आंदोलन का परचम लहराती रहती थी। वैसे, चुनावीनतीजों के बाद अपने बयानों और पार्टी के कार्यकर्ताओं को संयंम बरतने कीसलाह देकर इस बदलाव के कुछ संकेत तो उन्होंने दिए हैं। लेकिन अभी इस दिशामें काफी कुछ होना है।विपक्ष में रहते ममता दक्षिण बंगाल में माओवादियों के खिलाफ केंद्रीयसुरक्षा बलों की ओर से चलाए जा रहे साझा अभियान की धुर विरोधी रही हैं।अब सत्ता में आने के बाद उनके सामने दिनों-दिन जटिल होती जा रही माओवादकी इस समस्या से निपटने की कड़ी चुनौती है। यहां उनकी अगुवाई वाली सरकारमें कांग्रेस शामिल है और केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार मेंउनकी पार्टी यानी तृणमूल कांग्रेस। ऐसे में साझा अभियान के मुद्दे परउनका पुराना रुख दोनों दलों के बीच समस्याएं खड़ी कर सकता है।ममता ने पुलिस प्रशासन को बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के काम करने की खुलीछूट देने की भी बात कही है। लेकिन कुछ दिनों पहले तक वे आरोप लगाती रहीथीं कि पुलिस प्रशासन का एक गुट माकपा के रंग में रंग गया है और कईअधिकारी काडर के तौर पर काम कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविकहै कि क्या वे पुलिस प्रशासन में बड़े पैमाने पर उलटफेर करते हुए उसे अपनेअनुकूल सजाएंगी या फिर सबकुछ जस का तस ही चलता रहेगा।वैसे तो चुनौतियों की यह सूची काफी लंबी है। लेकिन राज्य मेंकार्यसंस्कृति बहाल करना भी नई मुख्यमंत्री के लिए एक कड़ी चुनौती होगी।राज्य सरकारी कर्मचारियों की बड़ी तादाद माकपा से संबद्ध कोआर्डिनेशनकमिटी से जुड़ी है। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भषचार्य ने सत्ता संभालनेके बाद डू इट नाऊ का नारा दिया था। लेकिन इन कर्मचारियों ने उनके इस नारेको दिन में ही तारे दिखा दिए थे। थक-हार कर बुद्धदेव ने भी चुप्पी साध लीथी। अब अहम सवाल यह है कि जो काम बुद्धदेव नहीं कर सके, क्या ममता वहकरने में कामयाब होगीं। चुनौतियों की सूची में कार्यसंस्कृति का स्थानभले कुछ नीचे हो, नई सरकार की तमाम योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करनेके लिहाज से तो यह अव्वल है।यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता प्राथमिकता के आधार परधीरे-धीरे एक-एक चुनौतियों से निपटने की पहल करेंगी। यही वजह है किउन्होंने अपने मंत्रिमंडल में समाज के विभिन्न तबके के विशेषज्ञों कोचुन-चुन कर जगह दी है। शंकर जालान

