Wednesday, September 7, 2011

केंद्र हारा, किसान जीते

शंकर जालान



पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की सहमति से राज्य के बिजली मंत्री मनीष गुप्ता ने पूर्व मेदिनीपुर जिले के हरिपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा केंद्र परियोजना को रद्द कर दिया है। ममता बनर्जी की इस घोषणा से केंद्र (केंद्रीय सरकार) जहां खुद को हारा हुआ महसूस कर रहा है। वहीं, जिले के किसान जीत का जश्न मना रहे हैं। मुख्यमंत्री बनर्जी की इस घोषणा के ठीक चार दिन बाद बंगाल के दौर पर आए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु ऊर्जा की अहमियत और जरूरतों पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को संकेत दिया कि पूर्व मेदिनीपुर के हरिपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा केंद्र परियोजना को निरस्त कर उन्होंने अच्छा नहीं किया है। हालांकि इस संबंध में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा पर उपयोगिता बता कर सब कुछ कह गए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के विकास में परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह भूमिका भविष्य में और महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कई अनुसंधान हो रहे हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, राज्यपाल एमके नारायणन के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंच पर मौजूदगी के बीच उन्होंने परमाणु ऊर्जा के संबंध में जो कुछ भी कहा उनसे साफ लग रहा था कि वे परमाणु बिजली केंद्र स्थापित करने को लेकर काफी आशान्वित हैं। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री के दौरे से मात्र चार दिन पहले विधानसभा में बिजली मंत्री मनीष गुप्ता ने घोषणा की थी कि राज्य में अब परमाणु बिजली परियोजना स्थापित नहीं होगा।
मालूम हो कि प्रधानमंत्री ने अपने रूस दौरे के दौरान देश में पांच परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उसी में से एक पूर्व मेदिनीपुर के हरिपुर में स्थापित होना था। पर्यावरण मंत्रालय ने भी
संयत्र स्थापित करने के हरी झंडी दे दी थी। रूस की एक कंपनी को जमीन भी आवंटित कर दी गई थी। बावजूद इसके केंद्र सरकार को बिना विश्वास में लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने परमाणु बिजली परियोजना रद्द करने की घोषणा की तो केंद्र सरकार के लिए एक परेशानी खड़ी हो गई है।
वहीं राजनीतिक हलकों में दबे स्वर में यह बात उठने लगी है कि इस मसले पर शायद राज्य व केंद्र आमने-सामने हो सकते हैं।
दूसरी ओर, वैज्ञानिकों ने पूर्व मेदिनीपुर जिले के हरिपुर में परमाणु ऊर्जा परियोजना को रद्द करने के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के फैसले का स्वागत करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया है।परमाणु विद्युत विरोधी प्रचार आंदोलन के बैनर तले
वैज्ञानिकों ने कहा कि हम बंगाल सरकार को समझदारी दिखाने के लिए धन्यवाद देते हैं और राष्ट्र के समक्ष उदाहरण पेश करने के लिए बधाई देते हैं। उन्होंने कहा कि हमे उम्मीद है कि केंद्र भी ऐस इस बाबत समझदारी दिखाएगा।
उन्होंने कहा कि वे लगातार इस बात की मांग करते रहे हैं कि बंगाल को परमाणु मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाए। इस बयान पर साहा परमाणु भौतिकी संस्थान के पलाशबरन पाल, भारतीय रासायनिक जीवविज्ञान संस्थान के तुषार
चक्रवर्ती, बोस संस्थान के पूर्व निदेशक मेहर इंजीनियर, बिरला औद्योगिक एवं प्रौद्योगिकी संग्रहालय के पूर्व निदेशक समर बागची, स्कूल ऑफ इनर्जी स्टडीज के पूर्व निदेशक सुजाय बसु तथा साहा परमाणु भौतिकी संस्थान के
पूर्व निदेशक मनोज पाल समेत कई वैज्ञानिकों ने हस्ताक्षर किए हैं।
राज्य सरकार के इस फैसला का वैज्ञानिकों द्वारा स्वागत किए जाने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्ववाली पश्चिम
बंगाल सरकार ने और स्पष्ट कर दिया है कि पूर्वी मेदिनीपुर जिले के हरिपुर में कतई प्रस्तावित परमाणु बिजली संयंत्र नहीं लगेगा। इतना ही नहीं बंगाल में अब एक भी परमाणु उर्जा केंद्र नहीं स्थापित होंगे। विधानसभा में पूछे गये सवालों के जवाब में ऊर्जा मंत्री मनीष गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार हरिपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित नहीं करने का निर्णय लिया है। रा्ज्य के पूर्व मुख्य सचिव रहे गुप्ता ने आरोप लगाया कि पूर्व वाममोर्चा सरकार ने परियोजना के बारे में लोगों को गुमराह किया था। तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई वाली वर्तमान सरकार राज्य के किसी भी क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के पक्ष में नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि बिजली की बढ़ती मांग और कमी को सरकार कैसे पूरा करेगी ? इस पर गुप्ता ने कहा कि राज्य में वर्तमान समय में 6500 मेगावाट बिजली की मांग है। इनमें से 5,525 मेगावाट बिजली राज्य में उत्पन्न की जा रही
है, जबकि कमी को पूरा करने के लिए पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड से बिजली खरीदी जाएगी।
उन्होंने कहा कि स्थानीय किसानों और मछुआरों ने आजीविका से बेदखली और जानमाल के नुकसान के भय से कई गैर सरकारी संगठनों परमाणु ऊर्जा केंद्र पर आपत्ति जताई थी। साथ ही वाममोर्चा सरकार ने इस परियोजना के बारे में
लोगों को भ्रमित किया था।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना को मंजूरी देने के साथ-साथ रूस की कंपनी रोसाटोम को हरीपुर में
जमीन का आबंटन भी कर दिया था। परियोजना के तहत कंपनी को हरीपुर में एक परमाणु पार्क की स्थापना करना था, जहां एक हजार मेगावाट परमाणु बिजली का उत्पादन होता। बाद में कई गैरसरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के समर्थन में स्थानीय किसानों व मछुआरों ने इस परियोजना के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। उनका कहना था कि परियोजना स्थापित होने से उनकी आजीविका खत्म होने के साथ-साथ उनके विस्थापित होने की आशंका है। यही नहीं, कुछ पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों ने भी परियोजना से पर्यावरण पर होने वाले खतरे के प्रति चिंता जताई थी।

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