Thursday, August 4, 2011

हिजड़ों की हुकार

शंकर जालान



पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के पांडुआ इलाके में बीते दिनों संपन्न हुए हिजड़ों (किन्नरों) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिजड़ों की हुंकार गुंजी। पुरुष और महिला के बीच अपनी पहचान के लड़ाई लड़ रहे किन्नरों इस सम्मलेन में कई बातें व मांग रखी। सम्मेलन में शिरकत कर रहे किन्नरों के मुताबिक अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई, तो वे देश भर में व्यापक पैमाने पर आंदोलन करने के बाध्य होंगे। किन्नरों के हितों की रक्षा के लिए लंबे अरसे से आंदोलन कर रही संस्था पश्चिम बंग वृहन्नला वेलफेयर सोसाइटी के बैनर तले हुए सम्मेलन में किन्नरों की मांग मंजूर न होने पर अनशन करने व धरना देने की चेतावनी दी गई। संस्था की सचिव शोभा हालदार अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रोजगार व पुवर्वास की व्यवस्था न होने से किन्नरों की हालत दयनीय हो गई है। नौकरी व रोजगार न होने के कारण असंख्य किन्नर भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं। यह दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके मुताबिक बिगत में किए गए आंदोलन के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला है। सम्मेलन में देश के कई राज्यों के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान समेत कई देशों के किन्नर शामिल हुए और इन सभी ने एक स्वर में देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने के साथ ही अनशन पर बैठने की बात कही।
आप लोगों की क्या मांग है? आप समाज और सरकार से क्या चाहते हैं? इसके जवाब में कई किन्नरों ने एक साथ कहा कि अभी भी अनगिनत किन्नर को मतदाता परचियपत्र, बीपीएल कार्ड, स्वास्थ्य बीमा, पासपोर्ट नहीं मिला है। हम यह सारी सुविधा मिले, साथ ही बैंक में खाता खोलने में हो रही परेशानी से निजात भी। रुपमती नामक एक किन्नर ने बताया कि केंद्र व राज्य सरकार ने समाज के शोषित, पीड़ित व उपेक्षित लोगों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाई है। इन योजनाओं का लाभ किन्नरों को नहीं मिल रहा है। उसने कहा कि कुछ लोग फर्जी किन्नर बन कर लोगों से पैसे वसूल रहे हैं। उसने सरकार से किन्नरों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए कल्याण कार्यक्रम बनाने की अपील की करने के साथ ही यह आरोप लगाया कि पुलिस की मिलीभगत से यह फर्जी किन्नरों का धंधा जारी है।
संस्था के प्रवक्ता शंकर बनिक के मुताबिक देश में उपहास के पात्र बने किन्नरों की तादाद करीब साठ लाख है। इनमें पश्चिम बंगाल के सवा लाख किन्नर शामिल हैं। कोलकाता में निवास करने वाले किन्नरों की संख्या करीब पचास हजार है। बनिक ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार वोट के लिए किन्नरों का दरवाजा खटखटाते हैं व इसके बाद चले जाते हैं।
एक किन्नर ने बताया कि विवाह-शादी या फिर बच्चे के जन्म जैसी शुभ घड़ी के दौरान नाच-गाकर उनका गुजारा चलता है, लेकिन जब साहिर लुधियानवी का लिखा गीत - इंसान की औलाद है इंसान बनेगा सुनती तब काफी बेदना होती है। क्योंकि समाज के लोग न वह मर्द समझते है और न औरत। और तो और इंसान भी नहीं मानते व हमेशा हिकारत की नजर से देखते हैं। उनकी कुदरती कमी पर कोई हमदर्दी नहीं रखता, बल्कि लोग मजाक उड़ाते हैं। त्रासदी यह कि समाज ने अपनी देन को ही दरकिनार कर रखा है। भीख मांगकर गुजर-बसर करना हमारी किस्मत बन चुकी है और कहीं-कहीं तो देह व्यापार भी।
रेशमा नामक एक किन्नर ने बताया कि किन्नरों की बिरादरी के नेता ही उनका शोषण करते हैं। हम जैसे कमजोर, बेचारों, किस्मत के मारों की बेबसी, कशमकश, दर्द और तड़प को शिद्दत से महसूस करके इस कड़वी हकीकत और
किन्नरों की जिंदगी पर दिलोदिमाग को झकझोरने वाली फिल्म है- ... और नेहा नहीं बिक पाई। सक्सेना की बतौर राइटर-प्रोड्यूसर-डायरेक्टर यह पहली फिल्म है। यही नहीं, वे इसके सूत्रधार भी बने हैं। एक घंटे की इस फिल्म में किन्नरों के दुख-दर्द को रेखांकित किया गया है।
उसने बताया कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हों कि बंधुआ मजदूरी खत्म हो चुकी है, पर किन्नरों की दुनिया में यह कुप्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। माता-पिता (जनक) और जमाने के तानों से परेशान होकर हिजड़े उनकी टोली में शामिल होने को मजबूर होते हैं।
एक किन्नर ने कहा कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में किन्नरों की दशा अधिक दयनीय है। उनसे कहा कि वे बहुत जल्द अपने कुछ साथियों के साथ राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगी और उनसे (ममता) से किन्नरों की भलाई बाबत कुछ कदम उठाने का आग्रह भी।

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