...और ममता का एक रूप यह भी

शंकर जालानजीहां, पश्चिम बंगाल की अग्नि कन्या यानी ममता बनर्जी ने केवल कला प्रेमी है बल्कि एक सफल चित्रकार भी हैं। रेल मंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को ज्यादातर लोग जुझारू नेता के तौर पर जानते हैं, लेकिन इन चित्रों को देख कर कोई भी सहज ही सकते में पड़ सकता है और यह मानने से पहले दांतों तले अंगुली दबा सकता है कि ये चित्र ममता बनर्जी के बनाए हुए हैं। लोग यह सोचने पर मजबूर हो सकते हैं कि आखिर इतनी व्यस्तता और भाग-दौड़ भरे राजनीतिक जीवन में ममता बनर्जी कैसे कला के लिए समय निकाल लेती हैं। इतना ही नहीं यानी कला के अलावा बनर्जी साहित्य के लिए भी वक्त बचा लेती हैं।सच मानिए संसद में जब जोरदार बहसों का दौर हो या फिर दक्षिण कोलकाता के कालीघाट स्थित उनका आवास या फिर तपसिया में बने तृणमूल कांग्रेस के मुख्यालय में बैठक हो रही हो या चर्चा। ममता बनर्जी थोड़ा समय निकाल कर पेंटिंग्स कर लेती हैं और कविताएं भी लिख लेती हैं।आप ने ठीक समझा हम यहां उसी ममता बनर्जी की बात कर रहे हैं जो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में परिवर्तन का प्रतीक बनी हुई है। इन्हीं ममता बनर्जी की बनाई गई १०१ पेंटिंग्स की प्रदर्शनी शेक्सपियर सरणी स्थित गैलरी-८८ में लगाई गई। तीन दिनों तक चलने वाली प्रदर्शनी का उद्घाटन चार अप्रैल को हुआ, लेकिन लोगों की भीड़ को देखते हुए प्रदर्शनी एक दिन और बढ़ा दी गई। हालांकि १०१ चित्रों की प्रदर्शनी में बिक्री के लिए ९८ चित्र ही है और बुधवार शाम तक इनमें से आधे से अधिक चित्र बिक चुके थे। इसके एवज में लगभग डेढ़ करोड़ रुपए एकत्रित किए जा चुके थे।प्रदर्शनी की खास बात यह है कि पहले ही दिन से यहां कला प्रेमियों का न केवल आगमन शुरू हो गया था, बल्कि १४ पेटिंग्स को खरीदार भी मिल गए थे। दूसरे दिन भी १४ और तीसरे दिन १५ से ज्यादा पेंटिंग्स को कला प्रेमियों ने खरीदा।इस प्रदर्शनी में हर रंग और मिजाज को ध्यान में रख कर बनाए गए चित्रों को रखा गया है। ममता के करीबियों के मुताबिक ममता ने इन चित्रों को व्यस्त दिनचर्या के बीच फुरसत में बनाया है। इन चित्रों में जंगल महल, द रिदम आफ लाइफ, द डाउन, अनसीन ड्रीम, फेडेड ब्यूटी व विंड इन ब्लू शामिल हैं।प्रदर्शनी में इन चित्रों को देखने के दौरान कला के जानकर बातचीत भी कर रहे थे और लगभग हर कोई ममता की पेंटिंग्स की तारीफ कर रहा था। कला के इन मुरीदों में मशहूर कलाकार से लेकर आम लोग मुग्ध होकर दीदी (ममता बनर्जी) के चित्रों की प्रशंसा में व्यस्त दिखे। ममता की पेंटिंग्स में उनके बहुचर्चित नारे मां-माटी-मानुष से लेकर जीवन और समाज के विविध रंग भरे हैं। सूत्रों के मुताबिक बिक्री से प्राप्त राशि का उपयोग पार्टी के सांगठनिक कार्यों में किया जाएगा। इसके साथ ही इन पैसों से गरीब व असहायों की मदद की जाएगी।पेटिंग्स की तारीफ करते हुए कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी कहते हैं - ममता छात्र राजनीति के समय से ही किसानों के आंदोलन से जुड़ी थी। प्रकृति के प्रति प्रेम उनमें बचपन से था। उनकी बनाई पेटिंग्स प्रेरणादायक है। कमोबेश यह बात विधानसभा में विरोधी दल के नेता पार्थ चटर्जी में कहते हैं।पेंटिंग्स खरीदने वालों में हर्ष नेवटिया, जगमोहन डालमिया, हरनाथ चक्रवर्ती, रंजीत मल्लिक, जय मेहता समेत कई जाने माने लोग व उद्योगपित शामिल है। वहीं, देखने वाले संजीव गोयनका, आरएस अग्रवाल, आरएस गोयनका, मेघनाथ राय, संदीप भूतोडि़या, जय गोस्वामी, कावेरी गोस्वामी शामिल थे। इन लोगों ने कहा- आंखों को आकर्षित करते हैं चित्रों के रंग। इनमें तुली (ब्रश) की साहसिकता उभर कर आई है। इन चित्रों में गंभीर शांति के भाव छिपे हैं।मालूम हो कि इस प्रदर्शनी का आयोजन तृणमूल कांग्रेस के मुखपत्र जागों बांग्ला की ओर से किया गया। इसमें दो युवा कला प्रेमी सृंजय बोस और शिवाजी पांजा का विशेष सहयोग रहा है। ममता के चित्रों की पहली प्रदर्शनी २००५ में लगी थी, जिसके मार्फत चार लाख रुपए जुट पाए थे और दूसरी प्रदर्शनी २००७ में लगी थी और १४ लाख रुपए एकत्रित किए गए थे।शंकर जालान

Thursday, April 14, 2011

त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद हर उम्मीदवार को है जीत का भरोसा

शंकर जालान कोलकाता। उत्तर कोलकाता की बहुचर्चित विधानसभा सीट यानी काशीपुर-बेलगछिया क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले के बीच माकपा, तृणमूल कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों समेत निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ रहे तीनों उम्मीदवारों को अपनी-अपनी जीत का पूरा भरोसा है। माकपा की कनिनिका घोष, तृणमूल कांग्रेस की माला साहा और भाजपा के आदित्य टंडन न केवल अपने-अपने स्तर पर चुनाव प्रचार और मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं, बल्कि अपनी-अपनी जीत के प्रति आश्वस्त भी दिख रहे हैं।काशीपुर, सिंथी मोड़, बेलगछिया, पाइपपाड़ा, टाला पार्क व चित्तपुर रोड जैसे घनी आबादी वाला यह विधानसभा क्षेत्र छह वार्डों से घिरा है। वार्ड नंबर एक से छह वाले इस विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या करीब एक लाख 55 हजार है, जिसमें हिंदीभाषियों की संख्या 40 हजार और अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीबन साढ़े 29 हजार है। इस आंकड़े के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि काशीपुर-विधानसभा क्षेत्र का विधायक चुनने में हिंदीभाषियों व अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की अहम भूमिका होगी। मालूम हो कि परिसीमन के कारण बेलगछिया (पश्चिम) को भंग कर काशीपुर-बेलगछिया नामक नए विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया है। प्रचार के दौरान कैसा समर्थन मिल रहा है? जीत के प्रति कितने आश्वस्त हैं? आप की नजर में क्षेत्र की मुख्य समस्या क्या है? अगर जीत हासिल हुई इलाके के विकास के लिए क्या-क्या करेंगी? इन सवालों के जवाब में वाममोर्चा समर्थित माकपा की उम्मीदवार कनिनिका घोष का कहना है कि प्रचार के दौरान उन्हें मतदाताओं का अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है। मेरी जीत पक्की है। मेरे नजरिए से इलाके में पेयजल की गंभीर समस्या है। अगर मतदाताओं ने मुझे मतदान रूपी आशीर्वाद देकर विधानसभा भवन पहुंचाया तो पेयजल समेत बदहाल सड़कों की मरम्मत के साथ-साथ स्थानीय लोगों की हर समस्या के समाधान के लिए ईमानदारी से प्रयास करूंगी।एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि आजादी के बाद से ज्यादातर बार बेलगछिया (पश्चिम) सीट पर माकपा के उम्मीदवार जीतते आएं है। केवल 1987 में कांग्रेस के सुदीप्त राय और 2006 में तृणमूल कांग्रेस की माला साहा ने यहां से जीत हासिल की है। उन्होंने कहा कि बीते विधानसभा चुनाव में भले ही यहां से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिली हो, लेकिन पिछले पांच सालों से क्षेत्र का कोई विकास नहीं हुआ। 2006 से पहले माकपा के विधायक राजदेव ग्वाला ने क्षेत्र के विकास के लिए जो काम किया था, 2011 तक उसमें कोई इजाफा नहीं हुआ। इसीलिए जनता अब पछता रही है कि उनसे बीते चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार के पक्ष में क्यों वोट डाला। जनता इस चुनाव में अपनी पिछली गलती को सुधारते हुए फिर क्षेत्र की कामन माकपा के हाथों में सौंपेगी, ताकि इलाके का समुचित विकास हो सके।वहीं, तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार माला साहा का कहना है कि बीते चुनाव में जब परिवर्तन की हवा नहीं थी, मैंने राजदेव ग्वाला को 538 मतों से हराया था। अब काशीपुर-बेलगछिया ही क्यूं पूरे राज्य में परिवर्तन की हवा है और राज्य की जनता माकपा के आतंक से तंग आ चुकी है। उन्होंने कहा कि बीते पांच साल के दौरान मैंने इलाके के विकास के लिए जितना काम किया है। माकपा के विधायकों ने बीस साल में नहीं किया। दूसरी ओर, भाजपा के आदित्य टंडन का कहना है कि परिवर्तन का अर्थ सिर्फ झंडा परिवर्तन नहीं है। सही मायने में परिवर्तन तभी होगा, जब व्यवस्था बदलेगी और साफ-सुथरी छवि वाले लोग विधायक चुने जाएंगे। उन्होंने कहा कि राज्य में सुशासन केवल भाजपा ही दे सकती है। उन्होंने कहा कि मैं चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश समेत भाजपा शासित राज्यों का उदाहरण पेश कर रहा हूं साथ ही भाजपा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा किए गए जनहितकारी कार्यों का हवाला दे रहा हूं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में हिंदीभाषी मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है और इसका लाभ मुझे अवश्य मिलेगा, क्योंकि माकपा व तृणमूल के उम्मीदवार गैर हिंदीभाषी हैं।

Friday, April 8, 2011

माकपा व तृणमूल में कोई फर्क नहीं : गणेश धनानिया

शंकर जालान कोलकाता,। उत्तर कोलकाता स्थित श्यामपुकुर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की टिकट पर चुनाव लड़ रहे गणेश धनानिया का कहना है कि माकपा व तृणमूल कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है। कभी माकपा के समर्थक रहे लोग ही आज परिवर्तन की हवा का लाभ उठाने के लिए तृणमूल कांग्रेस का झंडा पकड़े हुए हैं। रही बात कांग्रेस की तो उसने तो तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के सामने मानो आत्मसमर्पण कर दिया हो। इसलिए मैं न केवल श्यामपुकुर बल्कि पूरे राज्य की जनता से अपील करता हूं कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों को विजय बनाकर न केवल विधानसभा भवन पहुंचाएं, बल्कि राज्य में हिंसा और अराजकता की राजनीति करने वाली माकपा और तृणमूल कांग्रेस को हराकर बुद्धदेव भट््टाचार्य व ममता बनर्जी को करारा जवाब दे। बातचीत में धनानिया ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें खासा समर्थन मिल रहा है। हिंदीभाषी होने की वजह से क्षेत्र के काफी लोग मेरे साथ हैं। उन्होंने बताया कि फारवर्ड ब्लॉक ने यहां से जीवन प्रकाश साहा और तृणमूल कांग्रेस ने शशि पांजा को उम्मीदवार बनाया है। जबकि ये दोनों ही उम्मीदवार गैर हिंदीभाषी है और इलाके में पचास फीसद से ज्यादा हिंदीभाषी मतदाता है। इसका लाभ चुनाव परिणाम के रुप में उन्हें अवश्य मिलेगा। एक सवाल के जवाब में धनानिया ने बताया कि जीतने पर क्षेत्र में ‘राम राज’ लाने की पूरी कोशिश करूंगा। इसके तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, बस्ती व पार्को के विकास के साथ-साथ सड़क मरम्मत की दिशा में धारावाहिक रुप से काम करता रहूंगा। इलाके से गुंडागर्दी खत्म करने की भी पहल करूंगा। इसके अलावा क्षेत्र के वरिष्ठ व अनुभवी नागरिकों को साथ लेकर श्यामपुकुर के समुचित विकास के लिए न केवल योजना तैयार करूंगा, बल्कि उसे क्रियान्वित भी करूंगा। धनानिया ने बताया कि नीमतला व काशी मित्र घाट का कायाकल्प, बंद पड़े मेयो अस्पताल को खुलवाने और गंगा घाटों के की मरम्मत भी उनकी कार्य सूची में शामिल है। इसके साथ ही बदमाश बस्ती पर रह रही महिलाओं को पुलिसिया और राजनीति जुल्म से मुक्ति दिलाना, बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराना भी उनकी प्राथमिकताओं में शामिल हैं। श्यामपुकुर में भाजपा का कोई खासा प्रभाव नहीं है? फारवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार जीवन प्रकाश साहा, तृणमूल कांग्रेस की शशि पांजा समेत विरोधी दलों के उम्मीदवारों को चुनाव में पछाड़ने के लिए कोई विशेष रणनीति बनाई है क्या? फारवर्ड ब्लॉक व तृणमूल कांग्रेस में किसे निकटतम प्रतिद्वंदी मान रहे हैं? इन सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि बीते दो-तीन सालों में श्यामपुकुर ही क्या पूरे राज्य में भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। 2006 में जो चुनाव हुआ था और 2011 में होने वाले चुनाव में काफी फर्क है। इस बार कई सीटें परिसीमन की भेंट चढ़ गई है। कई क्षेत्रों में फेरबदल हुआ है। इसका लाभ मुझे अवश्य मिलेगा। जहां तक फारवर्ड ब्लॉक व तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को पछाड़ने की बात है, तो काम मतदाताओं का है। मैं केवल भाजपा की उपलब्धि और क्षेत्र की वर्तमान समस्याओं को लेकर मतदाताओं के पास जा रहा है। अब यह तय करना मतदाताओं का काम है कि वह किसे विधायक चुनती है। इतना जरूर कह सकता हूं कि प्रचार के दौरान मुझे जिस तरह का समर्थन मिल रहा है उसे देखते हुए मुझे मेरी जीत पक्की लगती है।

Monday, April 4, 2011

मतदान के मामले में मन की मालिक हैं महिलाएं

शंकर जालान कोलकाता। विधानसभा चुनाव के लिए महानगर की युवतियां और गृहिणियां अब गंभीरता से विचार करने लगी हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि युवती या महिलाएं अपने पिता या पति के कहने पर वोट नहीं देती। उनका कहना है कि खाना भले ही वे ‘उनकी’ (पिता या पति) की पसंद का बनाती हो, लेकिन वोट अपनी पसंद के उम्मीदवार को देती हैं। मतदान के मामले में वे अपने मन की मालिक हैं। इस बारे में कई युवती और गृहिणियों से बात की गई तो इन लोगों ने कहा कि खाना पिता या पति की पसंद का बनाया जा सकता है, लेकिन जहां तक मतदान की बात है इस बारे में किसी की राय नहीं मानेंगी। कविता सिंह नामक एक गृहिणी ने बताया कि मेरे ससुराल में जिस पार्टी को वोट दिया जाता है, मैं अपना वोट उस पार्टी को नहीं देती। उन्होंने कहा कि मेरे ससुर ने एक-दो बार जरूर पूछा कि वोट किसे देकर आई हो, लेकिन मेरे पति कभी नहीं पूछते। उन्हें पता है कि मेरा वोट किस पार्टी के उम्मीदवार को जाता है। आप किस आधार पर पार्टी या उम्मीदवार का चयन करती हैं? इसके जबाव में उन्होंने कहा कि मैं आलू-प्याज के भाव पर वोट नहीं देती। मैं यह देखती हूं कि कौन सा दल या उम्मीदवार महिला होने के नाते हमें क्या तरजीह देगा। कौन महिलाओं के मान, सम्मान, इज्जत, आबरू की रक्षा के प्रति ईमानदारी से आवाज बुलंद करेगा।पेशे से वकील मंजू देवी अग्रवाल ने बताया कि राजनीति में सक्रिय सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, वसुंधराराजे सिंधिया, सुषमा स्वराज, जयललिता, मायावती, वृंदा करात, शीला दीक्षित जैसी महिलाओं के नाम उन्हें प्रभावित करते हैं, लेकिन अफसोस यह है कि ये नामचीन महिलाएं भी देश की आधी आबादी के बारे में ईमानदारी से नहीं सोचती। सब अपनी जीत और कुर्सी पाने को आतुर रहती हैं।पेशे से शिक्षिका पुष्पा देवी का कहना है कि वोट देना चुनाव लड़ने से बड़ी बात है। वोट देने वाले को हजार बार सोचना पड़ता है, क्योंकि यह मसला उनकी संतुष्टि और राज्य के भविष्य से जुड़ा होता है। उनके शब्दों में चुनाव लड़ने वाले को तो सिर्फ एक ही चिंता रहती है कि किस तरह उनकी जीत सुनिश्चित हो, लेकिन मतदाताओं को यह गंभीरता से सोचना पड़ता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार के पक्ष में जाए और राज्य की बागडोर सही राजनीति पार्टी के हाथों में हो।

Sunday, April 3, 2011

गणगौर की तैयारियां जोरों पर

शंकर जालान वृहत्तर बड़ाबाजार के बांसतला, बड़तला, ढाकापट््टी, गणेश टाकीज, मालापाड़ा, हंसपुकुर, नींबूतला, कलाकार स्ट्रीट के अलावा हावड़ा, अलीपुर, साल्टलेक व वीआईपी रोड में तीन दिवसीय गणगौर मेले की तैयारियां शुरू हो गई है। राजस्थान के बीकानेर की तर्ज पर तीन दिनों तक लगने वाले गणगौर मेले का उद्घाटन का क्रम मंगलवार से शुरू होगा। गणगौर मेले को आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न कमिटियों की ओर से बड़ाबाजार की कई सड़कों व गलियों को जगमगाती रोशनी, तोरणद्वार और फूल-मालाओं से दुल्हन की तरह सजाया गया है। गणगौर उत्सव के मद्देनजर एक ओर जहां गणगौर मिलन और पानी पिलाने की रस्म जोरों पर है, वहीं दूसरी ओर गणगौर मेला कमिटी के सदस्य गीत-गायन के रिहर्सल में जुटे हैं।गवर माता, गवर माता खोल ए किवाड़ी, ये बायां आयी पूजन..., जैसे गीतों की स्वरलहरी के साथ राजस्थान के प्रमुख पर्व गणगौर को लेकर यहां के राजस्थानियों में काफी उत्साह है। गणगौर मेले को लेकर यहां की नौ गणगौर मंडलियां श्री श्री गवरजा माता पारख कोठी, बांसतला, नींबूतला, गोवर्धननाथजी, बलदेवजी, हंसपुकुर, गांगुली लेन, कलाकार स्ट्रीट और मनसापुरण मंडलियों के सदस्य अपने-अपने काम में जुटे हैं। इसके अलावा श्री श्री गवरजा माता वीआईपी अंचल, हावड़ा, साल्टलेक और अलीपुर में भी गणगौर उत्सव की धूम चल रही है।गणगौर मेले के उद्घाटन के बाद से भजन-संध्या, सांस्कृतिक कार्यक्रम और शोभायात्राओं दौर चलेगा। बड़ाबाजार के अलावा वीआईपी रोड, साल्टलेक और अलीपुर क्षेत्र में भी बीते कुछ सालों से गणगौर मेले की धूम मचने लगी है, लेकिन बड़ाबाजार के मेले की रौनक कुछ और ही रहती है। बड़ाबाजार अंचल में रहनेवाले राजस्थानियों में गणगौर मेले के प्रति उत्साह देखते ही बनता है। तीन दिवसीय मेले में विभिन्न गवरजा मंडलियों द्वारा निकाली जानेवाली झांकियों के प्रति भी उत्साह कम नहीं है।वैसे तो गणगौर पूजन कुंवारी कन्याएं श्रेष्ठ वर (पति) पाने के लिए करती हैं। जहां होलिका दहन के दूसरे दिन से ही कन्याएं होलिका दहन की राख से 16 पिंडियां बनाकर विधिवत गणगौर पूजन शुरू कर देती हैं। वहीं, यहां की सभी गणगौर मंडलियां माता गवरजा की अगवानी में लग जाती हैं।तीन दिवसीय मेले का मुख्य आकर्षण होता है नवगीतों की प्रस्तुति। प्रत्येक मंडली द्वारा गीत पेश किया जाता है और इस प्रस्तुति की विशेष बात यह रहती है कि गीत बिल्कुल नया रचित होता है। गीत-गायन में शामिल लोग पूर्ण राजस्थानी परिधान जैसे साफा, धोती और सिल्क का कुर्त्ता पहन कर बड़ाबाजार में बीकानेर जैसे माहौल तैयार कर देते हैं।मंडलियों द्वारा निकाली जाने वाली झांकियों को देखने के लिए देर रात तक भारी तादाद में स्थानीय लोग रास्ते के दोनों किनारे खड़े रहते हैं। कहीं-कहीं तो लोग आरती, पुष्पवर्षा या गर्म-शीतल पेयजल से शोभायात्रा में शामिल लोगों का स्वागत करते नजर आते हैं। रात सात बजे से शुरू होने वाला उत्सव देर रात तक जारी रहता है।

Friday, April 1, 2011

मीना पुरोहित को है ‘कमल’ खिलने की उम्मीद

शंकर जालान कोलकाता। जोड़ासांकू विधानसभा क्षेत्र में इस बार कमल फूल खिलेगा ही खिलेगा, इसके साथ ही राज्य की अन्य सीटों पर भी इस बार कमल फूल खिलने की संभावना है। राज्य की जनता बदलाव के साथ-साथ शांति चाहती है, जो केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मार्फत ही संभव है। राज्य के मतदाता माकपा और तृणमूल कांग्रेस की हिंसा व अराजकता से ऊब चुकी है और कांग्रेस लगभग नगण्य हो गई है। ऐसी स्थिति में मतदाताओं के पास एक मात्र विकल्प रह जाता और वह है भाजपा। यह कहना है कोलकाता की पूर्व डिप्टीमेयर, वर्तमान में वार्ड 22 की पार्षद और जोड़ासांकू विधानसभा केंद्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही मीनादेवी पुरोहित का। उन्होंने बताया कि बतौर डिप्टीमेयर व पार्षद मैंने ईमानदारी से बेहतर काम किया, बराबर लोगों के संपर्क में रही और लोगों के सुख-दुख का हिस्सा बनी इसी का प्रतिफल है कि पार्टी ने उन पर विश्वास जताते हुए उन्हें विधानसभा का टिकट दिया और उन्हें उम्मीद है कि इलाके की जनता भी उनपर भरोसा करते हुए उन्हें वोट रूपी आशीर्वाद देते हुए विधानसभा भवन अवश्य पहुंचाएंगी।फिलहाल राज्य में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है, ऐसे में आम जीत की उम्मीद किस आधार पर कर रही हैं? जीतने पर आप की क्या प्राथमिकता होगी? किसी अपना निकटतम प्रतिद्वंदी किसे मान रही है? लोगों के पास क्या वायदे लेकर जा रही है? प्रचार के दौरान कैसा समर्थन मिल रहा है? क्या प्रचार के लिए कोई केंद्रीय नेता आने वाले हैं? परिसीमन का क्या प्रभाव पड़ेगा? इन सवालों के जवाब में पुरोहित ने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं कि 2006 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत नहीं मिली तो 2011 में भी नहीं मिलेगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कर्नाटक में कभी भाजपा के मात्र दो विधायक थे और आज वहां भाजपा की सरकार है। उन्होंने कहा कि 2006 में भाजपा ने तृणमूल के साथ मिलकर केवल 29 सीटों पर चुनाव लड़ था और उनमें भी 25 से ज्यादा ऐसी सीटें थी जहां 50 फीसद से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता थे। जीतने पर इलाके की बस्ती के विकास के साथ-साथ सड़क, प्रकाश, पार्क, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा समेत कई समस्याओं को दूर करते हुए क्षेत्र को मॉडल बनाने की पूरी कोशिश करूंगी। जहां तक प्रतिद्वंदिता का सवाल है वैसे तो मेरी लड़ाई किसी से नहीं है। मैं हर हाल में जीत रही हूं। माकपा की जानकी सिंह व जनता दल यूनाइटेड के मोहम्मद सोहराब कोई गिनती में नहीं है, हां इन दोनों की तुलना में तृणमूल कांग्रेस की स्मिता बक्सी कुछ अधिक वोट बटोर सकती हैं। इसके बावजूद उनका चुनाव परिणाम प्रभावित नहीं होगा।मीना पुरोहित ने कहा- मतदाताओं से बिल्कुल सहज रूप से मिल रही है। जहां तक वायदे की बात है तो मैं कथनी में नहीं करनी में विश्वास रखती हूं। क्षेत्र की जनता मुझे बतौर पार्षद कई सालों से देख रही है और मेरे काम से संतुष्ट है, इसलिए मैं अन्य उम्मीदवारों की तरह वायदों की झड़ी नहीं लगाना चाहती। प्रचार के दौरान व्यापक समर्थक मिल रहा है। ज्यों-ज्यों चुनाव की तिथि नजदीक आएगी, प्रचार तेज होगा और निश्चित तौर पर कई केंद्रीय नेता प्रचार के लिए आएंगे। परिसीमन का कुछ प्रभाव पड़ेगा, लेकिन मेरी जीत प्रभावित नहीं होगी।उन्होंने बताया कि विधानसभा पहुंचकर व्यापारियों की दिक्कतों को दूर करना, विधवा महिलाओं को भत्ता मुहैया कराना, सरकारी स्कूल के कायाकल्प और हिंदीभाषियों की समस्या के समाधान की दिशा में भी तेजी से काम करूंगी।